Maa ka Pyaar
Maa ka Pyaar

Summary: मां के प्यार की ताकत: स्पेशल चाइल्ड अन्वी की प्रेरणादायक कहानी

रीमा ने अपनी स्पेशल चाइल्ड बेटी अन्वी को कभी हारने नहीं दिया और धैर्य व प्यार से उसकी जिंदगी बदल दी। यह कहानी साबित करती है कि मां का unconditional प्यार हर मुश्किल को आसान बना देता है।

Hindi Motivational Story: रीमा को हमेशा से लगता था कि दुनिया की सबसे सुंदर चीज़ एक बच्चे की हंसी होती है। जब उसकी गोद में नन्हीं-सी बच्ची आई थी, तो उसने सोचा था कि अब उसकी जिंदगी पूरी हो गई है। उसने उसका नाम रखा अन्वी। बड़ी-बड़ी चमकदार आंखें और मासूम मुस्कान वाली वह बच्ची पूरे परिवार की धड़कन थी। रीमा उसके भविष्य के सपने देखने लगी थी। उसे लगता था कि अन्वी बड़ी होकर डॉक्टर बनेगी, या शायद डांसर, या फिर पेंटिंग करेगी। सपनों की कोई सीमा नहीं थी।

लेकिन धीरे-धीरे समय बीतता गया। जैसे-जैसे अन्वी बड़ी होती गई, रीमा ने महसूस किया कि वह बाकी बच्चों जैसी नहीं है। दो साल की उम्र तक भी उसने ठीक से बोलना शुरू नहीं किया था। जब मोहल्ले की बाकी बच्चियां खेलते हुए कविताएं गुनगुनातीं, अन्वी बस उन्हें देखती रहती। तीन साल तक भी उसकी चाल डगमगाती थी और वह अक्सर गिर जाती थी। शुरू में सबने कहा, “बच्चे देर से भी बोलते हैं, चिंता मत करो।” लेकिन रीमा का मां वाला दिल समझ चुका था कि कुछ तो अलग है।

डॉक्टरों की लंबी कतारें, टेस्ट, जांचें आखिरकार रिपोर्ट सामने आई। डॉक्टर ने साफ कहा, “आपकी बेटी एक स्पेशल चाइल्ड है। उसका विकास धीमा होगा, शायद सामान्य बच्चों की तरह कभी न बोल पाए या न चल पाए। आपको धैर्य रखना होगा।”

यह सुनते ही रीमा की दुनिया जैसे रुक गई। आंखों से आंसू बहे जा रहे थे। उसे लगा जैसे किसी ने उसके सारे सपनों को तोड़ दिया हो। लेकिन अगले ही पल उसने अपनी बेटी की आंखों में देखा। उस मासूमियत में इतना विश्वास था कि रीमा ने ठान लिया चाहे दुनिया कुछ भी कहे, वह अपनी बेटी को कभी हारने नहीं देगी।

अब रीमा की जिंदगी का मकसद सिर्फ एक था अपनी बच्ची को सिखाना, उसे संभालना और हर हाल में उसके चेहरे पर मुस्कान बनाए रखना। उसने दिन-रात किताबें पढ़ीं, इंटरनेट पर जानकारी जुटाई, डॉक्टरों से मिलती रही। वह जान गई थी कि स्पेशल बच्चों को ज्यादा धैर्य, ज्यादा समय और बिना शर्त प्यार की जरूरत होती है।

समाज का रवैया आसान नहीं था। पड़ोस वाले ताने कसते “इतनी कोशिश कर रही हो, पर फायदा क्या है?” रिश्तेदार कहते, “बेचारी लड़की कभी स्कूल नहीं जा पाएगी।” कई बार तो रीमा का मन टूट जाता। वह रातों को अकेले रोती। लेकिन हर बार सुबह जब अन्वी अपनी छोटी-सी मुस्कान के साथ उसे देखती, तो रीमा फिर मजबूत हो जाती।

उसने घर में ही छोटी-छोटी प्रैक्टिस शुरू की। अन्वी को अक्षर पहचानने में बहुत वक्त लगता। जहां बाकी बच्चे हफ्तों में एबीसीडी सीख लेते, अन्वी को महीनों लग जाते। लेकिन जब पहली बार उसने टेढ़ा-मेढ़ा सा ‘अ’ लिखा, तो रीमा को लगा जैसे उसने कोई बड़ी जंग जीत ली हो। उसके लिए यह जीत किसी मेडल से कम नहीं थी।

रीमा का हर दिन संघर्ष से भरा था। सुबह जल्दी उठकर घर का काम निपटाना, फिर अन्वी के साथ बैठना, उसे लिखना-पढ़ना सिखाना, फिजियोथेरेपी कराना यह सब उसकी दिनचर्या का हिस्सा बन गया। कई बार अन्वी जिद करती, कॉपी फाड़ देती, खिलौने फेंक देती। पर रीमा ने कभी गुस्सा नहीं किया। वह जानती थी कि उसकी बच्ची के लिए हर छोटी बात आसान नहीं है।

धीरे-धीरे अन्वी ने गिनती सीखनी शुरू की। उसने रंग पहचानना शुरू किया। वह कभी “लाल” कहती, कभी “नीला” और रीमा का दिल खिल उठता। उसके लिए यह छोटी-छोटी जीतें किसी बड़ी उपलब्धि से कम नहीं थीं।

समय के साथ अन्वी सात साल की हो गई। अब वह स्पेशल स्कूल जाती थी। वहां शिक्षक भी धैर्य से बच्चों को संभालते थे। रीमा हर दिन उसे स्कूल छोड़ने जाती और वहीं क्लासरूम के बाहर बैठकर इंतजार करती। बाकी माएं अपने बच्चों की प्रगति देखकर खुश होतीं, और रीमा सिर्फ यही चाहती थी कि अन्वी एक शब्द और साफ बोल पाए।

फिर आया वह दिन जिसने रीमा की जिंदगी हमेशा के लिए बदल दी। स्कूल का वार्षिक समारोह था। पूरा हॉल बच्चों और अभिभावकों से भरा हुआ था। कोई गाना गा रहा था, कोई नाटक कर रहा था। रीमा अपनी बेटी को पीछे बैठा देख रही थी। उसके मन में डर भी था और उम्मीद भी।

अचानक एंकर ने कहा, “अब स्टेज पर आएंगी अन्वी, जो हमारे लिए एक प्यारा-सा सरप्राइज लेकर आई हैं।” रीमा का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। उसने सोचा, “क्या मेरी बेटी सच में स्टेज पर जाएगी? कहीं डर गई तो? कहीं कुछ बोल न पाई तो?”

लेकिन सबकी निगाहों के सामने अन्वी धीरे-धीरे उठी। उसके छोटे-छोटे कदम डगमगाते हुए स्टेज तक पहुंचे। हाथ में एक रंगीन कार्ड था, जिस पर उसने अपनी मासूमियत से कुछ रंग भरे थे। पूरा हॉल खामोश हो गया। अन्वी ने कांपते हुए होंठ खोले और धीरे-धीरे कहा “म…मा… ल…व… यू।”

सिर्फ तीन शब्द। लेकिन उन तीन शब्दों में एक मां के लिए पूरी दुनिया छिपी हुई थी। हॉल तालियों से गूंज उठा। लोग खड़े होकर ताली बजाने लगे। किसी की आंखों में आंसू थे, किसी के चेहरे पर मुस्कान। और रीमा… वह वहीं खड़ी होकर रो पड़ी। खुशी के आंसू उसके गालों पर बहने लगे। उसकी बेटी ने पहली बार इतने साफ शब्दों में अपनी भावनाएं व्यक्त की थीं।

उस पल रीमा को लगा कि उसकी सारी मेहनत रंग लाई है। कितनी बार उसने समाज के ताने सुने थे, कितनी बार रातों को अकेले रोई थी, कितनी बार खुद को कमजोर महसूस किया था। लेकिन आज उसकी बेटी ने साबित कर दिया था कि प्यार और धैर्य से कुछ भी असंभव नहीं।

उसके बाद से रीमा और अन्वी की जिंदगी बदल गई। अब मोहल्ले वाले वही लोग अन्वी को देखकर कहते, “वाह, कितनी प्यारी बच्ची है। कितनी मेहनत कर रही है।” अब रिश्तेदार भी उसकी तारीफ करने लगे। लेकिन रीमा जानती थी कि असली जीत सिर्फ उसकी नहीं, बल्कि उसकी बेटी की थी।

अन्वी ने उस दिन साबित कर दिया था कि स्पेशल चाइल्ड किसी कमी के साथ नहीं आते। वे अलग होते हैं, लेकिन उनमें एक अनोखी मासूमियत और खास ताकत होती है। उन्हें जरूरत होती है तो सिर्फ प्यार, धैर्य और उस मां की अटूट ताकत की, जो हर मुश्किल का सामना कर सके।

रीमा अक्सर सोचा करती है कि अगर उसने शुरुआत में हार मान ली होती, अगर वह समाज की बातों में आ गई होती, तो शायद अन्वी कभी ये शब्द नहीं बोल पाती। लेकिन अब उसे पूरा यकीन है कि उसकी बेटी धीरे-धीरे सही, पर अपनी राह खुद बनाएगी।

रात को जब अन्वी उसके पास आकर गले लगती और अपने तोतले शब्दों में “मम्मा” कहती, तो रीमा को लगता कि उसने दुनिया की सबसे बड़ी दौलत पा ली है। उसके लिए अब कोई सपना अधूरा नहीं था। मां का प्यार वाकई चमत्कार करता है।

राधिका शर्मा को प्रिंट मीडिया, प्रूफ रीडिंग और अनुवाद कार्यों में 15 वर्षों से अधिक का अनुभव है। हिंदी और अंग्रेज़ी भाषा पर अच्छी पकड़ रखती हैं। लेखन और पेंटिंग में गहरी रुचि है। लाइफस्टाइल, हेल्थ, कुकिंग, धर्म और महिला विषयों पर काम...