Mera Ghar: अभी शादी के छःमहीने ही हुए थे के रीमा के साथ मार पीट की जाने लगी थी, एक दिन घरेलू मारपीट शारीरिक एवं मानसिक प्रताड़ना तथा जानलेवा हमले के पश्चात रात को जैसे तैसे रीमा अपने अपने घर ( मायके) पहुंचीं, और रोते- रोते मां बाप को अपने साथ हुए अत्याचार को बताया। माता पिता ने जैसे- तैसे अपनी बिटिया को समझाया और निर्णय लिया की उनकी बेटी के साथ यह जो घटना घटी है, उसकी सूचना तुरंत अपने सबसे बड़े बेटे आंनद को दी जो कि एक सरकारी ऑफिसर था तथा अपनी पत्नी दिव्या तथा बेटी शालू के साथ इसी शहर में रहता था। जब सबको पता चला के उनकी घर की बेटी के साथ ऐसा हुआ है तो पूरा परिवार गुस्से में था। और पूरे परिवार ने यह निर्णय करके बेटी के साथ हुई इस प्रताड़ना की जानकारी पुलिस को दी। पुलिस केस हो गया तथा बात कोर्ट में पहुंच गई तारीख पे तारीख लगनी शुरू हुई इस प्रकार कोर्ट के चक्कर काटते हुए पूरे तीन साल बीत गए।
शुरू में तो परिवार में बेटी को न्याय दिलाने के लिए आतुरता से काम कर रहा था पर अब उनके हौसले भी टूटने लगे थे । मां बाप भाई सब अपने अपने काम में व्यस्त हो चले थे। दोनों भाइयों की शादी भी हो गई अब तीन भाई, भाभी और बच्चों के साथ रीमा भी इसी घर में थी, भाई भी अपनी घर गृहस्थी में लगभग व्यस्त हो गए थे अब रीमा को कोर्ट की तारीखों पर भी अकेले ही जाना पड़ता था । जो रीमा पूरे परिवार को जान से भी प्यारी थी अब वही रीमा सभी को बोझ लगने लगी थी। कोई उसका काम करता तो चार बार सुना देता, भाभियों को भी रीमा अब एक टक नहीं सुहाती थी, वह हर रोज रीमा को किसी न किसी बात बात पर ताने देती, इसी वजह से घर में हर रोज झगड़ा होने लग गया। इस कारण पिता का व्यवहार भी रीमा के प्रति अब रूखा सा होने लगा था, अब तो रीमा के भाई भी उसको बात बात पर डांटने -फटकारने लगे थे,
इन सब बातों से रीमा अपने आप को अपमानित महसूस करने लगी थी अब रीमा को लगने लगा था कि वह कहीं ना कहीं अपने परिवार पर एक बोझ बनती जा रही है, वह बिल्कुल अलग-थलग तथा अकेली पड़ चुकी है। उसका कैरियर भी दांव पर लग चुका था, और जो महत्व और प्यार उसको परिवार से मिलना चाहिए वह नहीं मिल रहा है घर की हर महत्वपूर्ण बात में उसको नजरअंदाज किया जाने था और उसकी भावनाओं, उसकी तथा इच्छाओं की कोई कद्र नहीं रह गई थी । इन सब बातों को सोच कर रीमा अंदर ही अंदर घुटने लगी थी । उधर परिवारिक कलह को समाप्त करने के लिए भाइयों ने मिलकर सोचा कि किसी बहाने से रीमा को घर से बाहर भेज दे, बड़े भाई ने झूठ बोलकर कि रीमा शहर से दूर एक अच्छा कॉलेज है वहाँ के मालिक चाहतें हैं तुम पढाना शुरू करों बच्चों का भविष्य भी बनेगा स्कूल को एक अच्छा शिक्षक भी मिलेगा फिर तुम पढ़ी लिखी हो अच्छे से मन लगा कर काम करोगी तो तुम भी अपने पैर खड़ी भी हो जाओगी.
उसने घर से बहुत दूर रीमा को नौकरी दिलवा दी। इस प्रकार कुल मिलाकर छः साल व्यतीत हो गए। बस साल में दो बार रीमा घर पर आती और “फिर स्कूल ” लौट जाती थी। यह सिलसिला चलता रहा और उधर कोर्ट में तारीख पे तारीख भी बराबर चलती रही। सभी अपनी अपनी दुनियां मे व्यस्थ थे लेकिन रीमा की बढ़ती उम्र उसकी शारीरिक,सामाजिक और मानसिक जरूरतों, उसके मन की पीड़ा तथा उसकी भावनाओं एंव दुःख को कोई नहीं समझ रहा था। कोई भी उसकी जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं था।
एक दिन घर के सभी लोगोँ ने विचार किया कि कब तक ऐसे चलेगा बेटी समझौता करा कर उसके ससुराल वापिस भेज देना चाहिए , रीमा के भाई ने एक व्यक्ति के माध्यम से
रीमा के ससुराल वालों से बात की , ससुराल वाले केस वापस लेने की बात गए और रीमा उनके अनुरूप रहेगी तभी वो उसको रखेंगे यह बात के लिए रीमा के घरवाले तैयार हो गए। अब बस पूरा परिवार रीमा के घर लौटने का इंतजार करने लगा।
छः महीने बाद रीमा जब घर आ आयी तो वह सफर से बहुत थकी हुई थी सो, बिना कुछ खाए ही सो गई। दूसरे दिन भैया भाभी तथा रीमा के माता- पिता उसके अगल बगल बैठ गए,तथा रीमा से बातें करनी शुरू कर दी सभी रीमा का हाल चाल पूछ रहे थे। रीमा भी अपने आपको थोड़ा रिलैक्स महसूस कर रही थी । अचानक रीमा के बडे़ भाई साहब ने बताया कि उन्होंने उसके पीछे से उसके ससुराल वालों के साथ समझौता कर, केस वापस ले लिया है तथा अब उसको अपने ससुराल जाना होगा। दोनों परिवारों की यही इच्छा है अपने ही बडे़ भाई के मुंह से यह बात सुनकर रीमा एकदम सन्न रह गई उसको बहुत बड़ा झटका लगा सारा अतीत तथा ससुराल पक्ष की सारी प्रड़ताड़नाएं उसकी आंखों के सामने घूम गई। आखिर इस बार भी रीमा को नजरअंदाज कर दिया गया तथा उसकी वेदना का कोई ख्याल नहीं किया गया,! इस खा़स फैसले में भी उसकी हामी भी जरूरी ना समझी गई,! यह सोचते सोचते वह अंदर ही अंदर जल रही थी कि मेरे अपने भी मेरे बारे में—– ? ? ?
लेकिन उसने उसी क्षण ससुराल वापिस ना जाने का दृढ़ निश्चय कर लिया उसने सोचा कि वह जिस नरक से निकल कर आई थी उस नरक में वो दोबारा वापिस नहीं जाएगी क्योंकि यह उसके आत्मसम्मान की भी बात है। चाहे उसको कुछ भी करना पडे़ । लेकिन दूसरे ही पल उसने उसके साथ भाई -भाभी, मां बाप के द्वारा किए गए बर्ताव के बारे में सोचा…………..
रीमा के पास अब और कोई चारा नहीं था परिवार के सभी लोग रीमा के ससुराल वापिस जाने को लेकर खुश थे। रात के समय सभी भोजन कर अपने-अपने कमरों में चले गए, भाई और भाभी अपनी बेटी शालू के साथ नीचे वाले कमरे में सो गए। माता पिता दोनों साथ वाले कमरे में सो गए,रीमा अपने कमरे में ऊपर चली गई। रात के करीब दो बज चुके थे परिवार के सारे लोग गहरी नींद में सोए हुए थे । चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ था। लेकिन आज की रात रीमा के लिए बड़ी भारी थी उसके दुःख, वेदना तथा पीड़ा का कोई सहारा ना था , क्योंकि उसके मन की बात ना कोई सुनना चाहता था ना ही कोई सुनने को तैयार था।
रात के साथ उसकी बेचैनी बढ़ती चली जा रही थी। तभी सहसा वह बिस्तर से उठी और उसने अपने टेबल से पेन-कागज उठाया और जल्दी-जल्दी कुछ लिखने लगीे इसके बाद उसने दबे पावं चुपके से उठकर घर के किसी कमरे से एक रस्सी ली और गले में रस्सी फसा कर फंदे से झूल गई ।
सुबह जब उसकी भाभी उसको जगाने ऊपर उसके कमरे में गई तो रीमा को देख कर उसकी चीख कर निकल गई और वह जोर से रोने लगी। रोने की आवाज़ सुनकर घर के सभी लोग ऊपर आ गए और अपनी ही बेटी का ऐसा मंजर देखकर वहीं बैठ गए।
फिर कापतें हुए हांथों से भाइयों ने अपनी बहन रीमा की लाश को फंदे से नीचे उतारा और बैेड पर लेटा दिया। तथा टकटकी लगाकर उसकी ओर देखने लगे, तभी मझले भाई की नजर एक खुले पेन तथा एक कागज पर पड़ी उसमें कुछ लिखा हुआ था उस कागज में और कुछ नहीं रीमा के द्वारा बयां किया गया आखिरी दर्द था उसमें लिखा था,
“पूरे परिवार को मैं बहुत प्यार करती हूं। मैं इसलिए यह कर रहीं हूंँ कि मैं पिछले काफी समय से अकेली पड़ गई थी मेरी वजह से परिवार का माहौल भी ठीक नहीं रहता था। घर में कलह होती थी मेरी वेदना, पीड़ा, भावना,और अकेलेपन के दर्द को कोई समझना नहीं चाहता था, कल की घटना के बाद तो मैं बिल्कुल ही टूट गई थी ।
भाई! बस आप लोगों से यही बोलना है अगर आप लोगों की बेटियों के साथ यह हो तो जरूर आप लोग उनका साथ अंत तक दीजियेगा जैसे मुझे बीच में अकेला छोड़ दियें उनको मत छोड़ दीजियेगा ••••••परिवार से माफी़!
आपकी”——-~~~~” रीमा
सभी भाई और भाभीयों को तुरुन्त अपनी गलती का एहसास हुआ, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। मां-बाप अपने आप को अलग दोषी ठहरा रहे थे। सभी रीमा से माफी मांगते हुए एक ही बात सोच रहे थे,”कि काश! हम एक बार भी रीमा बोझ न समझ कर सहारा समझतें तो आज बिटिया जिंदा होती….
