Hindi Story: मैं नहा कर पूजा के फूल तोड़ ही रही थी कि मोबाइल के बजने की आवाज आने लगी। मैं जल्दी से मोबाइल उठाने के लिए कमरे में आई जहां मोबाइल चार्ज हो रहा था। फ्लैश में चमकता हुआ नाम देखकर मेरे चेहरे पर खुशी भरी मुस्कराहट तैर गई। मेरी बिटिया रुचिका का फोन था। मेरे हैलो कहने से पहले ही उसने धाराप्रवाह बोलना शुरू कर दिया।
‘ममा, कैसी हो?
‘बस ठीक हूं। बता कैसे फोन किया?
‘ममा आप तो मुझे हमेशा याद आते हो। वह चहचहाती हुई बोली।
‘आप जिस चीज के लिए इतनी चिंतित रहती थी, वही आपकी चिंता मैंने दूर कर दी है।
‘कैसी चिंता, क्या डर दूर कर दिया?
मैं आश्चर्य से बोली ‘तेरा जॉब तो ठीक चल रहा है ना?
‘हां, बिल्कुल ठीक है मम्मा, अगले हफ्ते छुट्टियों में आ रही हूं तब मैं आपको सारी बातें बताऊंगी। आपको कुछ तो समझ में आ ही गया होगा ना।
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‘नहीं-नहीं मुझे कुछ भी समझ में नहीं आया। क्या बोल रही है तू? मैं अनजान बनते हुए बोली।
‘ठीक है, कोई बात नहीं। मैं आपको आकर बताऊंगी।
‘मुझे इंतजार रहेगा बिटिया! कुछ हिंट तो दे दो।
‘नहीं मम्मा, मैं आपको आकर बताऊंगी। आपको अच्छा लगेगा।
‘ठीक है बिटिया, अपना ख्याल रखना।
‘हां मां, तुम भी। यह कहकर रुचिका ने फोन रख दिया।
‘उसके व्हाट्सएप, फेसबुक, उसके डीपी और फ्रेंड लिस्ट और फोटोस में एक चेहरा उसके साथ रहता था। उसके साथ रुचिका का चेहरा दमकता हुआ नजर आता था। उसके साथ उसकी मुस्कुराहट अलग नजर आती थी।
यह मैं कई दिनों से महसूस कर रही थी। रुचिका भी अपनी हर तस्वीर और वीडियो मेरे पास ईमानदारी से भेजा करती थी।
आखिर मैं उसकी मां हूं तो मुझे पता चल ही जाएगा कि वह अपने सहकर्मी आशीष से प्यार करती है और उसे अपना जीवन साथी बनाना चाहती है। दोनों एक जॉब में है। एक-दूसरे को पसंद करते हैं।
आशीष एक अच्छा लड़का है। अच्छे घर परिवार से है। मुझे कोई आपत्ति नहीं है। मैं खुश हूं क्योंकि मेरी बेटी खुश है, मुझे और क्या चाहिए। मैंने अपने आप से कहा।
मैं पूजा की डलिया उठाकर पूजा घर में पहुंच गई और फूल अर्पित करते हुए बोली, ‘हे देवी मां, मेरी बिटिया को हमेशा खुश रखना।

पूजा करके मैं बाहर आई तब तक दो मिस कॉल और आए हुए थे। मोबाइल में नाम देखते ही मेरा दिल धड़क उठा। सारी खुशियां पल भर में छूमंतर हो गई।
मैंने धड़कते दिल से फोन घुमाया और धीरे से बोली, ‘हेलो!
दूसरी तरफ से एक पुरुष की आवाज आई, ‘नमस्ते आंटी, मैं गणेश बोल रहा हूं।
‘नमस्ते बेटा! तुम्हारी मम्मी कहां है? फोन तुमने किया था?
‘नहीं आंटी, फोन मम्मी ने कराया था आपसे बात करने के लिए।
‘कहां है तुम्हारी मम्मी? मैंने कहा।
‘अभी बात कराता हूं। मां बहुत ज्यादा ही बीमार है। वह आपसे बात करना चाहती है। गणेश ने अपनी मम्मी को फोन दिया।
‘हैलो, सुमित्रा ने कहा।
‘सुमित्रा कैसी हो? कैसे याद किया?
बदले में सुमित्रा सिसकने लगी। उसने रोते हुए कहा, ‘रीमा, जिंदगी भर पछतावे के साथ जी रही हूं। अब मरने के करीब आ गई हूं। प्लीज मुझे मेरी बिटिया से मिला दो एक बार। अंतिम बार मैं उसे देखना चाहती हूं।
मेरा दिल टूट गया। जिस बच्ची को मैं अपने जिगर का टुकड़ा मान रही थी, वह मेरी नहीं बल्कि सुमित्रा की बच्ची थी!
मैंने अपने आपको संभालते हुए कहा, ‘क्या हो गया है तुम्हें? तुम्हारी तबीयत खराब है?
‘हां रीमा, मुझे कैंसर हो गया है। डॉक्टर ने कहा है लास्ट स्टेज का कैंसर है। कभी भी कुछ भी हो सकता है। बस 3 महीने मेरे पास बचे हैं। मैंने जो गलती की थी उसकी सजा मिली है मुझे! सुमित्रा सिसक उठी।
‘अरे ऐसा मत बोलो सुमित्रा, तुम्हारे कारण मैं मां बन पाई हूं। तुम्हारा कर्ज तो आजीवन मुझ पर रहेगा! मेरा स्वर भी भर्रा गया।
‘नहीं बहन, अगर तुम सही समय पर नहीं आई होती तो मेरा क्या होता! बस एक बार मेरी बच्ची दिखा दे! वह गिड़गिड़ाने लगी।
‘अगले हफ्ते ही रुचिका घर आ रही है फिर हम दोनों आएंगे।
‘पक्का ना! मैं इंतजार करूंगी। सुमित्रा ने पूछा। मेरे हां कहने के बाद उसने फोन काट दिया था। फोन रखते ही मेरी यादें भंवर बनाकर मुझे डंसने लगीं।
सुमित्रा और मैं बचपन के दोस्त थे। उसकी शादी मेरी शादी से कुछ बाद ही हुई थी मगर वह मां मुझसे पहले बन गई थी।
तीन साल में वह दो बेटियों की मां बन चुकी थी और मैं बांझ बनी बैठी थी। ना तो मुझ में कमी थी और ना ही मेरे पति विश्राम में लेकिन मैं मां नहीं बन पा रही थी। विश्राम फौज में थे कम समय के लिए घर आते थे।
एक दिन सीमा पर गोलीबारी में वह शहीद भी हो गए। हमेशा के लिए मेरी जिंदगी सूनी हो गई। मेरा आंगन हमेशा के लिए सुनसान हो गया था। उस समय मैं मायके में ही थी और वहीं के स्कूल में पढ़ा रही थी।
सुमित्रा का ससुराल धनवान तो था लेकिन अत्यंत ही रूढ़िवादी था। पहले ही उसने दो बेटियों को जन्म दिया था जिसके कारण ससुराल में उसे ताने सुनने को मिलते थे।
दो बेटियों के बाद जब तीसरी संतान भी बेटी ही पैदा हुई तो सुमित्रा घबरा गई। उसने रोते हुए कहा, ‘अगर मैं अपने बच्चों को लेकर ससुराल गई तो या तो मेरी सासू मां मेरी बच्ची को मार डालेगी या मुझे अपनी तीनों बेटियों के साथ निकाल देगी।
‘कैसी बातें कर रही हो तुम? मैंने उसे डांटते हुए कहा।
‘नहीं रीमा, तू नहीं समझेगी मेरी पीड़ा। दो बच्चियों के कारण मुझे कितनी बातें सुननी पड़ती हैं।
‘ऐसा है तो फिर तू अपनी बेटी को मुझे दे दे और अपने ससुराल में यह कह दे कि तेरी बेटी हुई थी पर वह मर गई। सुमित्रा और उसकी मां की आंखें खुशी से चमक गई।
सुमित्रा की मां ने मेरी मां से कहा, ‘अगर रीमा को यह मंजूर है तो सुमित्रा की तीसरी बेटी को वह हमेशा के लिए रीमा को दे सकती है।
सुमित्रा ने कहा, ‘मेरी बच्ची को तू अपना ले। मैं सुकून से जी लूंगी।
फिर मैंने उसकी तीसरी बेटी को गोद ले लिया। सुमित्रा थोड़े दिनों बाद अपने ससुराल चली गई। मेरे पास मेरी बच्ची आ गई थी जो ईश्वर के वरदान से कम नहीं था। सुमित्रा का यह कर्ज मैं अपने सीने से लगाकर दिनों दिन पाल रही थी।
एक हफ्ता कैसे गुजर गया पता ही नहीं चला, रुचिका घर पहुंच चुकी थी। उसने आते ही मेरे गले लग कर कहा, ‘मम्मा, मैं आपको आशीष से मिलवाने आई हूं।
‘तुम्हें पसंद है ना!
‘हां मां, मुझे पसंद है मगर आप एक बार मिल लो।
‘ठीक है लेकिन पहले तुम तैयार हो जाओ। हमें कहीं चलना है।
‘मगर कहां? रुचिका आश्चर्यचकित हो गई।
ना मेरे अंदर इच्छा थी और न ही हिम्मत, रुचिका को सच बताने की। इतने दिनों बाद जब सारी सच्चाई दफन हो चुकी है फिर एक झूठ नासूर बनकर दर्द देने लगा था। बस ऐसे ही, किसी का कुछ कर्ज था वह चुकाना है।
काफी देर ड्राइव करने के बाद हम सुमित्रा के घर में पहुंच गए थे। अब उसके साथ ससुर नहीं थे। वह अपने बेटे के साथ रह रही थी। दोनों बेटियां ससुराल में थी।
सुमित्रा का बेटा गणेश हम दोनों को उसके कमरे में ले गया। बेजान, कृषकाय, बुझी हुई सी सुमित्रा एकटक खिड़की से बाहर देख रही थी। आहट होने पर उसने पीछे पलट कर देखा।
मुझे देखते ही वह रो पड़ी। मैंने रुचिका की तरफ इशारा किया और कहा, ‘सुमित्रा, देखो तुम्हारी बेटी!
‘मेरी बेटी इतनी बड़ी हो गई है। उसने मुझे छोड़कर रुचिका को गले से लगा लिया और फूट-फूट कर रो पड़ी।
रुचिका आश्चर्यचकित होकर मेरी तरफ देखने लगी।
मैंने सुमित्रा को शांत किया उसके आंसू पोछे और फिर रुचिका से कहा, ‘बेटी मुझे माफ कर देना। एक बहुत बड़ा राज छुपाया है। मैं तो एक विधवा औरत थी। मेरे पास ना पति था और ना ही बच्चा। मेरा आंगन सूना पड़ा था। यह तुम्हारी मां है। इसने अपनी कोखजाई बिटिया को मेरी झोली में डाल दिया और मुझे मां का दर्जा दे दिया। यह कर्ज मैं कभी नहीं चुका पाऊंगी। यही तुम्हारी असली मां है, मैं नहीं। मैं रो पड़ी।
‘नहीं बिटिया, कर्जदार तो मैं हूं अगर इसने तुम्हें गोद नहीं लिया होता तो आज तू दुनिया में जीवित नहीं रहती। तेरी दादी और दादा बहुत ही ज्यादा दकियानूसी थे। उन्हें अपने खानदान के लिए वंश चाहिए था जो मैं नहीं दे पा रही थी।
यह कहकर सुमित्रा ने रुचिका को सारी कहानी सुना दिया।
रुचिका की आंखें भर आई। वह हम दोनों को गले से लगाकर बोली, ‘मां, आप दोनों का कर्ज मैं नहीं चुका पाऊंगी। मेरी दो-दो मां हैं। सुमित्रा मां मैं आपको मरने नहीं दूंगी। मैं आपका अच्छा इलाज कराऊंगी।
‘हां सुमित्रा, बिटिया ने अपना जीवनसाथी ढूंढ़ लिया है, अब इसके कन्यादान करने की जिम्मेदारी तुम्हारी।
मैंने सुमित्रा से कहा और हम तीनों ही हंसने लगे। सुमित्रा का ससुराल धनवान तो था लेकिन अत्यंत ही रूढ़िवादी था। पहले ही उसने दो बेटियों को जन्म दिया था जिसके कारण ससुराल में उसे ताने सुनने को मिलते थे।
