ऑक्सीजन: गृहलक्ष्मी की कहानियां
Oxygen

Grehlakshmi Story: गणेश विहार कॉलोनी में आज का दिन भी रोजाना की तरह था। कुछ लोग ऑफिस के लिए निकल रहे थे तो कुछ लोग अपने कार्यों को निपटाने में लगे थे। सहसा आरा मशीन के चलने की आवाज लोगों के कानों के पर्दे चीरने लगी जो कॉलोनी की मुख्य सड़क पर बने पार्क से आ रही थी। तीन-चार व्यक्ति अलग-अलग विषय पर चर्चा करते पार्क की ओर चल दिये। कुछ वहां से गुजरते हुए भीतर देखने लगे तो कुछ टहलते हुए पार्क में उस स्थान पर आ खड़े हुए जो आरामशीन की आवाज का मूल स्थान था।
जब लोगों ने वहां पहुंचकर देखा तो सामने एक लंबा-चौड़ा हट्टा-कट्टा व्यक्ति सूट-बूट पहने, हाथ पीछे बांधे खड़ा था। जिसके सिर पर इतने कम बाल थे कि उसे कंघी की जरूरत नहीं पड़ती थी। मूंछों के स्थान पर एक पतली रेखा बनी थी। दाढ़ी नहीं थी। चेहरा भावहीन था व उसके इर्द-गिर्द छह-सात मोटे-तगडे भारी-भरकम शरीर वाले आदमी खड़े थे। उस व्यक्ति के निर्देश पर कुछ मजदूर पार्क की दीवार के किनारो पर लगे पेड़ो को काटने में लगे थे। ऐसा भयानक दृश्य देखकर कॉलोनीवासी स्तब्ध रह गये।

Also read: स्वयं का संघर्ष-गृहलक्ष्मी की कहानियां

‘सर, ये सब क्या है? रोकिए इसे। एक व्यक्ति ने विरोध किया। उस सूट-बूट पहने व्यक्ति ने उन्हे गुस्सेल नजरों से देखा।
‘प्रशासन का आदेश है, यहां इमारत बनाने का प्रस्ताव पास हुआ है, मुझे मेरा काम करने दो।
‘क्या? यहां ये सब, अरे ये पार्क है कोई बंजर भूमि नही। दूसरा व्यक्ति आग-बबूला होकर ऊंची आवाज में बोला।
मिश्रा जी तनिक रुकिये, हम बात करते हैं, ‘सर जरा कोर्ट की अनुमति का पत्र दिखाएंगे? शर्मा जी ने तुनककर पूछा।
‘आप दखलअंदाजी मत कीजिये ये हमारे और कोर्ट के बीच का मामला है। उस आदमी ने रूखे स्वर में जवाब दिया।
‘मतलब जरूर कहानी में झोल है। इस बार गुप्ता जी बोले।
‘सर सुबह-शाम हमारे बच्चे खेलते हैं यहां और आस-पास के सभी लोग टहलकर ताजा महसूस करते हैं, प्लीज सर मत काटिये पेड़। पीछे से बुजुर्ग पारीक जी बोले।
उस आदमी का चेहरा देखकर ऐसा लगा जैसे उसका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया हो। उसने अपने पास खड़े आदमियों को उन सबको बाहर निकालने का आदेश दिया। तब मोटे आदमियो ने उन लोगों को धक्का देते हुए पार्क से बाहर निकाल दिया।
चार दिन बाद एक कॉलोनी में पांच-छह लड़के आवाज लगा रहे थे। ‘ऑक्सीजन सिलेंडर लीजिये, आज नहीं तो कल लेना पड़ेगा। दोपहर का समय था। उनकी आवाज से एक लंबी कद की, बड़ी आंखों वाली महिला घर के मुख्य द्वार से बाहर देखने लगी। लड़कों के दल से एक लड़का भागकर उस महिला के पास जा खड़ा हुआ और ऑक्सीजन सिलेंडर की जानकारी देने लगा। तभी बगल वाले घर के द्वार पर एक युवती आ खड़ी हुई। दल से दूसरा लड़का उसके पास जाकर सिलेंडर के बारे में समझाने लगा।
इसी क्रम में आस-पास के घरों से महिलाएं व पुरुष भी निकलकर देखने लगे। इसी बीच एक लड़का ट्रॉली लेकर वहां आ पहुंचा जिसमें अलग-अलग छोटे पेड़ रखे थे। उसने इस आशा के साथ वहां खड़ी औरतों व पुरुषों को देखा कि कोई तो उससे जरूर पेड़ खरीदेगा।
उन लड़कों ने अपने विक्रय गुण का इस्तेमाल करते हुए ऑक्सीजन सिलेंडर की जरूरत, उसकी गुणवत्ता, उत्कृष्ट किस्म व जीवनरक्षा यंत्र बताकर पांच घरों में उसका विक्रय कर दिया। पहले लंबे कद वाली महिला व उसके बगल वाली युवती ने क्रय किया। इसके बाद पड़ोस के तीन घरों ने भी तुरंत खरीद लिया।
पेड़ बेचने वाला लड़का एकटक ये नजारा देख रहा था। उन लड़कों के जाने के बाद वह भी मायूस होकर ट्रॉली के पेड़ल मारता वहां से चल दिया।
दो दिन बाद ही इस रिहायशी कॉलोनी में लंबे कद वाली महिला के ससुर जी की तबियत बिगड़ने लगी। कुछ दिन पहले ही वें पूरे बीस दिन अस्पताल में इलाज करवाकर लौटे थे। धीरे-धीरे उन्हें सांस लेने में कठिनाई होने लगी। उनकी बहू ने तुरंत ऑक्सीजन सिलेंडर का वॉल्व चालू करके उसमें लगे मास्क को नाक पर पहना दिया लेकिन अभी भी उनकी सांसे उखड़ती जा रही थी। जब महिला ने पूरा वॉल्व खोलकर उसकी जांच की तो सिलेंडर रेत से भरा दिखा। उसके पैरों तले जमीन खिसक गई। ससुर जी की हालत निरंतर बिगड़ती जा रही थी। ऊहापोह में उसने अपने पति को फोन घुमाया। इसी दौरान उसे याद आया कि पड़ोसियों ने भी तो वो सिलेंडर खरीदा था।
कुछ क्षण में ही वह दौड़कर बगल वाले घर से सिलेंडर ले आई। पड़ोसन भी उसके पीछे आ पहुंची। उस महिला ने इस सिलेंडर का वॉल्व चालू किया मगर गैस जैसी कोई चीज बाहर नहीं आई। आनन-फानन में उसने दोबारा वॉल्व खोला। ये भी पूर्ण रेत से भरा था। अब वह गुस्से से लाल-पीली होने लगी। इतने में उसका पति वहां आ पहुंचा जो और कोई नहीं वही था जो कुछ दिन पहले गणेश विहार कॉलोनी में पार्क के पेड़ कटवाने में लगा था। अपने पिताजी की नाजुक हालत देखते ही वह एम्बुलेंस को फोन लगाने लगा।
इधर मुख्यद्वार पर अगल-बगल के लोग एकत्रित होकर स्थिति का जायजा लेने पहुंचने लगे। एक-एक कर उन घरों से ऑक्सीजन सिलेंडर मंगवाया गया। सारे सिलेंडरों में केवल रेत व कूड़ा-करकट ही भरे मिले। अब सभी को उन लड़कों पर क्रोध आने लगा। धीरे-धीरे सभी को ये अहसास हो गया कि वे उनके द्वारा ठगे गए थे।
सहसा एक कार उनके घर के सामने आकर रुकी। जिसमें से वही लड़के तेजी से उतरे जिन्हे वहां खड़ी औरतों ने पहचान कर घेर लिया। इस शोरगुल से पति-पत्नी पिताजी को साथ लेकर बाहर निकले। उन्हें लगा शायद एम्बुलेंस आ गई। तब उस महिला ने उस लड़के को पहचान लिया जिसको उसने सिलेंडर बेचा था। वह आग-बबूला होने लगी।
‘चोर, बईमान तुझमें जरा-सी…
‘मैं अपनी गलती मानता हूं, पर अभी दादाजी को अस्पताल जाने दीजिये, चोर ही होता तो यहां वापस क्यों आता। उस लड़के ने हाथ जोड़कर महिला की ओर देखते हुए कहा।
उसके चेहरे पर चिंता के भाव देखकर वहां खड़े सभी लोगों ने उसकी बात मानकर दादाजी को उनकी गाड़ी में अस्पताल भिजवाया।
जब गाड़ी वहां से चली गई तब वह लड़का उस महिला के पति की ओर देखकर बोला ‘देख लिया ना आज आपने पेड़ो को काटने का नतीजा, ऑक्सीजन की जरूरत किसी को भी कभी भी पड़ सकती है।
‘ऐ! क्या बोल रहा है? उस महिला के पति ने गुस्सा करते हुए कहा।
‘सच बोल रहा हूं अंकल, माना ऑक्सीजन प्रयोगशाला में बनता है मगर इसका आधा भाग प्रकृति से लिया जाता है, कोई दो राय नहीं कि वो ऑक्सीजन हमें पेड़ उपलब्ध करवाते हैं, सभी लोग शांत रहकर उसकी बात गौर लगाकर सुनने लगे। उसका बोलना जारी था। ‘याद कीजिये सर उस दिन आप कैसे पेड़ों को कटवा रहे थे।
तब उस व्यक्ति को वो दिन याद आया जब वह बेफिक्र होकर गणेश विहार कॉलोनी में बने पार्क के पेड़ कटवा रहा था।
‘हम भी वहीं खड़े थे सर, मगर कुछ कहा नहीं, फिर हमने आपकी कॉलोनी में ऑक्सीजन सिलेंडर बेचने शुरू किये ताकि आपको सही रास्ता दिखा सकें।
‘हम ही उस पेड़ वाले को साथ लेकर आये थे लेकिन आप में से किसी ने भी उससे पेड़ नहीं खरीदा, सबने ऑक्सीजन सिलेंडर खरीदा। पास खड़ा दूसरा लड़का बोला।
‘अगर आप मेडिकल ऑक्सीजन पर निर्भर रहेंगे तो आने वाले समय में ऐसे ही ठग लिये जाएंगे और पेड़ लगाएंगे तो ये दिन शायद हमें देखना ही न पड़े। तीसरे लड़के ने समझाया।
‘पर तुमको पिताजी की तबियत बिगड़ने के बारें में पता कैसे चला? उस व्यक्ति ने पूछा।
‘वो सर हमने उस दिन से ही हमारे दोस्त को आपके घरों पर नजर रखने को लगा रखा था। उसी की वजह से हम समय रहते आ गए। पहले लड़के ने बताया।
‘थैंक्स बेटा! आज तूने मेरी आंखें खोल दी, अब से पेड़ नहीं काटूंगा और गणेश विहार कॉलोनी में कोई इमारत नहीं बनेगी वहां पार्क ही रहेगा वादा करता हूं। वह व्यक्ति दुखी स्वर में बोला।
‘मैं पेड़ लगाऊंगी और सांसो को बचाऊंगी। उसकी पत्नी बोली।
‘मैं भी लगाऊंगी। बगल वाली युवती बोली।
‘हम सब लगाएंगे। लोगों ने कहा। ‘ये हुई ना बात, पेड़ लगाएंगे, सांसे बचाएंगे। उस लड़के ने तेज आवाज में मुस्कुराते हुए कहा। गणेश विहार कॉलोनी को ऑक्सीजन मिल चुकी थी।