खामोशी: गृहलक्ष्मी की कहानियां
Khamoshi

Grehlakshmi ki Kahani: सोहन को इस समय किसी भी तरह अपने खेत पहुंचने की जल्दी थी। आज सोहन खेत से लगभग पचास मील दूर अपनी बहन के घर गया था। मगर बहन के घर आते ही उसका मोबाइल बजा। उसके खेत और बगीचे के मैनेजर साहब ने न जाने क्यों उसे इसी समय फटाफट खेत पर आने को कहा था। जैसे-तैसे एक बाइक वाले से लिफ्ट लेकर वह नयागांव के लिए रवाना हो पाया था। रास्ते में एक बहुत बडी ट्रौली से सामान बिखर जाने के कारण उसे खेत तक लौटने में कुछ अनावश्यक रूप से विलंब हो रही थी। कल की पूरी रात तो वह वहीं था। रात भर उसने अपने खेत के चारों तरफ झाड़ी की बाड़ लगाई थी ताकि खीरे और सेम की फली को बंदर खराब न कर दें। इसलिए अभी बहन के घर पर आराम करना चाहता था। मगर आंखों की नींद, थकान और खुमारी भूल कर वह मैनेजर के आदेश की पालना में दौड़ पड़ा था। नयागांव में मैनेजर साहब खेत और बगीचे के मालिक थे। नयागांव वैसे तो छोटा गांव नहीं था, परंतु काफी दूर-दराज में होने के कारण गांव तक पहुंचने के लिए कोई बस की नियमित सुविधा नहीं थी।
गांव में मुम्बई तथा सूरत के सेठ के खेत और बगीचे थे। इनकी देखभाल करने वाले वहां लालटेन जलाकर जागते और दिन को सोते। फसल कट जाती और खेत खाली होते तो सोहन जैसे लोग अपने घर या भाई-बहन के घर चले जाते थे। बाइक वाला संयोगवश इधर ही जा रहा था। सोहन ने खेत के बाहर उतर कर चैन की सांस ली। साहब की गाड़ी खड़ी थी। गाड़ी में एक युवती विराजमान थी। सोहन खेत में जो दो कमरे का कच्चा मकान है। साफ करवा दो। हम कुछ देर में आते हैं। कुछ दिन रीमा जी उसी मकान में ठहरना चाहती हैं। सोहन ने उनसे जी कहकर सिर हिलाया, उसने देखा कि मैनेजर साहब के साथ जो महिला थी वो उनसे लगभग आधी उमर की होगी। वह महिला बहुत ही सौम्य और जहीन लग रही थी। उसने बड़े आदर के साथ उन्हें प्रणाम किया। उन्होंने भी उसका प्रेमपूर्ण भाषा में अभिवादन किया। सोहन ने फटाफट कमरे साफ किए। बाहर चूल्हा जलाकर चाय पका दी। आग जलाकर उसमें आलू डाल दिये। साहब लौटे तो उनको आग में भुने आलू और कुल्हड़ में चाय पिलाई। मैडम को आलू बहुत अच्छे लगे। तभी मैनेजर का जरूरी फोन आया। अब रीमा जी सोहन से हिल मिल गयी। वह सोहन से काफी बातें करने लगी। कुछ देर बाद मैनेजर साहब ने सोहन को दो हजार रुपये दिए और कहा कि रीमा मैडम को बाहर या शहर जाना हो तो यह पैसे काम आएंगे। उसको कुछ और हिदायत देकर साहब लौट गए, सोहन रीमा जी की सेवा में जुट गया। उबड़-खाबड़ जमीन पर भी रीमा मैडम हंस-हंसकर चलती कभी गिरती तो कभी संभलती। लौट कर आए तो सोहन ने पहले ही आलू और शकरकंदी आग में डाल दी थी। रीमा मैडम को यह नाश्ता शानदार लगा।
दोपहर में सोहन ने उनको माटी की हांडी में खिचड़ी पकाकर खिलाई। मैडम उंगलियां चाटती रह गयीं। सोहन ने उनको आसपास के खेत और बगीचे भी दिखाए। आसपास अनार, संतरे, आम तथा लीची के शानदार बगीचे थे। रीमा मैडम को बगीचे के ताजा फल खाकर जो खुशी मिली वह सोहन ने देखी थी। फिल्टर का पानी पीने वाली रीमा जी ने नदी और झरने का पानी भी खूब स्वाद लेकर पिया। तीन दिन बाद साहब फिर आ गए, उनके साथ वापस जाते समय रीमा मैडम ने सोहन को नकद पांच हजार रुपये का इनाम दिया और कहा कि मुझको तुम और यह हरियाली बेहद पसंद आई। सोहन को भी रह-रहकर रीमा मैडम की खूब याद आया करती थी। एक महीने बाद मैनेजर साहब फिर आ गए। सोहन ने बगीचे के फल तथा खेत की फसल को बेचकर पहले से ही सारा हिसाब तैयार कर रखा था। सोहन ने नमस्कार कर चट  से उनको पचास हजार रुपया कैश तथा कागज में सारा हिसाब दिखाया तो मैनेजर साहब हंसकर बोले, ‘ओहो, सोहन हर समय हिसाब की बात नहीं। ‘अरे सोहन यह वेतन किसी और बात का है। अभी मेरे साथ मेरी पत्नी आ रही है। वह और उसकी सहेली दो-तीन दिन इसी खेत और बगीचे में रहना चाहते हैं। ‘तुम गलती से भी अपना मुंह मत खोलना कि रीमा यहां आई थी और कुछ दिन रही। तुमको किसी भी हालत में रीमा का नाम इन दोनों के सामने नहीं लेना है। ‘जी-जी, समझ गया साहब। यह गहरा राज जानकर सोहन ने सिर हिलाया। ‘तो ठीक है, मैं उन दोनों को लेने जा रहा हूं। वह दोनों पास ही एक बगीचे में फोटो खीच रही हैं। मैं आया। ‘सोहन खयाल रखना। सुकून और भरोसे के साथ कहकर साहब ने अपनी गाड़ी घुमा ली। सोहन अपने हाथ में उन रुपयों को देखता रह गया।

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