इच्छाशक्ति-गृहलक्ष्मी की कहानियां
Icchashakti

Story in Hindi: “यह गलत बात है साहब। मेरा सच आप नहीं मान रहे और छोटे बाबू की बात सुन रहे हैं”, शंकर ने गिड़गिड़ाकर कहा। बड़े साहब कहते हैं, “देखो शंकर तुम्हारे पास छोटे बाबू के खिलाफ़ सबूत नहीं हैं। वैसे तो मैं बहुत कुछ जानता हूं पर बिना सबूत के उनके खिलाफ़ कोई कार्यवाही नहीं कर सकता। तुमने उन्हें धमकाया यह बात सब ने कबूल करी है। यहां तक कि तुम भी इस बात को मानते हो। इसलिए जब तक कार्यवाही पूरी नहीं हो जाती तुम काम पर नहीं आ सकते।” शंकर परेशान होकर सरकारी दफ़्तर के बाहर निकलते हुए कहता है, “ इस दुनिया में सच की यही औकात है फिर भी मैं बेइमानी में साथ नहीं दूंगा।”

         शंकर सरकारी दफ़्तर में चौकीदार की नौकरी करता था। एक दिन छोटे बाबू ने उसे कुछ ज़रूरी कागज़ात चोरी से मिट्टी में छुपाने के लिए दिए थे। शंकर के साफ़ मना करने पर उन्होंने वह काम अपने चापलूस नौकर से करवा दिया था। कुछ दिनों बाद बहुत भयंकर बारिश की वज़ह से एक जगह से मिट्टी हट गई थी और पन्नी में बंद कागज़ थोड़े से दिखने लगे। जब बात सामने आई तो छोटे बाबू ने सारा इलज़ाम बगीचे के बेचारे माली पर लगा दिया, “इसने डिपार्टमेंट के कागज़ात चुराए और छुपा दिए। जाने किसको बेचने वाला था।” माली ने बहुत सफ़ाई देने की कोशिश करी पर उसे कुछ वक्त के लिए नौकरी से निलंबित कर दिया गया था। आज जब शंकर ने गुस्सा करा तो उसे भी कार्यवाही पूरी होने तक ऑफिस से कुछ समय के लिए निकाल दिया गया था।

शंकर जानता था कि जुड़े पैसों से कुछ दिन तो घर का और बेटे की पढ़ाई का खर्चा चल जाएगा पर बिना पैसों के कब तक गुज़ारा हो पाएगा। जब तक कार्यवाही चल रही है वह कोई दूसरी अच्छी नौकरी नहीं कर सकता था। यह चिंता उसको अब दिन रात सताने लगी थी। एक दिन उसकी पत्नी बिंदिया इसी विषय पर उससे बात करती है, “ क्या करेंगे कुछ समझ नहीं आता।” शंकर कोई जवाब नहीं दे पाता और चुपचाप घर के बाहर चला जाता है।

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उसके पिता का एक छोटा सा खेत था जो कईं सालों से यूं ही पड़ा बंजर हो गया था। शंकर चुपचाप वहां जाकर बैठ गया और उस बंजर ज़मीन को निहारता रहा और सोचता रहा “मैं इसके जैसा हो गया हूं किसी काम का नहीं।” तभी वह चीटियों का एक झुंड देखता है जो ज़मीन से बाहर आ रही थीं।उनमें से एक चींटी के साथ एक मिट्टी का ढेला था जो ऊपर की बंजर मिट्टी से काफ़ी अलग दिख रहा था। शंकर तो कभी खेत पर गया नहीं था इसलिए उसे अंदाज़ा नहीं था। उसने ऑफिस के माली को बुलाया और उसको वह ढेला दिखाया।

माली ने अच्छे तरह से दोनों मिट्टी को देखा। शंकर को बताया, “ तुम्हारी ज़मीन तो बंजर है कईं सालों से लेकिन यह ढेला बताता है की ज़मीन में पहले उपजाऊ होने की वजह से अब भी कुछ गुंजाइश बाकी है। पर यह पूरी तरह से कितना मुमकिन है यह कहना थोड़ा मुश्किल है।”  शंकर वो मिट्टी का ढेला लेकर घर जाकर बिंदिया को दिखाता है, “तुमने पूछा था ना क्या करेंगे। अब मैं यह करूंगा। मेरे मन में जो इच्छा पैदा हुई है वह देखना अपनी मेहनत से उसे पूरा करूंगा, बंजर ज़मीन को पैदावार बनाऊंगा।”

अगले दिन वह मुंह अंधेरे उठकर पुराने रखे खेती के औज़ारों को साफ करता है और खेत की तरफ जाता है। पूरा दिन मेहनत करके उस खेत को गहराई तक जोतता है। शाम को माली के साथ बैठकर विस्तार से सब जानकारी लेता है और कुछ इंटरनेट की मदद से भी बंजर ज़मीन को पैदावार बनाने के तरीके सीखता है। “देख लो शंकर काम ज़रा मुश्किल है और तुम अकेले। मैं सिर्फ़ राय दे सकता हूं। मेरे पास अपने काम भी हैं। तुम मेरी मजबूरी समझ सकते हो,” माली शंकर से कहता है। शंकर जवाब देता है, “मैं जानता हूं भाई, तुम्हारी राय सबसे बड़ी मदद है।”

पैसों की कमी थी इसलिए शंकर ने एक पहचान वाले के घर में रात की चौकीदारी की ड्यूटी ले ली। वह रात में नौकरी करता और दिन भर खेत को उपजाऊ बनाने की कोशिश करता। शाम को थोड़ा आराम करता और खाना लेकर फिर चौकीदारी करने चला जाता। 

उसने इंटरनेट और माली की राय को अच्छे से समझ कर घर में पड़े पुराने गत्तों को खेत पर फैलाया। कुछ उसने कबाड़ी से भी ले लिए। उन गत्तों के ऊपर उसने खाद फैला दी। खाद के लिए घर की सब्ज़ी का कूड़ा और माली से वर्मी कंपोस्ट जिसे केंचुआ खाद भी कहते हैं वह उधार ले ली। अकेले पूरे खेत में खाद और पानी डालता। कुछ दिन तक वह रोज़ यही करता। आसपास के लोग मज़ाक बनाते,“ यह पागल है, सालों से पुरानी बंजर ज़मीन पर फालतू का वक्त और पैसा बर्बाद कर रहा है।” लेकिन शंकर की इच्छा एवं हिम्मत टूटने की बजाय और मजबूत होती गई।

शंकर की दिन रात की मेहनत आखिरकार रंग लाई। उसके दोस्त और सलाहकार माली ने मुस्कुरा कर कहा, “क्यों भैया! अब क्या उगाओगे इस खेत में?”  गुलाब की खेती करना चाहता हूं भैया। क्या इसमें हो पाएंगे?” शंकर माली से पूछता है। “हां बिल्कुल! मैं एक सर को जानता हूं जिन्होंने गुलाबों की खेती की पढ़ाई करी है। वह बहुत अच्छे इंसान भी हैं, तुम्हारी ज़रुर मदद करेंगे।” माली शंकर को अपने साहब से मिलवाता है।

उसके साहब खेत देखकर शंकर की इच्छाशक्ति की तारीफ करते हैं, “ कमाल है भाई! ऐसी बंजर ज़मीन को उपजाऊ बनाना कितना मुश्किल काम है मैं समझता हूं। तुम्हारी मदद करके मुझे बहुत खुशी होगी। तुम गुलाबों की खेती करो मैं तुम्हें कुछ लोगों से बाद में मिलवा भी दूंगा जो गुलाबों की सही दाम पर बिक्री भी करा देंगे।” शंकर की मदद के लिए माली और उसके साहब उसको कुछ गुलाबों की कलम देते हैं और खेत में लगाने का सही तरीका भी बताते हैं। इस काम में अब बिंदिया भी उसके साथ थी। बेटे को स्कूल भेज कर वह खेत आ जाती। दोनों पति-पत्नी की मेहनत और शंकर की इच्छाशक्ति खेत के रंग-बिरंगे गुलाबों में दिखने लगी थी।

         गुलाबों को अच्छे से बांधकर शंकर बाज़ार ले गया। जब उसके हाथ में अपनी मेहनत के पैसे आए तो पहली बार इतने सालों में वह फूट कर रो पड़ा। उन पैसों से उसने माली और उसके साहब के पैसे लौट आए और एक छोटा सा गुलदस्ता भी दिया। पत्नी और बेटे के लिए भी सामान लिया। शंकर का गुलाब का काम चलने लगा और अब उसकी ज़िंदगी की गाड़ी पटरी पर चल पड़ी थी।

एक दिन शंकर को पुराने ऑफ़िस से चिट्ठी मिली। उसको वहां बुलाया गया था। बड़े साहब उससे कहते हैं, “ शंकर तुम्हारी बात सच साबित हुई। छोटे बाबू के खिलाफ़ और भी बड़ी शिकायतें पता चली हैं। उन्हें बर्खास्त कर दिया गया है, माली को भी वापस बुला लिया है। तुम भी अब अपनी नौकरी पर कल से आ सकते हो।”  शंकर हाथ जोड़कर जवाब देता है, “आपका बहुत शुक्रिया साहब। मुझे खुशी है कि माली को वापस नौकरी मिली और मेरी बात सच साबित हुई। मैं किसान का बेटा हूं और अब मेरी यही इच्छा है कि किसान बनकर ही रहूंगा।” यह कहते-कहते शंकर बड़े साहब को अपने खेत के गुलाबों से बना एक गुलदस्ता भेंट करता है।