Hindi Kahani: गांव के एक कोने में बसा था एक पुराना, शांत-सा घर। खपरैल की छत, आंगन में तुलसी का चौरा, और दीवारों पर समय की गवाही देते दरारें। इसी घर में रहती थी नैना, 28 साल की, सुंदर, शांत, सजीव लेकिन भीतर से बिल्कुल चुप। दो साल पहले उसके पति अर्जुन एक सड़क हादसे में चल बसे थे। तब से नैना ने न अपने बालों में फूल लगाए, न होठों पर हंसी लायी। वो बस अपने सास-ससुर की सेवा में लगी रहती थी श्याम बाबू और सावित्री देवी की।
श्याम बाबू अक्सर कहते, “बेटी, तू तो हमारी अर्जुन की आखिरी निशानी है… अब तुझसे ही घर रोशन है।” और नैना चुप रह जाती। उसकी चुप्पी में कोई शिकवा नहीं होता, न कोई चाहत का इज़हार। बस एक स्वीकार जैसे वो जिंदगी को वैसे ही जी रही थी, जैसी उसे मिली थी।
एक दिन गांव में एक नया मास्टर आया राहुल। शहर से पढ़ा-लिखा, सौम्य और विनम्र। उसकी पोस्टिंग स्कूल में हुई थी। गांव में सब उसे पसंद करते थे, पर उसे सबसे अलग नैना ने खींचा। उसकी आँखों में कुछ ऐसा था ठहरा हुआ, गहरा और अधूरा।
राहुल जब पहली बार स्कूल के पास के कुएं से पानी पीने गया, तब नैना वहां बच्चों को पानी पिला रही थी। दोनों की नज़रें मिलीं, और कुछ देर को वक्त थम गया। राहुल ने सिर झुकाया, मुस्कुराया और चला गया। पर उस दिन से, उसका मन अक्सर उस आंगन की ओर भटकता जहां नैना तुलसी को जल देती थी।
राहुल अक्सर किसी न किसी बहाने नैना के घर आता कभी बच्चों की किताब लेकर, कभी गांव की बैठक की बात लेकर। सास-ससुर भी उसे पसंद करने लगे थे। और धीरे-धीरे राहुल ने खुद को नैना के करीब पाया लेकिन वह कभी कुछ कह नहीं पाया। उसे नैना की आंखों में भी कुछ महसूस होता था एक अपनापन, एक मौन स्वीकार लेकिन आवाज़ कभी न बनी।
एक दिन सावित्री देवी ने नैना को आंगन में बैठाकर पूछा, “बेटी, तू कब तक यूं अकेली रहेगी? हमें अर्जुन की कसम है, पर हमें तेरी भी तो चिंता है। जिंदगी बाकी है, और तू अभी बहुत छोटी है।” नैना की आंखें भर आईं, लेकिन उसने कुछ नहीं कहा।
उधर, राहुल ने श्याम बाबू से हिम्मत करके बात की “मैं जानता हूँ नैना एक विधवा है, पर मेरे लिए वो सिर्फ नैना है एक ऐसी लड़की जिससे मैं सम्मान करता हूं, जिसे मैं समझता हूं और जिसे मैं पूरी जिंदगी साथ देना चाहता हूं… अगर आप इजाज़त दें।”
श्याम बाबू चुप हो गए। सावित्री देवी ने भी कुछ नहीं कहा। पर उसी रात, नैना को पास बैठाकर श्याम बाबू ने कहा
“बेटी, तूने हमारे लिए बहुत कुछ किया। अर्जुन चला गया, पर तू हमारे साथ खड़ी रही। अब वक्त है कि तू खुद के लिए कुछ चुने। राहुल एक अच्छा लड़का है… और हमें लगता है कि अगर अर्जुन जिंदा होता, तो वही कहता जो हम कह रहे हैं जा बेटी, अपनी दूसरी जिंदगी शुरू कर। हम तेरे साथ हैं।”
नैना की आंखों से आंसू बह निकले। उसने पहली बार सिसकते हुए कहा “मैंने कभी किसी से कुछ नहीं चाहा बाबा, पर राहुल की आंखों में मुझे वही सुकून दिखा जो अर्जुन की आंखों में दिखता था… पर मैं डरती थी, कि क्या ये अधिकार मुझे है?”
सावित्री देवी ने उसे सीने से लगाते हुए कहा, “बेटी, तू सिर्फ बहू नहीं, बेटी है। और हर बेटी को हक है अपने जीवन को फिर से जीने का।”
कुछ हफ्तों बाद गांव में हलचल थी पर ये शोक नहीं, उत्सव था। नैना ने हल्के गुलाबी रंग की साड़ी पहनी थी, बालों में पहली बार गजरा लगाया था। और उसकी आंखों में था भविष्य का सपना, उम्मीद और एक नई शुरुआत।
राहुल उसके पास खड़ा था, और उसके हाथों को थामे हुए कह रहा था “आज से जो भी खामोशी होगी, वो हम मिलकर सुनेंगे…”
भीड़ ताली बजा रही थी, और श्याम बाबू दूर खड़े होकर सावित्री देवी से कह रहे थे, “हमने आज अपनी बेटी को वापस हंसते देखा है… अर्जुन जहाँ भी होगा, मुस्कुरा रहा होगा।”
