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भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

“मम्मी! यह मेरी जिन्दगी है और मुझे अपनी ज़िन्दगी का कोई भी फैसला लेने का पूरा हक है, मेरा यह आखिरी फैसला है, चाहे दुनिया इधर की उधर हो जाए, मैं राजन से प्यार करती हूँ और शादी भी राजन से ही करूँगी, मेरे इस फैसले को दुनिया की कोई ताकत नहीं बदल सकती!”

“सुरभि…! तू होश में तो है…तुझे पता है तू क्या बक रही है। जिसके हाथों में खेल-खेल के बड़ी हुई, राजन तुझे अपनी बेटी के बराबर समझता है, अरी, वो सुनेगा तो जीते जी मर जायेगा।”

“मैं तुम्हारी जानकारी के लिए बता दूँ कि राजन की मर्जी मुझसे अलग नहीं है।”

‘क्या!…वो नमक हराम भी…”

‘तड़ाक!!!”

मोनिका हड़बड़ा कर उठ बैठी। उसका हाथ बायीं गाल पर था, ऐसे लग रहा था जैसे गाल पर चीटिंया रेंग रही हों। उसने कमरे की बत्ती जलाई, मोनिका का दिल ज़ोर-ज़ोर से पसलियों से टकरा रहा था, सांसें बेकाबू हुई जा रही थीं, जैसे कई मील बेतहाशा भागती आई हो, शरीर पसीने से तर हो चुका था। उसने अपनी साँसे सहज करने की कोशिश करते हुए दुपट्टे से चेहरे पर से पसीना साफ किया, वाल क्लॉक पे नजर पड़ी तो रात के अढाई बज चुके थे।

वैसे तो यह सपना उसी दिन से मोनिका की नींद हराम करता आ रहा था, जिस दिन से सुरभि ने राजन के साथ नाटक में काम करने की इच्छा जाहिर की थी, और न चाहते हुए भी मोनिका इनकार न कर सकी थी। तब से लेकर अब तक राजन के साथ सुरभि कई नाटकों में भाग ले चुकी है, पर राजन के साथ शहर से बाहर पहली बार एक नाटक के मुकाबले के लिए एक हफ्ते के टूर पर गई है। आज उसे गए हुए आठ दिन हो चुके हैं, जैसे-जैसे दिन बीतते जा रहे हैं ये सपना और भी भयानक होता जा रहा है।

राजन कॉलेज टाईम से ही मोनिका और मोनिका के स्वर्गीय पति थीरस का साँझा मित्र रहा है, और तीनों कॉलेज टाईम से ही नाटकों में इकट्ठे भाग लेते रहे थे, बाद में थीरस ‘नटसंघ’ के नाम से अपनी नाटक मंडली बना ली और रंगमंच को ही व्यवसाय के तौर पर अपना लिया। कुछ समय बाद मोनिका और थीरस की शादी हो गई। उसी वर्ष राजन को शिमला से एक स्कूल से अध्यापक की नौकरी का बुलावा आया और वह नौकरी के लिए शिमला चला गया।

राजन भले ही सुरभि को अपनी बेटी के समान समझता है परन्तु अतीत का अनुभव मोनिका के दिलो-दिमाग को बार-बार विषैले साँपों की तरह डसता रहता है।

यह उन दिनों की बात है जब थीरस का ग्रुप नारीवादी नाटकों के लिए दूर-दूर के शहरों में मशहूर था। इसलिए बाहर के शहरों में कई-कई दिनों के टूर लगना आम बात थी।

उस दिन भी धरीरस जोधपुर ड्रामा फैस्टीवल में हिस्सा लेकर एक हफ्ते के बाद देर रात घर वापिस आया था और हमेशा की तरह शराब के नशे में बेसुध बिना कुछ खाए ही सो गया था।

सुबह जब मोनिका की आंख खुल तो सर दर्द से फटा जा रहा था। वह उठकर चाय बनाने के लिए रसोई में दाखिल हुई थी कि अचानक किसी ने गेट इतने जोर से खटखटाया कि यदि जल्दी से न खोला गया तो जैसे तोड़ ही दिया जाएगा। मोनिका बाहर आकर कुछ समझती इससे पहले ही एक महिला की तीखी आवाज से वातावरण में बिजली-सी कौंध गई- “खोल गेट हरामजादे खोल….खोल गेट आज मैं बताती हँ कैसे किसी की जिन्दगी में जहर घोला जाता है… तूने क्या समझा मेरी जिन्दगी को नर्क बना कर चैन की नींद सो जाएगा….! गेट खोल हरामी थीरस….आ बाहर…”

थीरस का नाम सुनते ही मोनिका के होश उड़ गये, वह हड़बड़ाहट में बैडरूम की ओर दौड़ी, थीरस को झकझोरा- “जल्दी उठो, बाहर देखो कोई गेट बजा रहा है” पहले तो थीरस ने मोनिका का हाथ एक ओर झटक दिया, परन्तु जब कानों में जोर से गेट खटखटाने की आवाज सुनी तो हड़बड़ाहट में बाहर दौड़ा, गेट के सामने कमली को देख कर थीरस के होश फाख्ता हो गए। थीरस को देखते ही कमली आग में डाले तेल की मानिंद भडक उठी- “आ हरामी खोल गेट….मैं बताती हूँ कैसे खुले गटर में कूड़ा फेंकते है…खोल गेट…खोल…।” गेट को लात मारती है।

“कमली तू…!!!”

“खबरदार…! अगर मेरा नाम अपनी गन्दी जुबान पर लाया तो, मैं तेरी जीभ नोच लूँगी।” कमली की आँखों से आग बरस रही थी, गुस्से में कमली के मुँह से झाग छूट चली थी। कमली का इतना भयानक रूप देखकर थीरस के तो चेहरे पर जैसे किसी ने हल्दी ही पोत दी हो, थीरस का शरीर सिर से पाँव तक काँप उठा। इससे पहले कि वह कुछ समझ पाता बिजली एक बार फिर कड़की-

“खोल हरामखोर…गेट खोल आज मैं करती हूँ तेरी हवस पूरी…” कमली की आवाज ने थीरस को झकझोरा, वह अपने आप को इतना लाचार महसूस कर रहा था कि जैसे अभी रो पड़ेगा। न चाहते हुए भी उसे किसी स्वचलित रोबोट की मानिंद गेट खोलना पड़ा।

गेट खुलते ही कमली ने अपना ब्लाऊज फाड़ते हुए कहा-

“ये ले भेड़िये… यही कुछ चाहिए न तुझे…. ले आज आखरी बार कर ले अपनी हवस पूरी…ले…ले…कर हवस पूरी…ले…ले…ले….” कमली तेजी से थीरस की ओर बढ़ी तो थीरस घबरा कर पीछे हटा। मगर वो घायल शेरनी की तरह थीरस पर झपट पड़ी और कमली के ताबड़तोड़ थप्पड़ों से थीरस की आँखों के सामने तारे घूम गए। यह सब देखकर मोनिका को ऐसे लगा जैसे जमीन और आसमान विपरीत दिशा में घूमने लगे हैं, और वह अभी चकरा कर गिर पड़गी। फिर अचानक थीरस को छोड़कर कमली रसोई की ओर लपकी। इससे पहले की थीरस कुछ समझ पाता, कमली रसोई में से छुरी उठाकर लाई, और कई वार अपने पेट में कर दिए-‘इसी शरीर की हवस है न तुझे…ले…मैं करती हूँ। तेरी हवस पूरी…ले…कर हवस….पूरी….ले. ..ले…कर…ले…ले…ले….ले…”

इतनी भयानक घटना इतनी तेजी के साथ घटी कि मोनिका की आँखें पथरा के रह गई, उसकी टाँगे उसका बोझ उठाने का सामर्थ्य खो बैठीं और वह चकरा कर गिर पड़ी।

कमली थीरस की जिन्दगी में उस वक्त आई थी जब थीरस बारहवीं पास करने के बाद अगली पढ़ाई के लिए गाँव से शहर आया और उसे किराये का कमरा लेना पड़ा। कॉलेज टाईम के बाद उसने मोहल्ले के छोटे बच्चों को टयूशन पढ़ाना शुरू किया। चौथी कक्षा में पढ़ती मकान मालिकों की बेटी कमली ट्यूशन पढ़ने वाले बच्चों में से एक थी। एक तो कमली मासूम और बहुत प्यारी थी, इसके अलावा पढ़ने में तेज और हर बात को गहराई तक समझती थी। जिस वजह से कमली थीरस के काफी नजदीक हो गई थी। जब थीरस के नाटक का मंचन होता तो कमली के माता-पिता भी कमली को अपने साथ लेकर नाटक देखने अवश्य जाते। नाटक देखने के बाद कमली भी नाटक में हिस्सा दिलवाने के लिए थीरस के आगे जिद करती। थीरस हर बार कह देता– “जब किसी नाटक में बच्चे का कैरेक्टर होता तो तुम्हें रोल अवश्य करवाऊँगा।

एक दिन अचानक उस वक्त कमली की खुशी का ठिकाना न रहा जब थीरस ने कमली से कहा-‘हम बहुत जल्दी एक नया नाटक करने जा रहे हैं जिसमें दस साल के बच्चे का रोल है जो तुम कर सकती हो।”

“थैक्यू अंकल…!”

पर उसमें एक समस्या है, वह बच्चा एक लड़का है,और लड़के के बाल ब्वॉय कट होते है…पर तुम्हारे बाल तो…!”

“मैं भी ब्वॉय-कट करवा लूँगी!” कमली ने झट से कह दिया।

कमली ने अपने मम्मी-डैडी से जिद की और अपने बाल ब्वॉय कट करवा लिए।

स्टेज पर दर्शकों की ओर से कमली को इस तरह से पसंद किया गया कि उसकी हर ऐन्ट्री पर हॉल तालिरों से गुंज उठता। इतना ही नहीं दूसरे दिन समाचार-पत्रों में नाटक के समाचार के साथ कमली की तस्वीर भी छपी और कमली के अभिनय की विशेष तौर से प्रशंसा की गई। उसके बाद कमली ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और एक दिन पूरे देश में रंगमंच की एक सशक्त अभिनेत्री के तौर पर उसकी पहचान बन गई। वह थीरस की नाटक मण्डली की तो रीढ़ ही बन गई।

मोनिका जब होश में आई तो वह अस्पताल में थी, और उसके बैड के साथ ही झूले में एक नवजात शिशु झूल रहा था। झूले के साथ एक नर्स खड़ी थी। मोनिका को होश में आते देख डॉक्टर को बुला लाई, उस लेडी डॉक्टर ने आते ही मोनिका से कहा-‘मुबारक हो आप की कोख से एक परी ने जन्म लिए है।”

“प….. पर डॉक्टर…?”

“आप चिन्ता न करें, अभी आप को आराम की जरूरत है, मैं इन्जैक्शन दे देती हूँ।”

“पर डॉक्टर मेरी बात तो सुनिये…!”

“सुनेंगे, पर अभी आप का ज्यादा बोलना ठीक नहीं, आप कुछ देर आराम कर लीजिए।’

इन्जैक्शन के बाद मोनिका को नींद आ गई।

दूसरे दिन अखबारों में खबर इस प्रकार छपी-

हिन्दुस्तान की मशहूर नाटक मण्डली “नाटसंघ” के निर्देशक द्वारा मण्डली की अभिनेत्री का कई वर्ष यौन शोषण करने के विरोध में अभिनेत्री ने आत्महत्या की। निर्देशक गिरफ्तार कर लिए गया।

जब जेल में थीरस को यह समाचार मिला कि उसकी पत्नी ने एक बेटी को जन्म दिया है तो उसके कानों में कमली की चीखें गूंज उठी-

इसी शरीर की हवस है न तुझे…ले…कर….ले…हवस…पूरी….ले…ले…. कर….कर…ले…ले….ले….ले…”

उसी दिन उसने चद्दर की रस्सी बना कर फाँसी लगा ली।

चाहे उस दिन की घटना के अतीत की सच्चाई को लेकर तरह-तरह की अफवाहें सनने को मिली लेकिन पूरी गुत्थी तब सुलझी, जब पुलिस को कमली की जामा तलाशी से एक चिट्ठी मिली जो कमली ने आत्महत्या से पहले थीरस की पत्नी मोनिका के नाम लिखी थी-

“आंटी जी! यह चिट्ठी मैं इसलिए लिख रही हूँ ताकि इस सारे घटनाक्रम की जड़ आप को पता चल सके, यदि मैं चिट्ठी लिखे बिना ही मर गई तो सारी उम्र आप इस उलझन में पड़ी रहेंगी कि यह सब हुआ कैसे, और मेरी आत्मा को भी पश्चाताप रहेगा कि मैं आपको अंधेरे में रख कर मर गयी। आंटी जी, अगर लोगों को इस बात का पता न चला कि स्टेज के पीछे ऐसा कुछ भी होता है तो आप जैसी पतिव्रता और मेरी जैसी कई नासमझ अभिनेत्रियां ऐसे चंद थीरस जैसे शातिर निर्देशकों का शिकार होती रहेगी।

मैं मीडिया से हाथ जोड़ कर विनती करती हूँ कि जब मेरी मौत की खबर छपे तो यह चिट्ठी भी अवश्य छापे।

कलकत्ता फैस्टीवल के लिए अंकल ने एक नया नाटक लिखा जो दिल्ली की एक बस में हुए सामूहिक बलात्कार की घटना पर आधारित था। उस नाटक में पीड़िता दामिनी वाला कैरेक्टर अंकल मुझसे करवाना चाहते थे। क्योंकि मैंने आज तक बच्चों के कैरेक्टर ही निभाए थे और मैं अभी पूरी तरह व्यस्क भी न हो पाई थी, जिस वजह से मैं स्क्रिप्ट पढ़ कर घबरा गई और मैंने इस कैरेक्टर को निभाने में असमर्थता जताई। अंकल ने मुझे समझाते हुए कहा-“देख कमली, मैं तुझे अपनी बेटी से कम नहीं समझता, यदि तुम्हारे स्थान पर मेरी बेटी भी होती तो यह रोल उससे करवा कर मुझे अत्यन्त प्रसन्नता होती। मैं तुम में बॉलीवुड की एक उच्चकोटि की अभिनेत्री देख रहा हूँ। वहाँ तक पहुंचने के लिए दृढ़ संकल्प और कड़ी मेहनत की जरूरत पड़ती है, विशेष तौर पर तुम्हें अपनी सोच को खोलना पड़ेगा, सोच को प्रगतिशील विचारधारा के साथ जोड़ना पड़ेगा। जिस विचारधारा के तहत बॉलीवुड के एक प्रसिद्ध निर्देशक ने तो यहां तक कह दिया था कि- “यदि पूजा मेरी बेटी ना होती मैं उससे शादी कर लेता।”

किसी के छूने से या चूमने से जिस तरह का एहसास होता है वह एहसास कहीं बाहर से नहीं आता। वह आप के भीतर से ही उपजा होता है। यह इस बात पर डिपैंड करता है कि छूने वाले को किस संदर्भ में लेते हैं। जैसे एक बाप के गले लगने और ब्वॉय फ्रेन्ड के गले लगने में अलग-अलग एहसास होता है। यह दोनों एहसास हमारी अवचेतन की गहराइयों में से उभरते है। बस, यदि इतनी-सी बात भी समझ ली जाए तो किसी के छूने, चूमने या गले लगने से कोई फर्क नहीं पड़ता, जैसे कि अब मैंने तुम्हें छूआ (गर्दन पर उंगली फेर कर) तुम्हें कुछ हुआ, मुझे भी कुछ नहीं हुआ, लो मैंने तुम्हें चूम लिए (मेरी गाल को चूम कर) तुम्हें कुछ हुआ…लो मैंने तुम्हें बाहों में भर लिए (बाहों में भींच कर) तुम्हें कुछ हुआ…लो मैंने फिर तुम्हें चूम लिए…लो फिर चूम लिए…लो फिर चूम लिए…लो फिर चूम लिए। …लो फिर चूम लिए। …लो फिर चूम लिए …लो फिर चूम लिए।

जैसे-जैसे अंकल मुझे चूमते गये वैसे-वैसे मेरे दिलो-दिमाग पर एक अजीब-सा नशा छाता चला गया और मैं अपनी सुध-बुध गँवा बैठी।

जब होश में आई तो समाज का डरावना चेहरा मेरी आंखों के सामने घूमने लगा। मैं बुरी तरह डर गई और मैं रोने लगी।

अंकल ने फिर मुझे समझाते हुए कहा-‘हम प्रगतिशील विचारधारा के लोग है, कुदरत ने जो यह सर्वोच्च आनन्द की सौगात मनुष्य को दी है, हमें रूढ़ीवादी विचारों का शिकार हो कर इस पवित्र सौगात का निरादर नहीं करना चाहिए। कुदरत ने मनुष्यों में एक ही रिश्ता बनाया है, औरत और मर्द का रिश्ता। बाकी तो लोग अपनी-अपनी सुविधा के अनुसार खुद ही नये-नये रिश्ते बनाते चले गये और अनेकों रिश्तों की उलझन में उलझते चले गये और अज्ञानता वश कुदरत के इस सर्वोच्च आनन्द को पाप समझने लगे।’

वह नारीवादी सूर में लिखा नाटक दर्शकों और मीडिया की ओर से खूब सराहा गया और उस नाटक ने कोलकाता फेस्टिवल में सारे अवार्ड जीत लिए, जिसमें मेरा बेस्ट एक्ट्रेस का अवार्ड भी शामिल था। उसके बाद वह नाटक भारत के कई शहरों में खेला गया और इसी नाटक के कारण अंकल का ग्रुप ‘नटसंघ’ नारीवादी नाटकों के लिए विशेष तौर पर जाना जाने लगा।

अब तक मैं अंकल की फिलॉसफी के प्रभाव में कई बार औरत और मर्द के बुनियादी रिश्ते को सच साबित कर चुकी थी। देखते ही देखते कई वर्ष बीत गये इस दौरान मैंने अंकल जी के सामने कई बार भविष्य की चिन्ता प्रकट की और कहा कि हम भले ही औरत-मर्द के रिश्ते को ही सर्वोत्तम मानते है, मगर समाज तो इस तरह नहीं सोचता, एक न एक दिन समाज का सामना तो करना ही पड़ेगा। हमेशा की तरह अंकल कोई नई दलील दे देते और कहते- तुम चिन्ता मत करो मैं तुम्हारे साथ अन्याय नहीं होने दूंगा, भले ही इसके लिए तुम्हारे साथ शादी ही क्यों न करनी पड़े। इसी तरह मैं हर बार अंकल की नई दलील के आगे लाजवाब हो जाती और अगले नारीवादी नाटक की तैयारी में जुट जाती जो हमेशा की तरह अंकल ने खुद ही लिखा होता।

अचानक कुछ दिनों से मुझे अजीब-सा महसूस होने लगा, मुझे शक हुआ। मैंने जब अंकल से बात की तो उन्होंने बड़ी लापरवाही से जवाब दिया- “ऐसे छोटी-छोटी बातों पर वहम नहीं करते, कुछ उल्टा-सीधा खा लिए होगा, कुछ दिन आराम करो, सब ठीक हो जाएगा”।

जब पंद्रह-बीस दिनों बाद भी मुझे कुछ ठीक होता महसूस न हुआ तो मैं अंकल को मिलने स्टूडियो चली गयी, वहाँ जा कर पता चला कि वह ग्रुप लेकर जोधपुर फेस्टीवल में भाग लेने के लिए गए हैं, और नाटक में मेरी जगह कोई नई अभिनेत्री रिप्लेस कर ली गई है। सुनते ही मेरे पैरों तले की जमीन खिसक गई! मुझे ऐसा लगा मैं अभी चकरा कर गिर जाउँगी। मेरी आँखों में से आँसू बह निकले! मैंने किसी तरह अपने आप को सम्भाला और घर वापिस आ गई। घर पहुँची तो देखा मम्मी बहुत खुश थी उसने मुझे देखते ही गले से लगाया और माथा चूम लिए।-

“बेटी आज मैं बहुत खुश हूँ, आज वह खुशी का दिन है जिसकी इन्तजार में मां-बाप रातों को तारे गिना करते है। तेरे तो भाग जाग गए बेटी, अभी-अभी तेरी जालंधर वाली मौसी का फोन आया था। उसने तेरे लिए लड़का देखा है, लड़का आस्ट्रेलिया की एक कम्पनी में इन्जीनियर है। इत्तेफाक से वह इण्डिया आया हुआ है और अगले हफ्ते आस्ट्रेलिया वापिस चला जाएगा। तेरी मौसी ने बोला है कि अगर हम चाहें तो लड़के को देख सकते हैं, पर बेटी मैंने तेरी मौसी से साफ-साफ कह दिया है कि हमारी कमली के खुले विचार हैं, होगा वही जो वो चाहेगी। बेटी अब तू बता तेरी क्या मर्जी है?”

सुन कर मेरे तो होश ही उड़ गए, मुझे ऐसा लग रहा था जैसे कोई मेरा दिल अपनी मुट्ठी में जोर से भींचे जा रहा हो। मैंने अपने-आप को संभालने की कोशिश करते हुए मम्मी से कहा-

“मम्मी इतनी भी क्या जल्दी है, अभी तो मैं एन.एस.डी के दाखिले के लिए सोच रही हूँ। वैसे भी अभी कौन-सा मैं बूढी हो चली हूँ।”

“बेटी हम भी कौन-सा अभी बात पक्की करने जा रहे हैं, अभी तो सिर्फ तुम दोनों को एक-दूसरे को नजर भर देखना ही तो है।

मम्मी की दलीलों के सामने मैं लाजवाब हो गई और अगले रविवार का दिन पक्का हो गया, सोमवार को लड़के की आस्ट्रेलिया के लिए वापसी थी। अब इस उलझन का सिरा सिर्फ और सिर्फ अंकल के पास था, मुझे पता चला कि अंकल शुक्रवार को जोधपुर से वापिस आने वाले हैं। अब अंकल के इंतजार में मेरा एक-एक पल एक-एक सदी की तरह बीत रहा था, नींद तो जैसे एक सपना ही हो कर रह गई थी।

इस दौरान हर रोज मैं अंकल को कई-कई बार फोन करती, लेकिन हर बार स्विच आफ ही होता। आखिर आज जब रात को अंकल का फोन मिला तो वह नशे में धत थे। फिर भी बाकी बातों के बाद मैंने जब यह बताया कि मैं माँ बनने वाली हूँ तो वह एकदम भड़क गए और यह कहते हुए फोन काट दिया कि-“खुले गटर में क्या पता कौन कुड़ा फेंक गया है!” बस मैंने उसी पल यह खतरनाक कदम उठाने का फैसला कर लिए। आंटी जी मैं जानती हूँ कि मेरे इस फैसले से आप को बहुत कष्ट होगा लेकिन मुझे इसके अलावा कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा, उम्मीद है आप मुझे माफ कर देंगी।

आपकी गुनाहगार

कमली

अचानक मोनिका कॉल-बैल की आवाज से चौक गई।

“शायद सुरभि आ गई….!”

पर यह क्या सुरभि इतने दिनों बाद घर आ रही है, मोनिका को तो चाव चढ़ जाना चाहिए था, मगर उसके बिल्कुल उलट, कॉल-बैल की आवाज सुनकर मोनिका के दिल की धड़कर बढ़ गई, एकाएक उस दिन के दृश्य स्मृति पटल पर चलचित्र की भांति गतिशील होने लगे। जिस दिन ठीक इसी तरह कमली और थीरस हफ्ते के बाद कोलकाता फेस्टीवल में भाग लेकर वापिस आए थे। गेट खुलते ही कमली मोनिका को बाहों में लेकर नाच उठी थी और चीखते हुए खुशखबरी सुनाई थी-“मोनिका आंटी हमारा प्ले बैस्ट आया और मैंने बेस्ट ऐक्ट्रस का अवार्ड जीत लिए है।” उस दिन मोनिका की खुशी का कोई ठिकाना न रहा था और दूसरे ही दिन थीरस ने डिनर पार्टी का ऐलान कर दिया था। पार्टी में शहर के जाने माने रंगकर्मी, निर्देशक और प्रेस-मीडिया के लोग भी हर्षोल्लास के साथ पहुंचे थे। अगले दिन कमली और थीरस की फोटो सहित बेस्ट प्ले और बैस्ट एक्ट्रेस के आवार्ड जीतने की खशी में डिनर पार्टी की खबर छपी।

अचानक कॉल बैल की पुनः हई आवाज से मोनिका की तंद्रा भंग हई और उसने अपने आप को सम्भालने की कोशिश की। माथे से पसीने की बूंदे पोंछी और झट से गेट खोलने के लिए उठी पर उसे ऐसा लगा जैसे उसके पाँव एक-एक क्विन्टल भारी हो गए हों और एक-एक कदम कोसों की दूरी तय करने के बराबर लग रहा था, गेट तक पहुँचते-पहुँचते उसकी साँसे ऐसे उखड़ चुकी थीं जैसे मीलों बेतहाशा दौड़ती आई हो। उसने काँपते हाथों से गेट खोल दिया।

गेट खुलते ही सुरभि दौड़कर मोनिका से लिपट गई और जोर-जोर से चीखने लगी-“मम्मी हमारा प्ले बेस्ट आ गया है….और मैंने बैस्ट ऐक्ट्रेस का अवार्ड जीत लिए है….मम्मी आज मैं बहुत खुश हूँ….बहुत खुश हूँ….”

सुरभि खुशी की मदहोशी में मोनिका की गाल चूम लेती है, मोनिका को अपनी गाल पर सपने वाले थप्पड़ की चिलचिलाहट महसूस होती है।

फिर भी वह अपने आप को सम्भालने की कोशिश करते हुए राजन से मुखातिब होती है-

“नमस्ते जी..!” मोनिका की आवाज इतनी निर्बल और शुष्क थी जैसे कई दिनों से उसके गले से एक छूट पानी न उतरा हो।

“नमस्ते मानिका जी!”

सुरभि ने झट से पूछा-

“मम्मी क्या बात है, आप की तबीयत तो ठीक है न?”

“नहीं, ऐसी कोई बात नहीं, बस आप लोगों की इन्तजार में…!”

“…कमाल है मम्मी….आप तो खुद नाटक करने कई-कई दिनों घर से बाहर जाती रही हैं…!”

“बस ऐसे ही, घर में अकेले बैठे-बैठे बोर होने लगी थी….चलो आप लोग मुँह हाथ धो लो मैं चाय बना देती हूँ।”

चाय के टेबल पे सुरभि ने कहा-“मम्मी आज मैं और राजन अंकल बहुत खुश है, इसीलिए तो अंकल इस खुशी को सैलीब्रेट करने के लिए डिनर पार्टी का ऐलान करने जा रहे हैं।

सुनते ही मोनिका के हाथ से चाय की केतली छूटते-छूटते बची।

सुरभि ने यह कह कर मोनिका के दिमाग में एक और धमाका कर दिया-“मम्मी आज इस खुशी के मौके पर मैं राजन अंकल की ओर से आपसे कुछ माँगना चाहती हूँ। हालांकि मैं जानती हूं कि आप प्रगतिशील सोच रखती हैं, फिर भी मैं चाहती हूं कि आप मेरे सिर पर हाथ रख कर प्रोमिस करें कि आप इनकार नहीं करेंगी…”

कहते ही सुरभि ने मोनिका का हाथ अपने सिर पर रख लिए है। मोनिका को ऐसा लगा जैसे किसी ने उसका हाथ दहकती भट्ठी पर रख दिया हो, उसने एक झटके से अपना हाथ वापिस खींच लिग–-‘नहीं…!”

सुरभि ने हैरान होकर पूछा-“क्या हुआ मम्मी, आप इस तरह घबरा क्यों गई…?”

मोनिका ने झट से अपने आप को सम्भालते हुए अपना हाथ सुरभि के सिर पर पुनः रखा और कहा-“नहीं-नहीं, मैं बिलकुल ठीक हूं…तू माँग जो माँगना चाहती है….मेरा जो भी है, सब तेरा ही तो है…!”

सुरभि ने एक पल भी न सोचा फिर कहा- “मम्मी मैंने अंकल को एक हफ्ते में जितनी नजदीक से जाना है, शायद आज तक कोई नहीं जान सका। मम्मी, अंकल जितना बाहर से गम्भीर दिखते हैं उतना ही अन्दर से इमोशनल है। अंकल ने आज तक कभी किसी से कुछ नहीं मांगा, लेकिन आज मैं अंकल के लिए आप से माँग रही हूं। मम्मी, अंकल सिर्फ इतना ही चाहते है कि जब मेरी शादी हो तो कन्यादान अंकल के हाथ से हो!”

मोनिका के दिलो-दिमाग पर एक और जोरदार धमाका हुआ, उसने चौंक कर पहली बार राजन की ओर देखा! लेकिन राजन अपनी चिरपरिचित मुद्रा में सिर झुकाए बैठा था।

सुरभि लगातार बोल रही थी-“मम्मी यह तो हुई अंकल की ख्वाहिश। लेकिन जो अब मैं अपने लिए आप से माँगने जा रही हूँ वो अंकल की ख्वाहिश से भी कहीं बड़ी चीज है।

इस बार मोनिका के साथ-साथ राजन ने भी सुरभि की ओर चौंक कर देखा!

“मम्मी! कालेज टाईम से ही अंकल के दिल में आप के प्यार की बगिया महक उठी थी…”

“सुरभि…, यह तुम क्या कर रही हो…तुम ने मेरे साथ प्रोमिस किया था कि…!” राजन ने सुरभि को टोका।

“….अंकल प्लीज, आप चुप रहे…”

“सुरभि प्लीज….”

“अंकल, आप मेरा मरा हुआ मुँह देखो अगर बीच में बोले तो…”

“….ओ …शिट्ट…!!!’ राजन कसमसा के रह गया।

“मम्मी, अंकल आप से प्यार करते थे और आप पापा से। पापा अंकल के जिगरी दोस्त थे, इसलिए अंकल ने कभी भी अपने प्यार का इजहार न तो आप से ही किया और न ही अपने जिगरी दोस्त को ही महसूस होने दिया। बस चपचाप अपने प्यार का गला घोंट कर हँसते-हँसते उम्र भर के लिए सिर्फ यादों के सहारे अकेले तुरन्त अपनी नौकरी छोड़ कर यहाँ आ गये और रंगमंच के साथ जुड़ गये, ताकि किसी बहाने आप का ध्यान रख सके। मम्मी, अब मैं चाहती हूँ कि इससे पहले अंकल मेरा कन्यादान करें, उससे पहले मैं अपने हाथों से ‘माँ-दान करना चाहती हूँ…।”

कहते ही सुरभि ने मोनिका का हाथ राजन के हाथ में दे दिया।

मोनिका की आंखों से आँसुओं की धारा बह निकली।

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’