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सुरभि एक लड़के से प्यार करती थी  लड़का भी सुंदर सुडौल अच्छा पैसा कमाता पर उम्र में सुरभि से बड़ा था बस इसी बात के डर से वो दोनों डरते रहते के दुनिया को पता  चल गया तो क्या होगा | 

लम्बे समय से सुरभि और सूरज प्रेम में थे दोनों ने निर्णय किया की अब परिवार का रूप दे देना चाहिए |

शुरुआत सुरभि के घर से की गई सूरज को सुरभि ने काफी कुछ बता समझा दिया था पहले ही अब बस परीक्षा की बारी सूरज की थी.. 

सूरज मिठाई का डिब्बा लिया  और चल दिया सुरभि के घर, डोरबेल बजाई सुरभि का भाई गेट खोलने आया.. 

अरे आप,, आइये आइये सुरभि ने जिकर किया है घर पे आपके बारे में… आइये बैठिये मैं पापा जी को बुलाता हूँ

सूरज बड़ी गहरी सांस लेते हुए सोफे पर बैठ गया लेकिन नजर ऊपर उठाने की हिम्मत नही हुई.. 

मन बहुत बेचैन था ईधर सूरज, उधर दरवाजे से झांकते हुए सुरभि,, 

सुरभि के पिता जो कि मलेट्री से रिटायर थे बड़ी कड़ी आवाज़ में बोलते हुए.. 

तो तुम हो सूरज??? 

जी,, जी अंकल जी

सूरज की सांसे थमी जा रही थी सुरभि के बारे में सोच सोच कर सूरज सुरभि से उम्र में बड़ा था तो एक जिम्मेदार व्यक्ति की तरह उसका ख्याल रखता था वो भी सूरज को पाकर सब भूल जाती थी 

सूरज यही सोच – सोच  पागल हो रहा था अंकल ने शादी से मना कर दिया तो भी मैं दूर रहकर सुरभि को सभालूँगा |

  उलझन में देख कर सूरज को सुरभि के पिता ने आवाज़ दी “सूरज’ कहाँ खोये हो… 

सूरज नजरों को नीचा किये बोला नही कुछ नही अंकल जी,, 

सुरभि के पिता बोले सूरज वैसे तो सुरभि ने सब कुछ बता दिया है मैने आज तक अपनी बेटी की हर इच्छा पूरी की है उसकी शादी की इच्छा भी पूरी करूँगा, 

पर बेटा तुम दोनों में उम्र का फासला आगे चल कर कोई दिक्कत हुई तो… तब क्या होगा बस इसी बात से थोड़ा परेशान हूँ तुम समझ सकतें हो एक बेटी का बाप हूँ.. 

सूरज सोफे से उठकर सुरभि के पिता के पैरो के पास बैठ गया और उनके पैर छूकर बोला मैं आपको वचन देता हूँ अगर आप मुझें सुरभि की जिम्मेदारी देतें हैं तो मैं कभी आपको निराश नही करूँगा,, साथ ही अपना घर और जो भी चल- अचल संपत्ति मेरे पास है वह सुरभि के नाम रहेगी! 

इसमें आप ऐसा नही सोचिये के मैं पैसे से सुरभि को खरीद रहा हूँ बल्कि मेरे घर का ये रिवाज है अभी भी जितनी संपत्ति है वो मेरे पिता नही माता जी के नाम है.. 

और हमारे घर एक नियम और भी है अगर कोई लडाई- झगडा करता है तो ऐसे में घर छोड़ के कोई जायेगा तो वो पुरुष होगा महिला नही ,और ये रिवाज आज से नही मेरी परदादी के समय से चल रहा है , और एक बात मैं कभी वजह नही बनुगा के सुरभि की आँख में  मेरी वजह से आंसू आयें |

सुरभि के पिता सूरज को गले लगाते हुए बोले बेटा अब मैं निश्चिंत हूँ और बहुत खुश भी जो दामाद के रूप में मुझे बेटा मिला है |

अब तो सूरज और सुरभि का ख़ुशी का ठिकाना नही रहा पर अभी एक बड़ी जंग फिर भी बाकि थी सुरभि को सूरज की माँ पसन्द करें तभी शादी सम्भव है |

 अब सूरज की तरह सुरभि भी बेचैन थी सूरज के  माता पिता से मिलने के लिए  और  जानना चाहती थी कि उनके दिल में मेरे प्रति कितना प्यार है? आखिर एक दिन सूरज मेरे कहने से मुझे अपने माता पिता से मिलवाने ले ही गए l उनकी माँ तो गृहणी थी परन्तु पिता विश्वविद्यालय में एक वरिष्ठ अधिकारी के पद पर कार्यरत होने के कारण विश्वविद्यालय के परिसर में ही मिले आवास में रहते थे l 

 मेरे उनके घर जाने की पूर्व सूचना सूरज ने उन्हें दे दी थी कि मैं उनसे मिलने की इच्छुक हूं l वे भी मुझे मिलने के लिए उत्सुक थे,विशेष रूप से उनकी छोटी बहन जो मेरी ही उम्र की थीं l वो देखना चाहते थे कि उनके लाडले बेटे ने अपने लिए किस का और कैसी लड़की का चयन किया है l वैसे उनके पिता तो पहले भी मुझे देख ही चुके थे और जान भी गए थे कि उनके सुपुत्र ने उनके घर के लिए एक बहु की स्वयं तलाश कर ली है जिसके लिए  उसको स्वीकृति की आवश्यकता है l

सूरज की माँ  स्वभाव से कुछ पारम्परिक थी इसलिए उन्होंने मुझे विशेष रूप से साड़ी पहनने के निर्देश दिए थे l  सुरभि को तो वैसे भी पहरावे में साड़ी सब से प्रिय थी खास तौर पर मांड लगी सूती साड़ी पसंद थी l मेरे पास अपनी तो कोई साड़ी नहीं थी इस लिए माँ की एक फिरोजी रंग की रेशमी साड़ी और साथ मेल खाती चूड़ियां और छोटी सी माथे पर बिंदी लगा ली l सूरज ने मुझे घर से ही ले लिया था l वैसे भी जब से सूरज मेरी जिंदगी में शामिल हुए थे लोकल बस पर आना जाना  तकरीबन कम हो गया था  l उनकी पूरी कोशिश होती थी कि मुझे बस पर जाने से रोकना  l उनके घर पहुँचे तो उनकी माँ घर के बाहर बने बगीचे में धूप में बैठी थीं l पूस की शीत का प्रकोप कुछ कम हो रहा था l परन्तु शिवालिक की पहाडियों को स्पर्श करती शीत फिजाओं से चंडीगढ़ का आभामंडल अभी भी सर्द हवाओं से ग्रस्त था l   

  मैंने पूरी शालीनता और संस्कृति को प्रदर्शित करते हुए उनके चरण स्पर्श किए और आशीष लिया l उन्होंने भी बड़े प्यार से स्वागत करते हुए बिठाया l

 मैने देखा सूरज की माँ यद्यपि एक गृहणी थी परन्तु तौर तरीके में  और बातचीत में वो बहुत सरल और सहज भाव की थीं l सादी और अच्छी वेश भूषा में भी उनका व्यक्तित्व किसी एक शिक्षित महिला से कम नहीं लग रहा था l देखने में वो बहुत रुआबदार लगती थीं l लगती भी क्यों ना, एक तो वह जंगलात के महकमे के एक वरिष्ठ अधिकारी की बेटी थीं  और दूसरा विश्वविद्यालय के एक वरिष्ठ अधिकारी की पत्नि थी l   एक सुयोग्य और सुशील पुत्र की माँ थीं l वह सुन्दर भी थीं l परन्तु  मेरे लिए वो मेरी सम्मानित भावी  सासु मां थीं l मुझे ऐसा लगा कि मेरे राज सर  बिलकुल अपनी माँ की ही छवि लिए हुए सुन्दर और सौम्य हैं l उन्हें घर में बावा बेटा कहा जाता था l

 मुझे बिठाते ही उन्होंने अपने घर में कार्यरत नौकर को चाय नाश्ता देने  के लिए कहा l उन्होंने मेरे साथ बातचीत करने के लिए अपने बेटे को कहा कि तुम जाओ मुझे इस लड़की से अकेले में कुछ बात करनी है l उनकी बात सुनकर मुझे बहुत डर लगा कि कहीं हिन्दी सिनेमाई सास की तरह वो मुझे सूरज से दूर रहने के लिए  कोई प्रलोभन देने वाली तो नहीं हैं l यह सोच कर मेरे दिल की धड़कने तेज हो गयीं l सच में अगर ऐसा हुआ तो मैं क्या करूंगी l

 ” क्या नाम बताया तुमने,,,,,,सुरभि ,,,,,” मां ने पूछा  l

 ” जी मां मेरा  नाम सुरभि है,,,,,” मैंने उन्हें बताया l

 ” छोटू कह रहा था ,,सुरु,,” मां ने फिर दोहराया l

 मैंने उन्हें बताया कि वो मुझे सुरु कहते हैं वैसे मेरा नाम सुरभि है l

 सूरज की माँ समझ गयीं कि उनका छोटू बेटा अब वो छोटू नहीं रहा बल्कि एक बड़ा खूबसूरत नवयुवक बन गया है जो सुरभि का दीवाना हो गया है l

 ” अच्छा समझ गयी,,,,,हमारा बेटा तुमसे प्रेम करने लगा है,,,क्या तुम भी उस से उतना प्रेम करती हो,,,,?” उनका प्रश्न था l

 मैंने माँ को कोई ज़वाब ना दिया बल्कि संकोचवश अपना सर झुका दिया l कैसे ज़वाब देती और क्या ज़वाब देती कि जितनी मोहब्बत सूरज को मुझ से है उतनी मुझे भी उनसे है l कैसे कहूँ माँ कि सूरज में  तो मेरी जान बसती है,,,,,मेरी रूह का हिस्सा हैं सूरज,,,,,,

 मैंने कोई ज़वाब ना दिया तो माँ ने फिर पूछा,” तुमने बताया नहीं ,,,,,करती हो उस से प्यार,,,,,,,”

 ” जी,,,” मैंने छोटा सा ही उत्तर देते हुए कहा l

 माँ ने फिर पूछा कि ,” उसे कुछ समय के बाद छोड़ तो नहीं दोगी ,,,,?”

 मैंने कहा,” नहीं मां ऐसे नहीं होगा,,,”

उन्होंने  फिर मुझे बताया कि ,” मैंने देखा है यहां विश्वविद्यालय में लडक़ियों को लड़कों के साथ घूमते हुए और मौज मस्ती करते हुए l फिर कभी भी बीच  में छोड़ कर चली जाती हैं,,,,,यह लड़कियां,,,ऐसे में उन लड़कों का क्या जो अपने प्यार के प्रति गम्भीर होते हैं l कुछ तो लड़के भी मौज मस्ती वाले होते हैं उन्हें  तो कोई फर्क नहीं पड़ता l परन्तु जो सही मायने में प्यार करते हैं  वो लड़कियों के धोखे से टूट जाते हैं,,,,बिखर जाते हैं,,,कुछ करने के काबिल नहीं रहते,,,,इस लिए मुझे बहुत डर लगता है,,,,,,इस सब से,,,,,हमारे एक परिचित के लड़के के साथ ऐसे ही एक लड़की ने धोखा किया और आप विवाह कर के चली गयी और वो लड़का मारा मारा पागलों की तरह विश्वविद्यालय में उसे ढूँढता रहा,,,,,”

मैं सूरज की माँ के डर और मातृत्व की भावनाओ को भली भांति समझ गयी थी l उसी समय मुझे नम्रता का ख्याल आ गया उसने भी तो यही ही किया है जो माँ कह रहीं हैं l लाली वीर जी का उदास चेहरा और उनकी आँखों से भावुकता वश छलकता दर्द मेरी आँखों के सामने घूमने लगा l कल तक मेरे मां पिता का भी तो यही डर था l चाहे बेटा हो या बेटी दोनों ही सूरत में भावनात्मक चोट दर्दनाक ही होती है l

मैंने माँ के डर को दूर करने के लिए कहा,” मैं इस तरह से नहीं करुँगी,,,,”

उन्होंने फिर पूछा,” देखो बेटी मेरा बेटा बहुत ही कोमल भावनाओं का बच्चा है l बड़े नाज़ से पाला है हमने,,,,,इस लिए हम  दोनों  उसके लिए  बहुत ही फिक्रमंद हैं,,,,,,मुझे तुम बहुत पसंद हो,,,,,,हमे अपने बेटे की पसन्द से कोई इंकार नहीं है l बस  एक डर है,,,,,, जो मैंने तुम से साझा किया है ,,,,और कुछ नहीं,,,,,तुम मुझ से वादा करो कि  तुम उसे छोड़ कर नहीं जाओगी,,,,,प्यार में धोखा नहीं दोगी,,,,,,”

” जी माँ मेरा वादा है आपसे,,,,” मैंने कहा l

 ” और उस से शादी करना चाहती हो,,,,,,” माँ ने पूछा l

 ” जी,,,”मैंने शर्म से सर झुकाते हुए कहा l इस से ज़्यादा मैं कुछ भी ना कह पायी l मैंने उठ कर उनके चरण स्पर्श किए l माँ ने अपने पास रखी हुई गिफ्ट और कुछ फल और सोने की अंगूठी थी  देते हुए मुझे आशीष दिया और कहा कि मेरे बेटे का हमेशा ख्याल रखना l उस गिफ्ट बॉक्स में लाल रंग की कांच की चूड़ियां, सिन्दूर और पैरों की अंगुलियों में पहनने वाली रिंग्स थीं जिन्हें ले कर मैंने अपने माथे से लगाते हुए कहा कि,” मां मैं इस उपहार को  हमेशा प्रेमपूर्वक सम्मान करुँगी l”

   सूरज की माँ मुझे परम्परागत संस्कृति के रंग में देखना चाहती थीं l उन्हें बहुत अच्छा लगा मुझे साड़ी, कांच की चूड़ियों और बिंदी में देख कर l मेरे साथ बहुत देर तक बातें करती रहीं मेरे घर में कौन कौन है इत्यादि l सूरज की छोटी बहन भी आ गयी वो भी मुझे मिल कर बहुत खुश थी l

 मैंने देखा सूरज कमरे की खिड़की से सब सुन रहे थे और खुश भी हो रहे थे l थोड़ी देर में वह भी बाहर आ कर बैठ गए l

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