Care of Shy Child: सिमी (6 साल) और रिनी (7 साल) दोनों अपने पेरेंट्स के साथ रिलेटिव की शादी में जाते हैं। वहां जाकर सिमी दूसरे बच्चों के साथ जल्द मिक्स हो जाती है, लेकिन रिनी अपने पेरेंट्स के पास ही रहती है। इसमें कोई शक नहीं कि इनमें रिनी शर्मीले स्वभाव की है जो दूसरों के साथ जल्दी मिक्स नहीं होती। बाहर जाने की तो बात अलग है, घर पर भी अगर कोई मेहमान आता है, तो वो उनसे बात नहीं करती। अपने कमरे में ही बैठी रहती है। प्रश्न उठता है कि क्या शर्मीला होना गलत है, बच्चों को कैसे सपोर्ट कर सकते हैं।
शर्मीलापन या शाईनेस गलत नहीं है। सभी बच्चे अलग होते हैं और कुछ बच्चे दूसरों की तुुलना में ज्यादा शर्मीले होते हैं। यह उनके स्वभाव का एक हिस्सा है, दुनिया से इंटरेक्ट करने का तरीका है। जरूरी नहीं कि जो बच्चे अलग रहते हैं, दूसरों से बात करने या मिक्स होने में झिझकते हैं-वो कॉन्फिडेंट न हों। क्योंकि ऐसे बच्चे अपनी शारीरिक संकेतों और क्षमता को पहचानते हैं। वो दूसरों के कहे अनुसार न करके अपनी मर्जी से काम करते हैं। दूसरों से प्रभावित नहीं होते, क्योंकि वो जानते हैं कि उन्हें क्या चाहिए और किस स्थिति में कंफर्टेबल होगा। इसीलिए आसानी से मिक्स नहीं होते।
यहां हम पेरेंट्स के लिए कुछ टिप्स दे रहे हैं कि वो कैसे अपने शर्मीले स्वभाव के बच्चे को सबके साथ मिक्स होना सिखाएं, फ्रैंडली एन्वायरन्मेंट में रहना सिखाएं और कैसे कॉन्फिडेंट बनाएं ताकि वो सबके साथ बात कर सके-
बच्चे को दूसरों के सामने प्रेजेंट न करें

बच्चा अगर खुद में रहना पसंद करता है। पेरेंट्स उसे दूसरे के सामने कुछ सुनाने के लिए कहना गलत है। वह जब किसी को जानता नहीं हो, तो उसे प्रेशराइज करने पर वह ज्यादा शर्माने लगेगा। क्योकि वहां बैठे लोगों का सेंटर ऑफ एटरेक्शन बनने पर वह निश्चय ही घबरा जाएगा। अगर वो दूसरों के साथ मिक्स होने या कुछ परफोर्म करने में कफर्टेबल नहीं हो, तो उसके साथ किसी भी तरह की जबरदस्ती नहीं करनी चाहिए।
किसी तरह का लेबल न दें

अगर बच्चा हिचकता है, तो बच्चे को किसी तरह का लेबल न दें- शर्मीला है, किसी से बात नहीं करता, किसी के सामने ही नहीं आता। ऐसा करने से बच्चे के मन में कहीं न कहीं खुद को लेकर नेगेटिव फीलिंग आ सकती है। वो सोचता है कि शायद उसके साथ प्रॉब्लम ही है, पता नहीं कभी ठीक होगा भी या नहीं। दूसरों के साथ कभी खुलकर बात कर पाएगा या नहीं। इसके बजाय बच्चे को यह महसूस कराना ज्यादा अच्छा है कि वो जैसा भी है, ठीक है।
जबरदस्ती बात करने को न करें फोर्स
पेरेंट्स बच्चे को अपने साथ ले जाते हुए अक्सर उसे अच्छा बर्ताव करने या दूसरों से बोलने के लिए बार-बार न कहें। या घर में किसी मेहमान के आने पर बात न करने पर हाइपर या डांटना होना गलत है। उसे ऐसा न करने पर दोबारा ले जाने या मनपसंद चीज न दिलवाने के लिए कहना गलत है। बच्चे के मन में अलग तरह का डर बैठ जाता है कि पता नहीं क्या है, दूसरों से बात करना इतना जरूरी क्यों है। उसका कॉन्फिडेंस कम होता जाएगा और वह आपके साथ जाना भी अवायड करेगा। ऐसा न करके उन्हें प्यार से समझाना बेहतर है कि अगर वो कंफर्टेबल हो, तभी दूसरों से बात करें।
फीलिंग को दें सपोर्ट

पेरेंट्स को उसके शर्मीले व्यवहार को गलत न मानकर सराहना करनी चाहिए। सभी बच्चे या इंसान एक जैसे नहीं होते। अपने नेगेटिव जजमेंट को अलग रखकर उन्हें यह विश्वास दिलाना चाहिए कि अगर वो शर्मीले स्वभाव का है, तो गलत नहीं है। अगर उसे दोस्तों के साथ मिलने-खेलने में झिझक हो रही है, तो उसे सपोर्ट करते हुए कुछ समय दें। जब वो खुद बच्चों के साथ जाना चाहें, तभी जाए। धीरे-धीरे बच्चा दूसरों से घुलना-मिलना शुरू कर देता है और उसकी सोशल स्किल्स में बढ़ोतरी होगी।
बच्चे के अंदर का डर निकालें
जहां तक हो सके बच्चे को पढ़ाई के साथ पाठ्येतर गतिविधियों में शामिल होने के लिए मोटिवेट करना चाहिए। कई बार बच्चा स्कूल में होने वाले डांस, सिंगिंग या नाटक कम्पीटीशन में पार्टिसिपेट करना चाहता है। लेकिन अगर पेरेंट्स उसे डिमोटिवेट करते हैं कि वो किसी से बोलता तो है नहीं, ऐसे कम्पीटीशन कैसे करेगा। इससे बच्चे के मन में कॉम्प्लेक्स आ सकता है जिससे उभारना काफी मुश्किल हो जाता है।
ज्यादा रोक-टोक न करें

बच्चे पर ज्यादा नज़र न रखें कि वो कहां जा रहा है, किससे बात कर रहा है, क्या कर रहा है। रेगुलर पार्क लेकर जाएं और वहां के खुले एन्वायरन्मेंट में उसे बच्चों के साथ मनमर्जी से खेलने दें। उसे यह विश्वास दिलाएं कि आप उसे बार-बार देख नहीं रहे हैं या डिस्टर्ब नहीं कर रहे हैं। इसके लिए आप अपने दोस्तों के साथ बात करें या वॉकिंग करें। बच्चे को जब लगेगा कि आप ध्यान नहीं दे रहे हैं तो वो दूसरे बच्चों के साथ मिक्स हो जाएगा।
बच्चे को सिखाएं बेसिक सोशल स्किल
बच्चे को आई कॉन्टेक्ट बनाना, हाथ मिलाना, स्माइल करना, विनम्रता से बात करना जैसी बेसिक सोशल स्किल्स सिखा सकते हैं। आप गेम्स के माध्यम से भी इन्हें सिखा सकते हैं जैसे उनके पसंदीदा दो टॉयज को लेकर इंटरेक्शन गेम्स खेल सकते हैं। एक-दूसरे के साथ बात करने का रोल-प्ले गेम्स खेल सकते हैं कि किसी दूसरे बच्चे के साथ दोस्ती कैसे कर सकते हैं। प्लेग्राउंड में जाकर कैसे दूसरों के साथ खेल सकते हैं। बीच-बीच में बच्चे से पूछते रहना चाहिए कि एक टॉय को कैसे एक्ट करना चाहिए। इससे बच्चा जरूर सीखेगा।
असहज स्थिति का सामना करने के लिए करें तैयार

पेरेंट्स को बच्चे को यह जरूर सिखाना चाहिए कि जब वह किसी स्थिति में असहज महसूस करता है, तो उसे उससे भागना नहीं चाहिए। बल्कि अपने आपको ऐसी स्थिति का सामना करने के लिए प्रयास करना चाहिए। पॉजिटिव अनुभवों से समय के साथ बच्चे का आत्मविश्वास बढ़ेगा।
रोजाना क्वालिटी टाइम बिताएं और फ्रैंडली रहें
अक्सर पेरेंट्स खासकर वर्किंग पेरेंट्स अपने-अपने कामों में बिजी रहते हैं। बच्चों के साथ बात नहीं करते, उनके साथ क्वालिटी टाइम नहीं बिताते। बच्चे मोबाइल या लैपटॉप में गेम्स खेलने में बिजी रहते हैं। ऐसे में जरूरी है कि पेरेंट्स को बच्चों के साथ फ्रेंडली बात करना, उनके डेली रूटीन के बारे में जानें, आसपास या दोस्तों के साथ उनके रिलेशन की, घर के अन्य सदस्यों की बात करनी चाहिए। उन्हें घर के कामों में या किसी विशेष निर्णय लेने में उनकी सलाह लेनी चाहिए। इससे बच्चों की झिझक कम होगी। ध्यान रखें बच्चा जितना ज्यादा पेरेंट्स के साथ अपने मन की बात कह पाएगा, उतना ज्यादा रिलेशनशिप मजबूत होगा। बांड मजबूत होने पर कंफर्ट ज़ोन मिलेगा जिससे बच्चा बिना किसी डर के अच्छी-बुरी बातों को पेरेंट्स के साथ शेयर करेगा।
