भारत कथा माला
उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़ साधुओं और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं
पानी में लागी आग रे-मुझसे या किसी से यह मत् पूछना कि सन सैंतालीस में रहमते को राम कौर बनाया गया था या राम कौर को रहमते।
यह भी सवाल मत करना कि यह घटना पूर्वी पंजाब में घटी, जो अब स्वतंत्र हिन्दुस्तान का हिस्सा है या पश्चिमी पंजाब का, जो पाकिस्तान का भाग है।
हां, मैं यह अवश्य बता सकता हूं कि यह उस लड़की की कहानी है, जिसे पंजाब की धरती की कोख ने पैदा किया, जिसकी जवानी को पांच दरियाओं के पानी ने अठखेलियां करना सिखाया। जिसकी रगों में उस ‘हीर’ का खून दौड़ रहा है, जिसने अत्यन्त दलेरी से कहा थाः-
वारिस शाह ना मुडां मैं रांझणे तों
भावें बाप दे बाप दा बाप आवें।
या जिसके सीने में उस साहिबां के जज्बात थे, जिसने मिर्जा को ललकारते हुए कहा थाः-
वे माडी तेरी टीकडी ते ढिल्ली इहदी तंग
जे घर नहीं सी तेरे बाप दे, लै आउंदों किधरों मंग।
हां! उस समय, जब दोनों ओर के लोग स्वतंत्र होने के जोश में, मजहबी जुनून का शिकार हो गए। उन्होंने इस लड़की के देखते-देखते, इसके मां-बाप, ताया, चाचा, बहन-भाई, दादा-दादी, कुल मिला कर अठारह लोगों का कत्ल कर दिया। किसी की तलवार इसकी गर्दन पर भी चलने ही वाली थी कि तभी किसी की नजर, इसकी सोने-सी चमकती जवानी पर चली गई। उसने लूट के माल की भांति इसे अपने कंधे पर उठाया और घर ले आया। फिर इसे अपने मजहब में शामिल कर, इसे नया नाम दे दिया।
तब रहमते को राम कौर बनाया गया या राम कौर को रहमते। यह मैं नहीं बताऊंगा। आप पछे भी नहीं।
आज छः जून, 2013 को, वह लड़की, जो सन् सैंतालीस में उन्नीस साल की थी, आज उन्नीस जमा तिरेपन, जमा बारह के जोड़ से पूरे चौरासी साल, आठ महीने और छह दिनों की हो गई है।
इस लंबे अर्से के दौरान, जब अगवाशुदा औरतों को अपने-अपने देश भेजने की कार्रवाई हुई तो इस औरत ने जाने से इन्कार कर दिया।
“ना बाबा ना”, इसने कहा था।
“अब मेरा यही नाम है, यही मेरा मजहब है और मेरा मुल्क। मैं इसे छोड़ कर कहीं और नहीं जाऊंगी।”
इस दौरान वह अपने पति की बीबी बनी, उसके बच्चों की मां बनी, दादी बनी, नानी बनी। पति के संबंधियों का दिल जीता, उसके दोस्तों मित्रों को अपनाया।
इसके बारे में बात करते हुए, कोई भी इसका नाम लेकर कहता, “भई वाह! बड़ी किस्मत वाली आई है। भाग्य चमका दिया इसका। सूखा वृक्ष पल्लवित हो गया। बरकत हो गई घर में, इस कर्मों वाली के आने से।”
इस कर्मों वाली को शुरू-शुरू में पति से बहुत डर लगता था। उसका वही डरावना चेहरा, इसकी आंखों के सामने घूम जाता था, जब वह लहू से भीगी तलवार हाथ में लिए, इसे कंधे पर डाल अपने घर ले आया था।
परन्तु घरवाले ने यह कह कर इसका दिल जीत लिया। तेरे हुस्न ने मुझे ऐसा घायल किया कि मैंने तेरे आगे हथियार डाल दिए।
समय अपनी चाल चलता रहा और आज यहां तक आ पहुंचा, जहां उसका भरा-भकुना घर है और इतना बड़ा परिवार।
आज सारा परिवार इस औरत के परदादी बनने का जश्न मनाने के लिए एकत्रित है। उसके बड़े पोते के घर लड़का पैदा हुआ है।
परदादी सुन्दर कपड़े पहने, बरामदे में रखे सोफे पर बैठी है। उसका पति बैठा मंद-मंद मुस्कुरा रहा है।
घर की बहुएं-बेटियां, सभी के लिए खाना तैयार करने में व्यस्त हैं।
बच्चे-बड़े सभी बड़े दालान में भंगड़ा कर रहे थे। बार-बार बोलियां गा रहे थे।
दालान में दूसरी ओर औरतें और लड़कियां गिद्दा डालते हुए खुश हो रही थीं। खशियां दालान की दीवारें फांद कर, चारों ओर ऐसे बिखर रही थीं जैसे दूध गर्म होकर उबल-उबल कर, काढ़नी से बाहर चूल्हे की आग पर गिर रहा हो।
तभी एक नौजवान ने सोफे पर बैठे दादा को भी बांह खींच कर भांगड़े की टोली में शामिल कर लिया।
यह देख कर लड़कियों में से एक दादी की कमर में बांह डाल कर गिद्दे की टोली में ले आई।
किसी ने बोली डाली,
देसां विचों देस सुणींदा
साडा देस पंजाब।
धरती उत्ते फुल्ल है खिडिआ
देसी फुल्ल गुलाब।
इसी प्रकार बोलियां डालते-डालते दोनों पक्षों में बोलियों का मुकाबला शुरू हो गया:-
बांह चुक्क के ठाकदा आखे
नी केहड़ी % तू साग तोड़दी।
लड़कियों ने तड़ से जवाब दिया:-
साग तोड़दी मुरब्बों वाली
वे केहड़ा ऐं तूं हाक मारदा।
तभी दादा को दादी पर प्यार आ गया। उसने उसकी ओर इशारा करके हांक लगाई:-
तैनूं चुक्क के असां ले आउणा
नी रूप दीये बंद बोतले।
ऐसा सुन कर मर्दो की टोली में जोरदार हंसी गूंज उठी।
इसी हंसी को सुन कर दादी का फूल-सा चेहरा एकदम मुरझा गया। वह तो चुप रही लेकिन एक लड़की ने ठोक कर जवाब दिया:-
मेरे रूप नूं हथ्थ न लावीं
वे पाणियां को अग्ग लग्ग जावें।
यह बोली सुन कर दादी सोचने लगी कि सन् सैंतालीस में जब हजारों-लाखों लड़कियों की आबरू लूटी गई थी, तब पंजाब के सारे पानियों में आग अवश्य लगी होगी।
सोचते सोचते दादी गिद्दे वाली टोली से निकल कर वापस बरामदे में आ बैठी।
लड़कों की ओर से कोई जवाब ना मिलने पर लड़कियां जोश में आकर नाचते-नाचते बोली को दुहराने लगी:-
पाणियां न अग्ग लग्ग जावें
पाणियां नूं अग्ग लग्ग जावें।
यदि पानी में आग लगी होती तो वो विभाजन ना हुआ होता।
दादी सोच में डूब गई। उसकी आंखों के आगे सारा दृश्य घूम गया, जब उसके सारे परिवार को कत्ल कर दिया था और उसका पति उसे कंधे पर उठा कर ले आया था।
वह अभी सोच में ही डूबी थी कि तभी किसी बहू ने आकर पूछा,
“दादी, खाना तो तैयार हो गया है। बताओ, मीठे में क्या बनाएं?”
“आप कहें, तो दूध की सेवईयां बना लें?”
“नहीं”, दादी ने कहा, “सेवइयां मैं खुद बनाऊंगी। तुम लोगों की बनी सेवइयां, तुम्हारे दादा नहीं चखेंगे।”
सारा परिवार खाना खा चुका था। दादी सेवइयों का बड़ा पतीला लेकर परिवार के बीच में बैठ गई।
सभी को कटोरियां भर-भर कर दी।
थोड़ी देर बाद दालान में अठारह लाशें बिछी पड़ी थी और परदादी एक ओर खड़ी सभी की ओर एकटक देख रही थी।
उसे लगा, जैसे उसके सीने में एक उम्र से सुलग रही बदले की आग शांत हो रही हो। परन्तु किसी समय उसे लगता, उसके सीने से सांस खींची जा रही है।
ऐसी मनोस्थिति में उसे लगा, जैसे मरी हुई लड़कियों के होंठों से अभी भी बोली के बोल फूट रहे हों:-
वे मेरे रूप नूं हथ्थ न लावी
पाणियां नूं अग्ग लग्ग जावीं।
यहां तक पहुंच कर मैं आपको फिर से याद दिला दूं कि मुझसे या किसी और से कभी यह ना पूछना कि पाणियों में अग्ग किसने लगाई थी।
रहमते ने राम कौर बन कर
या राम कौर ने रहमते बन कर।
जो बात करने वाली है, वह मैं बता देता हूं।
तब सन् सैंतालीस में जब अनगिनत लड़कियों के रूप को मैले हाथ लगे थे, तब पंजाब के पाचों दरियाओं के पाणियों को आग लगी थी।
आग लगी थी, मगर वह सूख गए थे।
पांच दरिया सूख गए तो पंजाब की धरती बंजर हो गई थी।
इस बंजर धरती पर तब से लेकर अब तक सच्ची खुशियों की फसल नहीं उग पाई।
ना इस ओर
ना उस ओर।
भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’