Hindi Kahani: जिंदगी की दास्तान भी कितनी अजीब है कब क्या हो जाए पता ही नहीं चलता है लेकिन ऐसे समय में लोगों के चेहरे पर लगे मुखोटे खुल जाते हैं फिर जो रूप सामने आता है वह बहुत ही घिनौना और अप्रत्याशित होता है ऐसा ही तो कुछ नीता के साथ हुआ था वह ऐसे व्यक्तित्व की धनी थी कि जो भी देखता देखता ही रह जाता और रूप के साथ सर्वगुण संपन्न।
नीता का मन बहुत अशांत हो उठा था । अचानक यूँ 5 साल बाद विकास के मैसेज को देखकर उसकी आँखों के सामने वो पूरा मंजर तैरने लगा। ठंड की भरी दोपहरी में हाथ पैर सुन्न पड़ते जा रहे थे। नीता ना चाहते हुए भी उसके के विषय में सोचने को मजबूर हो गई थी ।आज भी उस बात को सोच नीता के चेहरे पे एक गहरी दर्द की रेखा आ गई थी । पर दूसरे ही क्षण गुस्से के भाव से पूरा चेहरा लाल हो गया था। हमें जब छोड़ कर जाना ही था ,तो फिर आज क्यों मिलने आ रहा है? मन में बैचेनी और सवालों का ताँता सा लगा था ।
बहुत बेचैन थी और सोच रही थी ….. क्यों इतने सालों बाद हमारी जरूरत आ पड़ी? इन 5 सालों में क्या कभी उसने मिलने या बात करने की कोशिश की ? कभी अपने बेटे समर का हाल चाल पूछा ….?
हम मर गये …या जिंदा हैं…… या किस हाल में हैं ???कभी कुछ भी तो जानने की कोशिश नहीं की, फिर आज क्यों ? सवाल तो कई थे पर जवाब एक का भी नहीं था ।
जाने क्या सोचते सोचते, आराम कुर्सी पर बैठ…. उन पुरानी यादों के सफर पर निकल पड़ी जिन यादों को उसने मन की अंधेरी कोठरी में दबा रखा था …
नीता- उस दिन आप क्या कर रहे थे?
वैभव- तुम तो ऐसे बन कर पूछ रही हो ,जैसे तुम्हें नहीं पता।
नीता-मुझे क्या पता?
वैभव-अच्छा! उसमें गलत भी क्या था?
नीता-गलत तो था ही !आपको ऐसा नहीं करना चाहिए था।
वैभव-क्यों भई? मिलते हुए मौके को कौन हाथ से जाने देता है? (यह सारी बातें नीता अपने बेस फोन से कर रही थी) जिसका कनेक्शन हर एक कमरे में था।
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(दूसरी तरफ पैरलल लाइन पर)
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अपने कमरे से जैसे ही शारदा देवी ने , किसी से बात करने के लिए फोन का रिसीवर उठाया तो वह आवाज़ें सुनकर चौंक गयीं।(ध्यान से सुनने पर) अरे किस से बातें कर रही है ये नीता?
उधर वे दोनों बेखबर अपनी बातों में व्यस्त थे।
नीता-लेकिन आपको नहीं लगता इस तरह से; मौके का फायदा उठाना गलत है?
वैभव-मैंने कुछ गलत थोड़ी न किया था ।बस छूकर ही तो देखा था।
नीता-नहीं आप को छूना भी नहीं चाहिए था।
वैभव-मेरा मन करा तो रोक नहीं पाया अपने आप को।
नीता-आप ने तो हद कर दी। अपने मन को कंट्रोल में रखना था ।ऐसे कैसे आपका मन कर सकता है?
वैभव-क्यों? आखिर ऐसा भी कौन सा पहाड़ टूट गया अगर….”
नीता-आप किसी दूसरे की अमानत को इस तरह से कैसे छू सकते हैं?
वैभव- छू ही तो रहा था…. कुछ कर तो नहीं रहा था”।
नीता- हां …..आप कर भी नहीं सकते कुछ(हंसते हुए)”।
शारदा देवी मन ही मन में-( इस तरह की बातें क्या चल रहा है…. इन दोनों के बीच में)… और शारदा देवी ने जितना भी सुना उनके क्रोध को बढ़ाने के लिए काफी था।
‘हे भगवान !यह सब सुनने से पहले मुझ पर आसमान क्यों नहीं गिर गया…. अपने ऑफिस के साथी से …इस तरह की बातें ….!! लोक ,लाज ,शर्म सब कुछ उठाकर रख दी इसने तो “।मन ही मन बड़बड़ायीं।
क्रोध से फट पड़ी और नीता के कमरे की ओर चल दीं।
आने दो विकास को अभी खबर लेती हूं कलमुंही की।।
वैभव-अच्छा …ऐसी क्या बात… चैलेंज कर रही हो ?
नीता- नहीं वैभव जी चैलेंज नहीं कर रही। लेकिन सामान्य सी बात है ,आप किसी के सैल से उसके मैसेजेस को बिना उसकी सहमति के कैसे पढ़ सकते हैं ? वो भी मेरे और विकास के बीच के। जल्दी-जल्दी में मैं अपने सैल को वही डेस्क पर भूल गई थी।
वैभव-क्या करूं स्क्रीन पर विकास की भेजी हुई सुंदर सी इमोजी देखकर मैं अपने आप को रोक नहीं पाया।
नीता- कुछ भी हो यह पति पत्नी के बीच का मामला है आप मुझे आवाज लगाकर सैल दे भी सकते थे। पर आपको तो शरारत सूझ रही थी। खैर कोई बात नहीं…. फिर कभी इस बारे में बात होगी …..रखती हूं… शायद मम्मी जी आवाज लगा रही हैं …कहकर जैसे ही नीता ने रिसीवर रखा….
तभी गुस्से में शारदा देवी उसके कमरे में पहुंची ।
शारदा देवी-क्या चल रहा है यह सब?
नीता-कुछ भी तो नहीं!
शारदा देवी-किससे बातें कर रही थीं….. मैंने सब सुन लिया है सच सच बताओ!
नीता-जब आप सब कुछ सुन चुकी हैं तो मुझसे क्यों पूछ रही हैं”?
शारदा देवी-चोरी ऊपर से सीना जोरी। मैं अपने लड़के का घर यूं बर्बाद होने नहीं दूंगी”।
नीता-यह क्या बकवास कर रही हैं आप ?आप मुझसे बड़ी जरूर हैं। लेकिन कम से कम बड़े होने के नाते यह तो सोचिए कि आप कह क्या रही है”?
शारदा देवी-तुम्हें झूठ बोलते हुए शर्म नहीं आती ….मैंने सब कुछ अपने कानों से सुना है….. अभी विकास आकर… दो हाथ लगाएगा… तो सीधी हो जाओगी….”?
लेकिन नीता को पूरा विश्वास था कि विकास सही बात का साथ देगा। उसने बड़े ही आत्मविश्वास के साथ कहा,” ठीक है! आपको जो कहना है…. आप कहिए ….विकास सच का ही साथ देंगे…..”।
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शारदा देवी-नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली….. तुम्हारे मुंह से इस तरह की बातें अच्छी नहीं लगती”….।
वह चाहती तो सारी बात साफ-साफ अपनी सास को भी बता सकती थी….. लेकिन उसको लगा उसकी भी निजता का सवाल है! हर किसी की अपनी अपनी निजता है ….कोई उसमें कैसे झांक सकता है ?….. वैसे भी इस समय कुछ भी बोलेगी ….वह उसे झूठ ही मानेगी…. कहां तक अपनी सफाई देती रहेगी…. इसलिए उसने कुछ ना कहना ही बेहतर समझा….. और विकास के आने का इंतजार करने लगी। लेकिन ……
विकास -नीता जरा सैल दो
नीता -लेकिन क्यों
विकास- मैं बोल रहा हूं मोबाइल दो
नीता- (सेल पकड़ाते हुए) कारण जान सकती हूं?
विकास ने कुछ नहीं बोला और घूरते हुए सेल अपने कमरे में ले गया और अंदर से दरवाजा बंद कर लिया।
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नीता बाहर से -विकास दरवाजा खोलो
एक दो बार दरवाजे पर नाॅक करने पर विकास गुस्से में दरवाजा खोलता है
विकास-तूने इसमें पैटर्न लॉक क्यों लगाया है बता क्या है तेरा पैटर्न लॉक
नीता को विकास का इस तरह बोलना बिल्कुल अच्छा नहीं लगा और उसने भी उसी गुस्से में जवाब दिया नीता-नहीं खोलूंगी लॉक; यह मेरा सेल है; मैं इससे कुछ भी करूं; कौन होते हो तुम पूछने वाले?
विकास उसका हाथ मरोड़ ते हुए–क्यों नहीं खोलेगी इसका लॉक इसलिए ही ना कि कहीं तेरे आशिक के मैसेजेस कोई पढ़ ना ले।
नीता- कुछ तो शर्म करो विकास इस 8 साल की शादी में तुम्हें मुझ पर इतना भी भरोसा नहीं हुआ
विकास- भरोसा? है तू क्या भरोसे के लायक?
नीता- मैंने कभी सपने में नहीं सोचा था कि तुम एक झूठ पर इतना शोर करोगे। जिसने मुझ पर उंगली उठाई है क्या दे सकती हैं वह कोई सबूत?
विकास गुस्से में पागल था और हाथ से सेल छीनकर घर से बाहर निकल गया। उसने हर उस सेंटर पर सिम को अनलॉक करवाने की कोशिश की जिसे वह जानता था लेकिन सारी कोशिशें नाकाम रहे और थक हार कर जब वह घर आया तो नीता को उसने बहुत ही उल्टा सीधा कहा।
अब नीता को एक पल भी उस घर में काटना मुश्किल लग रहा था। उधर उसका 5 साल का बेटा बस रोए जा रहा था। विकास के हाथ से सेल छीनते हुए क्या चाहते हो कि मैं इसका सिम अनलॉक कर दूं ठीक है लाओ कर देती हूं लेकिन…
विकास- बोल लेकिन क्या
नीता- अगर तुम मुझे गलत साबित नहीं कर पाए तो…
विकास- तो क्या? तू गलत है मुझे मालूम है।
नीता- इसका फैसला तो यह अनलॉक सिम करेगा ना। मैंने सिर्फ इतना पूछा कि अगर तुम मुझे गलत साबित नहीं कर पाए तो… तुम नहीं जवाब देना चाहते , मत दो। पर अब तुम मुझे जाने से नहीं रोक पाओगे। मुझे मालूम है तुम्हारे कान किसने भरे हैं। दुख इस बात का है कि एक 8 सालों में भी तुम मुझे नहीं समझ सके। कच्चे कानों के आदमी के साथ में अब और नहीं रह सकती। विकास को सेल देते हुए उसने अपने बेटे समर का हाथ पकड़ा और घर से निकल गई।
शारदा देवी के मामूली शक और झूठ ने उन दोनों पति पत्नी को अलग होने पर मजबूर कर दिया इस बेरंग पल के बारे में तो उसने कभी सोचा भी नहीं था किसी औरत के लिए सबसे ज्यादा मुश्किल अपने चरित्र पर शक करने वाले के साथ रहना होता है जो वह अब नहीं चाहती थी।
नीता- (शारदा देवी और विकास से) आज मेरा विश्वास हारा है, लेकिन मेरा आत्मसम्मान जीत गया। मैं आफिस में हर महिला से कहती थी कि अपने अधिकारों के लिए लड़ो और शायद कभी-कभी घर की शांति और तनाव को दूर रखने के लिए मैं खुद अपने इस आत्मसम्मान को पीछे रख देती थी। आज मेरे जरा इस सिम लॉक ने आप दोनों के मन में कितने सारे शकों को जगा दिया। आज मैं मम्मी जी आप से पूछती हूं आप भी तो एक औरत हैं। क्या एक औरत जो मां है पत्नी है किसी की भाभी यह बहू है उसके लिए उसका आत्मसम्मान कुछ नहीं होता उसके लिए उसकी कोई आजादी मायने नहीं रखती आप सबकी अपनी अपनी निजता है लेकिन क्या कभी आपने मेरे लिए भी वही निजता का ख्याल रखा है।
मुझे अफसोस है कि जब आंखों पर काला चश्मा लगा हो तो सब काला ही दिखता है मिस्टर विकास अपने आंखों पर से शारदा देवी के नाम का काला चश्मा हटाओ तो शायद तुम्हें कुछ साफ दिखे। मैं जा रही हूं, जहां की बुनियाद ही इतनी कमजोर हो वहां मंजिल खड़ी करने से कोई फायदा नहीं। एक बेबुनियाद शक में सब कुछ तहस नहस कर दिया था काश ये विकास समझ पाता निजता का मौलिक अधिकार,उसकी सीमाएं।
वह विकास को उसके हाल पर छोड़ अपने मां-पापा के घर आ गई ।उसके लिए अब जिंदगी पहले जैसी नहीं रह गई थी। अब जिंदगी के मायने बदल गए थे। वह सिर्फ अपने में ही मगन रहती। किसी से ज्यादा बात नहीं करती थी। हर समय शून्य में ताकती रहती और कुछ सोचती रहती ।नीता ने विकास के साथ अपने छोटे से सुखी घर-संसार के कैसे-कैसे सपने देखे थे। सब कपास के फूल की तरह बिखर कर रह गये। वक्त के सामने कहां किस की चली है। अगर वक्त खराब हो तो सब कुछ तिनके की तरह बिखर जाता है। इतने दिनों में विकास का भी कोई फोन नहीं आया न ही नीता ने कभी मिलने की कोशिश की । वह सोचती ,”उस रास्ते पर क्या जाना जहां इमारत खड़ी होने से पहले ही नींव हिला दी गई हो”। …..पर विकास की यादों की कसक एक टूटे कांच की तरह नीता के हृदय में गड़ गई थी। और वह समर को सीने से लगाए उन किरचों को संभालने की कोशिश में लगी हुई थी।
कुछ महीने तो ,रिश्तेदारों द्वारा बातचीत और सुलह,सफ़ाई करवाने की कोशिशों में निकल गए ।तो…. कुछ.. मां पापा की इस आस में कि;’ आदमी का ग़ुस्सा पानी का बुलबुला है ,मिनटों में बनता और बिगड़ता है। जल्दी विकास का गुस्सा काफूर हो जाएगा और नीता सादर अपने घर जा पायेगी ।पर लम्बे इंतज़ार के बाद भी विकास उन दोनों को लेने नहीं पहुंचा।
(एक दिन नीता के माता पिता नीता से)
आँखों के चश्मे को थोड़ा सटाते हुए पापा ने कहा,” बेटा अभी तो समर बहुत छोटा है।उसे किसी बात की समझ नहीं है….लेकिन धीरे धीरे बड़ा होगा तो ,कई प्रकार के प्रश्न पूछेगा…..कुछ ऐसे प्रश्न जिन का उत्तर देने में भी तुम्हें हिचकिचाहट होगी।बाहर निकलोगी , लोगों से मिलोगी ।काम में मन लगेगा तो पुरानी यादें खुद ब खुद धुंधली पड़ जायेंगी ” ।
मां-तुमने तो जीवन में अनेक परीक्षाएं उत्तीर्ण की हैं। आज कैसे हार मान लोगी? अभी तो तुम्हें और भी कठिन परीक्षायें देनी है ।मैं जानती हूं कि तुम्हे तो टूटे दिल की किरचें समेटने तक की मोहलत नहीं मिली । पर यूं बैठकर आंसू बहाने से कुछ नही होगा”, मां ने समझाया।
नीता-अक्सर मेरा मन व्यथित हो उठता हैं मां ,मन में उपजे सवालों से और बैचेनी से भर मैं उलझ जाती हूँ।क्यों??मां आप ही बताओ क्या करूं? कहां जाऊं?
“बेटा! तुम्हारे अंतर्द्वंद और मन में उठ रहे सैकड़ों सवाल जिससे तुम हर पल जूझ रही हो, मैं नही समझूंगी तो कौन समेगा?समझ सकती हूं कि, जज्बातों को अपने अंदर दफन करने से अक्सर मायूसियां घेर लेती हैं। लेकिन ऐसे कब तक चलेगा समर की तो सोच। तुझे जीना है समर के लिए।यूं हाथ पर हाथ रख हार मानना कायरता है”।
“मैं इन्हें बहुत प्यार करती हूँ.‘‘ मेरी कमजोरी हैं ये।इनसे शुरू होकर इन्हीं पर खत्म होने वाली मेरी दुनिया में मेरे बच्चे तक का प्रवेश सीमित है।
“दरअसल बहुत प्यार करने वाले लोग केवल प्यार ही समझते हैं न …छल कपट नहीं….. बेवकूफ है….इस पागलपन से क्या मिलेगा “?..
नीता-पता नही किस सोपान की तलाश मे भागे जा रही हूं”?
पापा-बेटे!…जब वक़्त और रिश्तों के खिंचाव को ख़ुदगर्ज़ी का लकवा मार जाय… तो पूरी तरह प्रतिक्रिया विहीन हो कर ठंडे और जड़ सम्बन्धों को कोई कब तक ढो सकता है..?वह अपने पापा की इस बात से चौकी।
(मन ही मन निश्चय किया कि,उसे जीना है , समर के लिए)
नीता-शायद आप सही कह रहे हैं।।नही,अब मैं हार नहीं मानूंगी….अकेली ही जिन्दगी की हर लड़ाई लड़ के दिखाऊँगी..अपनी किस्मत से और इस समाज से।….. आप लोगों की बहुत-सी उम्मीदें हैं मुझसे। उन पर खरा उतरना है । बस यही मेरे आत्म-सम्मान की जंग है ।इस से बढ़कर कुछ नही है मेरे लिए.. “
उधर कोर्ट में तलाक का मुकदमा दायर कर दिया गया था विकास की तरफ से।
नीता ने जज से कहा,” विकास ने मेरे नारीत्व को गाली दी है ।यदि मैं उसकी शर्त मान गई.. तो यह सही नहीं होगा… मैं उसे मुक्त नहीं करूंगी… मैं उसे तलाक नहीं दूंगी…इनको भरण पोषण का खर्चा देना होगा… वह भी एकमुश्त …!कोर्ट ने भी सारी दलीलें सुनते हुए नीता के फेवर में ही फैसला सुनाया।
नीता ने एक कम्पनी में नौकरी कर ली। कहते हैं वक्त अगर घाव देता है तो वही घाव भर भी देता है। दिन-सप्ताह-महीने गुजरने लगे। जिन्दगी की रेल फिर पटरियों पर उतरने लगी । समय का पहिया वर्तमान को रोंदता हुआ अतीत को पीछे छोड़ता आगे बढ़ने लगा। अब समर भी बड़ा हो रहा था। उसने नीता से कभी ऐसा कोई सवाल नहीं किया जिसका उत्तर देना उन्हें लज्जित कर सकता था। वक्त ने उसे बहुत समझदार बना दिया था। वह नीता के हर दुख को समझता था। जाने कितनी समझदारी दे दी थी वक्त ने उसी का संबल और सहयोग उन्हें मिलता रहा…. वरना इतना सरल भी तो नहीं था इस शिखर तक पहुँचना….. आज । तभी.…..
नीता की सोच की कड़ी को तोड़ते हुए अचानक दरवाजे की घंटी बजी….. यादों से निकलकर नीता वर्तमान में लौट आयी ।दिल की धड़कने तेज़ हो चली थी ….नीता को लग रहा था…” हो ना हो …. ये विकास ही है “| एक आवेग सा महसूस कर रही थी …. दरवाजा खोलते हुए। इतने सालों के बाद विकास को देख कर नीता ने खुद को सँभालते हुए
नीता- जी! आप कौन? “, (शायद ना पहचान ने का नाटक कर रही थी )।
विकास ने अपने उसी पुराने अंदाज़ में कहा
विकास- तुम …..तो….मुझे भूल ही गईं…… कैसे भूल सकती हो …तुम….”।
नीता-ओह ! नहीं ऐसा नहीं है । ऐसे कैसे हो सकता है “? फिर नीता ने घबराहट को संयत कर भरी आवाज में कहा , “भूला कौन है, यह तुम भी जानते हो मिस्टर विकास”?
विकास- काफी समय से तुमसे मिलना चाह रहा था पर …. …कहते हुए विकास ने नीता के हाथों को पकड़ा।
उसने फौरन अपने हाथों को छुड़ा लिया …….लेकिन यह पल उसे कमजोर करने लगा था।।…….. शायद यह एक औरत की कमजोरी ही होती है जो पल भर में अपना सारा दर्द… दुख…. पीड़ा और इस लंबे समय अंतराल को भूल….. दुख देने वाले को भी अपना समझने लगती है…… वह बार-बार धोखा खाकर भी …….उस मोहजाल में दोबारा खुद फँसने के लिए चल देती है। भूल जाती है की वह इसी पिंजरे में कैद बरसो छटपटाती रही है । फिर उसने खुद को संयत किया।
नीता-कैसे आना हुआ?”
विकास-क्या एक बार फिर हम साथ नहीं रह सकते”?
नीता-साथ? किस साथ की बात कर रहे हैं आप ? उसी साथ की जिसकी हमें कभी बहुत ज्यादा जरूरत थी…. जानते हो .मेरे लिए रिश्ते का अर्थ सीधा जुड़ाव था …… लेकिन …. लेकिन ये रिश्ते…मेरे लिए…अनचाहे. …..तकलीफदेह..और….जिन्दगी पर बोझ बन कर रह गये …… पर मैंने भी इनको दीमक की तरह चाटते रहने नहीं दिया है।
कितने गर्व से मैं अपनी जिन्दगी बखानती थी….. लेकिन तुमने….ही..नहीं…… तकदीर ने भी चौराहे पर लाकर पाथेय ही छीन लिया था मेरा।
कितना मुश्किल हो गया था वह सब……नये सिरे से संघर्ष…… और नासूर बन गया था तुम्हारा दिया हुआ दर्द ।
तुमने तो एक बार भी जानने की कोशिश नहीं की ,कि किस आग में जल रहे हैं हम ?क्या एक बार भी तुमने देखना चाहा ?मेरी छोड़ो क्या एक बार भी समर के लिए जानना चाहा?
पत्नी या बच्चों पर जब कभी संकट आता है तो, पति का ही नैतिक दायित्व होता है कि वह उन्हें उस संकट से निकाले ।लेकिन तुमने तो स्वयं ही हमें उस आग में झोंक दिया था।
खैर जो भी हुआ अच्छा ही हुआ….. कम से कम एक बात के लिए तो तुम्हारा शुक्रिया अदा करूंगी कि तुमने
मुझे अनजाने ही मेरे खुद से मिलवा दिया. तुमने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया…..था। मेरी अक्ल और आत्मा पर लगे ताले खुल गए थे।
इन धुंधली आंखों से उसने समर की तरफ देखा ….तो उसे महसूस हुआ ….जैसे समर कहना चाह रहा हो….
“… मैं तुम्हारे हर निर्णय में साथ हूं मां!! आई एम प्राउड ऑफ यू!!
सर्व अधिकार सुरक्षित