एकांकी नाटिका -वनवासी-गृहलक्ष्मी की कहानियां
Ekanki Natika-Vanvasi

Story in Hindi: एक बार शिवाजी युद्ध के दौरान बुरी तरह से थक गए। 

वो परेशान इधर-उधर भटक रहे थे। तभी उन्हें दूर एक कुटिया दिखाई दी।

शिवाजी – ( खुद से) बहुत भूख लगी है आस-पास कोई नहीं बस वो  कुटिया है। उधर चलकर देखता हूं।

शिवाजी जैसे ही कुटिया के पास पहुंचे और उन्होंने दरवाजा खटखटाया..

एक बुढ़िया – (दरवाजा खोलते हुए) जी कहिए कुछ काम था क्या?

शिवाजी -( बहुत ही विनम्रता से) अम्मा मैं बहुत भूखा हूं। मैं  ने 2 दिन से कुछ खाया नहीं। क्या कुछ खाने के लिए मिल सकता है?

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बुढ़िया (प्यार से) – आओ सैनिक! बैठो, मैं तुम्हारे लिए खाने का बंदोबस्त करती हूं।

कुछ देर बाद

बुढ़िया – आओ बेटा और फिर खिचड़ी पकाकर एक पत्तल पर परोस दी। 

शिवाजी को भूख जोर से लगी थी।

शिवाजी – (उन्होंने जल्दबादी में खिचड़ी के बीच में जैसे ही हाथ घुमाया उनकी उंगलियां जल गईं), ओह ये तो बहुत ही गर्म है।

 बुढ़िया- (समझाते हुए)  ‘‘सैनिक! दिखने में तो समझदार दिखाई देते हो। फिर भी मूर्ख शिवाजी की तरह गलती कर रहे हो।’

यह सुनकर शिवाजी के कान खड़े हो गए। 

शिवाजी – माई! शिवाजी ने ऐसी क्या गलती की जो आप उनको मूर्ख बोल रही हो और साथ में मेरी भी गलती बताने की भी कृपा करें।’

बुढ़िया – सैनिक ! जिस तरह तुम किनारे की ठंडी खिचड़ी खाने की बजाय बीच में अपना हाथ डालकर अपनी उंगलियां जला बैठे, ठीक उसी तरह शिवाजी भी पहले छोटे-छोटे किलों को जीतकर अपनी शक्ति बढ़ाने की बजाय बड़े किलों पर धावा बोलकर मुंह की खा रहा है। इसीलिए मैंने तुमको शिवाजी की तरह मूर्ख कहा।’

शिवाजी – ओह ये तो सोचा ही नहीं था। बहुत बहुत धन्यवाद आपका। मैं आपकी ये सीख महाराज तक पहुंचा दूंगा। आपकी ये सीख उनके जरूर काम आएगी।

और फिर शिवाजी वहां से बिना अपना परिचय दिए निकल गए।

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शिवाजी -(मन ही मन) अब मुझे अपनी हार का कारण समझ आ चुका है। अब मैं पहले छोटे-छोटे किलों को जीतकर अपनी शक्ति बढ़ाऊंगा। 

इस तरह एक वनवासी बुढ़िया की सीख से शिवाजी जी ने बाद में बड़े-बड़े किले भी फतह कर लिए। शिवाजी को बुढ़िया की सीख काम आई।