Hindi Story: अरे भई निकिता कहां हो तुम?
कहाँ हूँ…, काम वालियों को रो रही हूँ, सुबह-सुबह मैसेज कर दिया कि हम दोनों बहने आज नहीं आएंगी।
पूरा हफ्ता काम करने के बाद, एक इतवार की छुट्टी का इंतजार करती हूँ, तो पता चलता है देवियाँ आज आएंगे ही नहीं !मेरे छुट्टी का दिन आया तो दोनों महारानी छुट्टी पर बैठ गई..,अपनी छुट्टी मनाने! !
निकिता ने खीजते हुआ कहा। अच्छे फोन हो गए..मरे..,सुबह सुबह मैसेज कर दिया कि हम नहीं आएंगे।
अरे, आगे पीछे चली जाती, तो क्या पहाड़ टूट जाता।
कैसे हो पाएगा सब?निकिता बड़बड़ा रही थी।
यह देख पति देवेश ने जानना चाहा क्या हुआ?
देखो ना..,दोनों महारानियाँ..,आज छुट्टी पर बैठ गई, सुबह-सुबह मैसेज कर दिया कि हम नहीं आएंगे!
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देवेश ने उसकी परेशानी को समझते हुए कहा,क्यों परेशान हो रही हो, मैं हूं ना ! !
मैं हूं ना का क्या मतलब?
निकिता ने जानना चाहा?
मैं तुम्हारा साथ दूंगा, काम में तुम्हारी मदद करूंगा।
आप और काम में मदद करेंगें?
हाँ-हाँ..,आज की शुरूआत मेरे से, मैं चाय बना कर लाता हूं।
अरे वाह..,कमाल हो गया..,चाय…और आप?
इससे पहले तो कभी चाय बनाई नहीं आपने?
यह जो वक्त नाम की चीज सब करा देती है …अरे पगली दोनों मिलकर काम करेंगे, ऐसे ही समय निकल जाएगा, पता भी नहीं चलेगा?
दोनों मिलकर ..निकिता बोली !
देवेश ने मुस्कुरा कर कहा…हाँ।
कुछ सोचते हुए निकिता ने कहा..,अब आप कह ही रहे हो तो ठीक है…देखो जी रोज के काम जो मैं करती थी वह तो मैं ही करूंगी बाकी आप देख लेना! !
हां -हां एग्रीड देवेश ने अंगूठा दिखाते हुए कहा।
चल बैठ ,चाय मुझे बनाने दे।
देवेश चाय बना कर लाए और मुस्कुराते हुए कहा… चाय गरम! !
डार्लिंग पियो और बताओ तो सही.. कैसी बनी है?
आखिर चाय वाले ने चाय बनवा ही दी।
देवेश ने हंसते हुए कहा हां -हां अरे जिस देश का प्रधानमंत्री कभी चाय बनाने वाला रहा हो…मेरे लिए तो बहुत गर्व की बात है।
निकिता ने भी हंसते हुए कहा…देखते… हैं बच्चू… आगे… आगे देखिए होता है क्या?
देवेश निकिता की हंसी को नहीं समझे! !
सारे दिन के कामों के बाद, जब डिनर का समय हुआ तो देवेश बोले खाना मैं लगाता हूं.. ,तुम बैठो।
निकिता ने सहमती दी ।
जनाब चले किचन में खाना लगाने .. किचन में पहुंचकर देखा…अरे यह क्या? गंदे बर्तनों से सिंक भरा हुआ है, खाना लगे तो कैसे लगे? आवाज लगाई अरे…निकिता..सुनो..।
निकिता ने भी मस्ती में कहा… हां…देवेश जी सुनाइये…।
खाना कैसे लगे? सिंक तो सारे गंदे बर्तनों के ढेर से भरा है।
हां -हां मैंने तो अपना सारा काम “सारे दिन “पूरी तरह से किया, अब यह आपका…आप ही ने तो कहा था कि काम मिल बांट कर करेंगे, तो…करो ना! !
याद करो मेरी आपकी क्या बात हुई थी?
जनाब…,अगर आपको याद नहीं तो मैं याद दिला देती हूं, आपने कहा था कि काम मिल बाटकर करेंगे, उस पर मैंने कहा था ठीक है जो काम में रोज करती हूं वह तो मैं करूंगी ही बाकी आप देख लेना।
कहा था… या नहीं?
कहा था… मैं कब इनकार कर रहा हूं…, लेकिन मैं इसकी गंभीरता को नहीं समझ सका।
निकिता ने हंसते हुए कहा…तो अब भुगतो।
बहुत चालू हो यार… तुमने तो गच्चा दे दिया।
जनाब…अब चलो… आगे बढ़ो…अब करो अपना काम, निकिता ने सोफे पर बैठे-बैठे कहा।
हे भगवान… मैं कहां फस गया..पतिदेव वहीं सिर पकड़ कर बैठ गए।
कुछ समय बाद…निकिता ने सोचा…जाकर देखती हूं क्या चल रहा है?
तो देखा बेचारे पतिदेव फर्श पर ही सिर पकड़ कर बैठे थे और ऐसा लग रहा था कि सारे बर्तन उन्हें देखकर मुंह चिढ़ा रहे हों..जैसे।
निकिता भी हंसे बिना ना रह सकी और कहा अजी उठिए ना…,ऐसे बैठे रहने से बर्तन साफ हो जाएंगे क्या?
आप तो कह रहे थे यह जो वक्त नाम की चीज है वह सब करा देती है… फिर क्या हुआ?
बस एक ही दिन में टांय-टाय फिस।
और उस वादे का क्या हुआ मैं तेरे साथ काम में हाथ बटाऊंगा l
अब पतिदेव चुप! !
निकिता मंद मंद मुस्कुरा रही थी, निकिता ने हाथ बढ़ाकर देवेश को खड़ा किया और कहां,”अब पता चला, समझ आया ,काश कभी हमारे लिए भी सोचा होता, इन्हीं धंधों में जिंदगी गुजर जाती है।”
कभी मुझे ऐसे सर पकड़ कर बैठे हुए देखा है ..आपने, इन काम वालों का तो सारे साल ऐसा ही रहता है, काम तो सारे दिन का है,फिर भी सुनने को मिलता है सारे दिन तुम करती ही क्या हो?
निकिता के कहे शब्द देवेश के अंतर्मन को चोट पहुंचा गए और कहा, “सही कह रही हो तुम..,औरत ही घर का श्रंगार होती है।
इतना सुनना था,निकिता ने भी हंसते हुए कहा …,”वही… तो”!!