शिवाजी का पूरा जीवन मुगलों से संग्राम करते बीता। उन्होंने देशभक्त लोगों को इकट्ठा करके फौज बनाई। छापामार लड़ाइयाँ लड़कर दुश्मन के किले जीते और एक शक्तिशाली साम्राज्य की स्थापना की।
शिवाजी कभी भी, कहीं भी मुगल सेना पर आक्रमण करके, उनके किलों पर अधिकार कर लेते थे। इस कारण मुगल सेना के मन में खौफ पैदा हो गया था। शिवाजी का नाम सुनते ही मुगल सैनिक ऐसे थर-थर काँपने लगते, जैसे सामने मृत्यु आकर खड़ी हो गई हो।
पर शुरू में शिवाजी को कई बार मुँह की खानी पड़ी। एक बार वे लड़ाई के मैदान से बचकर निकल भागे। एक बुढ़िया के घर शरण ली। बुढ़िया ने यह सोचकर कि यह कोई दुखी परदेशी है, उनके लिए खिचड़ी बनाई।
शिवाजी भूखे तो थे ही। जैसे ही गरम-गरम खिचड़ी की थाली उनके आगे आई, उन्होंने जल्दी-जल्दी खाना शुरू किया। पर खिचड़ी इतनी गरम थी कि उनकी उँगलियाँ जल गईं।
बुढ़िया यह देख रही थी। वह हँसकर बोली, ”बेटा, तुम्हें तो इतना भी नहीं पता कि पहले थाली के किनारे वाली खिचड़ी खानी चाहिए। फिर बीच वाली खिचड़ी को धीरे-धीरे ठंडा करके खाना चाहिए। लगता है बेटा, तू भी शिवाजी की तरह उतावला है। वह अपनी शक्ति तो देखता नहीं है। बड़े-बड़े किलों पर हमला करता है और हार जाता है। अब उसे कौन समझाए कि पहले छोटे-छोटे किले जीतकर अपनी ताकत बढ़ानी चाहिए, फिर बड़े किलों पर आक्रमण करना चाहिए। अगर वह मेरी सीख पर अमल करे, तो मुगल साम्राज्य की नींव हिला सकता है। उसके पास अपार बल है, रण-कौशल है, पर धीरज नहीं है…!”
सुनते ही शिवाजी की आँखें खुल गईं। खिचड़ी खाने के बाद वे उठे और हाथ धोकर बुढ़िया के पास गए। बोले, ”अम्माँ, मैं ही शिवा हूँ। आगे से तेरी बात हमेशा याद रखूँगा।”
”अरे बेटा शिवा, तू!” बुढ़िया की आँखें अचरज के मारे फटी की फटी रह गईं।
और शिवाजी बुढ़िया के पैर छूकर रात के अँधेरे में ही बिजली की तरह निकल गए।
