“अरे राशि बेटा! बड़ा अच्छा किया जो सरप्राइज दिया…बहु! राशि आई है…जरा चाय -नाश्ता लगाना।”
“जी मम्मी!अभी लगाती हूँ।”
ननद को देखते ही नीता के मन में गुदगुदी सी होने लगी थी। अच्छा हुआ जो कल रात विनित से बात हो गई कि दीदी के रहने पर मायके जा सकती हूँ। यही सही वक़्त है जब मौके पर चौका लगाया जा सकता है। मेरे बलबूते अपने मायके घूमने आ गईं हैं और मेरे मायके की गलियाँ वीरान पड़ी है। बच्चों की गर्मी की छुट्टियाँ चल रही हैं तो क्यों न मैं भी मायके हो आऊँ। यही सोचती नीता चाय- नाश्ता देकर अपनी पैकिंग में लग गई।
जब शारदा जी की नज़र घड़ी पर पड़ी तब दिन के बारह बज चुके थे। बहु के कदम रसोई की ओर बढ़ते नहीं दिखे तो वह स्वयं ही खाना बनाने आ गईं।”लगता है नीता की आँख लग गयी। चल आज तेरी मनपसंद कढ़ी बना देती हूँ।””अरे माँ! तुम काम करोगी? भाभी कहाँ है?””एक वक़्त का खाना बना लूँगी तो घिस थोड़ी ना जाऊँगी। साथ बात-चीत करते हुए एक घंटे में खाना तैयार हो जाएगा।”
“वह सब ठीक है पर उल्टी गंगा क्यों बहा रही हो?””दीदी गंगा तो सीधी ही बह रही है। मम्मी के हाथ की स्वादिष्ट कढी खाए हुए काफी दिन हो गए थे। आपके साथ-साथ हमें भी खाने मिल जाएगा।”बहु की ढिठाई पर सास -ननद एक दूसरे का मुँह देखे जा रहीं थीं तभी राशि ने हँसते हुए व्यंग्य किया, “कुछ अपने हाथों की भी खिला दो भाभी।”
“हाँ-हाँ! क्यों नहीं! शाम को खिलाती हूँ।”कहकर नीता मन ही मन सोचने लगी कि एक शहर में रहने के कितने फायदे हैं। जब देखो मुँह का स्वाद बदलने पहुँच जाती हैं।खाना खाने के बाद माँ-बेटी अपनी बातों में मशगूल हो गईं। कब दिन ढला..कब शाम हुई..पता ही नहीं चला। तभी कटे तरबूज के प्लेट के साथ नीता दाखिल हुई।”वाह बहु! बड़ा अच्छा किया फल ले आई।””मगर मुझे चाय पीनी है भाभी!”राशि ने कहा।”इतनी गर्मी में चाय कौन पीता है? फल खाइये। मन ठंडा रहेगा।” इस दो टुक जवाब के बाद राशि की बात मुँह में ही रह गई।”अच्छा भाभी! शाम हो गई है अब निकलती हूँ।”
“आईं हैं तो आराम से एक- दो दिन रूक कर जाइए दीदी!””अरे नहीं! ऐसे कैसे रुक सकती हूँ? मेरा भी घर-परिवार है,जिम्मेदारियाँ हैं।”
“कैसी जिम्मेदारियां? बच्चे तो हाॅस्टल में हैं। दिन भर अकेली ही रहती हैं आप। जीजाजी को यहीं बुला लीजिए। ऐसे भी बहुत समय से आप सबने फैमिली टाइम नहीं बिताया है। माँ-पापा को भी अच्छा लगेगा। और हाँ दीदी! मैंने पनीर और क्रीम मंगाकर फ्रिज में रख दिया है। रात के खाने में मलाई कोफ्ते बना लीजिएगा। विनीत को आपके मलाई कोफ्ते
बहुत पसंद आते हैं।”
“बहु! ऐसे कैसे काम करने बोल रही हो? राशि तुम्हारी ननद है।””अरे नहीं! माँ जी! मैं तो उनका सम्मान कर रही हूँ। इस घर पर दोनो भाई -बहन का बराबर का अधिकार है तो कर्त्तव्यों के निर्वाह से परहेज कैसा! उनका मन भी तो करता होगा पहले की तरह ही अपने परिवार के साथ रहने का। दो दिन साथ रहकर कितनी खुश हो जायेंगी।” शारदा जी बहु के दलील के आगे हतप्रभ ही रह गईं।”अच्छा दीदी! मैं अपने मम्मी-पापा से मिल आती हूँ तब तक आप यहाँ अपने मायके में आराम फरमाइए।”
आराम! हुंह! ‘आए थे हरि भजन को ओटन लगे कपास’ वाला हाल हो रहा था। ऐसा लगा जैसे सब पूर्व नियोजित था। राशि मन बदलने मायके आई थी पर यहाँ का रूख देख रुखसती का दिल कर रहा था। जब तक कुछ सोचती -समझती नीता की कैब आ गई।बच्चे खुशी-खुशी बॉय करते हुए निकल गये। दूर जाता हुआ कैब धीरे-धीरे छोटा और छोटा दिखाई देने लगा और माँ-बेटी को घर का काम बड़ा और बहुत बड़ा।”सुनो! रात का खाना भाई के घर पर है। ऑफिस से सीधे यहीं आ जाना।” राशि ने पति को फोन किया।”पर तुम तो शाम तक लौट आने वाली थी ना!””अब वह सब छोड़ो!””हा हा….लगता है पासा पलट गया।”निशांत चुटकी ले रहे थे।”मैं कब हार मानने वाली हूँ पतिदेव! कभी नदी पर नाव तो कभी नाव में नदी…!”सच! ननद-भाभी का रिश्ता ही कुछ ऐसा। प्यार-दुलार का तो कभी छेड़छाड़ का। अधिकार अपने हिस्से और कर्तव्य शटल कार्क की तरह दूसरे की कोट में डालते हुए कभी-कभार पासा पलट ही जाता है और यह मुहावरा सच साबित होता नजर आता है कि’तू डाल-डाल तो मैं पात-पात!’