Dosti ki Kahani: मैं और नीरज आज भी जब साथ होते हैं तो शादी के पच्चीस साल बाद भी अतीत मे चले जाते हैं। आज मौसम बड़ा ही सुहाना था । हल्की-हल्की बारिश हो रही थी। मैने थोड़े से पकौड़े बनाये और चाय लेकर टेरेस पर चली गई। आज नीरज नहीं था किसी काम से बाहर गया था। मैं अकेली एक कुर्सी पर बैठ गई। सामने वाली कुर्सी खाली थी पर उस पर हमेशा नीरज को ही पाती थी। चाहें वो हो या न हो। नीता और नीरज जैसे नाम की जोड़ी ईश्वर ने ही बनाई हो। मैं हमेशा की तरह फ़िर से पुरानी यादो में चली गई।
कॉलेज में हम दोनों एक साथ प्रवेश के लिए आये थे। नीरज मेरे पीछे खड़ा मेरी फाइल पर से कुछ पढ़ रहा था। मुझे नहीं पता वो क्या देख रहा था। शायद वो मेरा नाम जानना चाह रहा था। मैने फाइल पर हाथ रख लिया। वो समझ गया कि मैं कुछ छिपाना चाहती हूँ। लेकिन वो कुछ बोला नहीं। मैं भी एडमिशन ले कर घर आ गई। अगले दिन हमारा पहला दिन था। मैं क्लास में गई । मैने इंग्लिश ओनर्स में एडमिशन लिया था। मै पहली पंक्ति में बैठी थी। तभी वो भी आया और मेरी पीछे वाली सीट पर बैठ गया। वो भी सेम स्ट्रीम का ही निकला। हमारा नाम एक दूजे को जब पता चला जब प्रोफेसर ने अटेंडेंस ली। नाम सुनते ही कुछ अपनापन सा लगा नीता और नीरज। क्या मेल था। हम मौन ही रहे चाहते हुए भी बात नहीं की।
नीरज मुझ से मेरे नोटस बस इशारे से ही मांग लेता और वापिस भी कर देता। वो हमेशा मेरे पीछे ही बैठता था। बस कभी नज़र मिलती तो झुका लेता। मुझे भी वो अच्छा लगने लगा था।
एक दिन कैंटीन में में कॉफी पी रही थी। नीरज भी आया, मैने इशारे से उसे अपने पास बैठ्ने को कहा और एक कोफ़ी ऑर्डर कर दी उसके लिए। कोफ़ी आने तक वो मेज को ही देखता रहा। कोफ़ी मेज पर आई मेंने हाथ से उसे लेने को कहा। उसने ले ली पर एक भी सिप नहीं ली। मैने चुप्पी तोड़ी। क्या हुआ तुम पी क्यों नहीं रहे। वो बोला मैने आज तक नहीं पी। फ़िर ऑर्डर रोका क्यों नही?मैने पूछा। नीरज ने कहा आपने पूछा ही कहाँ? और हम दोनों हंस पड़े। हमारे कॉलेज में दो महीने के बाद आज शायद हम आम्ने सामने एक साथ बैठे और हँसे।
मेरी हंसी को उसने आश्चर्य से देखा और मेरे चेहरे से नज़र नहीं हटाई। शायद मेरी हंसी उसे मन भा गई। मैं सहम गई। मैने कहा आज पी लो फ़िर नहीं पिलाऊँगी। उसने मेरे कहने से एक सांस मे पूरी की पूरी गटक ली। और कप रख कर थैंक्स कह कर चला गया। स्टडी नोटस हमेशा हम सांझा करते और बस पढाई की बात कर के अपनी सीट पर बैठ जाते और आँखों से ही बाय बोल कर घर चले जाते। जिस दिन नीरज नहीं आता मेरा मन नहीं लगता था, अजीब सा खिंचाव हो रहा था उसकी तरफ। शायद वो भी मेरे बिना अकेला सा था। उस जमाने मे फोन नहीं थे जो ह।लच।ल पूछा जा सके।बस अगले दिन ही न आने का कारण पूछा जाता था।
नीरज आता तो मेरा मन अपने आप पढाई में लग जाता था जैसे मेरा कोई साथ दे रहा हो। कितना अजीब एहसास था। न मिलने की ख्वाइश न कोई चाह आज की तरह के बच्चों की तरह। बॉय फ्रेंड, गर्ल फ्रेंड जैसे कोई शब्द नहीं थे। न लिव इन रिलेशन। आज बच्चे ये सब इस लिए करते हैं, कि वे एक दूजे को जानें। फ़िर भी इनके रिश्ते नहीं टिक पा रहे हैं। बस प्यार केवल शारीरिक आकर्षण ही है जो साथ पाकर कम हो जाता है और रिश्ता टूट जाता है।
जब हम कॉलेज के आखिरी साल में थे। दोनों ने प्रोफेसर बनने का लक्ष्य हासिल कर रखा था। हम दोनों ही कॉलेज में अव्वल थे। नीरज मेरी असाइनमेंट बनाने में मदद करता और कभी कभी तो पूरा बना ही देता था। बस ये समर्पण ही शायद दोस्ती थी। हमारा रिलेशन ऐसा नहीं था जिसमें मैने या उसने कोई मांग की हो। बस उसे में कुछ नोटस देती और वो मुझे कुछ चैप्टर समझा देता। ये भी तो प्यार था जो मुझे उससे बांध कर रख रहा था। आज इसके मायने बदले नज़र आते हैं क्यों एक दो मुलाकात में शरीरिक संबंध बनाने की मांग क्यों होती है। दोस्ती क्यों यहीं आकर रुक जाती है। फिर अंत ब्रेकअप क्यों? इसका जबाब वो अपने बेटे नील से अभी तक नहीं ले पाई।
कॉलेज के अंतिम दिन नीरज ने मुझे इतना कहा मुझे तुम्हारे साथ शादी करनी है। दोस्ती ही रहेगी कभी मैं अपने को पति की हुकूमत नही करने दूंगा और तुम नीता ही रहोगी। पत्नी बना कर तुम्हें नीचे नहीं गिरने दूंगा। वो वादा नीरज ने निभाया। मुझसे शादी की, पर कभी लगा ही नहीं कि कोई किसी को नीचा दिखा रहा है।
शायद ये ही दोस्ती थी जो परिवार को जोड़े रख सकी। लेकिन समाज में आज दोस्ती के मायने फ्रेंडशिप, लिव इन तक सिमट कर ब्रेक अप तक चले जाते हैं। आज मेरा और नीरज का बेटा भी यूएस में इसी रिवाज को ढो रहा है। समाज इस तरह के संस्कार प्रदान कर रहा है, मेरे परिवार के संस्कार कहाँ नील में देखने को मिले? उसने तो वही किया जो आज हो रहा है।
नीरज ने वाकई मुझे कॉलेज में ही बहुत समझ लिया था, बिना बोले, बिना छुये। मेरे मुस्कुराने की कसम ली थी नीरज ने। एक दिन कहा था तुम मुस्कुराती हुई अच्छी लगती हो तुम्हारे गालों के डिंपल मुझे जीने की उमंग देते हैं। और आज का दिन है कि कभी उसने मुझे रोने नहीं दिया। ये ही तो होना चाहिए। लेकिन आज की पीढी एक को छोड़ दूसरा,दूसरे को छोड़ तीसरा। पता नहीं क्या चाहती है। विचारों भावनाओं से ज्यादा शरीरिक चमक की चौंध में युवा खोते जा रहे हैं। नील भी काश अपने माँ बाप से दोस्ती का रिश्ता विरासत में ले लेता तो मेरा और नीरज का अंतिम पड़ाव सुकून से गुजर जाता। शादी शरीरिक संबंधों से ज्यादा विचारों की सूझ बुझ और विश्वास पर चलने वाला रिश्ता, एक दूजे के सम्मान का रिश्ता होता है। हमने तो दोस्ती का रिश्ता निभा लिया पर आज की पीढी शायद इसे आगे ले जाने में कामयाब न हो सके।
डोरबेल की आवाज़ ने मुझे वर्तमान में ला दिया। नीरज के आने का वक्त हो गया था।मैं ट्रे हाथ में पकड़े नीचे उतर आई।
