आखिरी पत्र-गृहलक्ष्मी की कहानियां: Last Letter Story
Last Letter Story

Last Letter Story: सुबह करीब 11:30 बजे दरवाजे की घंटी बजती है। घंटी सुनकर आदित्य अपनी पत्नी रमा से कहता है,”अरे रमा! जरा देखो तो कौन है। मैं ऑफिस का जरूरी काम कर रहा हूं।” रमा दरवाजा खोलती है तो एक कोरियर आया था। उस पर लिखा था- ‘ आदित्य अग्रवाल, सन ऑफ नीलिमा अग्रवाल’।
रमा पैकेट लेकर आदित्य को दे देती है। आदित्य अपना काम पूरा करके जब वह पैकेट खोलता है तो उसमें एक वसीयतनामा और एक चिट्ठी थी। आदित्य पेशे से वकील है। वह देखते ही समझ गया था कि वसीयत के कागज है, पर उसके पास किसने भेजे और क्यों? उसकी जिज्ञासा और बढ़ जाती है जब वसीयतनामा उसके नाम पर होता है।

उसने कागज पूरी तरह पढ़ना शुरू किया…..
किसी ने अपनी पूरी जायदाद उसके नाम कर दी थी।आदित्य को समझ नहीं आ रहा था, तभी साथ में आई चिट्ठी पर उसका ध्यान गया। उसने पढ़ना शुरू करा..” प्रिय आदित्य,
यह मेरा पहला और आखिरी पत्र है। मुझे अपने किए पर बहुत पछतावा है। इसलिए आज मैं अपना जो भी है सब तुम्हारे नाम कर रहा हूं। बेशक में उसके काबिल नहीं, पर हो सके तो मुझे क्षमा कर देना।
तुम्हारा
पी.के गुप्ता
“ कौन है यह मैं तो जानता भी नहीं? मुझे अपनी सारी संपत्ति क्यों दे रहे हैं? आदित्य के दिमाग में कई सवाल उठने लगे। उसने रमा को सारी बात बताइ, दोनों ने मिलकर यही निष्कर्ष निकाला के मिस्टर गुप्ता का फोन नंबर और पता देखकर सारी बात पता करनी चाहिए।
आदित्य ने गुप्ता जी को फोन मिलाया तो किसी ने उठाया नहीं। आखिरकार वह गुप्ता जी से मिलने उनके घर पहुंचा। एक दरबान था जिसने बताया के वह तो सिटी अस्पताल में हैं।
आदित्य हॉस्पिटल पहुंचकर उनका कमरा नंबर पता करता है। कमरे का दरवाजा खोलने पर उसको पलंग पर एक अधेड़ उम्र का मरीज दिखता है। पास जाकर पूछता है,” आप मिस्टर पी के गुप्ता है?” उनके हां कहने पर आदित्य अपना पूरा परिचय देता है। उसका और उसकी मां का नाम सुनते ही गुप्ता जी की आंखों में आंसू भर आते हैं।
“ आप कौन हैं और वह कागज क्यों मेरे नाम है? इन सब का क्या मतलब है?
भरी आंखों से गुप्ता जी आदित्य को बैठने के लिए कहते हैं। पास में रखी कुर्सी लेकर आदित्य उनके करीब बैठ जाता है। गुप्ता जी बताना शुरू करते हैं,” आज से 20 साल पहले मेरी नीलू से शादी हुई थी। बहुत किस्मत वाला था जो उसके जैसी समझदार और गुणवान पत्नी मिली थी। देखने में अच्छी लगती थी और उसका पहनावा भी बहुत शालीन था। घर में कदम रखते ही उसने मेरे घर, मां बाप को अपना मान लिया था। सुबह से रसोई का काम हो या घर की साफ- सफाई रखना और सजाना, वह सब बहुत ही काबिलियत के साथ करती थी।

घर के काम के साथ-साथ सोशल सर्कल में भी अपनी अलग पहचान बनाती थी। सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा था। 1 साल बाद हमारे बेटे ने जन्म लिया।
नीलू अब ज्यादा बिजी हो गई थी। घर, मां बाप और बेटा, वह बेचारी सब कुछ अकेले संभाल रही थी। इन सब के बीच अपने ऊपर ज्यादा ध्यान या देने की वजह से उसमें अब वह आकर्षण नहीं रह गया था जो पहले दिखता था। मैं एक मतलबी आदमी उसकी जिम्मेदारियों में सहारा बनने के बजाय उसमें ही कमी ढूंढने लगा। हमारे बीच की अनदेखी दूरी को बढ़ाने कदम रखा नीता ने….
मैंने एक असिस्टेंट के लिए अखबार में विज्ञापन निकाला था । उसके चलते कुछ लोगों ने आवेदन दिया। उनमें से मैंने कुछ लोगों को शॉर्टलिस्ट किया था। इंटरव्यू वाले दिन नीता ने मेरे कमरे में प्रवेश किया। उसकी खूबसूरती और पहनावे ने पहली नजर में मुझ पर जादू सा कर दिया था और बिना कुछ देखे समझे मैंने उसको नौकरी दे दी।
शुरू में तो हम सिर्फ काम से मिलते या बात करते, पर धीरे धीरे बहाने से उसने मेरे करीब आना शुरू कर दिया। सब कुछ समझते हुए भी मैं उसको अपने से दूर नहीं कर पा रहा था। उसकी खूबसूरत चालाकी के जाल में कब फसता चला गया पता ही नहीं चला।
नीलू को तो मैंने कब का अनदेखा करना शुरू कर दिया था जबकि वह अपना पहले की तरह ध्यान रखने भी लगी थी। मेरी आंखों पर तो लेकिन नीता का हरा चश्मा चढ़ा हुआ था।
एक दिन मैंने चुपके से नीता से शादी कर ली और किसी को बिना कुछ कहे उसके साथ रहने लगा। पता चलने पर मां-बाप और नीलू ने बहुत समझाया, मेरे बेटे का वास्ता भी दिया पर मैं ना माना। नीता और मेरे बेटे के बारे में जानकर उन लोगों ने मुझसे रिश्ता खत्म कर दिया। मेरे कर्मों का फल वक्त के साथ मेरे सामने आने लगा। नीता को घर, परिवार से कोई लेना-देना नहीं था और ना ही अब वह कंपनी का काम देखती थी। कुछ कहने पर टका सा जवाब देती, “ मैंने तुमसे इसलिए शादी की थी के एशो आराम की जिंदगी गुजiरूंगी। तुम्हारी नीलू की तरह नौकरानी बनने के लिए नहीं।”
मेरा और नीता का बेटा शुभ बड़ा होने लगा तो वह भी अपनी मां के नक्शे कदम पर चलने लगा था। उन दोनों को मुझसे कोई मतलब नहीं था। उन्हें तो बस उड़ाने के लिए मेरी दौलत चाहिए थी। मुझे अपने किए पर बहुत पछतावा होने लगा। भरा पूरा, हंसता खेलता परिवार छोड़कर मैंने अपने लिए नर्क चुन लिया था।

मेरी जान लेवा बीमारी के चलते डॉक्टरों ने मुझे जवाब दे दिया है। मैंने जो भूल कि उसका पश्चाताप करना चाहता था इसलिए सब कुछ तुम्हारे नाम कर दिया है। मैं जानता हूं तुम्हारी मां और दादा-दादी अब इस दुनिया में नहीं है। “ लेकिन मुझे क्यों?” आदित्य ने पूछा। क्योंकि तुम्हारी मां और अपनी पत्नी नीलिमा यानी नीलू को तो मैं कब का खो चुका हूं। पर अपने उस 4 साल के आदि को मैं उसका यानी तुम्हारा बचपन, बाप का प्यार और जिम्मेदारी नहीं लौटा सकता। मेरे पछतावे के रूप में यह स्वीकार कर लो बेटा, अपने पिता को माफ कर दो। बोलते- बोलते पीके गुप्ता ने अपना हाथ आदित्य के हाथ पर रखा और हमेशा के लिए दुनिया छोड़ गए।
आदित्य के आंसू रुक नहीं रहे थे। वह समझ गया था कि मां कभी भी उसके पिता के बारे में कोई बात क्यों नहीं करना चाहती थी।