मैं किसके साथ खेलूँ-गृहलक्ष्मी की कहानियां
Mein Kiske Sath Khelu

Hindi Story: दोपहर का समय था।मिनी अपने घर के आंगन में खड़ी कुछ परेशान सी इधर उधर देख रही थी।उसकी मम्मी श्रेया और पापा दिवाकर तो सुबह नौ बजे के आसपास ऑफिस चले जाते थे। मम्मी -पापा के जाने के बाद मिनी दादी के साथ रहती थी।रविवार को छोड़ कर,यह हर रोज का क्रम था।

मिनी स्कूल से आने के बाद खाना खाकर, सोच रही थी कैसे समय पास किया जाए? कुछ समझ नहीं आया तो उसने हमेशा की तरह अपने बालों से बाल पिन निकाला और आंगन का चौक पूर कर “ईक्कल- दुक्कञल”खेलने लगी।

अक्सर जब वह बोर हो जाती थी तो अपने घर के आंगन का चौक पूर कर इक्कल-दुक्कल खेल लिया करती थी।

दूर से बालकनी में खड़ा,उसी की उम्र का एक लड़का काफी देर से मिनी को देख रहा था, सोच रहा था कि यह लड़की क्या कर रही हैं?कभी एक पैर से कूदती है कभी दो पैर से,यह देख उसे कुछ अच्छा तो लगा, लेकिन वह समझ नहीं पाया…,यह किस तरह का खेल है?

उत्सुकता वश वह सीढ़ियों से उतर कर नीचे मिनी के पास आया.. कहा,”आप यह क्या कर रही हो?”

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मिनी पहले तो एक टक उसे देखती रही, कुछ सोचकर कहा,”मैं अपना खेल खेल रही हूं…बोलो!!”

खेल…अकेले,अपने से…,यह कैसा खेल है? 

बोर होने से तो अच्छा है अपने से ही खेल लिया जाए, मिनी ने मुंह बनाते हुए कहा।

शायद मेरा पूछना तुम्हें अच्छा नहीं लगा? कौन सी क्लास में पढ़ती हो?

चौथी कक्षा में!!

तुम बोर…क्यों हो रही हो तुम्हारे घर में कोई और नहीं है?

तुम हो कौन ?और क्यों जानना चाहते हो? मैं तुम्हें क्यों बताऊं? आज से पहले मैंने तुम्हें कभी नहीं देखा…जाओ यहां से ..मिनी ने नाराजगी प्रकट की।

ठीक है … चला जाऊंगा..,नाराज क्यों होती हो?

वैसे मेरा नाम अर्णव है और मेरे पापा ने यहाँ कुछ दिनों पहले नया घर लिया था, अभी कुछ ही दिन हुए हैं हमें यहाँ आए हुए।आज मैं यहां अपनी बालकनी में खड़ा बाहर के नजारे देख रहा था तो मेरी दृष्टि तुम पर पड़ी, तुम्हें इस खेल को खेलते देख मुझे अच्छा लगा, यह खेल आज से पहले मैंने कभी नहीं देखा? मुझे इस खेल के बारे में जानकारी दो।

अच्छा…, तो आप हमारे पड़ोसी महाश्य हैं..,मुस्कुराते हुए हाथ बढ़ाया और कहा,”फिर तो आपसे दोस्ती करनी पड़ेगी।”

मेरा नाम मिनी है,मैं घर की अकेली बच्ची हूं जब मैं बोर हो जाती हूं तो मैं यह खेल खेलती हूं..इस खेल का नाम इक्कल-दुक्कल है।

इक्कल-दुक्कल क्या होता है?

इस खेल का नाम है।अब तो हमारी दोस्ती हो गई है,जब मेरे साथ खेलोगे तो जान जाओगे। मम्मी कहती हैं इस खेल से पैर मजबूत होते हैं और बैलेंस करने की क्षमता बढ़ती है।

इतना कह मिनी ने उस लड़के से फिर नाम जानना चाहा, कहा ,” तुमने क्या नाम बताया था अभी? मैं तुम्हें किस नाम से पुकारू?

मेरा नाम अर्णव है हम चार बहन भाई हैं बोर कैसे होते हैं यह मुझे नहीं पता।हमें तो कब सुबह हुई और कब रात हो गई पता ही नहीं चलता।

वाओ..,यह तो बहुत अच्छी बात  है!!

हाँ..आं..,हम सब बहन भाई को आपस में खेलना, झगड़ना और एक दूसरे से प्यार करना बहुत अच्छा लगता है।सारा दिन सबके साथ में हँसते- खेलते यूं ही निकल जाता है मैं चारों में सबसे बड़ा हूं, मैं पाँचवी कक्षा में हूं,और हमारे घर में दादा- दादी,मम्मी- पापा, चाचा- चाची हैं, हमारा संयुक्त परिवार है सब एक दूसरे के सुख- दुख के साथी हैं।हम सब आपस में बहुत मस्ती करते हैं, और संध्या के समय ऐसा लगता है जैसे महफिल जमी हुई है.. अर्णव ने कहा।

फिर तो कितना अच्छा लगता होगा…ना… मिनी ने जानना चाहा?

हां…वो तो है!!

मिनी मैं तुम्हारे बारे में जान सकता हूं?

हां, हम परिवार में बस चार लोग हैं, मम्मी -पापा, मैं और दादी,जब मम्मी -पापा ऑफिस चले जाते हैं तो हम दो(दादी और मैं)और साथ में हमारी मेड़ रहते हैं।

तुम घर की अकेली बच्ची हो?

हाँ…आं !

ओह!!

मेरी  दादी कहती हैं अकेले बच्चे से सारे रिश्ते खत्म हो जाते हैं अर्णव ने कहा।

रिश्ते खत्म हो जाते हैं…अर्णव तुम क्या कह रहे हो मुझे कुछ समझ में नहीं आया?,”मिनी ने कहा।”

देखो तुम घर की अकेली बच्ची हो,तुम्हारे अकेले होने से आगे चल कर मौसी, बुआ,चाचा-चाची,मामा मामी का रिश्ता कैसे बनेगा? 

अच्छा बताना, तुम टीके के त्यौहार पर किसे तिलक करती हो?

अपने पापा को… मिनी ने कहा।

पापा को!!

हां, पापा मेरे दोस्त भी हैं, भाई भी हैं, पापा ही मेरे सब कुछ हैं… मिनी बोली।

देखो, हम चार बहन भाई हैं, आगे चल कर बुआ भी होगी, मौसी भी होगी और चाचा -ताऊ का रिश्ता भी होगा।

दादी कहती हैं हमारा भरा पूरा परिवार है।

हाँ यह तो तुम ठीक कह रहे हो,” मेरे पास टीवी के अलावा बहुत सारे सुंदर-सुंदर खिलौने हैं, गेम्स हैं…,हां मेरे साथ कोई खेलने वाला नहीं,ये ही मेरे साथी हैं।

वहीं तो मैं तुम्हें बता रहा हूं,अगर घर में भाई-बहन होते हैं तो खेलने के लिए बाहर वालों का मुंह नहीं देखना पड़ता। अगर कोई बीमार हो भी जाए तो सुख-दुख बांटने के लिए घर में ही कई लोग होते हैं।

मम्मी-पापा वर्किंग होने के बाबजूद भी हमें अकेलापन नहीं लगता। एक दिन पापा बहुत बीमार हो गए थे तो सब ने मिलकर अस्पताल और घर, सब मैनेज कर लिया था।

इतने सारे जनों का एक साथ घर में रहना, आपस में कभी झगड़ा तो होता होगा…मिनी ने जानना चाहा?

हां थोड़ा वाद-विवाद कभी-कभी हो जाता है जहां चार बर्तन होगें, वह खड़केगें ही, लेकिन कुछ समय के लिए फिर धीरे-धीरे सब नॉर्मल हो जाता है।

इतना कह अर्णव मिनी से बोला ..हमें यहां आए अभी कुछ दिन ही हुए हैं, मेरा कोई दोस्त नहीं…आज से हम पक्के दोस्त हैं।

मिनी ने कहा,”ठीक है हम रोज इसी समय मिला करेंगे।

घर पहुंचकर अर्णव ने अपनी नई दोस्त के लिए सारी बातें अपनी दादी को बताई…,”लेकिन साथ में कहा,” मिनी घर की अकेली बच्ची है…. दादी।”

अकेली …,तो वह राखी बाँध तिलक किसे लगाती होगी? दादी ने जानना चाहा?

अर्णव ने हंसते हुए कहा,”अपने पापा को?”

पापा को यह कह,दादी ने दाँतों तले ऊँगली दबा ली।

उधर मिनी ने संध्या के समय अपने नए दोस्त के बारे में अपने माता-पिता को बताया और वह सब बातें बताई जो अर्णव से हुई।उत्सुकता वश कहा,”अर्णव चार बहन भाई हैं…मम्मा…,उसे तो खेलने के लिए बाहर वाले बच्चों की जरूरत ही नहीं रहती,अपने घर में ही सब मिल जाते हैं।

सच में आज मैं बहुत आहत हुई..,माँ !!

माँ..,मैं जानना चाहती हूँ मैं अकेली बच्ची क्यों हूं? मेरे भाई या बहन क्यों नहीं है?”मैं भी भाई-बहन का साथ चाहती हूँ मम्मा!!” 

अरे, यह कैसा सवाल है..?

मिनी की मम्मी” श्रेया” ने कुछ खींजते हुए कहा।

मम्मा आप समझ नहीं रही हैं.., सच में आज मुझे बहुत दु:ख हुआ। माँ मुझे बताओ…मेरे भाई-बहन क्यों नहीं हैं?मैं अकेली क्यों हूं?

“मैं किसके साथ खेलूं.” मुझे भी तो साथ चाहिए, मिनी लगातार बोले जा रही थी…,आप दोनों तो अपनी लाइफ में व्यस्त  रहते हैं, सुबह के गए संध्या के समय थके हुए  से घर में आते हैं, लेकिन स्कूल से आने के बाद मैं अकेला महसूस करती हूं. दादी है मेरे साथ..दादी मेरा ख्याल भी करती हैं लेकिन वह… दादी हैं।

अकेली एक तुम ही नहीं हो ऐसे कई एकल परिवार मिलेंगे जहां अकेला बच्चा है…,मिनी की माँ “श्रेया” ने कहा!!

मम्मा मैं यहां अपने लिए बात कर रही हूं, मुझे किसी से कोई मतलब नहीं…,हो सकता है उस बच्चे के साथ भी यही समस्या हो?

मैं अकेले रह -रह कर बोर हो चुकी हूं ..मम्मा!!”

मिनी की दादी यह सब सुन ही रहीं,उन्हें पोती का इस तरह से गिड़गिड़ाना अच्छा नहीं लगा,पोती को दु:खी देख बेटा-बहू से कह बैठी,” मैं तो कब से तुम दोनों से कह रही हूं..,लेकिन मेरी सुने कौन,”अभी उमर निकली नहीं है ,अकेला बच्चा अकेला ही रहता है। जिस उम्र में इसे हंसना-खिलखिलाना चाहिए उस उम्र में अकेले पन का दर्द झेल रही है।

तुम दोनों तो ऑफिस चले जाते हो,कितनी बोर होती है मिनी, इसको भी तो बच्चों की कंपनी चाहिए बाहर निकल कर बच्चे सेफ नहीं हैं।

मेरी भी उम्र हो रही है कब तक साथ रहूंगी…, लेकिन बेटा आगे की सोचो…, माता-पिता भी कब तक साथ रहेंगे, बेटी के लिए पीहर नाम की तो कोई चीज ही नहीं रहेगी।दुनियां में सबसे अनमोल रिश्ता होता है बहन भाई का, अगर दो बहने भी होंगी तो साथ तो रहेगा एक दूसरे का।

हां माँ, सही कह रही हैं आप…,मैने भी आज मिनी के लिए ऐसा ही महसूस  किया..,दिवाकर ने कहा!!

इतना कह दिवाकर बोला,” माँ दीदी का फोन आया था,आज रात को दीदी और बेटा संयम यहां रहने के लिए आ रहे हैं,जीजा की मृत्यु के बाद परिवार में और कोई था ही नहीं, मां बेटे दोनों अकेले रह गए,अब वह हमारे साथ रहा करेंगी, यहीं…,इसी घर में।

रिश्ते भी जरूरी है…बेटा…,समझो रिश्तों की अहमियत…,माँ ने फिर कहा।

मिनी खड़ी-खड़ी सब सुन रही थी, उसने सब कुछ सुना…,वह इस बात से खुश थी कि उसे “संयम” भाई का साथ मिल जाएग,अब वह अकेली नहीं रहेगी ,बुआ और भाई “संयम” आ रहे हैं।

मिनी खुशी-खुशी यह बात अपने नए दोस्त अर्णव को बताने चली गई।

मैं मधु गोयल हूं, मेरठ से हूं और बीते 30 वर्षों से लेखन के क्षेत्र में सक्रिय हूं। मैंने स्नातक की शिक्षा प्राप्त की है और हिंदी पत्रिकाओं व डिजिटल मीडिया में लंबे समय से स्वतंत्र लेखिका (Freelance Writer) के रूप में कार्य कर रही हूं। मेरा लेखन बच्चों,...