Hindi Kahani: “नैना, जरा एक कप चाय बना दोगी क्या?”
“जी,अभी लाई..!”नैना ने बहुत ही संक्षिप्त रूप से जवाब दिया और देवांश के लिए चाय बनाने लगी।
नैना जल्दी से चाय देकर देवांश के कमरे से निकल गई।
देवांश देख रहा था नैना थोड़ा परेशान है।
थोड़ी चिड़चिड़ी भी हो गई है लेकिन वह कुछ भी नहीं कर पा रहा था।
चाय देखकर उसने नैना को रोकने की कोशिश की पर नैना ने काम का बहाना बनाया और कमरे से बाहर निकल गई।
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अकेले बैठकर चाय पीने में वह मजा नहीं जो नैना के साथ बैठकर चाय पीने में आता था।
देवांश मन मसोसकर चाय पीने लगा।
वह चाय पीते हुए यह सोच रहा था… कुछ दिनों से नैना और उसके बीच में दूरियां कुछ ज्यादा ही बढ़ती जा रही थी।
इसका कारण भी उसे पता था जब से देवांश का ट्रांसफर उसके अपने गृह नगर में हुआ था तब से वह महसूस कर रहा था कि नैना उससे दूर होती जा रही थी।
इसका कारण था उसका संयुक्त परिवार।
देवांश के परिवार में उसके माता-पिता के अलावा उसके तीन चाचा चाची,उनके बच्चे इसके अलावा देवांश की तीनों बहने भी इसी शहर में ब्याही हुई थी इसलिए सभी का आना जाना लगा रहता था।
इससे पहले देवांश असम और अरुणाचल प्रदेश जैसे दूरदराज के प्रांतों में पोस्टेड था इसलिए सभी से भी मुलाकात कम ही होती थी।
ना वह जल्दी आ पाता था और ना परिवार के लोग उसके पास जा पाते थे।
जब वह अपने गृह नगर में वापस आया तो परिवार के लोगों से मिलनाजुलना और आना जाना लगा रहता था लेकिन इस बीच नैना और उसके बीच लगातार दूरी बढ़ती चली गई।
शुरू में देवांश को परिवार के बीच रहना अच्छा लग रहा था।
नैना भी परिवार के सभी सदस्यों के लिए हमेशा खड़ी रहती थी लेकिन धीरे-धीरे यह काम उसके ऊपर हावी होता जा रहा था।
अब उसके भीतर चिड़चिड़ाहट आती जा रही थी। यहां तक कि परिवार के बच्चे देवांश और नैना के कमरे को भी नहीं छोड़ते थे।
देर रात तक बच्चे इसी कमरे में बैठकर पढ़ते या खेलते या बतियाते रहते थे।
पति पत्नी दोनों एक दूसरे से बात किए हुए हफ्ते गुजर जाते थे।
संयुक्त परिवार के कारण काम की अधिकता होती थी।
नैना घर की बड़ी बहू भी थी इसलिए काम की जिम्मेदारी उसपर अधिक होती थी।
सारे काम समेटकर नैना को कमरे में आते हुए रात हो जाती थी और मुंह अंधेरे उसे उठना पड़ता था क्योंकि घर में जितने भी बड़े थे सभी की अपनी दिनचर्या थी।
उसी के हिसाब से नैना को चलना पड़ता था।
इन सारे रुटीन का सीधा असर नैना और देवांश की पर्सनल लाइफ में दिख रहा था।
देवांश जब भी नैना को पास बुलाता या उसके पास आने की कोशिश करता नैना उसे झटक दिया करती।
देवांश की चाय खत्म हो गई थी और उसके साथ ही सारे जज्बात भी।
उसके अंदर भी एक अकेलापन सा आ गया था। बहुत सारी बातें जो वह करना चाहता था पर कभी नैना के पास समय नहीं था कभी उसके पास।
परिवार के लोग उसे घेरे रहते थे।
देवांश खाली रखे कप को देखता रहा।
“मैं अपनी शादी को बरबाद होने नहीं दे सकता.. कभी भी…!,वह बुदबुदाया।
उसने नैना को फोन कर बहाने से अपने कमरे में बुलाया।
“नैना, मेरी पीली वाली शर्ट नहीं मिल रही है, प्लीज आकर खोज दो।
आज शाम बहुत ही जरूरी पार्टी है जिसमें मुझे प्रेजेंट होना बहुत ज्यादा जरूरी है ।”
नैना ने कहा
” ठीक है मैं आती हूं!”
नैना कमरे में आई। उसने वॉडरोब खोलकर शर्ट निकालकर देवांश के हाथ में दे दिया।उसने चिढ़ते हुए कहा
” यहीं सामने तो धरा था! आपको कुछ नजर ही नहीं आता!”
शरारत से मुस्कुराते हुए देवांश ने कहा
” वह नहीं मिल रहा मेरी पत्नी मुझे नहीं मिल पा रही थी!”
उसने शरारत से नैना को अपनी बांहों में भरते हुए कहा।
नैना चिड़चिड़ा गई।
उसने कहा
“छोड़ो मुझे अभी कोई ना कोई फिर आ जाएगा!”
” नहीं छोड़ूंगा.., देवांश ने बेफिक्री से उसे अपनी बांहों में समेटे हुए कहा.. कितना मुश्किल हो गया है ना नैना… हम दोनों को एक साथ बात करते हुए…!
एक पल सुकून का… खोजते हुए भी समय लगता है! समय को ढूंढना पड़ता है!”
नैना की आंखों में आंसू आ गए। उसने देवांश से कहा
“मुझे जाने दो.. अभी बड़े पापा की दूध का समय हो गया है और शाम की रोटियां भी महाराजी के साथ मिलकर बनानी है!”
दोनों अभी बात ही कर रहे थे कि बच्चों का एक झुंड चाची चाचा करते हुए घुस आया।
देवांश की पकड़ ढीली हो गई और नैना उसके बाजू से निकलकर बाहर चली गई।
बच्चे आपस में झगड़ रहे थे।बच्चों की लड़ाई देखते हुए देवांश थोड़ा उनमें खो गया लेकिन फिर उसके अंदर भी एक अजीब सा खालीपन आ गया।
वह तैयार होकर अपने मीटिंग के लिए निकल गया।
आज बहुत इंपॉर्टेंट मीटिंग होने वाली थी। ऑफिस पहुंच कर भी उसका मन नहीं लगा। उसकी आंखों के आगे नैना का उदास चेहरा ही घूम रहा था।
उसे ड्रिंक लेते हुए देखकर उसका सहकर्मी और दोस्त राजीव उसके पास आकर बोला
“क्या बात है देवांश!,तुम ड्रिंक ले रहे हो?”
“हाँ,यार! बहुत परेशान हूं क्या क्या बताऊं क्या सोचा था क्या हो गया!
पहले अकेले रहते हुए परिवार के लिए तरसता रहा.. जब परिवार मिला तो अपनी शादीशुदा जिंदगी खतरे में पड़ गई ।”
“ऐसा क्या हो गया! इतने बेताब थे इतनी मुश्किल से तुमने अपना ट्रांसफर कराया फिर क्या बात हो गई?”
“हां यार, बियर का घूंट पीते हुए देवांश ने कहा, मैं जितना उत्साहित था आपने गृह नगर अगर आने के लिए उतना ही और मुसीबत में घिर गया हूं।
मेरी इतनी बड़ी फैमिली है कि मैं नैना को भरपूर समय ही नहीं दे पा रहा हूँ।
वह अकेली होती जा रही है और चिड़चिड़ी भी!
हम दोनों मुश्किल से मिल पाते हैं जब मिलते हैं तो रोबोट की तरह..!
मेरे पास तो ऑफिस है। यहां दस तरह की बातें होती है। हर तरह की सुख सुविधा है बेचारी नैना घर गृहस्थी में पिसती जा रही है।”
” हम्म्…म!!, राजीव ने कहा,… सही बात है। जरा सोचो… पहले जब एकल परिवार का चलन नहीं था सब लोग संयुक्त परिवार में ही रहते थे लेकिन फिर भी खुशी थी, संतुलन था।”
“हाँ भाई..!,देवांश ने कहा।
“तुम एक चीज भूल रहे हो! तुम्हें यहां अपने परिवार के बीच कभी भी समय नहीं मिलेगा।
यदि अपने वैवाहिक जीवन को रिचार्ज करना है तो नैना को लेकर किसी हिल स्टेशन में चले जाओ या कहीं भी घूमने चले जाओ।
ऐसा करो अपने परिवार से झूठ बोल दो कि तुम्हें मुंबई जाना है ऑफिस की ओर से।
दो तीन दिनों की छुट्टी मना कर वापस आ जाओ।
देखना, आई प्रॉमिस! नैना बिल्कुल खुश हो जाएगी।”
“अरे हां यार तुमने बिल्कुल सही कहा। तुमने मेरी आंखें खोल दी मैं बेचारा काम के बोझ का मारा! देवांश ने कहा और उसने मोबाइल खोला।
उसने सबकुछ देखकर फ्लाइट की दो टिकट बुक कर दी।
घर आकर उसने अपने माता पिता से कहा
“पापा मेरे ऑफिस की मीटिंग होने वाली है! वाइफ को भी लेकर आना नेसेसरी है।
इसलिए नैना को भी साथ चलना होगा।”
“हां बेटा ,जरूर ले जाओ।वहभी परेशान हो जाती है दिन भर खटती ही रहती है।
थोड़ा घूम लेगी तो फ्रेश हो जाएगी और उसके मां और चाची सभी ने कहा।
देवांश चुटकी बजाते हुए खुद से कहा
“यह तो बहुत ही आसान सा सॉल्यूशन था। मुंबई में समुद्र के किनारे नैना को अपनी बांहों में समेटे देवांश बैठा था। लहरें उन दोनों को छूती हुई पार हो रहीं थीं।
शाम का समय था।
नैना का तनाव रहित चेहरा और खुले बाल उसकी खूबसूरती को और बढ़ा रही थी।
दोनों ही बहुत दिनों बाद एक दूसरे को इस रूप में देख रहे थे ।
खारे पानी ने नैना को एनर्जेटिक बना दिया था। वहीं देवांश को गीली टीशर्ट और प्रिंटेड कैफरी में देखकर नैना भी रोमांटिक हो गई थी।
दोनों एक दूसरे की बाहों में खोए हुए थे कि एक बड़ी सी लहर आकर उन दोनों पर गिरी।
दोनों लहरों के साथ बहते हुए थोड़े आगे बह गए। देवांश ने बड़ी मजबूती से नैना को जकड़ लिया था।
दोनों तनमन से पूरी तरह से भीग चुके थे।
उनके एक दूसरे की आँखों में प्यार था और समर्पण भी।
दोनों वापस लौट कर होटल में आए और एक दूसरे में खो गए।
शाम को जब रिशेप्शन से चाय के लिए फोन आया तब जाकर दोनों की नींद टूटी।
नैना मुस्कुराते हुए उसकी बाहों में झूल गई और उसके गालों में अपने होठों की तितलियां रख दी और कहा
” थैंक्यू देवांश!, आई लव यू!”
” आई लव यू टू माय डियर नैना! तुम्हारे चेहरे पर मुझे ऐसी हंसी अच्छी लगती है ।बस ऐसे ही मुस्कुराते हुए रहा करो।”
“ओके माय चार्मिंग हस्बैंड!”हँसते हुए नैना ने कहा।
नैना को हँसते हुए देखकर देवांश उसे अपलक देखता रहा।
आज वह और नैना बहुत ही खुश थे थोड़ा सा एक दूसरे को समय देकर।
देवांश ने राजीव को मन ही मन धन्यवाद दिया।राजीव ने उसे जीने की सही राह बता दिया था।
देवांश और नैना दोनों ही खुशी-खुशी छुट्टियां बीता कर वापस लौट आए।
अब दोनों के बीच कोई गिलाशिकवा और गलतफहमियां नहीं थीं, था तो बस प्यार ही प्यार।
