माँ की नसीहत-गृ​हलक्ष्मी की लघु कहानी: Maa ki Sikh
Maa ki Nasihat

Maa ki Sikh: शैली के विवाह को अभी मुश्किल से तीन माह हुए थे और वह अपने ससुराली जनों से नाराज होकर मायके में आकर बैठ गई। उसकी दशा देखकर उसकी माँ अरुणिमा ने उसे अपने पास बुलाया और प्यार से उसके बालों को सहलाते हुए कहने लगीं-

” तुम्हें अपने घर वापस जाना चाहिए। ऐसे छोटी-छोटी बातों पर नाराज होना शोभा नहीं देता ।”

किंतु शैली ने एक ही रट लगा रखी थी

” मैं उस घर में कभी वापस नहीं जाऊँगी। वहाँ मेरी इज्जत एक नौकरानी के जैसी भी नहीं है। सुबह- सुबह उठकर सबके लिए ब्रेकफास्ट तैयार करो.. फिर दोपहर का लंच ..फिर रात का खाना ..मैं रसोई तक सिमट कर नहीं रह सकती। मुझे भी अपने सपने पूरे करने हैं। मुझे भी जीने का अधिकार है। यह काम तो कोई भी बाई कर सकती है। कोई भी खाना बनाने वाली लगा सकते हैं। लेकिन नहीं ..पता नहीं किस घर में आपने मेरी शादी की है..?”

 अरुणिमा देवी ने उसे समझाने की बहुत कोशिश की और बताया कि

” बेटी रोहित एक बहुत ही सुलझे हुए विचारों का लड़का है। उसका परिवार और खानदान बहुत ही सादगी पसंद है और वे सब बनावटी जीवन शैली से दूर हैं। कुछ समय पश्चात तुम उनके अनुरूप ही स्वयं को ढाल लोगी, ऐसा मेरा विश्वास है ।”

किंतु शैली जोर -जोर से रोने लगी।

 “माँ आप भी मुझे समझने की कोशिश नहीं कर रही हो। मुझे यह सब काम अच्छे नहीं लगते हैं। और फिर मेरा विवाह रोहित से हुआ है, उसके पूरे परिवार के खाने का मैंने ठेका नहीं लिया।हर समय रसोई घर में खाना बनाना और दूसरों का ख्याल रखना यह मेरे वश की बात नहीं।मैं एक पढ़ी-लिखी लड़की हूँ।”

 अरुणिमा ने जब अपनी बेटी के शब्द सुने तो उन्हें आश्चर्य हुआ फिर भी वे उसे प्रेमपूर्वक समझाते हुए बोलीं-

“अच्छा ठीक है.. एक कहानी सुनोगी। जो मैंने तुम्हें कभी नहीं सुनाई।”

” जी हाँ जरूर…”

” एक लड़की थी जिसके बहुत सुंदर सपने थे। मात्र चौदह वर्ष की उम्र में उस लड़की का विवाह कर दिया गया ।विवाह भी एक ऐसे इंसान से किया गया जो पढ़ा -लिखा तो था ,किंतु बेरोजगार था ।वह लड़की डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट की लड़की थी, जिसके घर में नौकर -चाकर उसकी एक आवाज पर दौड़े चले आते थे ।महलनुमा घर में पली-बढ़ी वह लड़की जब एक सामान्य से घर में ब्याह दी गई, तब भी उसने कभी इस बात की शिकायत अपने माता-पिता से नहीं की। ससुराल में आते ही उसे वह सब काम करने पड़े जो एक गृहणी को करने होते हैं। जो एक घर की बहू का नैतिक दायित्व होता है। पहली बार रसोई घर में खाना बनाने की जिम्मेदारी जब उसे सौपीं गयी, तो वह डरी सहमी सी सब कार्य करती रही।जिस लड़की ने कभी रसोईघर में कदम नहीं रखा था, उसे सबके लिए खाना बनाना था। प्याज काटते समय उसकी आँखों में ढेर सारे आँसू टपकने लगे थे। घर पर तो हमेशा यह काम उसकी माताजी किया करती थी। उसे माँ की बेहद याद आती थी किंतु फिर भी अपने आँसुओं को पोंछकर  उसने अपनी साड़ी के आँचल में  समेंट  लिया और जुट गई अपने काम में ।धीरे-धीरे उसने खाना बनाना सीख लिया ।घर की साफ- सफाई से लेकर कपड़े धोना और सब की जरूरतों का ध्यान रखना उसी का काम था। मन में आगे बढ़ने की अभिलाषा ने जैसे दम ही तोड़ दिया ।घर गृहस्थी के दायित्वों में ऐसी उलझ गई थी कि अपनी ओर ध्यान देने का अवसर ही नहीं मिला। विवाह के लगभग पच्चीस वर्ष बाद उसने अपने पतिदेव के समक्ष आगे पढ़ने की इच्छा रखी,तो उन्होंने उसकी इस इच्छा का मान रखा। फिर उसने स्नातक की। स्नातक के पश्चात विशिष्ट बी०टी०सी० का कोर्स किया और छः माह के प्रशिक्षण के बाद एक विद्यालय में उसे सरकारी नौकर प्राप्त हो गई । किंतु नौकरी करते हुए भी उसने  घर के बड़े बुजुर्गों के बनाये गए रीति-रिवाजों का पालन किया। साड़ी पहनकर अध्यापन कार्य के लिए जाना,मजाल है जो सिर से आँचल जरा भी ढलक जाए। उसने प्रत्येक परिस्थिति से हँसकर समझौता किया। जानती हो वह स्त्री कोई और नहीं बल्कि तुम्हारी माँ ही है। हमें कभी भी विषम परिस्थितियों को देखकर अपना संयम नहीं खोना चाहिए ।विवाह कोई गुड्डा -गुड़िया का खेल नहीं, कि कल ब्याह हुआ और आज तलाक। विवाह तो जन्म -जन्म का बंधन है, जिसमें एक- दूसरे की भावनाओं का सम्मान किया जाता है। एक दूसरे  की जरूरतों का ख्याल रखा जाता है। विवाह मात्र दो व्यक्तियों के मध्य नहीं होता, अपितु यह दो परिवारों का मिलन है। जब वर पक्ष वधू पक्ष के व्यक्तियों के साथ अच्छा व्यवहार करते हैं, तो आखिर वधु अपने ससुराली जनों के साथ ऐसा सर्द  और रूखा व्यवहार क्यों करतीं हैं …करना भी नहीं चाहिए..”

 माँ की पूरी बात सुनकर शैली को जैसे अपने सारे प्रश्नों के उत्तर मिल गए। उसका गुस्सा धीरे-धीरे शांत हो गया और उसने ससुराल वापस लौट जाने का निर्णय लिया। आज शैली के विवाह को लगभग पंद्रह वर्ष हो गए हैं और वह एक सुखी सफल दांपत्य जीवन का सुख भोग रही है। यह सब कुछ माँ की दी हुई उस नसीहत का परिणाम है ,जिसने उसके जीवन को गलत फैसला लेने से रोक दिया। सही समय पर लिया गया सही निर्णय व्यक्ति के जीवन को नई दिशा देता है।

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