पार्वती आईने के पास खड़ी अपना अक्स ध्यान से देख रही थी।
लंबे अरसे की बीमारी के बाद ठीक हुई पार्वती अभी भी अपने आपको कमजोर महसूस करती। कल ही पति के तिष्ण बाणों से उसका कलेजा छलनी हुआ था।
शेखर के तीखे स्वर उसके कानों में गूंजे।
“क्या दिखाना चाहती हो,समाज को,यह सफेद बाल दिखाकर शादी में क्या मेरी नाक कटाना चाहती हो…?
आईने को देख पार्वती ने बालों की कलर करने के लिए बाउल निकाला और कलर घोलकर बालों को मजबूर होकर लगाने लगी।
कलर से उसके आँखों की जलन बढ़ जाती ओर आँखे लाल हो जाती।
कलर से उसके सिर में भी जलन बढ़ जाती। लेकिन आजतक इस घर में कौन उसकी मजबूरी समझ सका है।
सोचते हुए बेमन से बाल कलर करने लगी।
सारी जिंदगी दूसरों के इशारे पर नाचने वाली पार्वती अब अक्सर ख़ामोशी ओढ़े रहती।
पति ने कहा ऐसा…. तो ऐसा.. पति ने कहा… वैसा तो वैसा..।
आईने को देख वह कही खो सी गई।
आज भी उसे अपने बचपन के वह दिन अच्छे से याद थे। उसने कितने सपने बुने थे अपनी पढ़ाई को लेकर आगे पढ़ना चाहती थी। अपनी सहेली की तरह स्वावलंबी होना चाहती थी।
उसे याद आया वह दिन जब सुनीता ने उसके नौकरी का अप्वाइंटमेंट लेटर देखकर कहा था।
अच्छा अवसर हाथ आया है, पार्वती… इसे हाथों से जाने मत देना, सरकारी नौकरी हर किसी को नहीं मिलती,अभी अस्थाई हुई तो क्या हुआ आगे स्थाई हो ही जाएगी।
पार्वती मन के आकाश में अपनी इच्छाओं की पतंग को ऊपर उड़ता देख खुश हो उठी।
मां को अपने मन की हर बात बताने वाली पार्वती आज कुछ ज्यादा ही उत्साहित थी। उसके पैर घर जाने के लिए बेताब थे।
घर घुसते ही मां के गले लग खुशी से चहक कर बोली- “मां…जॉइनिंग लेटर आया है, मुझे दो महीने बाद ज्वाइन करना है, अब मैं अपने सपनों को पूरा कर सकूंगी,बार-बार पापा के पास पैसे मांगने की जरूरत नहीं पड़ेगी..और हां… तुम्हारी भी हर जरूरतों को अब मैं पूरा करूंगी…अब तुम्हारी बची हुई आशाओं को मैं पूरा करुँगी,
वह कहती जा रही थी।
लेकिन मां के चहरे के भाव उसके शब्दों के साथ-साथ कड़क होते जा रहे थे।
अचानक पार्वती को लगा कि मां उसकी बातों को सुन खुश नहीं हो रही है।
मां का इस तरह खामोश रहना और गुस्से से उसकी और देखना पार्वती को अच्छा नहीं लगा।
मां को इस कदर खामोश देख पार्वती पूछ बैठी- “क्या बात है, मां.. तुम्हें खुशी नहीं हुई… मुझे जॉब मिलने पर।
कई सवाल मन को आहत कर गए मां ने कहा- ‘पार्वती कल तुम्हें देखने लड़के वाले आ रहे हैं, अब तुम्हें जो भी करना है अपने ससुराल जाकर करना।
“क्या….?
“लेकिन… मैं अभी इतनी जल्दी शादी नहीं करने वाली, मुझे अभी बहुत कुछ करना है, मां….?
वह बेचैन होकर बोली।
तभी अंदर से पिता के स्वर उसके कानों पर पड़े। पढ़ लिखकर क्या यही सीखा है,अपनी मां से मुंह चलाना।
पिता को देख मां पिता के बाजू में एक दृढ़ स्तंभ सी खड़ी हो उनके सुर में सुर मिलाने लगी।
पार्वती अपने आप को बहुत ही अकेला महसूस कर रही थी।
घर में नाश्ते की महक से सभी पड़ोसियों को पता चल गया कि आज पार्वती को लड़के वाले देखने आ रहे हैं।
पार्वती को तो उन लोगों ने पसंद कर लिया लेकिन पार्वती अभी मन से शादी के लिए तैयार नहीं थी।
उसे लड़का कुछ अच्छा नहीं लगा। लेकिन माता-पिता के सामने क्या मजाल कि वह कुछ बोल सके।
वह तो विनय के बारे में भी मां को बताना चाहती थी।
उसका सोचना था कि नौकरी लगते ही मैं मां को सब कुछ बता दूंगी कि मुझे विनय पसंद है लेकिन समय के आगे कुछ भी ठहरता नहीं है।
अचानक जीवन में ऐसा कुछ हो जाएगा उसने सोचा भी नहीं था।
शादी के बाद जब वह पहली बार घर आई थी तो मां उसे देख बड़ी खुश हुई।
बहुत ही प्यार से उसकी की खातिर की गई ।
पड़ोस की चाची को मां हंस-हंसकर कह रही थी।
“अरे..बेटी की शादी कर दी, हम तो गंगा नहाए,समय रहते लड़कियों के हाथ पीले कर दो तो भटकने से बच जाती हैं,
घर बैठाकर रखो तो चिंता का पहाड़ बढ़ते देर नहीं लगती।
पार्वती सोच रही थी कि क्या एक लड़की की शादी भर कर देने से माता-पिता चिंता मुक्त हो जाते हैं।
क्या.. उन्हें यह एहसास जरा भी नहीं होता।
कि बेटी की शादी तो कर दी लेकिन क्या.. उसके ससुराल में उसके साथ कैसा व्यवहार हो रहा है, पति के विचार कैसे हैं..?
क्या.. पति उसे प्यार करता भी है या फिर अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए ही शादी जैसा बंधन बांधा है।
अग्नि के सात फेरे में क्या रूहे मिल पाती हैं या फिर (जिस्म) जिसका मिलन ही आसमान में लिखा शादी का बंधन है।
ऐसे विचारों को लेकर उदास मन से मां के साथ काम करती रही।लेकिन इन दो दिनों में माँ ने कभी नहीं पूछा कि तू ठीक है या तेरे परिवार के लोग कैसे हैं।
पार्वती को अपनी बात कहने का मौका ही न देती। हर बात बढ़ा चढ़ाकर कह पार्वती को खामोश कर देती।
पार्वती को भी उस समय मां की बड़ी जरूरत महसूस हो रही थी।
लेकिन मां के बेगानेपन ने पार्वती को खुद की तकलीफों से लड़ने का साहस दिया।
कहते हैं ना आप किसी के सहारे खड़े हो तो कमजोर बनते हो ओर खुद के सहारे मजबूत बन जाते हो। समय अपनी रफ्तार से यूं ही गुजरता गया।
माता-पिता की जिम्मेदारियों का बोझ कमकर ससुराल की सभी जिम्मेदारियों का बोझ अपने कंधों पर रख जीवन भर ढोते-ढोते अब उसके कंधे झुक से गए थे।
शादी तो सिर्फ सभी की जरूरतों की पूर्ति के लिए हुई थी।
पार्वती की अपनी सारी जरूरत अब खत्म हो गई थी। अब कुछ बची ही नहीं। जो जैसा कहता करती रहती।
बेटी की जिम्मेदारियां सास-ससुर ओर सारे घर की जिम्मेदारियां खुद ही संभालती सब्जी लाने से किराना समान घर की हर जरुरतों को उसे ही पूरा करना पड़ता।किसी चीज में कुछ कम ज्यादा ही जाय तो पति के ताने सुनने पड़ते।
अब तो पूछो मत कुछ शब्द ही नहीं बचे पति के बारे में कहने को। उस घर की ओर उनके गुलामी की दास्तां सारी जिंदगी से भोग रही थी।
अचानक उसके हाथ के धक्के से कांच नीचे गिरकर टूट गया।
उसकी तंद्रा भंग हुई।
कमरे से जोरदार आवाज आई.. क्या गिरा दिया… पति ने आकर देखा तो टूटे कांच को देखकर बोले- “क्या हाथ पैरों में अब इतनी भी जान नहीं बची कि छोटी- छोटी चीजों को संभाल सकें।
बालों में कलर लगाकर वह कांच के बिखरे टुकड़ों को समेटने लगी।
एक टुकड़ा उसकी उंगली में जा लगा लेकिन इसका दर्द उसे कहां पता चला। इससे भी गहरे जख्म दिल पर लिए जी रही थी।
तभी फोन की घंटी घनघना उठी। शामली का फोन था।
मां क्या कर रही हो..?
मेरे वार्डरोब से मेरा एक लेटर रखा है,उसकी फोटो व्हाट्सएप पर भेज दो।
पार्वती ने जल्दी से जाकर उसकी अलमारी खोल उसमें पड़ा एक लेटर फोटो खींचकर उसे व्हाट्सएप कर दिया।
“आप क्या कर रही थी..?
पार्वती बोली- “कल पापा के साथ एक परिचित के यहां शादी में जाना है तो बाल डाई कर रही थी।
“क्या मां.. जब तुम्हें सूट नहीं करती तो क्यों यह सब करती हो..?
तुम वैसे ही अच्छी लगती हो, कब तक मां पापा के इशारों पर नाचती रहोगी, कहती क्यों नहीं कि तुम्हें तकलीफ होती है।
“रहने दे.. बेकार जरा-जरा सी बात पर झमेला खड़ा करने से अच्छा है, जीवन शांति पूर्वक चले, मुझ में अब इतनी हिम्मत नहीं रही कि किसी बात पर विरोध कर सकूं। “जाने दो मां.. मैं तुम्हें बचपन से देख रही हूं, कभी भी अपने पापा का विरोध नहीं किया, उन्हीं के हिसाब से अपने जीवन को चलाएं, कभी खुद के हिसाब से जियो। “ठीक है, तू फोन रख,बाद में बात करती हूं।
……..
आज तीन महीनों बाद शामली घर आई थी।
पार्वती बहुत खुश थी उसके पसंद के पकवान बनाने में व्यस्त थी।
घर में एक खुला-खुला सा वातावरण बन गया था।
शामली की सकारात्मक बातें मां तुम ऐसा पहनो, आज तो तुम आराम करो, मैं बाजार से खाना ऑर्डर करती हूं।
पार्वती को लगा जैसे खुले गगन में सांस ले रही हो।
शेखर खामोश थे अब बेटी बड़ी हो गई थी तो उसके सामने घर में ज्यादा हस्तक्षेप नहीं करते थे।
लेकिन पार्वती को इस तरह बेटी के साथ बचपना करते देख अंदर ही अंदर उबल रहे थे।
शामली बोली- “पापा मुझे बड़ी कंपनी में जॉब मिला है, बस पंद्रह दिनों के बाद बेंगलुरु जाना है तो सोचा आठ दिन आप लोगों के साथ बिता दूं।
शेखर(शामली के पापा) बोले- श्यामली तुम्हारे लिए रिश्ते आ रहे हैं, कुछ फोटो दराज में पड़ी है, देख लो, ताकि.. मैं लड़के वाले को मैसेज कर सकूं।
“क्या पापा आप भी..अभी मुझे शादी नहीं करनी है, जॉब सिक्योर हो जाए, दो-तीन साल बाद सोचेंगे। शेखर का गुस्सा सातवें आसमान पर था।
चीखकर बोले- “समाज में मेरी भी कोई इज्जत है कि नहीं.. मैं उन लोगों को क्या जवाब दूंगा,जिन लड़कों के फोटो आए हैं।
शामली बोली- “इज्जत आपके सोच की है पापा, उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ेगा, क्या उनके लड़के भी उनके अनुसार उनके कहने पर विवाह करेंगे,नहीं ना… तो फिर.. आप मेरे पीछे क्यों पड़े हो।
पार्वती दोनों के संवादों को सुन आज खुश हो रही थी।
उसने तो अपने माता-पिता की इज्जत की खातिर अपनी बलि दे दी थी। लेकिन शामली अपने जीवन के खुले आकाश में उड़ान भरने के लिए स्वतंत्र थी।
पार्वती आज पहली बार अपना सारा साहस समेटकर बोली- “उसे जी लेने दो अपनी जिंदगी.. उसके पैरों में शादी की बेड़ियां मत बांधो, समय रहते सब ठीक हो जाएगा।
“मां तुम भी मेरे साथ कुछ दिनों के लिए बेंगलुरु चलो, तुम्हें भी चेंज अच्छा लगेगा,अपनी सारी दवाइयां रख लो, यहां रहना क्या, वहां रहना क्या।
पार्वती में आज एक नई ऊर्जा का संचार हुआ।
वह भी अपना बचा शेष आकाश देखना चाहती थी। अपनी मर्जी से कुछ दिन व्यतीत करना चाहती थी। शेखर “पार्वती और शामली के निर्णय से क्रोधित होकर बोले-” तुम्हें जहां जाना है जाओ, मां कहीं नहीं जाएगी, यहां मेरा काम कौन करेगा…?
श्यामली मुस्कुराते हुए बोली- “आप खुद और कौन।
पार्वती अपने कपड़े जमाने लगी। “अब मैं खुद अपने हिसाब से बचा अपना शेष जीवन कुछ दिन अपने हिसाब से जीना चाहती हूं। कहती हुई खिड़की से खुला आकाश देखने लगी।
पीछे से शामली ने मां के कंधों पर कोमल स्पर्श से हाथ रखते हुए उसकी ओर स्नेहिल नजरों से देखा उसकी सूनी आंखों में एक चमक सितारों से भी तेज चमकती हुई नजर आ रही थी।