Ghosla
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Hindi Social Story: जब तृषा ने पहली बार बसंत को देखा तो उसे लगा यह मौसम उसके जीवन में अब स्थाई हो जाएगा…. फिर ऐसा क्या हुआ की यह मौसम रूठ गया।
कुछ ना हो कर भी बहुत कुछ हुआ जैसे अपेक्षाओं की अधिकता, काम का बोझ और एक दूसरे को पर्याप्त समय ना देना। कहने को यह आम बातें हैं पर ये ही बातें हैं जो युगल जोड़ों के रिश्ते का दम घोंटती है।
दोनों ही नौकरी पेशा थे और दोनों ही अपने अहम को पोषित करते । कोई एक पहल क्यों करें? कोई एक क्यों झुक जाए और मैं सही हूं की रट ने छोटी दूरियों को और बड़ा कर दिया।
तीन साल से दोनों एक ही शहर में अलग-अलग रहते हैं। तलाक का केस वकीलों की जेब भर रहा है और उनके रिश्ते रूपी झोले को खाली ।
तृषा बालकनी में बैठी सोच रही हैं बात बिगड़नी कब शुरू हुई ……
तृषा अच्छा खासा कामाती थी पर सारा पैसा अपने ऊपर खर्च करती, हर महीने सैलुन जाना , महंगे कपड़े और ऑनलाइन शॉपिंग में वह काफी बड़ी राशि खत्म कर देती ।
घर का पूरा खर्च वसंत ही संभालता ।
बचपन से देखती आ रही थी कि घर का सारा खर्चा उसके पिता ही संभालते वह भूल गई कि उसकी मां एक गृहणी थी, घर की देखभाल, रख- रखाव की पूरी जिम्मेदारी उनकी थी।
पिता खुशी-खुशी अपनी तनख्वाह का एक बड़ा हिस्सा मां के हाथों में थमा देते जिसको वह घर चलाने में इस्तेमाल करती ।
यहां जब दोनों नौकरी पेशा है तो जिम्मेदारी भी दोनों की बनती है मगर तृषा ने सहयोग देना तो दूर पूछना भी जरूरी नहीं समझा…..
घर के कामों में भी बसंत निपुण था । फल सब्जी व राशन लाने के अलावा वॉशरूम व पंखे साफ कर देता। अपनी नई नवेली पत्नी के लिए अक्सर खाना भी बसंत बना देता ।
तृषा के नाज़ नखरे शुरू में उसे अच्छे लगे पर जल्द ही समझ आ गया की तृषा घर चलाने में कोई सहयोग नहीं कर रही।
ऐसे कब तक चलता, घर -बाहर दोनों की जिम्मेदारी अकेले बसंत उठाए ……क्यों और कब तक…?
हार कर बसंत ने उससे कहा कि घर ख़र्च में उसे भी सहयोग देना होगा या वो नौकरी छोड़ कर पूरी तरह से घर संभाले….
तृषा ने विरोध किया और दोनों के बीच दीवार खिंच गई।
कितनी अजीब बात है ना, जब वह बसंत के साथ थी तो वह उम्मीद करती थी कि बसंत पूरा खर्चा उठाएं व घर के कामों में भी उसकी मदद करे और अब जब वह अकेले हैं तो वह अपना खर्च खुद ही उठा रही है व घर का सारा काम भी खुद कर रही है ।
काश उसने सहयोग कर दिया होता तो आज वे दोनों पति-पत्नी के रूप में अपने खूबसूरत से आशियाने में होते।
सहसा तृषा की नजर एक विशाल पेड़ पर ठहर गई जहां कभी चिड़ा एक तिनका ले आता तो कभी चिड़िया…. चहचहाहट से एक-दूसरे से संवाद करते हुए ।
दोनों के सहयोग से एक अद्भुत आकृति रूप ले रही थी उनका एक ख़ूबसूरत…. घोंसला।
तृषा ने बसंत को फोन लगा दिया ” हेलो बसंत “
“हां तृषा “
“सुनो हम एक जॉइंट अकाउंट बनाएंगे जिसमें दोनों बराबर से घर खर्च के लिए राशि जमा करेंगे।”
“मतलब?”
” मैं चाहती हूं मेरे जीवन में बसंत लौट आए कभी ना जाने के लिए।”
बगीचे में खिले फूलों पर अब वह चिड़ियों का जोड़ा फुदक रहा था।