वो सत्तर साल की बुजुर्ग थी, नाम था कुसुम। पति के स्वर्गवास बाद कठिनाइयों का सामना करते हुए बेटों की परवरिश की, उन्हें पढ़ाया-लिखाया और इस काबिल बनाया की वे समाज में इज्जत से रहें। बेटे भी मां का आदर करते, लेकिन विवाह के बाद बहुओं और बच्चो में व्यस्त होने से उनका ध्यान मां के प्रति कुछ कम हो गया था।

वह महसूस करती रही कि अब बच्चों का जुड़ाव कुछ कम हो गया था, लेकिन वह चुप रहती।

कोरोना का भी कहर जारी था, ऐसे में कुसुम को सर्दी-जुकाम की शिकायत हो गई तो बेटा उन्हें डॉक्टर के पास ले गया और डॉक्टर ने कोरोना की आशंका जताई। उनका सेम्पल लिया गया और उन्हें रीपोर्ट आने तक घर में कवरन्टीन कर दिया गया।

घर के सभी सदस्यों ने उनसे दूरी बना ली, उन्हें एहतियात के तौर पर दूर से ही खाना और पानी दिया जाता। यह बात उन्हें बहुत ही दु:खी करती थीं, लेकिन वह कुछ बोल नहीं पाती थीं। उन्होंने सबसे  बात करना भी कम कर दिया था, उन्हें लगता कि सभी उन्हें तिरस्कृत कर रहे हैं।

कुछ दिनों बाद उनकी रिपोर्ट आई जो निगेटिव थी, दवाइयां लेने के कारण सर्दी जुकाम भी ठीक हो गया था, लेकिन उनके मन में यह बात घर कर गई थी कि अब उनकी कद्र नहीं रही। वे अधिकांश चुप रहने लगी थीं, बेटे और बहुओं ने उनके व्यवहार से समझ लिया था कि उनके मन को ठेस पहुंची है, लेकिन वे क्या कर सकते थे।

आज उनका जन्मदिन है, लेकिन किसी ने उन्हें बधाई भी नहीं दी। वे दोपहर में कमरे में लेटी हुई थीं अचानक उनके पोते राघव ने उन्हें उठाया, दादी चलिए थोड़ी देर बाहर घूमकर आते हैं। ‘मेरा मन नहीं है बेटा’, दादी के इन्कार करने पर भी वो नहीं माना। आखिर मन न होते हुए भी उसे राघव के साथ जाना पड़ा। कुछ समय बाद जब वे लौटे तो घर का हुलिया ही बदला हुआ था, सारा घर रंग-बिरंगी दीप मालिकाओं से सजा हुआ था। सेंटर टेबल पर बड़ा-सा केक रखा हुआ था और उनकी कुछ हमउम्र पड़ोसिनें बैठी हुई थीं। हैप्पी बर्थडे मम्मा, बेटे-बहुओं के समवेत स्वर ने सारी शिकायतें दूर कर दी थीं। उनके मन पर जमी धूल झड़ गई थी और उनको अहसास हो गया था कि बच्चे अभी उनकी परवाह करते हैं और बच्चों ने भी उन्हें समझाया कि कोरोना बीमारी ही ऐसी है कि हमें इससे अत्यधिक सावधान रहना है। केक काटते हुए उनकी आंखों में $खुशी के आंसू थे।

आज उसे अपनी अहमियत का अहसास हो गया था, बेटे बहुएं उनके करीब थे, किन्तु वह स्वयं ही उनसे दूर होती जा रही थीं।

मां हम सब का वजूद आप से ही है, कहते हुए सभी मां के गले लग गए।

सारी गलतफहमी दूर हो गई थी और अब वह पूरी तरह तनावमुक्त हो गई थीं।

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