कुसुम नेहा के लिए दूध लेने रसोई घर में गयी थी, जब उसने कुसुम की चीख सुनी तो वह दौड़ कर रसोई घर में गया। वहां जा कर उसने जो देखा तो उसके पांव के नीचे से जमीन निकल गयी। कुसुम के कपड़ो में आग लगी थी। निहाल भाग कर कमरे में गया और लोई उसके ऊपर डाल कर आग बुझाने की कोशिश करने लगा। अब तक और लोग भी जमा हो गए थे। किसी तरह से आग तो बुझ गयी पर कुसुम को न बचा सका।

निहाल एक सीधा सादा मेहनती इंसान था। तीन साल पहले ही उसकी कुसुम से शादी हुई थी । वह अपनी पत्नी के साथ बहुत खुश था। नेहा के जन्म के बाद तो दोनों और भी खुश थे। निहाल बस अपने काम से काम रखता था। उसने किश्तों पर एक कमरे वाला एक फ्लैट भी ले लिया था। वह अपने काम से ही मतलब रखता था। ज़िन्दगी बड़ी अच्छे से चल रही थी।

आज अचानक उस पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा था। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। कैसे जियेगा कुसुम के बिना, छोटी नेहा का क्या होगा, यही विचार उसे खाए जा रहे थे। नेहा भी सहमी सी उसे देख रही थी और उसकी गोदी से ही नहीं उतर रही थी।

अब तक कुसूम के माता पिता भी आ गए थे। उनके साथ उनकी छोटी बेटी मधु भी थी। नेहा मधु को देखते ही उसके पास चली गयी और उसके कंधे से लग गयी । मधु नेहा को कमरे से बाहर ले गयी और बहलाने की चेष्टा करने लगी, नेहा भी मधु के साथ सहज हो गयी थी। सांझ हो चुकी थी कुसुम का अंतिम संस्कार हो चूका था। परिवार के सब लोग बैठे थे। सब के मन में एक ही बात थी अब इस छोटी सी बच्ची का क्या होगा।

कुसुम पांच बहनों में सबसे बड़ी थी। कुसुम के पिताजी की गांव में एक छोटी सी दुकान थी। कुसुम की मौत का उन्हें गहरा सदमा लगा था, पर अपना दिल कड़ा करके वे निहाल को दिलासा दे रहे थे। नेहा मधु की गोद में ही सो गयी थी।

अचानक कुसुम के पिताजी उठे और निहाल के पास आ कर बैठ गए, उन्होंने बड़े प्यार से निहाल के सर पर हाथ फेरते हुए कहा वे मधु को कुसुम की जगह पर नेहा की जिम्मेदारी देने को तैयार हैं। इसी में सभी की भलाई है। मधु नेहा से अच्छे से हिली मिली है वह उसे मां का भरपूर प्यार दे सकेगी। निहाल का भी घर संभल जाएगा। अभी वे नेहा को अपने साथ ही ले जाएंगे।

कुछ समय निहाल और मधु की शादी बड़ी सादगी से कर दी गयी। नेहा पहले से ही मधु से हिली-मिली थी, वह जल्द ही सहज हो गयी और उसे ही मां समझने लगी ।

मधु की उम्र बीस वर्ष की थी, उसने बारह कक्षा तक पढाई की थी। वह बहुत ही शालीन कन्या थी। उसने निहाल की गृहस्थी को अच्छे से संभाल लिया था ।

समय तेजी से बढ़ता गया। नेहा को भी स्कूल में दाखिल करा दिया था। अब वह तोतली बातों से घर भर को बहलाती रहती। जल्द ही उसका अपना भी बेटा हो गया, पर मधु के नेहा के प्रति प्यार में कोई कमी नहीं आई। वह उसे रोज़ स्कूल छोड़ने जाती और स्कूल से लेकर ही आती। उसकी हर ज़रूरत का ध्यान रखती ।एक दिन उसे निहाल ने बताया कि उसकी दूर की एक बुआजी जो हरिद्वार में रहती थी, उनसे मिलने आ रही हैं। उन्हें निहाल के साथ हुए हादसे के बारे में कुछ भी पता न था। मधु ने ये सुना तो कुछ सहम सी गयी कि न जाने वे क्या कहेंगी, कैसा व्यवहार करेंगी उसे कुसुम की जगह पर देख कर, पता नहीं बच्चों के सामने ही कुछ न कह दें। इसी उहापोह में सांझ हो गयी।

उसने जल्दी से घर का काम निपटाया और रात का खाना बनाने में जुट गयी।सांझ हो चुकी थी। दरवाजे की घंटी सुन उसका दिल जोरों से धड़कने लगा उसने अपना पल्लू सही किया और दरवाज़ा खोला। सामने निहाल के साथ एक अधेड़ उम्र की महिला खड़ी थी, माथे पर बड़ी सी बिंदी, सीधे पल्लू की साड़ी पहने थी और शायद मूंह में पान भी चबा रही थी। मधु को सामने देख उन्होंने प्रश्न भरी निगाहों से निहाल की ओर देखा। निहाल ने उन्हें रास्ते में ही कुसुम के हादसे के बारे में बता दिया था, पर अपने दूसरे विवाह के बारे में अभी नहीं बताया था। जब मधु ने उनके पैर छुए तो वह उनसे बोले, बुआजी यह मधु है मेरी पत्नी, और ये रहे आपके पोता- पोती नेहा और मधुर ।

इतना सुनना था कि बुआजी ने जोर जोर से रोना शुरू कर दिया। उन्होंने नेहा को गोदी में उठा लिया और जोर जोर से कहने लगी, हाय रे नियति, इस छोटी सी बच्ची को सौतेली मां को सौप दिया। हे भगवान, अब क्या होगा इस बच्ची का। नेहा हैरान थी कि यह क्या हो रहा है। वह बुआजी से अपने को छुड़ा कर मधु से लिपट गयी। निहाल ने उन्हें बहुत समझाने की कोशिश की पर वे शांत ही न हो रही थी।

निहाल उन्हें किसी तरह से शांत कर कमरा में ले गया था। बच्चे भी सहमे हुए थे। आखिर नेहा मधु से पूछने लगी, मां, सौतेली मां क्या होती है ? मधु ने उसे सीने से लगा लिया और बेतहाशा चूमते हुए कहने लगी, मां बस मां ही होती है जैसे मैं हूं तुम्हारी।

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