Hindi Kahani: नन्दनी उत्तर प्रदेश के एक बहुत छोटे से गाँव में रहती थी। इस गाँव के आसपास बहुत से शहर बसे थे। पर गाँव की स्थिति बहुत ही खराब थी। खासतौर से औरतों और लड़कियों की।
गाँव में लड़कियों के लिए केवल आठवीं कक्षा तक का ही एक सरकारी स्कूल था। उसके बाद उन्हें दस किलोमीटर दूर जाना पड़ता था आगे की पढ़ाई के लिए। इसलिए अधिकतर लड़कियांँ केवल आठवीं तक ही पढ़ पाती थीं। क्योंकि कोई भी माता पिता अपनी बच्ची को दस किलोमीटर दूर भेजने को तैयार नहीं होते थे।
लड़कों के लिए वहांँ बारहवीं तक के स्कूल उपलब्ध थे। जिससे सरकार की मंशा भी साफ स्पष्ट होती थी कि वह भी लड़कियों को आगे पढ़ाने- लिखाने में दिलचस्पी नहीं लेना चाहती थी।
अक्सर गाँव के लड़के लड़कियों का मज़ाक उड़ाते थे। उन्हें कोल्हू का बैल कहकर बुलाते थे। बेचारी लड़कियाँ चुपचाप यह सब सुनती रहती थीं। नन्दनी का दिमाग गर्म हो जाता था यह सब सुनकर।
“देखना, एक दिन इन सबको दिखा दूंगी कि कोल्हू का बैल क्या कर सकता है।” नन्दनी ने अपनी सहेलियों से कहा।
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“छोड़ ना नन्दू, हमारी किस्मत में यही लिखा है। तू इन लड़कों के मुंँह मत लगा कर। कल को कुछ ऊंच नीच हो गई तो इन लड़कों को कोई कुछ नहीं कहेगा, इल्ज़ाम हम पर ही आएगा।” नन्दनी की सहेली ने उसे समझाते हुए कहा।
“हम इनसे इतना डर कर क्यों रहते हैं सविता?” नंदनी ने गुस्से में कहा।
“क्योंकि हम लड़कियाँ हैं नन्दू। हम कुछ नहीं कर सकते। और तू जिसे सबक सिखाने की बात कर रही है वो कौन है तू जानती है ना?” सविता ने कहा।
“हुं…होगा वो सरपंच का पोता। पर गाँव तो हम सब का है। एक दिन सरपंच जी भी मानेंगे कि हम लड़कियाँ इन लड़कों से कम नहीं हैं।” नंदनी बोली।
कुछ माह बाद 2020 में कोरोनावायरस की महामारी घोषित हो गई। देखते ही देखते, शहरों के साथ – साथ यह बिमारी गाँव में भी फैलने लगी। नन्दनी का गांँव भी इससे अछूता नहीं रहा। गाँव के मर्द इस महामारी की चपेट में आ चुके। पर उस गाँव की तरफ किसी का ध्यान नहीं था। सरकार शहरों को बचाने में लगी हुई थी। गाँव की तरफ देखने की फुर्सत कहांँ थी।
हर रोज़ गाँव में मरीज़ों की संख्या बढ़ रही थी। छोटे-छोटे घरों में किसी को अलग रखने की सुविधा कहांँ से लाते? गांँव के हालात दिन पर दिन खराब होते जा रहे थे।
गाँव के सरपंच, मुखिया और अन्य लोग कुछ नहीं कर पा रहे थे। वो तो अपने परिवारों को बचाने में लगे हुए थे।
“बस अब और नहीं। ऐसे हम अपने लोगों को मरने के लिए नहीं छोड़ सकते। सरकार जब तक कुछ करेगी तब तक आधा गांँव इस महामारी की चपेट में आ चुका होगा।” नन्दनी ने कहा।
“पर हम कर ही क्या कर सकते हैं? सरपंच और मुखिया तो खुद के परिवार को बचाने में लगे हैं। वो तो गाँव के लोगों के घरों में झांक कर भी नहीं देख रहे।” सुमन बोली।
“ये जंग अब हमें लड़नी है। अपनों को बचाने की जंग। तुम सब मेरे साथ हो तो हाथ बढ़ाओ।” नन्दनी ने कमर कसते हुए कहा।
“हम सब साथ हैं” सबने एक साथ बोला।
सबसे पहले नन्दनी और उसकी सहेलियों ने मिलकर गाँव के अंदर आने वाले तीनों रास्तों को बंद कर दिया। उसके बाद घास-फूस , लकड़ियां और रस्सियों के इस्तेमाल से दो- तीन झोंपड़ियाँ बनाई। फिर घर-घर जाकर पुराने गद्दों का इंतज़ाम किया। उन्हें उन झोंपड़ियों में बिछा कर हर घर में इस वायरस से बिमार पड़े लोगों को वहाँ भेजा। जिससे उनकी बिमारी से उनके परिवार वाले चपेट में ना आएं।
गांँव में डॉक्टर भी उपलब्ध नहीं थे। तो नन्दनी ने इंटरनेट के ज़रिए इस बिमारी के आयुर्वेदिक इलाज ढूंढे। पर इन्हें वो अकेले नहीं बना सकते थे। इसके लिए नंदनी ने गाँव की औरतों के आगे गुहार लगाई।
“आप सब हमारा सहयोग करिए। इस बिमारी से लड़ने के लिए हमारे पास दवाएँ नहीं हैं, पर देसी इलाज से भी हम इस बिमारी से लड़ सकते हैं। क्या आप सब अपनों को बचाने की इस जंगल में हमारा साथ देंगी।” नंदनी ने उम्मीद से उनकी तरफ देखते हुए कहा।
“बिल्कुल नन्दू बिटिया! तुम इतना कर रही हो गाँव के लिए तो हम इतना सा ना कर सकते क्या?” इमरती ने दूसरी औरतों की तरफ देखते हुए कहा।
सभी ने एक स्वर में इमरती की बात का समर्थन करते हुए कहा, “हम सब तुम्हारे साथ हैं।”
सभी औरतों ने नंदनी के बताए नुस्खों के हिसाब से आयुर्वेदिक दवाएं बनानी शुरू कर दीं। उन दवाओं से मरीज़ सही हो रहे थे।
मरीजों की देखभाल के लिए सभी लड़कियों ने गाँव की अन्य औरतों के साथ मिलकर मास्क और दस्ताने तैयार किए। मरीजों की देखभाल करने के लिए सबने सुबह शाम की ड्यूटी निर्धारित की।
एक दिन सुमन भागती हुई आई, “अरे! सरपंच के पोते को वायरस ने जकड़ लिया है। विदेशी दवा भी काम नहीं कर रहीं।”
“हमें क्या करना है। सरपंच ने बुरे वक्त में कौन सा गाँव का साथ दिया जो हम उनकी या उनके परिवार की फिक्र करें।” सविता बोली।
“नहीं सविता, वो ग़लत है तो हम भी ग़लत बन जाएं क्या? नहीं। मैं अभी आती हूँ।” नंदनी ये बोल सरपंच के घर की तरफ चल पड़ी।
नंदनी को देखते ही सरपंच ने उसके आगे हाथ जोड़ते हुए कहा, “बिटिया बचा लो हमारे लल्ला को।”
“आप घबराएं मत सरपंच जी। ये लीजिए ये आयुर्वेदिक काढ़ा है और ये कुछ आयुर्वेदिक दवाएं हैं, आप समय पर इन्हें देते रहें। और हाँ, आपके घर में तो कमरों का अभाव नहीं है, अपने पोते को अलग कमरे में रखें। और जब भी उसके पास कोई भी जाए तो ये लीजिए, मास्क, ये पहन कर जाए। भगवान ने चाहा तो सब ठीक हो जाएगा।” नंदनी ने कहा।
सरपंच ने नंदनी के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा,
“तुम बहुत बड़े दिल की हो बिटिया। हमारे पोते ने तुम्हें बहुत परेशान किया पर फिर भी तुम उसकी जान बचाने आईं।”
“सरपंच जी, है तो वो भी हमारे गाँव का ही। जान कैसे ना बचाऊँ।” नंदनी ये कह चली गई।
दवाओं का अभाव था, पर सही खान-पान और उचित देखभाल से सब ठीक होने लगे। गांँव में किसी के ना आने से वायरस का फैलना भी रुक गया।
गाँव शहर से कट गया था। इसलिए ऑक्सीजन सिलेंडर की कमी पूरी नहीं हो पा रही थी।
खुद नंदनी के आग्रह पर गाँव के सरपंच ने सरकारी कर्मचारियों से बात की पर कोई मदद गाँव तक नहीं पहुँच पाई।
“कमाल है बिटिया, किसी को हमारे गाँव की पड़ी ही नहीं। सब शहरों को बचाने में लगे हुए हैं। कोई सोच ही नहीं रहा कि यहाँ भी इंसान रहते हैं।” सरपंच निराश हो बोले।
नंदनी ने उन्हें आश्वासन देते हुए कहा, “कोई बात नहीं सरपंच जी, हम अपने लोगों को खुद बचाने की कोशिश करेंगे। जितने बच जाएंगे, भगवान की हम पर मेहर ही होगी।”
कुछ बुज़ुर्गों और महिलाओं की मौत हुई। क्योंकि समय पर ऑक्सीजन सिलेंडर का इंतज़ाम नहीं था गाँव में। इसका मलाल नन्दनी और उसकी सभी सहेलियों को था। पर उनके बस में जितना था उन्होंने किया और अपने गाँव को कुछ महीनों बाद करोना मुक्त कर दिया।
आज गाँव के सरपंच ने सभी लड़कियों को उनकी समझदारी और बहादुरी से महामारी का सामना करने, और सभी गाँववसियों को इस महामारी की चपेट से बाहर निकालने के लिए पुरस्कार देने का आयोजन किया है।
मंच पर पहुँच सरपंच ने कहा, “नंदनी बिटिया और गाँव की हमारी अन्य छोरियों ने आज हम सबके प्राणों की रक्षा कर हमें नया जीवन दिया है। तारीफ के लिए शब्द नहीं हैं मेरे पास। नंदनी बिटिया ने सभी गाँव वालों को जिस तरह एकजुट करके इस महामारी से सामना करने की सीख दी वो सच में प्रशंसा के लायक है। आज हम गाँव की हर बिटिया के लिए दस हज़ार नकद राशि की घोषणा करते हैं। यह हमारी तरफ से उनके ब्याह के लिए उनके माता-पिता को भेंट। अब मैं नंदनी बिटिया को मंच पर बुलाना चाहूँगा। आओ, मंच पर आओ।”
पुरस्कार स्वीकार करने जब नन्दनी मंच पर पहुंची और सबको सम्बोधित करते हुए कहा,”मुझे खुशी है कि हम इस महामारी को हरा सके। सारे गाँव वालों के सहयोग से ही ये हो पाया। पर…इस महामारी ने हमारे बहुत से बुज़ुर्गो को हमसे छीन लिया। काश! हम उन्हें भी बचा पाते।
पर हम सबने एक सबक ज़रूर सीखा, कि एकजुट होकर हम बड़ी से बड़ी विपदा से भी लड़ सकते हैं।”
फिर वो सरपंच की तरफ देखकर बोली,
“सरपंच जी, यदि आप हमें पुरस्कृत करना ही चाहते हैं तो हमारे लिए गाँव में बारहवीं तक के विद्यालय खुलवा दीजिए। हम सब लड़कियाँ आपकी बहुत आभारी रहेंगी। हमें भी लड़कों की तरह पढ़ने का मौका दीजिए जिससे हम भी अपनी पहचान बना सकें। पढ़- लिख कर हम और सही तरीके से अपने गाँव की सेवा कर पाएँगी।”
सरपंच जी ने नन्दनी से वादा किया और उसे पूरा भी किया। आज गाँव में दो कन्या विद्यालय हैं जिसे धीरे -धीरे पक्का बनाया जा रहा है। गाँव की हर लड़की अब साक्षरता और उच्च शिक्षा की तरफ बढ़ रही है। अब सब लड़कियों के लिए एक नयी सुबह का आरंभ हो चुका है।
