Nadani Grehlakshmi Story: शांति भवन में वटसावित्री की पूजा की तैयारी जोर-शोर से चल रही थी। अवंतिका यह पूजा पहली बार ही करने वाली थी । तीन महीने पहले ही उसकी शादी हुई थी शांति देवी के छोटे बेटे नीलेश के साथ।
वैसे बचपन से ही वो अपने घर में मम्मी,भाभी और दीदी को हर साल वटसावित्री पूजा करते देखती तो उसके मन के एक कोने में भी इसी तरह जैसे सब सज-धज कर सुंदर-सुंदर नए कपड़े और गहने पहन कर सौलह शृंगार कर बरगद के पेड़ की टहनी को गमले में लगा पूजते हैं। पीले धागे से उसके चारों तरफ घूम घूम कर बांधते हैं, फिर जल चढ़ाना, नए बांस के पंखे से हवा करना और ढेर सारे फलों को चढ़ाना।
वो देखती थी कि काले चने और चने की दाल को भिगो कर उसकी मम्मी रात को ही रख देती थी, जिसे प्रसाद के साथ वट वृक्ष की डाली में चढ़ाती। दूध और धान की खील को नाग नागिन को चढ़ाती जो चावल के आटे से अरपन देकर बनाती थी।
पूजा का सभी समान लाने में वो मम्मी की मदद करती।वैसे आस-पड़ोस के लोग जब मंदिर के पास लगे बरगद के पेड़ की पूजा करने जाते तो वो भी मम्मी से पूछती, ‘आप सब वहां क्यों नहीं जाते हैं ? सबके साथ कितना मज़ा आएगा।’
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‘बिटिया हमारा तो घर ही मंदिर है , यहां बैठकर शांति से हम पूजा तो कर पाते हैं। वहां मंदिर में तो इतनी भीड़ होती है कि धक्का-मुक्की और चोरी की घटना आम बात है। ‘
भाभी उसे अक्सर चिढ़ाते हुए कहती
‘अच्छा आप जब बड़ी होंगी तो अपनी शादी के बाद जैसे मर्जी आए वैसे ही पूजा कीजिएगा। चलिए अभी तो हमें कथा सुनाईए।’
तीसरी कक्षा में ही थी तब से ही अवंतिका सति सावित्री वाली कहानी को अपनी किताब में से जोर-जोर से पढ़कर पूजा में बैठी अपनी मम्मी को सुनाया करती। कुछ साल बाद फिर जब उसकी बहन की शादी हो गई और जब वो मायके में रहती तो वो भी मम्मी के साथ सुहागनों वाली हर पूजा करती और फिर जब भाई की शादी हुई तो भाभी भी उसी तरह से अपने सुहाग की लंबी आयु के लिए पूजा किया करती।
सावित्री की कहानी तो मुंहजबानी याद हो गई थी अवंतिका को । किस तरह सावित्री अपने पति सत्यवान को यमराज से वापस ले आई और तीन वर भी मांग लिए, उसकी पतिव्रता से प्रसन्न हो गए थे यमराज।
कॉलेज के अंतिम वर्ष में वो अपनी ही क्लास में पढ़ने वाले रफीक के प्यार में ऐसी पागल हुई कि उसने उसके बहकावे में आकर अपने मम्मी-पापा को बिना कुछ बताए एक दिन अपना घर और वो शहर छोड़ दिया ।
अवंतिका घर से यह कहकर निकली कि सरकारी नौकरी के लिए होने वाली एस एस सी की परीक्षा देने जा रही है। जाते वक्त अपने पापा की अलमारी से पैसे और मम्मी के जेवर निकाल कर अपने बैग में रख लिए। वो पैसे और जेवर वैसे तो उसकी शादी के लिए ही जोड़ रहे थे उसके मम्मी पापा जो कि छह महीने बाद ही होने वाली थी।
उसने उस रिश्ते से कई बार इनकार करने की कोशिश की पर रफीक दूसरे धर्म का था और अभी पढ़ ही रहा था । किसी हाल में उसके परिवार वाले अवंतिका की शादी रफीक से करवाने के लिए तैयार नहीं होते।
वो देखने में जितना सीधा और भोला लगता था वैसा वो था नहीं। वो तो अपने आवारा दोस्तों की संगत में पूरी तरह बिगड़ गया था। वो मासूम लड़कियों को अपने प्यार के जाल में फंसाता और उन्हें अपने दोस्तों की मदद से देह व्यापार में धकेल देता।
अवंतिका को उसकी कई सहेलियों ने आगाह किया था कि इस लड़के से मिलना जुलना छोड़ दो यह तुम्हारे लिए ठीक नहीं है। अवंतिका को लगता यह सब उसकी किस्मत से जलतीं हैं जो इतना अच्छा लड़का जिसे देख पूरे कॉलेज की लड़कियों की धड़कनें बढ़ जाती हैं। हर कोई उससे दोस्ती करना चाहता है। वो मुझसे प्यार करता है और शादी करना चाहता है।
‘रफीक क्या हम यह ठीक कर रहें हैं?’ रफीक के साथ ट्रेन में बैठी अवंतिका ने पूछा।
‘क्या तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं है तो तुम अभी भी जा सकती है अपने घर वापस।’
‘ऐसी बात नहीं है मुझे खुद से ज्यादा तुम पर विश्वास है।’
उसके सीने से लगती हुई अवंतिका ने कहा ।
‘शादी मंदिर में करोगे ना मुझसे।’
‘नहीं ऐसा कैसे तुमने सोच लिया, शादी नहीं निकाह होगा हमारा और तुम्हें अपना धर्म बदलना होगा। उससे पहले अपने सुहाग को पाने के लिए कुछ परीक्षा देनी होगी।’ एक अजीब सी कुटिल मुस्कान बिखेरता हुआ रफीक बोला।
इतना सुनकर अवंतिका के पैरों तले जमीन खिसक गई। पहले क्यों नहीं सोचा यह सब। रफीक का बदला हुआ रूप देखकर दंग थी। घर वापसी का कोई रास्ता नहीं था।तभी उसके दोस्त जो ट्रेन के दूसरे डिब्बे में बैठे थे आ जाते हैं और रफीक से कहते हैं,
‘क्या भाईजान अकेले-अकेले सुहागरात मनाया जा रहा है। सारा मजा अकेले ही लूटोगे, कुछ तो हमारे लिए भी छोड़ दो।’
चलती ट्रेन में अवंतिका के साथ उसी का प्रेमी जिसके लिए उसने अपने माता-पिता को छोड़ा उसे अपने दोस्तों के साथ मिलकर नोच रहा था।
जिस सुहाग के वो सपने देखा करती वो इस तरह टूटेगा उसे खुद पर विश्वास नहीं हो रहा था।
सभी मूक दर्शक बने तमाशा देखते रहें, रफीक और उसके दोस्तों के पास चाकू और बंदूकें थी। कुछ दोस्तों ने आसपास बैठे सभी यात्रियों के मुंह और हाथ पैर बांध दिए थे।
‘मुझे छोड़ दो मुझे छोड़ दो… जाने दो…
रफीक तुम को तो मैं मन से अपना सुहाग मान चुकी थी और तुम…”
‘अरे! तभी ना सुहागरात मना रहा हूं तेरे साथ और अकेले नहीं अपने दोस्तों को दावत के लिए बुलाया है। तुम्हारी द्रौपदी के भी तो पांच पति थे तो तुम मेरे इन चारों दोस्तों को भी अपना पति ही मानों।’
‘तुम इस तरह हमारे धर्म ग्रंथों में लिखी बातों का मज़ाक़ नहीं बना सकते।’ अवंतिका चीख उठी थी।
अपनी उन भयावह यादों के भंवर में खोई अवंतिका की तंद्रा तब भंग हुई जब उसकी ननद उसके कमरे में आ उसे झकझोर रही थी, ‘भाभी कहां खोई है कब से मां आपको आवाज लगा रहीं हैं कि तैयार हो गई है तो पूजा के लिए जल्दी से नीचे आओ। रिश्तेदार और पड़ोस की महिलाएं भी आ गई हैं। मां का गुस्सा सातवें आकाश पर है। संभलकर ही नीचे आना। मुझे तो लगा शायद आप सो गई हैं।’
‘आती हूँ…’
कहकर अवंतिका ने आईने में खुद को देखा, माथे की बिंदी ठीक की , चेहरे पर आए बालों को पीछे कर क्लिप लगाया । ड्रेसिंग टेबल पर रखी अपनी सोने की चूड़ियां,पायल और कमरकस जो उसे बहुत पसंद था पहन छम छम आवाज के साथ सीढियां उतरती हुई आंगन में आ गई।
शांति देवी ने सभी औरतों के सामने उस पर तंज कसते हुए कहा आ गई छमकछलो कोठेवाली जैसी मटकते हुए। आज सुहागिनों वाली पूजा है और इसे अपने सजने धजने से ही फुर्सत नहीं है।
‘मांजी वो आपने ही तो कहा था आज अच्छे से तैयार होकर आना।’
‘हां पर कोठे से नीचे उतरोगी तुम तब ना अपने सुहाग की लंबी उम्र के लिए पूजा करोगी।
पता नहीं क्या तो देखा मेरे नीलेश ने तुममें जो उस… कोठे से उठाकर ले आया।’
इतनी औरतों के बीच में बार-बार जब कोठा और कोठेवाली शब्द का प्रयोग हो रहा था तो अवंतिका के भी सब्र का बांध टूट पड़ा।
‘मैं खुद तो नहीं आई, आपके बेटे ने आप सबकी रजामंदी के बाद ही मुझसे शादी की है।’
माहौल बिगड़ता देख पड़ोस की कमला जी अपनी कुर्सी से उठती है और दोनों को शांत करवाती है।
‘अरे! शांति तू तो बड़ी है फिर क्यों बच्चों जैसी अपनी नई बहू की पहली पूजा के दिन तमाशा कर रही है।
,,और नबकी बहू चल बैठ पूजा करने और मन लगाकर पूरे नियम के साथ वट सावित्री की पूजा कर अपने सुहाग की लंबी आयु के लिए।’
आंखों से झर झर आंसू बह रहे थे इस तरह जैसे वट वृक्ष के उस बोनसाई की तरह ही तो वो भी है और अपने आंसुओं से जल अर्पण कर रही है।
नादानी में उठाए हुए गलत कदम ने उसे गर्त में ला दिया था जहां से फिर नीलेश ने उसे बाहर निकाला और अपनी पत्नी बनाकर अपने घर ले आया।
शांति भी थोड़ी शांत हो गई थी जब नीलेश भी धोती कुर्ता पहन अवंतिका के साथ पूजा में बैठ गया। पूजा के बाद उसने नीलेश के पैर छुए और भगवान से प्रार्थना की मेरा सुहाग सदा बनाए रखना।
एक कोठेवाली की जिंदगी बदल दी सुहाग की निशानी सिंदुर ने।
हाँ पर यह भी सत्य है कि औरत ही औरत की दुश्मन होती है तभी तो शांति देवी को जब पता चला अवंतिका को एक कोठेवाली के चंगुल से आजाद कर के लाया था उसका बेटा। अपने बेटे की खुशी के खातिर तो वो शांत रहती पर अक्सर अपनी भड़ास निकाल ही दिया करती थी ऐसे पूजा पाठ के अवसर पर ही । उसका सुहाग यानी उसके पति के देहांत के बाद उसने अकेले ही अपने बच्चों को पढ़ाया लिखाया और फिर उनका विवाह किया। उस समय मात्र तीस साल की ही तो थी शांति,सबने उससे दूसरे विवाह के लिए कहा पर उसने साफ इंकार कर दिया।
धीरे-धीरे अवंतिका ने अपने व्यवहार से पति , सास और सबका मन जीत लिया और अपनी उस नादानी से सीख लेते हुए अपनी बेटी की परवरिश इस तरह की कि उसके कदम कभी फिसले ना। एक सहेली की तरह ही अपनी बेटी को समझती और जब उसने अपनी पसंद के लड़के से अपने मम्मी-पापा को मिलवाया तो सब कुछ देख सुन कर खूब धूमधाम से बेटी का विवाह कर दिया ।
