दहलीज पर खड़ी ख्वाहिशें-गृहलक्ष्मी की कहानियां: Hindi Kahani
Dahleej par khadi khwahise

प्रवाह अचानक उठ खड़ा हुआ “……तुम…..? अचानक……? कैसे हो..……? लंबे अरसे से हमारा संपर्क खत्म हो गया था………..।” “आंटी-अंकल कैसे है…….?और तुम्हारी बहने……? ”और ना जाने कितने अनगिनत सवाल थे जो प्रवाह लगातार करता जा रहा था । वेद मुस्कुरा रहा था । जब वह चुप हुआ तो वेद ने हंसते हुए कहा…..
“अरे यार बैठने के लिए भी नहीं कहोगे ?
प्रवाह होश में आया । वह अपनी कुर्सी से उठा और वेद को गले लगा लिया । उसके बाद उसे कुर्सी पर बैठाते हुए कहा……..
“तुम्हें देखकर मुझे आज कितनी खुशी हुई तुम सोच नहीं सकते ।”
मेरे साथ भी यही है प्रवाह । पुरानी यादें ताजा हो गई और उससे भी ज्यादा मुझे खुशी हो रही है तुम्हें इस डॉक्टर के रूप में देखकर । ” वेद ने प्रफुल्लित होकर कहा ।
प्रवाह ने फिर पूछा…….
“तुम्हें मेरे बारे में कैसे पता चला वेद ?”
“कल मेरे ऑफिस में तुम्हारे बारे में चर्चा चल रही थी कि शहर में एक नया बहुत ही अच्छा डॉक्टर आया है । जब मैंने तुम्हारा नाम सुना तो मुझे थोड़ी सी जिज्ञासा हुई । पता नहीं क्यों ऐसा लगा कि कहीं तुम ही तो नहीं हो और मैंने कौतूहलवश तुम्हारा पता पूछा और यहां चला आया । शायद हमारी दोस्ती ही मुझे यहां तक खींच लाई । ”
वेद ने हंसते हुए कहा ।
चेंबर में बैठे दोनों दोस्त बातों और यादों में इतने मशगूल हो गए कि उन्हें समय का ज्ञान ही ना रहा ।
कहते हैं बिना झंझावातों के जीवन का कोई अस्तित्व नहीं । इन झंझावातों से सभी को गुजरना पड़ता है । गुजरते तो सभी हैं किंतु अपने-अपने अंदाज में । जीवन का क्या…..? इन झंझावातों से सभी को झकझोरती आगे निकल जाती है और कभी पीछे मुड़कर नहीं देखती कि जिसे उसने झकझोरा है वह सांसे ले रहा है या उसने दम तोड़ दिया ।

वेद और प्रवाह की बचपन की बेमिसाल दोस्ती आइ.ए.फर्स्ट ईयर तक कायम रही । दोनों ने बचपन से ही डॉक्टर बनने का सपना पाल रखा था । दोनों का खेल ही डॉक्टर-डॉक्टर होता था । पेशेंट बनने को कोई तैयार नहीं होता था । दिन पर दिन यह सपना मजबूत होता चला गया।
“पापा मुझे मेडिकल कोचिंग के लिए बाहर भेज रहे हैं ।” उस दिन वेद ने बड़े ही उदास मन से यह खबर प्रवाह को सुनाया था । यह खबर सुनकर प्रवाह ने भी अपने पिता से वेद के साथ जाने की जिद की थी । किंतु प्रवाह के पिता ने इंकार कर दिया था । वेद चला तो गया किंतु मन का एक कोना प्रवाह के लिए सुना सा हो गया । समय चलता कहां है वह तो दौड़ता है । किंतु मानव इसे कहां समझ पाता है । जिसे जहां छोड़ता है उसे लगता है कि लौटकर आएगा तो उसे वह वही खड़ा मिलेगा । वेद ने भी प्रवाह के लिए कुछ ऐसा ही सोच कर अपने दिल को बहला लिया था…….
“प्रवाह और मेरी दोस्ती जीवन भर कायम रहेगी । प्रवाह तो मेरे शहर में ही रहता है जब भी आऊंगा उससे तो मिलूंगा ही ।”
वेद के पिता सरकारी विभाग में उच्च पद पर कार्यरत थे । तीन बहनों में वेद बड़ा और अकेला भाई था । किंतु प्रवाह के पिता एक प्राइवेट कंपनी में कार्यरत थे । प्रवाह की भी दो बहनें और एक भाई था । प्रभाव भी अपने भाई बहनों में सबसे बड़ा था । उसके पिता की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी । किसी तरह खींचतान कर गृहस्थी चल रही थी । किंतु बच्चों की पढ़ाई के खर्च में उन्होंने कभी कोई कमी नही होने दी । जब प्रवाह ने उन से बाहर जाने की बात कही थी तब उन्होंने यही कहा था …… ”
“मैं तुम्हें कोचिंग के पैसे दूंगा किंतु इसी शहर में रहकर करो । बहुत सारे अच्छे कोचिंग सेंटर यहां भी हैं । बाहर जाने पर खर्च दोगुना हो जाएगा बेटा ।”
तब चिट्ठियों का जमाना था । चिट्ठियों के द्वारा दोनों दोस्त में संपर्क बना रहा किंतु अचानक प्रवाह की चिट्ठी आनी बंद हो गई । बाद में वेद ने जब अपने पिता से मालूम किया तो पता चला कि पूरा परिवार शहर छोड़कर कहीं चला गया । वे लोग कहां गए यह भी नहीं पता चला । नदी के प्रचंड प्रवाह में अचानक कोई बांध बना दे ऐसा ही उस दिन वेद ने महसूस किया था ।
वेद ने जिस दिन मेडिकल में दाखिला लिया था शायद नियति को उस दिन हंसी आई होगी । पहला साल था । अचानक जिंदगी ने उसे दोराहे पर ला खड़ा किया । पिता की हार्टअटैक से अचानक मृत्यु और पूरा परिवार का उसके कंधों पर आ जाना । बहने छोटी थी घर-गृहस्थी उनकी पढ़ाई-लिखाई और वेद के मेडिकल का खर्च…..पिता के पेंशन से नहीं हो पाता था । किसी तरह वेद इसे खींचतान कर आगे बढ़ा रहा था किंतु नियति को यह भी मंजूर नहीं था । उसकी मां बीमार रहने लगी थी । पेंशन का एक बड़ा हिस्सा मां की बीमारी में चला जाता था । परिवार की स्थिति बिगड़ती चली गई । पिता की मृत्यु के बाद सरकारी क्वार्टर चले जाने से उन्हें किराए पर मकान लेना पड़ा । वेद के लिए यह सब असहनीय होता जा रहा था । और एक रात……… मां की बीमारी का इलाज , बहनों की पढ़ाई-लिखाई , उसका स्वयं का मेडिकल का खर्च , मकान का किराया और भविष्य में बहनों की शादी..…….
यह सोच कर वेद कांप उठा । दूसरे दिन उसने घोषणा की कि वह मेडिकल की पढ़ाई छोड़ रहा है ।
वेद ने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा । पिता का चूंकि नौकरी में रहते देहांत हुआ था इस कारण उसने उनके विभाग में हीं नौकरी के लिए अप्लाई किया था। वेद ने आइ. ए. करने के बाद ही कोचिंग ज्वाइन किया था । इसलिए उसके पास सिर्फ आइ .ए. की हीं डिग्री थी । इस कारण उसे अपने पिता के विभाग मे डिग्री के अभाव के कारण बहुत छोटी सी नौकरी मिली । वेद ने अपने कैरियर को परिवार में झोंक दिया ।
वेद और प्रवाह आमने-सामने बैठे थे । वेद की कहानी सुनकर प्रवाह बिल्कुल चुप हो गया । वेद ने चुप्पी तोड़ी …..….
“प्रवाह तुमने इस मुकाम पर पहुंचकर जीवन का जंग जीत लिया ।”
प्रवाह थोड़ा मुस्कुराया फिर पूछा……
“और तुम्हारी शादी ..?”
“मां की जिद के सामने मैं विवश हो गया । विवाह करना पड़ा । मैं उन्हें दुखी नहीं देख सकता था । पत्नी भी छोटी सी नौकरी करती है । दोनों मिलकर गृहस्थी की गाड़ी को खींच लेते हैं । कोई समस्या नहीं है । समय को देखते हुए मैंने अपने आकाश को छोटा कर लिया ।”
कहकर वेद ने एक लंबी सांस ली । फिर अचानक जैसे उसे कुछ याद आया और उसने चौंकते हुए प्रवाह से पूछा…..
“अरे ! तुमने तो अपने बारे में कुछ भी नहीं बताया और मुझसे लगातार सवाल करते जा रहे हो । अपनी सुनाओ । तुम कैसे इस मुकाम पर पहुंचे ? विवाह किया या नहीं ? माता-पिता , भाई और बहनें सभी कैसे हैं ? सालों पहले तुम लोग शहर छोड़कर चले गए उसके बाद कोई संपर्क ही नहीं हो पाया । मुझे तुमसे शिकायत है प्रवाह मैं तुम लोगों के बारे में नहीं जानता था लेकिन तुम तो मेरे बारे में जानते थे कि मैं कहां हूं । तुमने मुझसे भी संपर्क तोड़ लिया ।
प्रवाह की आंखें शून्य को निहार रही थीं । अचानक गंभीर आवाज में उसने फिर पूछा……
“वेद तुम्हें जीवन कैसा लगता है ? क्या मन में संतोष है ? रात को नींद आती है ? ”
वेद चौंक पड़ा किंतु स्वयं को संयत करते हुए उसने कहा…. “प्रवाह मेरे मन में आज भी एक टीस रहती है । यदि कुछ साल मुझे परिवार से छुटकारा मिला होता , पारिवारिक जिम्मेदारियां ना मिली होती तो शायद मेरा आकाश भी बड़ा होता । मेरा सपना पूरा हो जाता । किंतु मन में एक संतोष जरूर है कि मैंने अपने परिवार को बिखरने नहीं दिया । मेरा परिवार सड़क पर नहीं आया । आज मेरी सारी बहनें सुखी और संपन्न हैं । मां का स्वास्थ्य अब ठीक रहता है । जहां तक नींद का सवाल है इतना थक जाता हूं कि कुछ सोचने का वक्त ही नहीं मिलता । ”
यकायक वेद यह कह कर चुप हो गया और उसने गुस्सा करते हुए कहा…..
“प्रवाह अपने बारे में भी कुछ बताओगे या सिर्फ मुझसे ही सवाल करते रहोगे । ”
प्रवाह ने सूनी आंखों से वेद को निहारते हुए कहा..…
“क्या बताऊं वेद मैंने स्वार्थी बनकर अपने परिवार से छुटकारा ले लिया । मन के भीतर तूफान चलता है…….भीतर बहुत अशांति है…….अब तक अविवाहित हूं और मुझे परिवार के बारे में सोंचकर नींद नहीं आती है । मैंने अपने परिवार से तो छुटकारा पा लिया किंतु मन की पीड़ा से छुटकारा नहीं पा रहा हूं । ”
और उसके बाद प्रवाह ने जो अपनी आपबीती सुनाई तो वेद भौंचक्का रह गया ।
अपने शहर में ही कोचिंग करने के बाद प्रवाह को जब मेडिकल में सफलता नहीं मिली तो उसने जिद पकड़ लिया दूसरे शहर में कोचिंग करने के लिए । उसकी जिद के सामने पिता झुक गए । उन्होंने अपनी पुरानी नौकरी छोड़कर दूसरी नौकरी के लिए अप्लाई किया जो दूसरे शहर में था । थोड़ा सा ज्यादा पैसा मिलता था किंतु काम उनकी क्षमता से ज्यादा था । पूरे परिवार को लेकर वह दूसरे शहर में चले गए । लेकिन समस्या का समाधान नहीं हो पाया क्योंकि इतने पैसे में भी उनकी गृहस्थी नहीं चल पा रही थी । इसी कारण से उन्होंने बहुत सारा कर्ज ले लिया । उसके बाद प्रवाह का मेडिकल में सफलता मिलना और फिर पांच साल की पढ़ाई ने पिता के ऊपर कर्ज का बोझ डाल दिया । परिवार चलाना और कर्ज चुकाना यह दोनों उनकी छोटी सी कमाई से नहीं हो पाया । इसके कारण बाकी तीनों बच्चों की पढ़ाई बाधित होने लगी । मानसिक तनाव और अत्यधिक काम के कारण प्रवाह के पिता बीमार रहने लगे । उनकी कार्यक्षमता क्षीण होने लगी । कर्ज इतना बढ़ गया कि बाकी बच्चों की पढ़ाई रुक गई । लेकिन प्रवाह ने परिवार की सुध नहीं ली । अंत में मां ,भाई और बहनें , पिता की मदद के लिए छोटे-छोटे कार्य करके पैसे कमाने लगे । इस आस में कि प्रवाह डॉक्टर बन जाएगा तो परिवार की समस्या ठीक हो जाएगी । किंतु समय बहुत निकल गया । जब तक प्रवाह डॉक्टर बना माता-पिता ने दुनिया छोड़ दिया । मानसिक तनाव के कारण माता-पिता का बीमार पड़ना और पैसों के अभाव के कारण समय पर उनका इलाज ना होना उनकी मौत का कारण बना । छोटे भाई ने माता-पिता का उत्तरदायित्व संभाला । उसने अपनी छोटी सी नौकरी सेे जीवन को आगे बढ़ाया । बहनों की पढ़ाई-लिखाई तो नहीं हो पाई किंतु छोटे परिवारों में उनका विवाह कर दिया । ना बहनें ना भाई कोई भी आज सुखी संपन्न नहीं है । प्रवाह के स्वार्थीपन से उसके भाई बहनों ने उससे संपर्क तोड़ लिया था ।

वेद और प्रवाह आज फिर से आमने-सामने बैठे थे । लंबे समय तक चुप रहने के बाद वेद ने बोलना शुरू किया…….
“प्रवाह मै नहीं जानता कि हमारे सपने गलत थे या फिर यह नियति का खेल था । नियति के सामने हम सब बौने हैं । हमारी चाहते कुछ होती है लेकिन भाग्य हमें कहीं और ले जाता है । मैं भी परिवार से कुछ साल के लिए छुटकारा चाहता था और तुम भी । हम छुटकारा अपने सपनों को पूरा करने के लिए चाहते थे । लेकिन मुझे जिंदगी के इस मोड़ पर आकर यह लगता है कि हमारे सपने इतने बड़े ना हो जाए कि हम अपने आसपास के लोगों को कुचल डालें । सपने जरूर देखना चाहिए उसके लिए प्रचंड संघर्ष भी होने चाहिए किंतु आसपास की जिंदगी को मौत में ना बदलते हुए ।”
कहते हुए वेद थोड़ी देर के लिए चुप हो गया । प्रवाह की आंखों में आंसू थे ।
वेद ने फिर कहा…..
“मेरे मन में आज भी एक तकलीफ ….एक टीस…. जरूर है कि मैं डॉक्टर नहीं बन सका लेकिन मैं ग्लानि और पीड़ा में नहीं जी रहा हूं । जब अपनी बहनों के मुख पर मैं हंसी देखता हूं तो अपने को हारा हुआ महसूस नहीं करता । मन में एक संतोष है की मैंने अपना जीवन अपने परिवार को दिया । हां ! प्रवाह….तुम स्वार्थी बन गए थे । तुम अपने भाई बहनों का बचपन तो नहीं लौटा सकते ना हीं अपने माता-पिता को लौटा सकते हो । इतना जरूर कर सकते हो कि जो जिद तुमने मेडिकल की पढ़ाई के लिए की थी उसी ज़िद को फिर से अपनाकर अपने भाई-बहनों से संपर्क करके उनके जीवन में खुशियां ला सकते हो तो ले आओ । ”
कहते हुए वेद प्रवाह के चेंबर से बाहर निकल गया ।
प्रवाह के अश्रुपूर्ण आंखों में एक क्षीण सी चमक आई थी । चेहरे पर एक दृढ़ता दिखी , शायद उसने कोई संकल्प लिया था…… कुछ जिद करने की ठानी थी ……..।

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