भारत कथा माला
उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़ साधुओं और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं
Crow Story: उड़ियान का राजा बहुत परेशान था। वह जो भी फसल लगवाता, उसके पकने पर कौए आकर उन्हें नष्ट कर देते। सोच-विचारकर उसने एक उपाय निकाला। राजा ने फसलों की सुरक्षा के लिए खेतों के चारों ओर चार कौआ हाँकनी लगवा दीं। फसलों पर हमला करने वाले काऊ कौआ हाँकिनियों को रखवाला समझ कर खेतों से दूर रहने लगे।
एक दिन भगवान निगादेव और गौरा विभिन्न लोकों का भ्रमण करते हुए उसी देश जा पहुँचे। पार्वती जी की दृष्टि उस कौआ हाँकिनियों पर पड़ी। उन्होंने भगवान से पूछा ये कौन हैं? शंकर जी ने बताया कि वे कौओं को दूर रखकर फसलों की रक्षा करने के लिए बनाई गई कौआ हाँकिनियाँ हैं। पार्वती मैया को हवा के झकोरों के साथ हिलती-डुलती उन कौआ हाँकिनियों पर दया आई कि जीवित मनुष्यों का पेट भरने के लिए दिन-रात धूप-बरसात सहने वाली कौआ हाँकिनियाँ खुद बेजान हैं। यह सरासर अन्याय है। ममतावश माँ पार्वती ने भोले शंकर से प्रार्थना की कि वे कौआ हाँकिनियों में प्राण डाल दें। शंकर जी ने सोचा कि मैया की बात न मानने पर वे रुष्ट हो जाएँगी और तब उन्हें मनाना कठिन होगा। इसलिए उन्होंने उन कौआ हाँकिनियों में जान डाल दी। उनमें से आधे स्त्री और आधे पुरुष हो गए।
जीवित होने पर कौआ हाँकिनियों को भूख-प्यास सताने लगी। उन्हें रहने के लिए स्थान की जरूरत हुई। तब वे राजा के पास गई और पूरी घटना कह सुनाई। राज ने उनसे कहा कि जब भगवान निंगादेव ने ही उनको धरती पर जीवित कर दिया है तो वे धरती पुत्र हैं। धरती पर मनुष्य समाज की व्यवस्था के अनुसार उनकी जाति निर्धारित हो ताकि वे जाति के अनुसार काम कर पेट भर सकें। राजा के कहने पर वे कौआ हाँकिनियाँ भगवान शंकर के पास गईं। तब तक शंकर जी पार्वती जी के साथ दूर अन्य देश की ओर चले गए थे। मरता क्या न करता। लोगों से पूछ-ताछ करते हुए कौआ हाँकिनियाँ तेजी से आगे बढ़ते हुए शाम तक शंकर जी के पास पहुँचकर ही दम लिया। शंकर जी के पूछने पर कौआ हाँकिनियों ने अपनी परेशानी बताते हुए अपनी जाति पूछी। शंकर जी ने कहा कि तुम्हारे हवा में हिलने-डुलने से आकर्षित होकर पार्वती जी ने तुममें जान डलवाई है, इसलिए तुम्हारी जाति ‘हल्बा’ है। पार्वती जी बोली कि तुम जगत की रक्षा करते रहे हो और जगत्पिता शंकर जी ने तुमको जीवित किया है, इसलिए तुम जगन्नाथपुरी के राजा की सेवा करोगे। अपनी जाति और काम का निर्धारण हो जाने पर कौआ हाँकिनियों के जोडे जगन्नाथपुरी के राजा की सेवा में चले गए।
एक बार जगन्नाथपुरी के राजा के एक संबंधी को किसी दुराचरण के कारण कुष्ठ रोग हो गया। राजा के पास आकर उसने अपनी व्यथा-कथा कही। राजा ने शंकर जी कृपा प्राप्त हल्बा (कौआ हाँकिनियों) जाति के मुखिया को बुलाया। राजा के संबंधी हल्बा मुखिया के साथ राजा सिहावा के जंगल में स्थित पवित्र कुंड के निकट निवास कर कुंड में नित्य स्नान तथा शिवाराधना कर कुष्ठ रोग से मुक्त हो गए और वहीं बस गए। हल्बा जाति के लोग जगन्नाथपुरी से पश्चिम दिशा में आकर राजा सिहावा होते हुए दंडकारण्य के घने जंगलों में बस गए। अब भी सिहावा के मंदिरों के पुजारी हलबा जाति से ही होते हैं। कांकेर के रहा का कपड़दार तथा अन्य महत्वपूर्ण पदाधिकारी हल्बा होते हैं। बस्तर नरेश के अंगरक्षक भी हल्बा ही होते रहे।
भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’
