Bharat Katha Mala
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भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

सोनू, शीना और रमा तीन बहनें थीं। सबसे छोटी सोनू स्वभाव से ही बड़ी मस्त और सबको हंसते-हंसाते रहने वाली लड़की थी। उसे बचपन से ही सबको अप्रैल फूल बनाने में बड़ा मज़ा आता था। वह ऐसी कोई ना कोई युक्ति सोच ही लेती थी जिससे किसी को संदेह भी नहीं होता था।

सबसे बड़ी बहन रमा की शादी उसी शहर में हो गई थी। इस बार सोनू ने अपने दीदी और जीजाजी को शिकार यानी अप्रैल फूल बनाने की बात सोची। उन दिनों मोबाइल फोन नहीं होते थे। किसी के घर लैंडलाइन होना ही बड़ी बात थी। सोनू के घर फोन नहीं था। उसने पड़ोस के वकील अंकल के घर जाकर जीजा जी को फोन करने की सोची। उसने शीना को भी अपने साथ मिला लिया। शीना और सोनू ने वकील अंकल के घर जाकर जीजा जी को फोन किया और जैसे ही जीजा जी ने फोन उठाया, शीना हड़बड़ाती हुई आवाज़ में बोली “जीजू, सोनू का एक ट्रक से एक्सीडेंट हो गया है। वह साईकिल से ट्यूशन से वापस आ रही थी और एक ट्रक ने उसे पीछे से धक्का मार दिया।” यह सुनते ही जीजा जी ने घबराकर पूछा “अब कैसी है सोनू, उसके कहीं चोट तो नहीं लगी?” तभी शीना ने कोई जवाब दिए बिना थोड़ी सुबकियां लेते हुए फोन काट दिया।

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फोन रखते ही सोनू और शीना दोनों ठहाका मारकर हंसने लगे और अपने घर वापस आ गए। मां-पापा को उन्होंने इस बात की भनक तक नहीं लगने दी थी अन्यथा वह ये सब उन्हें करने ही नहीं देते। उधर जीजा जी ने अपने भतीजे को स्कूटर पर बिठाया और सोनू के घर की तरफ स्कूटर दौड़ा दिया। रमा दीदी ने भी साथ चलने की ज़िद की परंतु स्कूटर से तीन लोगों का जाना नामुमकिन था और जीजा जी को अपने भतीजे को ले जाना इसलिए ज्यादा ज़रूरी लगा कि पता नहीं क्या परिस्थिति हो तो इधर-उधर भागने के लिए एक और आदमी का होना ज़रूरी था। वे थोड़ी देर में सोनू के घर पहुंच गए। उन्हें इस तरह से हड़बड़ाया हुआ देखकर सोनू और शीना एक विजेता की तरह कूद-कूद कर “अप्रैल-फूल, अप्रैल-फूल” चिल्लाने लगे। सोनू को सही सलामत देख कर जीजा जी ने गहरी सांस ली। उनकी आंखों में आंसू आ गए और धीरे से पास पड़ी हुई कुर्सी पर बैठते हुए बोले, “सोनू, ऐसे अप्रैल फूल कभी मत बनाना। तुम्हें नहीं पता कि आज पांच किलोमीटर की दूरी मुझे पांच सौ किलोमीटर लग रही थी। मुझे नहीं याद कि आज से ज्यादा स्पीड में मैंने कभी स्कूटर चलाया हो। मुझे कुछ नहीं दिख रहा था, ना सूझ रहा था। बस ट्रक के घूमते पहिए और तेरा चेहरा…।”

वह अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाए थे कि दरवाज़े की घंटी बजी। सोनू ने जैसे ही दरवाज़ा खोला, सामने रमा दीदी बदहवास-सी खड़ी दिखाई दीं। सोनू को दरवाज़े पर खड़े देख, उन्होंने उसे एक ज़ोरदार चांटा लगाया और फिर कसकर गले से लिपट कर रोने लगी। अब तो सोनू की भी आंखों से आंसू छलकने लगे थे। दीदी रोते-रोते कह रही थी “बेटा ऐसा मज़ाक कभी किसी के साथ मत करना। भगवान ना करे कि किसी अपने को चोट पहुंचने का दर्द किसी को भी कभी महसूस करना पड़े। किसी के जज़्बातों के साथ कभी नहीं खेलना।”

उस दिन सोनू को एहसास हुआ कि मज़ाक ऐसा करना चाहिए जिससे किसी को क्षति ना पहुंचे और किसी का भी दिल ना दुखे। दुर्घटना या मृत्यु को कभी भी हंसी मज़ाक का विषय नहीं बनाना चाहिए। क्योंकि इनकी कल्पना मात्र से ही दिल दहल उठता है और अपनों के लिए अपनों के बारे में ऐसा कुछ भी सुनकर एक-एक पल काटना पहाड़ की तरह बोझिल हो जाता है। बचपन की इस सीख को सोनू ने उम्रभर के लिए गांठ बांध लिया और कभी भी किसी के भी दिल को ना दुखाने का प्रण लिया।

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’

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