नन्हा सोनू-गृहलक्ष्मी की कहानियां
Nanha Sonu

Hindi Story: “मां प्लीज़ मुझे हॉस्पिटल मत भेजो। वहां जो भी जाता है वो वापस लौट कर नहीं आता है।”
आरुषि अपने दोनों हाथ जोड़कर अपनी सास मधुलिका से विनती कर रही थी।

‘कैसी बात कर रही है बिटिया?
तुझे सिर्फ सर्दी खांसी बुखार ही रहता तो नहीं भेजते हॉस्पिटल। घर पर ही डॉक्टर से पूछकर दवाई दे देते, पर तेरी सांस अटक रही है। पल्स रेट गिरता जा रहा है, जल्द हॉस्पिटल नहीं ले गए तो मुश्किल हो जाएगी। तेरा छोटा सा बच्चा है तुझे जल्दी ठीक होना है नन्हें सोनू के लिए, और हम सबके लिए।’

कोविड की दूसरी लहर ने देश में तबाही मचाई हुई थी। बीमारी तेजी से अपने पैर पसार रही थी।

पच्चीस वर्षीय आरुषी जो गंभीर रूप से बीमार थी उसे दस दिन से सर्दी खांसी बुखार तो था ही, अब शरीर में ऑक्सीजन लेवल भी बहुत कम हो गया था जिससे उसे सांस लेने में दिक्कत हो रही थी।

वो लगातार न्यूज़ में देख रही थी किस तरह लोगों की मौत हो रही थी। हॉस्पिटल में भी इस बीमारी का ईलाज ठीक से नहीं हो पा रहा था। मृतकों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही थी।
सभी डॉक्टर्स अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे थे मरीजों को बचाने की ।

मरीजों का ईलाज करते हुए कई डॉक्टरों की भी मौत हो रही थी। बीमारी से ज्यादा दहशत से लोग मर रहे थे। एक डॉक्टर की पत्नी होते हुए भी उसे बार-बार यही लग रहा था कि उसका बचना मुश्किल है।
जब कि उनके परिवार ने कोविड के शुरुआती दिनों से ही पूरी सावधानी बरतनी शुरू कर दी थी।

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जबलपुर के रामेश्वर यादव के परिवार का हाल बुरा था। उनके परिवार में वो और उनकी बहू आरुषि कोरोना पीड़ित हो गए थे।

उनकी पत्नी मधुलिका यादव अपनी बहू आरुषि को बेटी की तरह ही मानती थी।

आरुषि का दो साल का बेटा सोनू अपनी मां के पास दस दिन से नहीं जा पा रहा था तो मधुलिका उसे अपने ममतामई आंचल में छुपाए रखती। उसे ढेरों कहानी सुनाती । घर में सकारात्मक माहौल बना रहे उसका पूरा ध्यान रखती। अपने पति और बहू दोनों का पूरा ध्यान रख रही थी। समय पर दवाईयां नाश्ता खाना किसी चीज में कोई कमी नहीं रख रहीं थीं।

सोनू मम्मा पास जाना है कि जिद्द जब करता तो वो भी उसके साथ रोती। कितनी मजबूर हो गई थी मधुलिका एक तरफ पति बीमार और दूसरी तरफ बहू जिंदगी मौत के बीच संघर्ष कर रही थी।

उनकी इकलौती संतान रुपेश ने तीन साल पहले ही प्रेम विवाह किया था। आरुषि बहुत ही प्यारी लगी थी पहली ही नज़र में मधुलिका को। एक बेटी की ख्वाहिश पूरी हो गई थी जब आरुषि शादी के बाद मधुलिका के घर आई।
दोनों सास बहू कम मां बेटी ज्यादा लगतीं थीं।

आरुषि को भी मां के आंचल की छाया मिल गई थी जिससे उसका बचपन मरहूम रहा था। उसको जन्म देते ही उसकी मां भगवान को प्यारी हो गई थी। अपनी नानी से यही सुनती आई थी वो कि उसकी मां भगवान जी के पास चली गई हैं।
मधुलिका में उसको उसकी मां ही दिखती।

जहां मधुलिका को लेखन पठन का शौक था, वहीं आरुषि को आजकल के बच्चों की तरह ही रील और विडियो बनाकर सोशल साइट्स पर अपलोड करने का शौक था ।

वो मधुलिका से भी हमेशा कहती थी, ‘ मां आप अपनी कहानियों को यूट्यूब पर अपलोड कीजिए, अपनी डायरियों से आजाद कीजिए दुनिया को सुनाईए।’

हंसमुख स्वभाव की जिंदादिल आरुषि कई दिनों से तकलीफ़ में थी पर फिर भी कोशिश करती अपने चेहरे पर मुस्कान बनाए रखने की।

मधुलिका अपने पति और बहू के ठीक होने की भगवान से प्रार्थना करती रहती। बेटा सिटी अस्पताल में डॉक्टर था। उसकी ड्यूटी कोविड वार्ड में ही लगी थी। कई कई दिन घर नहीं आ पाता था।

छोटा सा सोनू समझ ही नहीं पाता था कि सबको क्या हो गया है,बाबा उसे अब गोदी क्यों नहीं उठाते और उसकी मम्मी के पास उसे क्यों नहीं जाने दिया जाता था।
उसका खाना-पीना, नहाना-धोना, सुलाना-उठाना, खेलना -कूदना कहानी सुनाना और सारा काम अब मां ही क्यों करती थी। वो अपनी दादी मधुलिका को मां ही बोलता।

आरुषि की तबियत जब ज्यादा बिगड़ने लगी तब उसकी सास मधुलिका ने शहर के सबसे अच्छे हॉस्पिटल के लिए एम्बुलेंस को फोन किया।
आरुषि को जब पता चला वो अपने पलंग के पीछे छुप गई।

‘बिटिया जिद्द मत करो, घर में इलाज संभव नहीं है। तुम जल्द ठीक होकर आओगी तब ही तो अपने सोनू को संभालोगी। दस दिनों में ही इसने नाक में दम कर दिया है। अब इस उम्र में इसके पीछे मुझसे तो भागा नहीं जाता।’

” मां आप क्यों नहीं समझ रहीं, हॉस्पिटल से वापस नहीं आ पाऊंगी मैं यह मेरा मन कहता है। यहां हूं तो दूर से ही सही आप सबको देख रहीं हूं, अपने सोनू की आवाज सुन रहीं हूं।”

” बेटा इस तरह आइसोलेशन में रहने से तबियत ठीक होनी मुश्किल है। देखो पापा जी को भी दूसरे अस्पताल ले जा रहें हैं। ” आरुषि के कमरे के बाहर खड़ी मधुलिका उसे हॉस्पिटल जाने के लिए समझा रहीं थीं।

आरुषि को सांस लेने में दिक्कत हो रही थी, कपूर अजवायन लौंग सब कुछ मिलाकर एक पोटली बनाकर मधुलिका ने आरुषि को दी थी सूंघने के लिए
पर घरेलू इलाज से असर नहीं हो रहा था। आरुषि की आंखों से आंसू बह रहे थे। वो अपने बेटे सोनू को अपनी गोद में उठाकर जी भर कर चूमना चाहती थी। आंखों में ममता भर बड़ी हसरत से अपने बेटे को दूर से ही देख रही थी।

घर की चौखट पार करते वक्त उसने जमीन छूकर प्रणाम किया, वो इस घर से अंतिम विदा हो रही थी यह अनुभूति उसे हो गई थी।

छोटा सा सोनू मम्मा मम्मा मत जाओ चिल्ला रहा था। मधुलिका उसे बहलाने की कोशिश में लगी थी। वो मधुलिका की गोद से कूदते हुए अपनी मां के पास जाने लगा तो आरुषि ने उसे दूर से फ्लाइंग किस करते हुए कहा,
‘लव यू बेटा…..बेटा मम्मा के पास मत आना। मम्मा बीमार है ना । तुम दादी मां को कभी तंग मत करना हमेशा उनकी बात मानना। उनके आंचल में ढेर सारी खुशियां छुपी हैं वो सब तुम्हारे लिए हैं। तुम उन्हें मां कहते हो ना हमेशा मां के पास रहना।”

‘हां मम्मा मां अच्छी है। मुझे बहुत प्यार करती हैं। ढेर सारी चिजू भी देती हैं, कहानी भी सुनाती है पर मम्मा तुम कहां जा रही हो मुझे छोड़ कर। मत जाओ प्लीज़ रुक जाओ।’

मधुलिका की आंखें भर आईं थीं एक मां का अपने दो साल के बच्चे को समझाता देखकर और सोनू का मनुहार सुनकर।

‘प्रोमिस करो बेटा तुम मेरी बात मानोगे। मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूंगी। तुम मुझे आकाश में देख पाओगे जहां मेरी मम्मा रहतीं हैं।’

आरुषि को बोलने में दिक्कत होने लगी तो मधुलिका ने उसे शांत रहने का इशारा किया।

हॉस्पिटल जाते समय उसने अपना फोन अपने पास ही रखा। इलाज शुरू हो गया। रुपेश अपनी पत्नी को इस हालत में देखकर कांप रहा था। जिस डॉक्टर ने कई लोगों की जान बचाई थी वो खुद को असहाय महसूस कर रहा था।

रात को तबियत अचानक बहुत ज्यादा बिगड़ने लगी थी आरुषि की तब उसने अपना अंतिम विडियो बनाया जिसमें वो हॉस्पिटल के कोविड वार्ड के एक बिस्तर पर लेटी है, उसकी सांसें तेज चल रहीं हैं।

‘मैं अब जा रही है, अपने छोटे से बच्चे को छोड़कर।
जिस मां के आंचल में उसे अपनी मां का प्यार मिला उसी मां को सौंप कर वो अपनी जन्मदायिनी मां के पास जा रही हूं।
मां आप हैं तो मुझे सोनू की चिंता नहीं है पर रुपेश तुम्हारा साथ नहीं दे पाई मुझे माफ़ कर देना। ‘
उसकी सांसें उखड़ने से पहले उसने यह विडियो पोस्ट कर दिया था अपने इंस्टाग्राम और फेसबुक पर।

‘मां मम्मा कब आएंगी?’
रोज सोनू मधुलिका से पूछता। महीनों बीत गए कल कल करते।
रामेश्वर जी ठीक होकर अस्पताल से आ गए थे। आरुषि की मौत से परिवार पूरी तरह टूट गया था।

एक दिन अचानक फोन से खेलते वक्त सोनू ने आरुषि के उस विडियो को देख लिया। पहले तो अपनी मम्मा को देखकर खुशी से ताली बजाने लगा फिर मधुलिका के पास फोन लाकर बोला,
‘ मां मम्मा को आने बोलो। आप बड़े हो ना मम्मा से। वो आपकी सारी बात मानेगी।’

मधुलिका ने जो महीनों से आंसू रोके हुए थे, सोनू को छाती से लगा खूब रोई।

‘मां मम्मा मर गई क्या?’
इस सवाल का जवाब देने की हिम्मत नहीं थी मधुलिका में।

‘मां जो मर जाते हैं वो तारा बन जाते हैं ना आपने कहानी में सुनाया था ना!! तो क्या मम्मा भी तारा बन गई होंगी। चलो मम्मा को देखकर आते हैं।’

नन्हा सोनू मधुलिका की उंगली पकड़कर खुले आकाश के नीचे अपने आंगन में ले आया।
आकाश की तरफ उंगली करके बोला,’ मां बताओ ना इन तारों में से मेरी मम्मा कौन सी है।’

मधुलिका ने अपने आंचल से आंसू पोंछे और कहा,’ तुम चल कर देखो जो तारा सबसे चमकीला होगा और तुम्हारे साथ साथ चलेगा वही तुम्हारी मम्मा है। वो हमेशा तुम्हारे साथ चलेगी।’
नन्हा सोनू आंगन में दौड़ने लगा और थोड़ी थोड़ी देर में रुककर आकाश की तरफ देखता। सबसे चमकीले तारे की तरफ उंगली कर बोला, ‘ मां यह रहीं मम्मा।’

‘हां बेटा यही तुम्हारी मम्मा हैं।’
इतना कहकर मधुलिका ने सोनू को अपने आंचल में छुपा लिया। बेटे रुपेश ने दूसरी शादी करने से साफ इंकार कर दिया।
‘ मां आप ही इसकी मां हैं , सौतेली मां नहीं लाऊंगा अपने सोनू के लिए।’