Bharat Katha Mala
Bharat Katha Mala

भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

दोनों ही पति-पत्नी बेटे के कैरियर को लेकर बहुत महत्त्वाकांक्षी थे। अभी कुल पाँच साल का ही हुआ था उनका बेटा। शिखर नाम भी उसका उन्होंने रखा था। शिखर के घर में उसे कम्प्यूटर सिखाने के लिए एक शिक्षक आता था तो व्यक्तित्व विकास का प्रशिक्षण देने के लिए दूसरे शहर के नामी स्कूल में उसे प्रवेश दिलाया गया था… उसके कमरे में काफी महंगी विशेष चारपाई थी, जहाँ उसे अकेले सोने की आदत डलवाने की कोशिश की जा रही थी। इसके अलावा उसके कमरे में बढ़िया से बढ़िया खिलौने थे… कई तरह की कारें, जहाज, रोबोट और तकनीकी जानकारी बढ़ाने वाले तथा मस्तिष्क का विकास करने वाले खिलौने।

खिलौनों के साथ-साथ बच्चे का ज्ञानवर्धन करने के लिए तरह-तरह की तस्वीरों वाली पुस्तकें भी वहाँ थी। हाँ, एक चीज़ उन्होंने उसे लेकर नहीं दी थी… एक छोटी साईकिल। वह उनका इकलौता बेटा था, उन्होंने फैसला ही कर लिया था कि एक ही संतान काफी है। और परमात्मा की कृपा से पहला बेटा ही हो गया था। वह जानते थे कि एक से ज़्यादा बच्चे अर्थात भाई-बहन, चाहे कितने ही दौलतमंद परिवार से हों, आखिर उनमें वैमनस्य तो पैदा हो ही जाता है। यह मुकेश और अनिल अम्बानी को ही देख लो… आखिर लड़ ही पड़े ना। और ये गाँधी परिवार… तीज-त्योहारों में भी परिवार इकट्ठे नहीं होते… शादी-ब्याह में भी नहीं जाते… विरासत का मामला है… विरासत अच्छी हो या बुरी, विरासत तो विरासत होती है। अपने अकेले वारिस “शेखर” के लिए उन दोनों की बड़ी अपेक्षाएं थी… आम माता-पिता जैसी अपेक्षाएं नहीं, तभी तो उसे आस-पड़ोस के बच्चों तक से खेलने की मनाही थी। अधिकतर समय उसे कुछ न कुछ सिखाया जाता था। उस सिखलाई में यह शामिल नहीं था कि उसे बड़े होकर माता-पिता की सेवा करनी है। स्कूल में अध्यापकों का सम्मान करना है या फिर किसी आदर्श की स्थापना करनी है। उसके माता-पिता साधारण माता-पिता की तरह बुढ़ापे में उससे सेवा की अपेक्षा रखते ही नहीं थे। उनकी यह भी अपेक्षा नहीं थी कि बेटा पढ़-लिखकर हिन्दोस्तान में उन्हीं के पास रहे। वे ये भी नहीं चाहते थे कि बेटा उनकी पसंद की बहू लाये। वे चाहते थे…

शिखर बड़ा होकर अम्बानी बंधुओं, लक्ष्मी मित्तल, बिल गेट्स से भी ज्यादा पैसा कमाये। उनका बेटा बड़ा होकर दुनिया का सबसे अमीर…अमीर… अमीर आदमी बने। वह किसी बड़ी बहुदेशीय कम्पनी का मालिक बने।

वे परस्पर बेटे के बारे में बातें करते हैं- “उसे कुछ ऐसा बनना होगा कि दुनिया उसे जाने।”

“उसे कुछ ऐसा बनना होगा कि मीडिया पर छा जाये।”

“कुछ ऐसा भी बन सकता है कि लोग उसके नाम से थरथराएं।”

“पैसा इस तरह के कामों में भी होता है।”

“पैसेवालों की तो इज़्ज़त भी होती है, फिर पैसा चाहे कहीं से भी आए।”

“पैसे वाले तो सरकार चलाते हैं।”

“पैसे वालों के लिए कोई कानून नहीं होता।”

“कानून तो उनकी मुट्ठी में होता है।”

“अगर वह कारोबारी न बन पाया तो?”

“उसे कुछ बनना होगा, दुनिया का एक बड़ा नाम… चाहे दाऊद इब्राहिम ही, ओसामा बिन लादेन या फिर अमिताभ, सलमान, शाहरुख और दिलीप कुमार से भी अधिक छा जानेवाला अभिनेता। बस उसे दौलतमंद होना चाहिए, मीडिया की सुर्खियां होनी चाहिए।” सेवा भाव नहीं, देशभक्ति नहीं, नैतिकता नहीं, संवेदना नहीं… पैसा और नाम… यही है उनकी अपेक्षा। बच्चा अनमना है… बच्चा उदास है… वह अपनी सुन्दर कोठी के जंगलेनुमा गेट के पास खड़ा देख रहा है…

सामने पार्क है… आसपास की कोठियों के बच्चे शाम को कुछ समय के लिए बाहर निकल आते हैं। कुछ बच्चे क्रिकेट खेलते हैं तो कुछ अन्य खेल। कुछ बच्चों को नौकरानियाँ सिर्फ घुमाती हैं। कुछ बच्चे ऐसे भी हैं जो छोटी साईकिलें चला रहे हैं, दौड़ रहे हैं, साईकिलें, चलाते हुए वे अपनी साइकिलों को एक-दूसरी से भिड़ा भी रहे हैं… लेकिन यह सिर्फ खेल है इसलिए वे हँस रहे हैं।

बालमन की कहानियां
Bharat Katha Mala Book

बच्चा अनमना है, उदास है लेकिन अचानक बाहर के बच्चों को हँसता देख ताली बजाता है। और हँसता है। बाहर वाले बच्चे उसे बुलाते हैं, वह लॉन में कुर्सी पर बैठी माँ से कहता है… मॉ…मा, और बाहर की तरफ़ इशारा करता है… “वाण्ट टू गो।” उसे हिन्दी नहीं आती, सिखाई नहीं गयी है।

माँ मना करती है, “नहीं।”

वह माँ के पास आता है… चिल्लाता है……

“वाण्ट टू गो।”

“नो, डोण्ट बी सिली” मॉम डाँटती है। वह ज़ोर से रोता है और बोलता है- “साईकिल”

“ओह गॉड!” मॉम चीखती है, “साईकिल, यू वाण्ट टू हैव अ साईकिल! डोण्ट थिंक सो लाइक अ कॉमन मैन, थिंक लाइक अ वैरी-वैरी रिच परसन, थिंक फॉर कोस्टली कारज़, योर ओन एयर सर्विस, एयर बसिज।”

अचानक माँ जैसे इलहाम हुआ, बच्चे को डाँटना नहीं चाहिए था, प्यार से समझाना चाहिए था, बच्चे के व्यक्तित्व पर ग़लत प्रभाव पड़ेगा। उसने आया को कहा- “बच्चे की सबसे बढ़िया कार लाओ।”

कार आ गयी, शिखर ने कार को देखा, थोड़ी देर उसके पास खड़ा रहा, अचानक उसे पैर से ठोकर मारकर गुस्से में बोला

“नो, नो, नो, साईकिल।”

शिखर के पापा की आमद का संकेत पाकर गेट खुला, उनकी कार ने कम्पाउण्ड में प्रवेश किया। वे कार से उतरकर लॉन में आए और कुर्सी पर बैठ गये। मॉम ने इशारे से दिखाया…

शिखर अनमना था!

शिखर उदास था!

शिखर ज़िद कर रहा था, कार नहीं, साईकिल चाहिए थी उसे!

पापा ने पुचकारा- “बेटा, तुम्हें बहुत-बहुत अमीर बनना है।”

“ह्वाट अमीर?” उसका जवाब था, पापा ने उसे सिखाया था कि हिन्दी, पंजाबी नहीं इंगलिश बोला करे। पापा हिन्दी बोल रहे थे, वे कोशिश करते थे कि शिखर के साथ इंगलिश ही बोला करें, पर लम्बे समय तक स्वाभाविक नहीं रह पाते थे, बोलते-बोलते हिन्दी पर आ जाते थे। बच्चे को समझाते हुए कहने लगे- “अमीर! आई मीन, तुम्हारे पास बहुत पैसा हो।”

“नहीं चाहिए, मुझे खेलना है बाहर”, उसने बाहर खेलते हुए बच्चों की तरफ संकेत करते हुए कहा- “अब वह भी हिन्दी पर आ गया था। अब मोर्चा मॉम ने संभाला- “बेटा, घर में खेलते हैं, मॉम खेलेगी तुम्हारे साथ, थोड़ी देर खेलकर फिर पढ़ेंगे। पढ़ने से ही ज़िन्दगी में कुछ बन पाते हैं।”

शिखर ने पूछा- “ज़िन्दगी क्या होती है?”

मॉम को बुरा-सा लगा। यह अनुभव करके कि उसकी बुद्धि अभी सामान्य बच्चों जैसी है, उसे यह भी नहीं पता कि ज़िन्दगी क्या होती है, फिर कुछ बनेगा कैसे? वह बच्चे को समझाना चाहती थी ज़िन्दगी के बारे में, ज़िन्दगी के उद्देश्य के बारे में कैसे समझाएँ… अभी सोच ही रही थी कि बच्चे ने कहा

नो ज़िन्दगी, मुझे खेलना है, पढ़ना नहीं है, आई डोण्ट लाइक यू, पापा एण्ड द टीचर।”

“मॉम ने क्रोध को नियंत्रित करते हुए बच्चे को पुचकारा- “पढ़ोगे नहीं तो क्या बनोगे?” बच्चा बोला- “बच्चा, आई मीन…, बेबी बनूँगा, आई एम ए लिटल चाइल्ड, मुझे खेलना है।” फिर वह तुतलाने लगा”मुझे थेलना है, दोन्त बी सिली… यू मॉम, डर्टी पापा!”

उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें। बाहर बच्चे दौड़ते-भागते शोर मचा रहे थे-बच्चा दोहरा रहा था… “ज़िन्दगी, ज़िन्दगी, ज़िन्दगी अमीर, अमीर, अमीर, पापा-मामा… ह्वाट अमीर…, ह्वाट ज़िन्दगी वह गेट की तरफ भागा।”

शेखर के पिता ने भागते शेखर को पकड़ा। पर छोड़ दिया… गेट खोला… वह भाग गया… बच्चों में शामिल होकर दौड़ने-भागने लगा।

मॉम निराश थी, बोली- “कुछ नहीं बन पायेगा, सामान्य व्यक्ति से अलग।” पापा ने कहा- “अभी बच्चा है।”

मॉम ने कहा- “बहुत जिद्दी है।” पापा ने कहा- “हाँ अभी बच्चा है।” माँ ने कहा- “मैं चाहती थी, वह बड़ा आदमी बने। पापा ने कहा”मैं भी चाहता था।” और बच्चा दौड़ रहा था… ताली बजा रहा था… ताली बजा बजा कर हँस रहा था… हमउम्र बच्चों से कुछ अलग… दूसरे बच्चे उसे देख रहे थे।

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’

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