Atmasamman Story: बाल्कनी में बैठी कल्पना अपलक समुद्र की लहरों को निहारती हुई न जाने किन ख़्यालों में खोई थी की उसे काले कालेबादलों की गर्जन और तूफ़ान का भी आभास नही हो रहा था ।ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे तूफ़ान बाहर नहीं ..अपितु उसकेभीतर आ रहा हों ।शहर की जानी -मानी लेखिका कल्पना त्रिपाठी के उपन्यास “आत्म सम्मान “ को सर्वश्रेष्ठ उपन्यास सेसम्मानित किया जाना था ।उन्होंने उसके लिए एक समारोह का आयोजन किया
था । बाहर का तूफ़ान और उसके भीतर का तूफ़ान मिलकर उसे वर्षों पीछे कॉलेज के अंतिम वर्ष के दिनों मेंखींच रहा था ।उस दिन उसके कॉलेज की न्यू ईयर पार्टी थी ।कॉलेज में सभी पूरे ज़ोर-शोर के साथ पार्टी की तैयारियों मेंव्यस्त थे ।सभी नए साल के स्वागत की पार्टी के रंग में डूबे हुए थे ।पार्टी में उसे मंच पर स्वरचित कविता पढ़ कर सुनानी थी,अतः वो मंच के पीछे अपनी कविता के लिए अभ्यास मग्न थी ,
“ जीवन के सफ़र में हम तो अकेले चले थे
चलते -चलते कारवाँ बढ़ता गया
किसी से दूर तक साथ दिया
किसी ने बीच में छोड़ दिया ..”
“ वाह क्या ख़ूब लिखा है …” की आवाज़ सुन उसने पीछे मुड़ कर देखा ।पीछे आकाश खड़ा था …गौर वर्ण ,लम्बा क़द औरएक आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी ।ये कहना भी अतिशयोक्ति नहीं होगी कि वो कॉलेज का सबसे स्मार्ट ,सुन्दर लड़काथा ।उसके मुख से अपनी प्रशंसा सुन कर वो शर्म से निशब्द हो गयी ।उसे यक़ीन नहीं हो रहा था की जिस आकाश केलिए कॉलेज की लड़कियाँ दिवानी थी ,उससे बात करने के लिए बहाने
ढूँढ़ती थीं , वो आकाश उसकी प्रशंसा
कर रहा था । इससे पहले कल्पना कुछ बोलती उसके नाम की मंच पर घोषणा हो गयी थी ।सभी ने उसकी कविता के लिएमुक्तहृदय से प्रशंसा
मिली ।सबकी प्रशंसा , विशेषकर आकाश की प्रशंसा वे अत्यंत खुश थी ।उसे ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो इंद्रधनुष उसकीमुट्ठी में है ।आकाश अब उसका सबसे प्रिय मित्र था ।धीरे -धीरे उनकी मित्रता ने प्रेम का रूप ले लिया । दोनों अपनी भावीजीवन के सपनों में रंग भरने लगे ।आकाश का सबसे बड़ा गुण था की वो स्त्रीयों का , उनके सपनों का ,उनके आत्मसम्मानका और उनकी स्वतंत्रता की इज़्ज़त करता था ।उसे इसी गुण से कल्पना अत्यंत प्रभावित थी । उसे लगता की उसकाभविष्य एक सुरक्षित हाथों में है ।वक़्त अपनी गति से बीत रहा था ।दोनों ने अपने जीवन में अपना सफल मुक़ाम हासिलकर लिया था ।अंतत : दोनों पति -पत्नी के पवित्र रिश्ते में बंध गए थे ।कल्पना अपनी क़िस्मत पर इतरा रही थी ।वो अपनेजीवन में आकाश को पाकर अत्यंत खुश थी ।जैसे -जैसे समय बीत रहा था ,आकाश का व्यवहार बदलने लगा ,या फिरये कहना भी ग़लत नही होगा की उसका असली चेहरा सामने आने लगा ।स्त्रीयों के आत्मसम्मान की रक्षा करने वाला अबउसका भक्षक बनने लगा ।उसे यक़ीन नहीं होता था की क्या एक ख़ूबसूरत चेहरे के पीछे इतना घिनौना चेहरा भी हो सकताहै ? कैसे एक व्यक्ति इतनी निपुणता के साथ दोहरा व्यक्तित्व जी सकता है ? अपनी जिस क़िस्मत पर वो इतराती थी , अब उसे उसपर रोष होने लगा ।
आकाश को अब कल्पना की आज़ादी ,यहाँ तक कि उसका लेखन कार्य भी चुभने लगा ।उसके घरवाले उसके हर कुकृत्यमें सहभागी थे ।अपनी माँ की शय लेकर उसने कल्पना पर तरह -तरह की पाबंदियाँ लगा दी ।उसका लेखन कार्य भी बंदकरवा दिया ।ये उसके आत्म सम्मान और मान -सम्मान की सबसे बड़ी पराजय थी ।अब तो बात – बात पर उसकेआत्मसम्मान को बुरी तरह रौंद दिया जाता था ।वो अगर विरोध करती तो आकाश उसपर हाथ उठाने से भी नहीं चूकता ।इस रोध -विरोध में उसका गर्भपात भी हो गया ,किंतु उसके सिवा किसी को भी इस हादसे से फ़र्क़ नहीं पड़ा ।अब तक वोये भी जान चुकी थी की आकाश और उसके घरवाले उससे बेटा चाहते हैं ।अब उसे अपने भविष्य का भय सताने लगा ।वोअब निरंतर टूटती जा रही थी ।स्वर्ग सा लगने वाला घर अब नर्क से भी बदतर हो गया था ।उसका मन करता की वो घरछोड़ दे किंतु आकाश के बदलाव की उम्मीद पर वो सब सह रही थी ।उसे आकाश से अथाह प्रेम था ।इसी बीच उसे अपनेदोबारा गर्भवती होने का पता चला ,किंतु साथ ही उसे ये निर्णय भी सुना दिया था की अगर उसके गर्भ में कन्या हुई तो उसेगर्भपात करवाना पड़ेगा
अंतत: उसका आत्मसम्मान खिल गया—गृहलक्ष्मी की कहानियां
