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गुरु दक्षिणा-गृहलक्ष्मी की कहानियां

Hindi Story: शरीर दर्द से टूट रहा था। पट्टी बंधी होने के कारण पेट पर खिंचाव सा प्रतीत हो रहा था। अवचेतन अवस्था, अधखुली-धुंधली आंखें खोली तो सामने सरला के साथ एक अपरिचित चेहरा भी मुस्कुरा रहा था। कराहते हुए मैं अपनी पूर्ण चेतना में आने का प्रयास करके, उस अपरिचिता को देखने की कोशिश […]

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सीलन-गृहलक्ष्मी की कहानियां

Hindi Story: घर में सभी के चले जाने के बाद मैं अपनी चाय ले कर बाल्कनी में आ कर बैठ गयी । ये मेरा रोज़ का शग़ल था ।बाल्कनी का एकांत और सामने सागर की लहरों की जुगलबंदी मुझे अत्यंत सुकून देती थी ।सागर की लहरों का बार -बार किनारे को छूने का खेल मुझे […]

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  बाऊ जी होते तो-गृहलक्ष्मी की कहानियां 

Grehlakshmi ki Kahani: घर की दहलीज़ पर पहुँचते ही मेरे कदम ठिठक गए । हृदय और मन में उदासी छाई हुई थी ।मन-मस्तिष्क में बाऊ जी छाय हुए थे । उनके जाने के बाद पहली बार छुट्टियों में मायके रहने आयी थी ।अजीब सी खामोशी थी आज दहलीज़ में ।जैसे ही दहलीज़ पर दस्तक दी तो बाऊ जी की कड़कड़ाती आवाज़ कानों में गूंजने लगी  “ सरला …दहलीज़ का संकल खोल दो…अंजलि आ गयी “ । न जाने कैसे मेरी दस्तक से ही उन्हें  मेरे आगमन का आभास हो जाता था ।कुदरत ने कुछ अजीब सा रिश्ता बनाया है माता-पिता और संतान के बीच ।संतान के हृदय की तार सीधी माता -पिता के हृदय से जुड़ी होती है ।उनके कदमों की आहट , उनकी ख़ुशबू , उनके चेहरा की भाषा , उनकी सुख -दुःख का आभास …सब सरलता से जान लेतेहैं माता -पिता ।यहाँ तक कि शब्दों की भाषा से ज़्यादा प्रबल और रहस्यमयी होती है आँखों की मूक भाषा ..जिसे बड़ीकुशलता से पढ़ लेते हैं माता -पिता ।तभी तो सृष्टि में माता -पिता को ईश्वर के समान स्थान प्राप्त हुआ है ..ममतामयऔर पूजनीय ।माँ दहलीज़ खोलते ही “ लाडो “ कह कर गले लगा लेती और बाऊ जी “ अंजलि आ गयी ..अंजलि आ गयी“ कह कह कर ,घर में सबको आवाज़ लगा लगा कर पूरा घर सिर पर उठा लेते थे ।अपने स्नेह भरे अतीत में खोई थी मैं कीतभी दहलीज़ खुलने की आवाज़ आयी , सामने रामू काका खड़े थे । रामू काका हमारे परिवार के सदस्य के समान  थे । घर के सभी काम अत्यंत निपुणता से करते  थे ।परिवार को एक सूत्र में बाँधने की ज़िम्मेदारी बखूबी निभा रहे थे वे , वरना आज कल के जमाने में संयुक्त परिवारलुप्त से हो गए हैं ।ये तो रामू काका है जो अभी तक ये परिवार अभी तक संयुक्त है अन्यथा …..।बाऊ जी के जमाने से थेइसलिए सभी परिवार वाले सम्पूर्ण मान देते थे उन्हें ।  “ आओ बिटिया ..लाओ सामान मुझे दे दो “कह कर  रामू काका मेरे हाथ से सामान ले लिया ।घर में कदम रखते ही बहुतकुछ पराया जैसा एहसास हुआ ।बाऊ जी के सामने जो घर -आँगन  जो घर वालों से ,उनकी चुहलबाज़ियों से और उनकीहँसी -ठिठोलियों से भरा रहता था ..वो अब सन्नाटा ओढ़े खड़ा था ।अगर बाऊ जी होते तो इस  सन्नाटे के स्थान पर शोर -शराबा होता । माँ अपने कमरे में थी ।बाऊ जी के जाने के बाद ही माँ को जैसे उम्र ने जकड़ लिया था ।घर में फिरकनी की तरह घूमतीमेरी माँ अब गठिया -बाव के दर्द के साथ -साथ न जाने कितनी बीमारियों का शिकार हो चुकी थी । उनका कंचन सादमकता अब निष्प्राण जैसा प्रतीत हो रहा था । माँ की हँसी ,उनका फुर्तीलापन ,उनकी खवाईशें और उनका अस्तित्व सब बाऊ जी की चिता में स्वाह हो गया था ।अब तोचलने -फिरने में भी परेशानी होती थी उन्हें । “ कैसी हो माँ “ मैंने कह कर उन्हें गले लगा लिया  “ अच्छी हूँ लाडो ..ससुराल में सब ठीक हैं ..जमाई बाबू और बच्चे नहीं आए क्या ?” एक साथ प्रश्नों की झड़ी लगा दी माँ ने । “ अरे रामू जा ..जा तीनों बहुओं के कमरे में खडखड़ा कर कह दे की अंजलि आ गयी है …और अंजलि बेटा जा तू भी थोड़ामुँह -हाथ धो ले ।सफ़र से आयी है ना ,थक गयी होगी । मैं इतने रामू से कह कर तेरी चाय बनवा देती हूँ ,मुझे पता है कीचाय पीते ही तेरी सारी थकान उतर जाएगी ।”  बिना अपने प्रश्नों का उत्तर लिए माँ अपनी ही रौ में बोले जा रही थी ।उनकी लाड़ भरी बातों से मेरी आँखें भीग गयी ।हरबात में कल्पना में बाऊ जी आने लगे थे ।बाऊ जी होते तो सभी यहीं जमघट लगाए होते …यूँ सबको कमरो से बुलाना ना  पड़ता ।तीनों भाई मुझे अपने पास बैठा कर दुनिया -जहाँ की बातें कर रहे होते और भाभियाँ …भाभियाँ चाय -नाश्ते केसाथ -साथ बातों की जुगलबंदी कर रहीं होतीं । अजीब रुतबा था और वर्चस्व था बाऊजी का ..ऊपर से कड़क किंतु भीतर से एकदम नर्म ।सबसे छोटी होने के कारण मैंसबकी लाड़ली थी ख़ासतौर पर बाऊ जी की ।वे सदा मेरी हर इच्छा पूरी करते ।पलकों पर बैठा कर रखा था मुझे ।उनकेइसी लाड़ के कारण अक्सर उनमें और माँ में झड़प हो जाती थी । “ छोरी को पराए घर जाना है ।इतना सिर चढ़ाओगे पर वहाँ जा कर हमारी नाक कटवा देगी ।कुछ भी तो नही आता इसेसिवाय हँसी -ठठ्ठे के ।कितनी बार कह चुकी हूँ इससे लाडो ..घर का कुछ काम -काज सीख ले ..मगर इसके कानों पर तोजूँ  भी नहीं रेंगती  ..“ माँ ग़ुस्से में झल्ला कर में उनसे कहती  “ अरे अंजलि मेरा ग़ुरूर है ।देख लेना ये ससुराल में मेरा सिर गर्व से ऊँचा करेगी “ अभिमान से कह कर बाऊ जी माँ कीसमस्त बातों ,झल्लाहटों पर विराम लगा देते । “ अरे अंजलि कैसी है तू ।स्टेशन से आने में कोई तकलीफ़ तो नहीं हुई ,टैक्सी आसानी से मिल गयी थी ना ..? माफ़ करनाअंजलि ….गाड़ी नहीं भेज पाया , वो अचानक ही कुछ काम आ गया था ….अगर कुछ काम न होता तो ज़रूर भेजता  “ बड़ेभैया की आवाज़ से मैं ख़्यालों से वर्तमान में आ गयी थी ।  “ कोई बात नहीं भैया …टैक्सी है ना ,कोई दिक़्क़त नहीं हुई मुझे आने में ।आप निश्चिंत रहें “ ये कह कर मुझे बाऊ जी कीकमी अत्यंत खली ।सोच रही थी की अगर बाऊजी होते तो मैं टैक्सी से घर कभी  ना आती ।कितना भी ज़रूरी काम हो …वो सब छुड़वा कर मेरे लिए स्टेशन गाड़ी अवश्य  भेज देते थे । इन यादों का स्वभाव भी कितना विचित्र होता है  ना ,जितना इन्हें दूर भगाओ वो उतनी ही क़रीब आ जाती है ।बहुत ज़िद्दी होती है ये यादें ,ना चाहते हुए भी बात-बेबात,वक़्त -बेवक्त परेशान करने चली आती है ये । ससुराल से जब चली थी तो पूरे सफ़र में अपने आप को ऊपर से ,भीतर से,हृदय से ,मस्तिष्क से पूर्णत: तैयार कर रही थी की अब मायके के जो भी परिवर्तन आया होगा ,उससे तनिक भी विचलितनहीं हूँगी ।जब बाऊ जी थे तब समय कुछ और था और अब कुछ ।परिवर्तन तो निश्चित था , जिसका एहसास  मुझे होचुका  था , और माँ … ….बाऊ जी के समय माँ स्वाधीन थीं , उनका घर में अपना वर्चस्व था ।किंतु अब …अब वे बेटों पर निर्भर हैं। एक स्त्री के जीवन का ये एक कटु सत्य है , की जब तक एक स्त्री का पति जीवित है ,उसका अस्तित्व अत्यंत सशक्त होता है , किंतु पति की मृत्यु के पश्चात वोस्वाधीन होते हुए भी अपने परिवार के आधीन होती है ….उन पर निर्भर  होती है । यही माँ के साथ हुआ । मैं अपने विचारों की दुनिया में भटक रही थी की तभी मंझले भैया की आवाज़ ने मेरे  विचारों की तंद्रा भंग कर दी ।“ अरेअंजलि ..कैसी है तू ।अकेली आयी है ..विशाल और बच्चे नहीं आए “ “ मैं अच्छी हूँ मंझले भैया ।बच्चे पढ़ाई में व्यस्त थे और विशाल …उनका तो आपको पता ही है ..कभी भी मीटिंग्स आजाती हैं , इसलिए सोचा मैं ही चली जाऊँ अकेली ….आख़िर छुट्टियों में मायके तो आना ही था ना ।माँ की और आप सभीकी बहुत याद आ रही थी ।” “ चल ये अच्छा किया तूने की तु आ गयी ।” मंझले भैया की बात से मन में कुछ दरक सा गया ।क्या भैया को विशाल औरबच्चों के ना आने का ज़रा भी अफ़सोस नहीं था ।अगर बाऊ जी होते तो इस बात पर अपनी कड़कती आवाज़ में मुझेविशाल और बच्चों को ना लाने के लिए डाँट लगाते और कहते “अंजलि बच्चों की पढ़ाई और मीटिंग्स कुछ दिन के लिएआगे -पीछे भी हो सकती है ।एक छुट्टियाँ ही तो मिलती हैं सबको मिलने -जुलने के लिए ,उसमें भी बच्चों को तूने पढ़ाई-लिखाई में लगा दिया ।अरे बच्चों के बिना उनका ननिहाल सूना है समझी “  मँझले भैया की तरह छोटे भैया ने भी उनके वाला वाक्य दोहरा दिया ।थोड़ी देर बैठ कर सभी वापिस अपने -अपने कमरों मेंचले गए ।ऐसा लग रहा था मानो कोई औपचारिकता पूर्ण करने आयें हों ।वो भाई -बहन वाला प्रेम ,स्नेह ,चुहलबाज़ी,हँसी -ठिठोली सब लुप्त से हो गए थे ।जिस घर -आँगन में मैं पली -बड़ी ,हँसी -खेली …आज वो सूने खड़े है । मेराअपना घर  मेरा मायका अब पराया सा प्रतीत हो रहा था ।बाऊ जी के बाद मायके में इस परिवर्तन को अपनाना बहुतपीड़ादायक हो रहा  था। सोचना जितना सरल था …यथार्थ स्वीकारना उतना ही कठिन ।मायके में तो हर बेटी के प्राण बसते हैं ।आख़िर जन्मसे विवाह तक कितने वर्ष जिए होते हैं एक बेटी ने , अनगिनत यादें सजायी होती है ।मायके जाने के लिए ,अपने आप कोतरोताज़ा करने के लिए ,अपना बचपन जीने के लिए छुट्टियों का बेसब्री से इंतज़ार होता है ।एक मायका ही तो होता हैजहाँ हम सभी बेटियाँ हृदय खोल कर बातें करती है , हँसती हैं ….इसलिए  अब इस परिवर्तन को स्वीकारने में पीड़ा तो  होगी ना ….। पूरा सप्ताह बस ऐसे ही औपचारिकताओं में बीत गया ।ना कोई लाड़ -चाव हुए और ना ही कोई हँसी -ठिठोलियाँ ।बसएक “ घर की बेटी “ का औपचारिक रिश्ता बन गया ।बाऊ जी होते तो मैं इसी पूरे सप्ताह में पूरे वर्ष भर के लिए यादें संजोकर उन्हें समेट लेती और अगले वर्ष पूरे उत्सुकता और उत्साह से साथ छुट्टियों में मायके आने का इंतज़ार करती ।पूरे लाड़-चोचलें होते मेरे । भाई -भाभियों ने मुझे पूरे रीति -रिवाज के साथ विदा कर दिया । “ अच्छा अंजली …ठीक तरह से जाना और हाँ सकुशल पहुँचने का बाद फ़ोन करके ज़रूर बता देना ।अपना ध्यान रखना…बाय “ स्टेशन  पर छोड़ने आए बड़े भैया सीट के नीचे मेरा सामान जचाते हुए बोले  “ अच्छा ….चलता हूँ , अपना ध्यान रखना “ अपना कर्तव्य पूरा करते हुए वे चले गए । मैं उन्हें जाते हुए देख रही थी औरमेरी आँखें अविरल बह रही थीं ।सोच पर हमारा बस नहीं होता ,ना चाहते हुए भी दिमाग़ पर हावी हो जाती है  ।सोचने लगीकी बाऊ जी होते तो वे ट्रेन जाने से पहले कभी वापिस घर ना जाते बल्कि ट्रेन जाने तक ..जब तक मैं उनकी आँखों सेओझल ना हो जाती अपना ममतामय हाथ हिलाते रहते ।मायका सभी बेटियों का ग़ुरूर और शान होता है ।हर बेटी कीहृदय से कामना होती है कि उसका मायका ख़ुशियों से आबाद रहे ।माता -पिता के बाद भाई -भाभियों से उनका मायकासदा बना रहता है ,उसके द्वार खुले रहते है , पूरा मान -सम्मान मिलता है …, किंतु ये भी एक शाश्वत सत्य है लाड़ -चोचलेंतो बेटियों के माता -पिता ही करते हैं वरना बात -बात पर बाऊ जी होते तो ……की यादें ना सताती ।

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किर्चे- गृहलक्ष्मी की कहानियां

Grehlakshmi ki Kahani: सुबह -सुबह जैसे ही वृंदा ने खिड़की खोली ..एक ठंडे हवा के झोंके ने उसके गाल थपथपा दिए। बाहर काले -काले मेघों ने पूरे आकाश को अपने आग़ोश में लिया हुआ था। मौसम अत्यंत सुहावना था ।वृंदा का मन हवा की थपथपाहट के प्रफुल्लित हो गया । संडे की छुट्टी का दिन था ।प्रफुल्लित मन के साथ उसने अपने लिए और पति प्रणव के लिए चाय बनायी ।दोनों बाल्कनी में बैठ कर सुहावने मौसम के साथ चाय की चुस्की का आनंद ले रहे थे की तभी वृंदा केफ़ोन पर घंटी बजी । फ़ोन पर “ मम्मी कॉलिंग “ देख उसकी बाँछे खिल गयी ।“ कैसी है  वृंदा ““ अच्छी हूँ माँ ..आप बताओ सब कैसे हैं घर पर ..भैया ,भाभी ,रिया और आशु ..?“ सब अच्छे हैं बेटा ..अच्छा सुन अगले इतवार को रिया की सगाई है ….तुम दोनों और बच्चे सब आ जाना “ “ वाउ रिया की सगाई ….ये कब हुआ और लड़का क्या करता है ? “ अपनी माँ की बात बीच में काटते हुए उत्सुकतावश बोली “ अरे उतावली क्यूँ हो रही है ..यहाँ आ जाएगी फिर देख लेना सब ..और हाँ हो सके तो तुम एक दिन पहले ही आ जाना । तेरे भाई -भाभी को अच्छा लगेगा ““ फिर भी माँ बताओ ना लड़का कौन है ..क्या करता है ?”“ अरे यहाँ आकर देख लियो ““ बताओ ना माँ प्लीज़ …”“ बेटा लव मैरिज है ….लड़का उसके साथ उसके ऑफ़िस में था ,साउथ इंडियन है ..” माँ ने हिचकते हुए बोल कर फ़ोन रख दिया ,क्यूँकि इसके बाद कुछ कहने को बचा नहीं था ।फ़ोन रख कर वृंदा वही जड़वत हो गयी ।मौसम की ख़ुमानी अब अश्रु बन कर बह रही थी ।माँ के कहे शब्द “ बेटा लव मैरिज है ..साउथ इंडियन  है “ उसके कानों में गूंज रहे थे ।अतीत के अपमान की किर्चे शूल की तरह उसके हृदय को भेद रही थीं ।प्रणव शब्द विहीन मूक दर्शक बन उसे देख रहा था ।वो चुपचाप आँखों में नमी लिए सोफ़े पर आँखें मूँद कर लेट गयी। यादें उसे अतीत में खींचने लगी ।आँखों के समक्ष पंद्रह वर्ष पुराना वो अपमान भरा दृश्य चलचित्र की तरह चलने लगा ।स्नातक की पढ़ाई पूरी करके वृंदा ने कई जगह नौकरी के लिए अप्लाई कर दिया था ।सौभाग्यवश बैंगलोर की एक बड़ी कम्पनी से उसे नियुक्ति पत्र भी आ गया था ।वो पत्र देख कर तो जैसे वो एक चिड़िया की तरह पंख फैलाए आसमान में उड़ने लगी ,किंतु उसे ऐसा लगा की जैसे उसके पंख पकड़ लिए हो ।उसके पिता और भाई उसके बैंगलोर जाने के विरुद्ध थे। दिल्ली से बैंगलोर ….इतनी दूर …वृंदा के अकेले जाने में उन्हें आपत्ति थी ।उसने उन्हें समझाने की बहुत कोशिश की किंतु वे अपने निर्णय पर अटल थे ।उसका साथ सिर्फ़ उसकी माँ ने दिया ।बहुत अनुनय – विनय के पश्चात अंतत: वो अपने पिता और भाई को मनाने में सफल हो गयी ।नए परिवेश में उसे सामंजस्य बैठाने में कुछ समय लगा ।किंतु जल्द ही वो अपने परिवेश और ऑफ़िस के सभी सहकर्मियों से घुल -मिल गयी । वहीं उसकी मुलाक़ात प्रणव श्रीनिवासन से हुई ।प्रणव अत्यंत सौम्य और शालीन व्यक्तित्व का स्वामी था ।साधारण रूप -रंग के प्रणव में एक कशिश थी जिस कारण वो उसकी तरफ़ खिंच रही थी ।समय के साथ उसकी प्रणव से अच्छी मित्रता हो गयी किंतु उसने सदा मित्रता की गरिमा बनाए रखी ।अपने हृदय के बात उसने कभी प्रणव से नहीं कही ।समय अपनी गति से गतिमान था ।उस दिन वैलेंटायन डे पर जैसे उसकी मुँह -माँगी मुराद मिल गयी ।प्रणव ने उसके समक्ष अपने प्रेम का इज़हार करते हुए विवाह का प्रस्ताव रख दिया ।वो सतरंगी दुनिया में रंगने लगी ।सुलझे हुए प्रणव का साथ पा कर वो अत्यंत खुश थी किंतु कहीं न कहीं उसके मन में भय था कि उसका परिवार उसके इस प्रेम प्रसंग को स्वीकृति नहीं देंगे ।प्रणव उससे जब भी उसके परिवार से मिलने को कहता वो हमेशा टाल देती ..किंतु कब तक । और अंततः वो दिन आ गया जिसे वो टाल रहीथी , प्रणव की ज़िद के समक्ष उसे झुकना पड़ा ।जिस बात का उसे भय था आख़िर वही हुआ ।एक साउथ इंडियन लड़केके साथ विवाह प्रस्ताव उन्हें क़तई मंज़ूर नही था ।“ वृंदा तुम सोच भी कैसे सकती हो इस विवाह के लिए । हमारी संस्कृति ,रहना -सहना सभी कुछ इनसे बहुत भिन्न है ।”“ लेकिन पापा ,भैया मैं प्रणव से प्रेम करती हूँ ““ वृंदा प्रेम का बुलबुला जब विवाह के पश्चात फटता है तो सैलाब बन जाता है ।और फिर तुम्हारे समक्ष इसका कोई वजूदनहीं है ।तुम्हारे रंगरूप के समक्ष इसका रंगरूप जैसे चाँद पर लगा बड़ा सा काले भद्दे दाग जैसा है ।एक साउथ इंडियन …”“ भैया आप प्रणव का अपमान कर रहे है ..”“ अरे वो है ही इसी लायक …” पापा के कड़क स्वर से वो हिल गयी ।प्रणव ने जैसे ही कुछ बोलना चाहा ,उसके भाई ने उसका घोर अपमान करके उसे घर से निकाल  दिया किंतु वो अकेला नहीं गया ,वृंदा ने भी सदा के लिए घर छोड़ दिया ।वक़्त अपनी रफ़्तार से चल रहा था ।कहते हैं ना की वक़्त से बड़ा मरहम कोई नहीं । वक़्त बड़े -से  बड़ा घाव भी भर देता है। धीरे -धीरे वृंदा और उसके परिवार के बीच की कड़वाहट भी ख़त्म हो गयी किंतु उसके परिवार ने मुक्त हृदय से प्रणव को कभी स्वीकार नहीं किया ।कहते हैं ना इतिहास सदा अपने को दोहराता है । एक साउथ इंडियन लड़के ने उसके परिवार में पुन:प्रवेश किया था और वो भी भैया के दामाद के रूप में ।इंसान कितना भी परम्परा वादी , सामजिक क्यूँ ना हो किंतु अपनीसंतान के समक्ष वो हार जाता है । बहन के लिए तो भैया कट्टर विरोधी बन गए थे और बेटी के लिए ….।“ वृंदा ..” की आवाज़ से वो अपने अतीत के विचारों की दुनिया से अपमान की किर्चे समेटते हुए बाहर आयी ।“ वृंदा भूल जाओ सब बातें ।पुरानी अपमान की किर्चो को कितना समेटोगी वे उतनी ही चुभेंगी ,जिसकी पीडा तुम्हें कभी जीने नहीं देंगी ।सब समय -समय की बात होती है ।मैंने दिल्ली की दो टिकट्स करवा ली हैं ।हम ख़ुशी ख़ुशी सगाई का हिस्सा बनेंगे ।भाई आख़िर मेरे ससुराल में पहली शादी है …” कह कर प्रणव हंसने लगा और वृंदा उसके गले लग गयी ।

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अंतत: उसका आत्मसम्मान खिल गया—गृहलक्ष्मी की कहानियां

Atmasamman Story: बाल्कनी में बैठी कल्पना अपलक समुद्र की लहरों को निहारती हुई न जाने किन ख़्यालों में खोई थी की उसे काले कालेबादलों की गर्जन और तूफ़ान का भी आभास नही हो रहा था ।ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे तूफ़ान बाहर नहीं ..अपितु उसकेभीतर आ रहा हों ।शहर की जानी -मानी लेखिका कल्पना […]

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चरित्रहीन- गृहलक्ष्मी की कहानियां

Charitraheen Story: बस सोसाइटी  के गेट पर आ कर खड़ी हो गयी थी । सोसाइटी के सभी बुजुर्ग अत्यंत उत्साहित थे ।पूजा आज सोसाइटी के सभी बड़े -बुजुर्गों को अक्षरधाम मंदिर दिखाने ले जाने वाली थी ।वैसे तो पूजा को इस सोसाइटी में आए अभी कुछ ही महीने हुए थे , किंतु इन कुछ ही महीनों में वो सब की प्रिय बन गयी थी ।वो सदा किसी की भी मदद करने केलिए तत्पर रहती थी । चाहे वो बच्चों की पढ़ाई -लिखाई हो , खेल -कूद हो ,किसी की रसोई में मदद या फिर किसी की बीमारी में सेवा करना ..वो निस्वार्थ  भाव से सदा तत्पर रहती ।ऐसा करने में उसे आनंद आता ।अपने इसी निस्वार्थ मिलनसार व्यवहार से उसने अत्यंत कम समय में सबके हृदय में अपनी जगह बना ली थी ।सोसाइटी की औरतों से भी उसकी अच्छी जान -पहचान हो गयी थी । वे सभी पूजा के सामने तो उसके साथ मिलनसार होने का निष्फल प्रयास करती किंतु उसके पीठ पीछे वो उनके लिए एक कौतूहल भरा प्रश्न -चिन्ह बन जाती ।उनकी जिज्ञासा का विषय था उसका निजी जीवन , उसका अकेले रहना और उसका लाल रंग अर्थात् उसकी माँग में भरा लाल रंग ,माथे पर लाल बड़ी सी बिंदिया और उसके हाथों में लाल रंग की चूड़ियाँ ।वे अक्सर अपने इन्हीं प्रश्नों  उत्तर तलाशने का प्रयास करती ।पूजा इन औरतों की जिज्ञासा ,उनका उसे टेढ़ी नज़रों से देखना और उसके विषय में बातें करना …से भली -भाँति परिचित थी , किंतु वो हमेशा इन सब चीज़ों को नज़रंदाज़ करके ,अपने जीवन में मस्त रहती ।बुजुर्गों के लिए भी प्रोग्राम उसने  की सर्व-सहमति से बनाया था ।सभी को इस बात की ख़ुशी थी कि घर के सभी बुजुर्ग घूम कर आ जाएँगे । उसने सभी बुजुर्गों की सुविधानुसार बस में व्यवस्था कर ली थी । नियत समय तक  धीरे -धीरे सभी बुजुर्ग बस में बैठ चुके थे , बस उसके सामने के फ़्लैट वाले अवतार अंकल अभी नहीं आए थे ।” “ अवतार अंकल को तो अक्षरधाम घूमने की सबसे ज़्यादा इच्छा थी और सबसे जयदा वे ही उत्साहित थे …फिर अभी तक आए क्यूँ नहीं …उनकी तबियत तो ठीक है ना ..चलो मैं ही उन्हें बुला लाती  हूँ “ मन ही मन सोचती हुई वो उनके घर उन्हें  बुलाने चली गयी । “ नमस्ते भाभी ! वो अवतार अंकल की तबियत ठीक है “ उसने विनम्रता पूर्वक उनकी बहू से पूछा  “ हाँ ठीक है …क्यूँ …तुम क्यूँ पूछ रही हो ?” उनकी बहू ने अत्यंत बेरुख़ी से उत्तर दिया  “ वो दरअसल अंकल अभी तक आए नहीं थे ना और अक्षरधाम जाने के लिए सिर्फ़ उनका इंतज़ार हो रहा था इसलिए ..” “ बाबू जी तुम्हारे साथ नहीं जाएँगे “ “ क्यूँ भाभी ..क्या हुआ ..।आप बेफ़िक्र रहिये भाभी मैं उनका पूरा ध्यान रखूँगी ।हमारे साथ हमारी पूरी टीम जाती है जिसमें डाक्टर्ज़ भी  होते हैं । सभी के खाने -पीने का पूरा ध्यान रखा जाता है “ “ बस कह दिया ना कि वे तुम्हारे साथ नहीं  जाएँगे क्यूँकि …” “ क्यूँ भाभी …फिर भी बताइए भाभी आख़िर बात क्या है “ उसने बीच में टोकते हुए पूछा  “ देखो पूजा . …हमहें इसी समाज में रहना है और हम नहीं चाहते कि की भविष्य में बातें बने …” “ आप कहना क्या चाहती हैं भाभी “ “ देखो पूजा ..एक तो तुम अकेले रहती हो और ..” “ क्यूँ भाभी अकेले रहना अपराध है क्या ..” “ अपराध अकेले रहने में नही है पूजा , बल्कि तुम्हारी तरह अकेले रहने में है । तुम्हारा ये लाल रंग का श्रृंगार …. आज तक तुम्हारे पति को , परिवार को देखा नहीं और तुम …” “ माफ़ कीजिएगा भाभी ।आप मेरे चरित्र पर ऊँगली उठा रही हैं ।पति और परिवार का साथ होना या ना होना किसी के चरित्र को परिभाषित नहीं करता । और लाल रंग तो प्रेम का प्रतीक होता है ।ये मेरे और मेरे पति के प्यार का लाल रंग है , मेरा सुरक्षा कवच है ।भाभी आज मैं अपने विषय में आपको बता देती हूँ …शायद आपकी भी जिज्ञासा पर विराम लग जाए। मेरे पति आर्मी में ऑफ़िसर थे ।शादी के कुछ बाद वो सीमा पर दुश्मनो से लड़ने गए थे और लड़ते -लड़ते अपने देश के लिए शहीद हो गए थे ।माँ -पापा ये सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाए और ससुराल वालों ने ….ससुराल वालों ने मुझे बाँझ और मनहूस कह कर सदा के लिए ससुराल से विदा कर दिया ।मेरे पति सदेव अपने देश की सेवा के लिए तत्पर रहते थे और ये देश प्रेम और सेवाभाव मैंने उन्हीं से सीखा था ।भाभी मैं सीमा पर जाकर लड़ तो नहीं सकती किंतु दूसरों की मदद करके और बुजुर्गों के साथ रहकर  , कुछ प्रकार की सेवा तो कर सकती हूँ ।जितना मुझसे संभव हो सकता है मैं देश के लिए अपना योगदान देती हूँ ।ज़रिया चाहे कोई भी हो पर मेरे भाव सदा सच्चे हैं ।और रहा प्रश्न इस लाल रंग का ….भाभी समाज में एक अकेली औरत का रहना बहुत मुश्किल है । आप भी तो एक औरत है …ये तो आप भी भली भाँति जानती है की अकेली औरत लोगों के लिए भोग करने का पात्र बन जाती है ।सभी उसे चीरहरण की निगाहों से देखते हैं ।ऐसे में ये लाल रंग मेरी सुरक्षा करता है ,अभी भी मेरे विवाहित होने का प्रमाण बन जाता है जिस कारण मैं सुरक्षित रहती हूँ । मुझे गर्व है भाभी कि मैं एक शहीद की विधवा हूँ । अभी भी आपको मैं चरित्रहीन लगती हूँ तो आप अवतार अंकल को ……..” कहते कहते उसकी आँखों से अविरल अश्रुधारा बहने लगी । जैसे ही वो वापिस जाने लगी  […]

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 वसीयत की बली- गृहलक्ष्मी की कहानियां 

Vasiyat: वो कहते है ना बुढ़ापे में आकर एक साथी की बहुत ज़रूरत होती है। पति के बिना पत्नी और पत्नी के बिना पति कितना अधूरा हो जाता है, इसका बुढ़ापे में एहसास होता है। माँ के जाने के बाद तो बाबू जी की भी जिजीविषा समाप्त हो गयी थी इसलिए वे भी जल्दी ही […]

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लाइब्रेरी वाला आकर्षण- गृहलक्ष्मी की लघु कहानी

Love Attraction Story: कॉलेज के बाद कुछ देर पब्लिक लाइब्रेरी में बैठकर पढ़ने की मेरी नित्यचर्या थी ।मैं अपनी जगह पर बैठ कर पढ़ने लगी पर पता नहीं क्यूँ आज मेरा ध्यान बार बार सामने बैठे लड़के की तरफ़ खिंच रहा था ।लाइब्रेरी में उसे पहले कभी नहीं देखा था  देखने में साधारण व्यक्तित्व का स्वामी था ,किंतु एक अजीब सा आकर्षण था उसमें । मैं बीच -बीच में चोर निगाहों से उसे देखती । किंतु वो अपने पढ़ने में मग्न था ।कुछ देर पश्चात वो उठ कर चलागया और साथ में मेरा चैन भी ले गया । अब तो लाइब्रेरी मैं पढ़ने कम अपितु उसे देखने के लिए ज़्यादा जाती ।जिस दिनवो नहीं आता ,मेरा मन भी लाइब्रेरी में नहीं लगता ।बहुत कोशिशों के बाद आख़िर मैंने उसके विषय में पता लगा लिया ।उसका नाम विशाल था ,कानपुर से किसी बिज़्नेस प्रोजेक्ट के लिए आया था और किसी होटल में रह रहा था । मैं तो अभिमन्यु की तरह उसके आकर्षण के चक्रव्यू में फँस चुकी थी जहाँ से बाहर निकलने का कोई रास्ता समझ नहीं आ रहा था ।दिन ऐसे ही बीत रहे थे । एक दिन जब मैं अपने घर पहुँची तो माँ के साथ विशाल को देख वही जड़वत हो गयी ।“ आओ सान्या , ये विशाल है , मेरी कानपुर वाली सहेली का बेटा ।यहाँ बिज़्नेस के कुछ काम से आया है ।“ माँ कीआवाज़ ने मेरी तंद्रा तोड़ी ।“ अच्छा ..तुम दोनों बातें करो ..मैं इतने चाय -नाश्ता ले कर आती हूँ “ कह कर माँ रसोई में चली गयी ।“ क्या हुआ …हैरान हो गयी मुझे यहाँ देख कर ।”वो बोला “ पर तुम लाइब्रेरी में …” उत्सुकतावश मैंने पूछा “ वो मुझे प्रोजेक्ट के लिए कुछ मटीरीयल चाहिए था  ….”“ वैसे मैं तो पहले दिन से जानता था की तुम सरला आँटी की बेटी हो ।”“ कैसे ..”“ सरला आँटी ने तुम्हारी तस्वीर भेज दी थीं ।“ “ तुमने मुझे पहले क्यूँ नहीं बताया ““ अगर बता देता तो तुम्हारे ख़ूबसूरत चेहरे पर ये ख़ूबसूरत से भाव कैसे देखता “ कह कर वो शरारत भरी नज़रों से देखने लगा ।माँ भी मुझे देख कर मुस्कुरा रही थीं ।

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ज़िंदगी ना मिलेगी दोबारा -गृहलक्ष्मी की कहानी

Life Story in Hindi: “ माँ ये रही रामेश्वरम की दो टिकट्स ।आप दोनों को हम सभी की तरफ़ से विवाह की पचासवीं सालगिरह पर छोटा सा गिफ़्ट “ “ रामेश्वरम …..” अचानक मिले गिफ़्ट से मैंने हैरानी से अपने बेटे वरुण को देखा “ हाँ माँ रामेश्वरम …मैं जानता हूँ वहाँ जाना आपकी सिर्फ़ […]

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तमाचा

Hindi Story: कई बार परिवर्तन लाने में पूरा जीवन बीत जाता है तो कभी एक छोटी सी चीज बड़ा परिवर्तन ले आती है। मेरे साथ भी यही हुआ। उस एक तमाचे ने मेरा पूरा जीवन ही बदल दिया। ‘हैलो, मैम मेरा नाम वनिता है, मैंने आपकी पत्रिका के लिए एक कहानी ‘सपने’ भेजी थी। क्या […]