Dada dadi ki kahani : राजीव एक छोटा-सा व्यापारी था। उसके घर में उसकी पत्नी और एक छोटी-सी बेटी थी-श्वेता।
राजीव अक्सर अपने काम के सिलसिले में बाहर जाया करता था। आते समय वह श्वेता के लिए कोई छोटा-सा उपहार ज़रूर लाता था।
एक बार राजीव अपने काम से सहारनपुर गया। सहारनपुर उत्तर प्रदेश का एक शहर है। यह शहर अपने लकड़ी के काम के लिए बहुत प्रसिद्ध है। सहारनपुर के कारीगर लकड़ी पर सुंदर नक्काशी करके सभी तरह का सामान बनाते हैं। वहाँ से लौटते समय राजीव सोच रहा था-‘मैं श्वेता के लिए क्या ले जाऊँ। सभी तरह के खिलौने तो हैं उसके पास।’
तभी उसकी निगाह एक मेज़ पर पड़ी। यह एक छोटी-सी खाने की मेज़ थी। जब मेज़ की ज़रूरत न हो तब उसके पैरों को अलग करके रखा जा सकता था। राजीव को ध्यान आया कि श्वेता अक्सर कहती है कि उसके सब दोस्तों के घरों में खाना खाने के लिए मेजें हैं।
राजीव ने वह मेज़ ख़रीद ली। वह एक होटल में रुका हुआ था। अपने कमरे में आकर उसने सोचा कि इसे खोलकर एक बार देखा जाए। उसने मेज़ के पैर लगाए और एक कुर्सी डालकर बैठ गया। राजीव सोचने लगा कि जब वह घर पहुँचेगा तब वह, उसकी पत्नी और श्वेता, तीनों बैठकर खाना खाएँगे। उसकी पत्नी बढ़िया-बढ़िया पकवान बनाएगी-राजमा, चावल, पनीर की सब्जी, रोटी, पापड़, अचार, सलाद सभी कुछ होगा। कितना मज़ा आएगा। सब सामान पहले से मेज़ पर रख लेंगे। फिर उसकी पत्नी को एक-एक सामान लेने बार-बार रसोई में नहीं जाना पड़ेगा।
वह अभी यह सब सोच ही रहा था कि तभी उसने देखा कि मेज़ पर खाने की सभी चीजें रखी हुई हैं, जिनके बारे में वह सोच रहा था। वह चौंक गया। अब उसे समझ में आया कि यह कोई साधारण मेज़ नहीं थी। यह एक जादुई मेज़ थी। राजीव बहुत खुश हुआ।
जब राजीव के साथ ये जादुई काम हो रहे थे, तब होटल के मालिक ने उसे देख लिया। उसे लालच आ गया। जब राजीव किसी काम से बाहर गया तो होटल के मालिक ने ठीक वैसी ही एक मेज़ के साथ राजीव की मेज़ बदल दी।
राजीव वापिस आया। उसने अपने सामान और मेज़ को उठाया और चला गया। उसने ध्यान ही नहीं दिया कि उसकी मेज़ बदल गई है।
होटल का मालिक बहुत खुश था। वह सोच रहा था कि अब उसे अपने ग्राहकों के लिए खाना पकाना नहीं पड़ेगा। वह जो कुछ चाहेगा, उस मेज़ से मिल जाएगा। रात को जब होटल के मालिक को भूख लगी तो वह मेज़ के पास ठीक वैसे ही बैठा जैसे कि उसने राजीव को बैठे हुए देखा था। फिर उसने सबसे बढ़िया खाने के बारे में सोचा। लेकिन मेज़ पर कुछ भी प्रकट नहीं हुआ। उसने. अपनी आँखें बंद की और फिर से सोचा। आँखें खोली तब भी मेज़ ख़ाली थी। उसने फिर से कोशिश की पर कुछ नहीं हुआ। वह बुरी तरह चिढ़ गया और गुस्से में उसने मेज़ को उठाकर फेंक दिया।
उधर जब राजीव घर पहुँचा तो उसने श्वेता और उसकी मम्मी को मेज़ दिखाई। रात को वे तीनों खाना खाने बैठे। तीनों ने अपनी-अपनी पसंद के खाने के बारे में सोचा। और देखते-ही-देखते खाना मेज़ पर सज गया। तीनों ने पेट भरकर खाना खाया।
तुम सोच रहे होगे कि ऐसा कैसे हुआ। असल में जब राजीव ने बिना किसी लालच के मेज़ पर हाथ रखकर अपनी बेटी के बारे में सोचा तब मेज़ का जादू उसके हाथों में आ गया। इसीलिए उसकी पुरानी मेज़ और इस नई मेज़ में कोई अंतर नहीं रहा। और इस तरह होटल का मालिक बन गया बुद्धू। समझ गए ना!
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