Kahani: “एक के बाद एक कितना झूठ बोलोगे रोशन। मैं जानता हूंँ तुम्हारी पत्नी बीमार नहीं है। हर बार किसी ना किसी की बीमारी या झूठी मरने की खबर सुना कर तुम काम पर नहीं आते और एडवांस पैसे भी ले जाते हो। मुझे बेवकूफ कब तक बनाते रहोगे। मैं तुम्हारी पत्नी और बच्चों के कारण ही तुम्हें नौकरी से अभी तक नहीं निकाल पाया, पर आज तो हद कर दी तुमने।”
राकेश अपने नौकर रोशन के हमेशा झूठ बोलने से परेशान था। उसकी किसी भी बात पर अब उसे यकीन नहीं हो पाता था।
“मैंने कोई झूठ नहीं बोला, मेरी राधा सच में बहुत बीमार है , उसके इलाज के लिए पैसे चाहिए और मुझे हफ्ते भर की छुट्टी भी चाहिए।”
“ना तो अब तुम्हें एक पैसा एडवांस दूंगा और ना ही कोई छुट्टी मिलेगी। हांँ अगर तुम चाहते हो तो हमेशा के लिए छुट्टी ले लो। मैं आज ही नया नौकर रख लूंगा।”
“नहीं साहब माफ कर दो, मुझसे कोई ग़लती हुई हो तो पर मुझे नौकरी से मत निकालिएगा। मेरे छोटे छोटे बच्चे हैं, मैं अकेला काम करने वाला हूँ।”
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“तुम जानते हो तुम्हारी पत्नी आज सुबह मेरे दफ्तर आई थी, जिसकी बीमारी के नाम पर तुम अभी दस हजार रुपए मांँग रहे हो, वो तो बिल्कुल ठीक है और काम ढूंढ रही थी। कह रही थी कि तुम उसे राशन पानी के लिए भी पैसे नहीं देते। तुम शराब पीने और अपने दोस्तों के साथ घूमने फिरने में ही पूरी तनख्वाह उड़ा देते हो।”
“ऐसा नहीं है साहब। राधा झूठ बोल रही है। ” रोशन ने एक और झूठ बोला।
“झूठ कौन बोल रहा है यह तुम भी अच्छे से जानते हो और मैं भी।”
राकेश ने अपने नौकर रोशन के गाल पर एक जोरदार चांटा जड़ दिया।
” कितने प्यार से तुम्हारे पिता ने तुम्हारा नाम रोशन रख था कि पढ़ लिख कर उनका नाम रोशन करोगे। पर तुम्हारा पढ़ने में मन ही नहीं लगा और अपने पिता की तरह तुम भी हमारे घर नौकर का ही काम कर रहे हो। क्या तुम चाहते हो कि तुम्हारे बच्चे भी तुम्हारे जैसे ही बनें।”
“नहीं साहब उन्हें तो मैं खूब पढ़ा लिखा कर बड़ा अफसर बनवाऊंगा। मेरी तरह वो जिंदगी भर एक एक पैसे के लिए दूसरों के सामने नहीं गिड़गिड़ाएंगे।”
रोशन अपना गाल सहलाते हुए राकेश के पैर पकड़ कर माफी मांगने लगा।
“इस बार माफ कर देता हूंँ पर अब ध्यान रखना, कोई बहाना या झूठ अब मैं बर्दाश्त नहीं करूंगा। तुम्हारे पिता ने मेरे माता-पिता की बहुत सेवा की है बस इसी कारण तुम्हें बर्दाश्त कर रहा हूंँ।”
रोशन को बचपन से झूठ बोलने की ऐसी आदत हो गई थी कि अब तक तीन बच्चों का बाप होने के बावजूद यह आदत छूटी नहीं।
उसकी पत्नी राधा उसे हमेशा समझाती, “एक झूठ को छुपाने के लिए हजार झूठ बोलने पड़ते हैं इससे आप पर से लोगों का विश्वास ही नहीं रहेगा जब आप सच भी बोलोगे। आपकी देखा-देखी बच्चे भी ऐसे ही झूठ बोलेंगे तो क्या आपको अच्छा लगेगा।”
पर रोशन को तो किसी की कोई बात पल्ले ही नहीं पड़ती।
“आज राधा की खबर लूंगा।” बड़बड़ाते हुए रोशन अपने मालिक राकेश के घर से निकल पड़ा। क्या जरूरत थी उसे साहब के दफ्तर में काम मांगने जाने की। आज अगर वो नहीं गई होती तो साहब कभी मेरा झूठ पकड़ नहीं पाते और हर बार की तरह इस बार भी पैसे दे देते और छुट्टी भी मिल जाती। अब दोस्तों के साथ कैसे घूमने जाऊंगा। पैसों का इंतजाम कैसे होगा ।
घर जाकर पत्नी के साथ खूब लड़ाई झगड़ा किया। उसके तीनों बच्चे कोने में दुबके रो रहे थे। पिताजी गन्दे हैंं मम्मी को मारते हैं। यह बात तीनों के मन में बैठ गई।
वो अपने पिता को सबक सिखाने की योजना बनाने लगे।
अगले दिन वो सुबह स्कूल जाने के लिए घर से जल्दी निकले और सीधा राकेश के घर पहुंच गए।
राकेश ने सुबह सुबह रोशन के बच्चों को अपने घर पर आया देखा तो उसका मन किसी अनिष्ट की आशंका से ग्रसित हो गया।
“बच्चों सब ठीक तो हो, क्या हुआ जो स्कूल ना जाकर तुम मेरे पास आए।”
उन्होंने राकेश को सारी बात बताई, ” उसके माता-पिता में रोज झगड़ा होता है और पापा हमेशा झूठ बोलते हैं। हम चाहते हैं कि उनकी यह आदत छूट जाए।”
“मैं तो खुद परेशान हूंँ उसके इस झूठ बोलने की आदत से। उसके माता-पिता भी उसे ना सुधार सके अब तुम बच्चे ही उसे सुधार पाओगे ऐसा मुझे पूरा विश्वास है।”
राकेश ने बच्चों को खाने के लिए बिस्कुट दिए और चारों सोचने लगे कि कौन सी ऐसी तरकीब अपनाएं कि रोशन की झूठ बोलने की आदत हमेशा के लिए छूट जाए।
अपने बच्चे रोशन की कमजोरी हैं, वो उन्हें तकलीफ में नहीं देख सकता यह बात राकेश को पता थी। उसे एक युक्ति सूझी, बच्चों को बताया, सबने हामी भरी।
“बहुत ही अच्छा, हम ऐसा ही करेंगे।” तीनों बच्चे एक साथ बोले।
राकेश ने अपने दोस्त डॉक्टर राघव को फोन किया और अपनी योजना बताई।
“ठीक है, मैं तैयार हूंँ मेरे दोस्त। तुम अच्छा काम कर रहे हो। किसी को सुधारने के लिए अगर एक झूठ बोलना पड़े तो इसमें बुराई नहीं है।”
अगले दिन उसकी छोटी बेटी ने बेहोश होने का नाटक किया जब राधा राशन का समान लाने बजार गई थी और तीनों बच्चे घर के आंँगन में खेल रहे थे।
रोशन ने जैसे ही दरवाजा खोला जमीन पर बच्ची को गिरा देखा और दोनों बेटों को रोते हुए देखा।
“परी परी… उठ जा। आंखें खोल बहन।”
रोशन को देखते ही वो उससे लिपट गए।
” पापा हमने कुछ नहीं किया। परी अपने आप गिर गई और मर गई, हमने नहीं मारा उसे।”
रोशन को काटो तो खून नहीं वाली स्थिति थी। उसमें चाहे कितनी भी बुरी आदतें थीं पर वो अपने बच्चों को बहुत प्यार करता था, और उसकी छोटी बेटी में तो उसकी जान बसती थी। उसने कांपते हाथों से बच्ची को गोदी में उठाया और पहले राकेश के घर गया।
“साहब कुछ कीजिए मेरी बच्ची को डॉक्टर के पास ले चलिए।”
राकेश ने रोशन को ढांढस दिया और बच्ची को अपने दोस्त डॉक्टर के पास लेकर गया।
“मेरी बच्ची को क्या हुआ है, यह बोल क्यों नहीं रही।
परी मेरी प्यारी परी आंँखे खोल।
डॉक्टर देखिए ना इसको। “
“आप शांत हो जाइए पहले। मैं देखता हूंँ क्या हुआ है इसे। हो सकता है कमजोरी से चक्कर आ गया हो या इसे कोई बीमारी तो नहीं है जैसे दिल में छेद या कैंसर… “
“नहीं नहीं मेरी बेटी बिल्कुल ठीक थी डॉक्टर साहब। सुबह तो जब मैं काम के लिए जा रहा था। इससे पहले कभी बेहोश नहीं हुई थी।”
रोशन बच्ची को पकड़ कर रोने लगा। “हे भगवान माफ कर दीजिए मुझे यह सब मेरी ग़लती की सजा मिल रही है मुझे।”
“कुछ नहीं हुआ है आपकी बच्ची को।” डॉक्टर ने रोशन का कंधा थपथपाया।
परी उठकर बैठ जाती है और रोशन के आंसू अपनी नन्हीं हथेलियों से पोंछती है।।
“पापा मैं बिल्कुल ठीक हूँ।देखा ना हमारे इस झूठ से आपको कितनी तकलीफ़ हुई। आप भी तो हमेशा झूठ बोलते हैं। मम्मी को मारते हैं, अगर कभी मम्मी मर गई तो बताईए आपको और हम तीनों को खाना कौन खिलाएगा, कौन घर संभालेगा।”
“हांँ पापा परी बिल्कुल ठीक कह रही है।” रोशन के दोनों बेटे एक साथ बोले।
“मुझे माफ कर दो बच्चों मैं प्रतिज्ञा करता हूंँ कि अब कभी झूठ नहीं बोलूंगा और ना ही कभी शराब को हाथ लगाऊंगा और तुम्हारी मम्मी को अब कभी नहीं मारूंगा।”
राधा भी वहीं खड़ी हो अपने बच्चों को बड़े प्यार से देख रही थी। जो काम कोई ना कर सका वो बच्चों ने कर दिखाया।
उस घटना के बाद रोशन ने अपने पूरे जीवन में कभी झूठ नहीं बोलने की प्रतिज्ञा कर ली और अपनी प्रतिज्ञा पर कायम रहा। वो मन लगाकर काम करता और तीनों बच्चों की पढ़ाई पर ध्यान देता। तीनों पढ़ लिख कर अच्छे पदों पर नौकरी कर रहे हैं और राधा रोशन के साथ बहुत ही खुश हैं।
