baat sapane kee story in Hindi
baat sapane kee

baat sapane kee story in Hindi : एक दिन किसी गरीब ब्राह्मण ने रात में स्वप्न देखा कि उसने सौ रुपए अपने दोस्त से उधार लिए हैं। सवेरे जब नींद खुली तो उसका अच्छा या बुरा फल जानने की उसकी इच्छा हुई। उसने अपने मित्रों में बैठकर इस बात की चर्चा की। धीरे-धीरे खबर बिजली की तरह फैल गई। यहाँ तक कि उस मित्र ने भी इस बात को सुना, जिससे कि ब्राह्मण ने स्वप्न में सौ रुपए लिए थे। उसका जी लालच में फँस गया। उसने चाहा, किसी तरह ब्राह्मण से सौ रुपया लेना चाहिए। वह ब्राह्मण के पास रुपया लेने पहँचा और कहने लगा कि जो सौ रुपया तुमने उधार लिया था, मुझको आवश्यकता है इसलिए आज तुम मेरे रुपए दे दो।’

गरीब ब्राह्मण ने पहले तो सोचा कि मित्र हँसी-मजाक कर रहा है परंतु जब वह हाथापाई करने को तैयार हुआ और बहुत भय आदि दिखाया तो ब्राह्मण देवता के भी प्राण सूखने लगे। बेचारा दिन-भर परिश्रम करता तब उसको खाने को मिलता था। घर में फूटी कौड़ी नहीं थी, रुपए कहाँ से दे। विवश हो हिम्मत बाँधकर वह मित्र का सामना करने को खड़ा हो गया।

अब मित्र महाशय के कान खड़े हुए। उन्हें आशा थी कि डरकर ब्राह्मण देवता रुपए दे देंगे लेकिन जब उनकी इस आशा पर पानी फिरता दिखाई दिया तो उसने ब्राह्मण देवता को धमकी दी और अपने घर चला गया। जाते-जाते कह गया कि मैं तुमसे रुपए अवश्य वसूल कर लूँगा और गवाही में सब मित्रों और पड़ोसियों को उपस्थित करूँगा, जिनके सम्मुख तुमने रुपया पाना स्वीकार किया है।

ब्राह्मण करता भी क्या! ईश्वर पर भरोसा था, उसी का नाम जपने लगा। दूसरे दिन मित्र ने ब्राह्मण पर उधार रुपया लेने का अभियोग लगाकर दावा कर दिया। न्यायाधीश ने दोनों पक्षों की बातों को ध्यान से सुना लेकिन कोई फैसला न कर सके, क्योंकि गवाहों ने स्वप्न में रुपए लेना बतलाया।

सोच-विचार कर न्यायाधीश ने यह मामला बादशाह के पास भेज दिया। बादशाह ने मामले पर अच्छी तरह विचार किया।

यह जानते हुए भी कि मित्र सरासर धोखा कर रहा है, बादशाह को मामला निपटाने की कोई तरकीब न सूझी। लाचार होकर बादशाह ने बीरबल को बुलाया, सब मामला बताया कि बेचारे ब्राह्मण को धोखेबाज मित्र ठगना चाहता है। ऐसे तरीके से न्याय होना चाहिए कि दूध-का-दूध और पानी-का-पानी अलग हो जाए।

बीरबल ने एक बड़ा-सा दर्पण मँगवाया। उसके बाद सौ रुपए उन्होंने ऐसी होशियारी से रख दिए कि दर्पण में सौ रुपए की छाया दीख पड़े। जब रुपए दर्पण में दिखने लगे तब बीरबल धोखेबाज मित्र से बोले कि ‘जिस रुपए की छाया दीखती है, उसे तुम ले लो।’

मित्र महाशय ने अचंभा करते हुए कहा कि ‘यह कैसे ले सकता हूँ? यह तो केवल रुपए की परछाईं है।’

‘फिर तुम असली रुपया क्यों चाहते हो?’

महाशय की गर्दन झुक गई। कुछ जवाब न बन पड़ा। लाचार होकर खाली हाथ चलने को तैयार हुए तो बीरबल बोले कि ‘तुमने गरीब ब्राह्मण को परेशान किया है, उसके काम में रुकावट डाली है अतः बिना सजा पाए यहाँ से न जा सकोगे।’ ..

बीरबल ने समझ-बूझकर उस दगाबाज मित्र को अपराध के अनुसार जुर्माने की सजा दी। जो रकम जुर्माने की मिली, उन्होंने उस ब्राह्मण को हर्जाने में दे दी। इस तरह बीरबल ने दूध-का-दूध और पानी-का-पानी अलग कर दिया तथा अपनी न्यायप्रियता का नमूना दिखलाया। गरीब ब्राह्मण हँसी-खुशी घर वापस आया। जिन्होंने इस न्याय की खबर सुनी उन्होंने बीरबल की प्रशंसा की।

बादशाह तो बीरबल के इस न्याय से एकदम दंग रह गए।

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