एक ब्राह्मण अपनी पत्नी के साथ गाँव में रहता था। उनका एक पुत्र था, जिसे वे दोनों बेहद चाहते थे।
एक शाम ब्राह्मण घर लौटा तो अपने साथ छोटा सा नेवला लेता आया।
उसने पत्नी से कहा कि नन्हा नेवला उनके बेटे का पालतू बन जाएगा।
बच्चा व नेवला दोनों ही बड़े होने लगे। धीरे-धीरे पति पत्नी नेवले को भी अपने पुत्र की तरह चाहने लगे। एक दिन ब्राह्मण की पत्नी बाजार जाना चाहती थी। उसने बच्चे को दूध पिलाया और पालने में सुला दिया। जाने से पहले उसने पति से कहा “मैं बाजार जा रही हूँ। बच्चा सो रहा है। उसका ध्यान रखना।
मैं बच्चे के साथ नेवले को अकेला नहीं छोड़ना चाहती।
ब्राह्मण बोला- “चिंता मत करो। हमारा पालतू नेवला भी बच्चे की तरह ही प्यारा है।” ब्राह्मण की पत्नी बाजार चली गई। ब्राह्मण को कोई काम नहीं था इसलिए वह थोड़ी देर टहलने निकल गया। कुछ देर बाद उसकी पत्नी राशन का सामान ले कर आई। उसने देखा कि नेवला घर के बाहर बैठा था, जैसे उसी के इंतज़ार में हो। उसे देखते ही वह उसका स्वागत करने को लपका।
लेकिन ब्राह्मण की पत्नी उसके मुँह पर लगे खून को देखकर सकते में आ गई- “वह चिल्लाई – “खून!” तुमने मेरे बच्चे को मार डाला।”
एक भी क्षण सोचे बिना, उसने पूरी ताकत से भरा बक्सा नेवले पर दे मारा और वह भाग कर बच्चे के कमरे में पहुँची। उसने देखा कि बच्चा तो पालने में आराम से सो रहा था। पालने के नीचे उसने लहूलुहान साँप देखा, जो मरा पड़ा था।
अब उसे एहसास हुआ कि वहाँ क्या हुआ था। वह कमरे से बाहर भागी ताकि नेवले को देख सके। वह रोने लगी- “तुमने साँप को मारकर मेरे बच्चे को बचाया।” उसे अपने किए पर पछतावा था लेकिन तब बहुत देर हो चुकी थी। इसी दौरान ब्राह्मण भी वहाँ आ गया। उसने देखा कि दरवाजे के बाहर नेवला पड़ा हुआ था। वह मर चुका था।
शिक्षा :- कभी भी बिना सोचे-समझे या जल्दी में कोई काम नहीं करना चाहिए।