आज ब्याज भी चुका दिया..-गृहलक्ष्मी की कहानियां: Hindi Kahaniya
Aaj Byaaz bhi Chuka Diya

Hindi Kahaniya: उत्तराखंड का एक छोटा सा गांव सीतामढ़ी आज तीन दिन हुए बारिश लगातार हो रही थी ,हर चीज जलमग्न हो रही थी, नन्हे नन्हे पेड़ पौधे तो इतनी बारिश में अपना वजूद ही खो चुके थे। छोटे-छोटे घर, दुकानों और खेतों में पानी भर चुका है। खेतों की मेंड (किनारियां) टूट चुकी है।

धान के किसान जहां बारिश शुरू होने पर पहले बहुत खुश थे कि उनकी फसल को पानी मिल गया, अब वे भी चिंतित नजर आ रहें है । हर इंसान अब प्रार्थना कर रहा है कि इंद्रदेव अब शांत हो जाए। क्या पता यदि ऐसी बारिश लगातार होती रही तो कितनों के घर चूल्हे भी नहीं जल पायेंगे, क्योंकि कुछ लोग रोज के कमाने और खाने वाले होते हैं यदि दो दिन से ज्यादा घर रुक जाए तो दो समय की रोटी भी के भी लाले पड़ जाते हैं।

आज तीसरे दिन बारिश का प्रकोप कुछ ज्यादा ही था ,सभी अपने अपने घर में छुपे बैठे हैं कि तभी खबर आती है गांव के साहूकार लाला विष्णु दत्त नहीं रहे। थोड़ी ही देर में यह खबर गांव में जंगल की आग की तरह फैल जाती है सब एकदम हक्का-बक्का है कि अचानक लाला जी को क्या हुआ, कल तक तो अच्छे भले थे।

अब बारिश भी आहिस्ता आहिस्ता थम-थम कर रुक रही है। घरों और मकानों में भरा हुआ पानी धीरे-धीरे अपना रास्ता बना रहा है।
पर गांव में लगभग सभी सड़कें कच्ची हैं और मिट्टी को इतना पानी मिल चुका है कि यदि धरती पर पांव रखो तो एक हाथ भर तो मिट्टी में पांव धंस ही जाता है।

उसी गांव में जब यह खबर एक लकड़ी का टाल चलाने वाले रामकुमार को चलती है तो वो मन ना होते हुए भी हाथ मे छाता ले लाला विष्णु दत्त जी के अंतिम दर्शन को निकल पड़ता है और सोचता जा रहा था उस दिन को जब उसने गरीबी के चलते और अपनी बेटी की शादी के लिए लाला विष्णु से 50,000 रूपए का कर्ज लिया था।

बेटी तो विदा हो गई ,लेकिन कर्ज का ब्याज सुरसा के मुंह की भांति बढ़ता ही जा रहा था, उस पर भी दिन-रात लालाजी का तगादा रहता, वे यह न समझते कि उसकी भी कुछ मजबूरी होगी।

लाला जी को रूपए पैसे की कोई कमी न थी, पर ब्याज का खून मुंह लग चुका था।ऐसे मे बेचारा गरीब रामकुमार करे तो क्या करें।
ब्याज भरे या घर खर्च चलाएं।

एक दिन तंग आकर उसने अपना छोटा सा पुश्तैनी घर बेचकर लालाजी के 50,000 रूपए चुका दिए , वो घर से जिससे उसकी,उसकी पत्नी, और उसकी बेटी की न जाने कितनी यादें जुड़ी थी। रामकुमार का खुद का बचपन ,बहन भाई के साथ की यादें, अपने मां-बाप के साथ बिताई हुई आखिरी यादें,उसकी पत्नी जानकी का सुसराल में आना और उसके छोटे से घर को स्वर्ग बना देना। और उसकी अपनी बेटी मणि के साथ बिताया हुआ हर पल उस घर की चारदीवारी में नजर आता था। घर की एक एक दीवार को उसने बहुत ही प्यार से सींचा था। घर ज्यादा बड़ा नहीं था, पर यादें बहुत अनमोल थी।

पर मरता क्या ना करता लाला जी ने उसकी मजबूरी जरा ना समझी, उसे अपना घर बेचकर, अपना आस पड़ोस सब कुछ छोड़कर, अपनी पत्नी सहित अपनी लकड़ी की टाल में आकर रहना पड़ा। ये लकड़ी की टाल ही अब उनकी जिंदगी का सहारा थी। धीरे-धीरे रामकुमार और उसकी पत्नी जानकी इन सब के अभ्यस्त हो गए, ईश्वर की कृपा से रामकुमार दोनों पति-पत्नी की गुजर-बसर लायक कमा ही लेता और दोनों पति-पत्नी प्रभु के भजन गाकर सुख में जीवन काटने लगे।

रामकुमार अपनी टाल की लकड़ियों को बहुत ही हिफाजत के साथ रखता, ध्यान रखता कि कहीं उसकी लकड़ियां गीली ना हो जाए क्योंकि उसकी रोजी रोटी थी ये लकड़ी की टाल। वैसे भी जब इंसान से एक बार सब कुछ चला जाए तो जो कुछ भी उसके पास थोड़ा बहुत बचता है वो उसके लिए बहुत अनमोल होता है, वो उसे बहुत संजो कर रखता है। ऐसा ही राम कुमार का हाल था।

दोनों पति पत्नी बहुत संतोषी स्वभाव के थे। वैसे भी जब इंसान की आवश्यकता ना के बराबर हो और मन में संतोष हो तो थोड़े में भी बहुत सुख पाता है और यदि मन में ही संतोष ना हो तो दुनिया की दौलत उसे मिल जाए वह फिर भी और अधिक के लिए भागता रहता है। ईश्वर की कृपा से रामकुमार के परिवार में सब कुछ थोड़ा-थोड़ा ठीक होने लगा था।

इन्ही यादों के झुरमुट में चलते चलते लाला जी का घर कब आ गया रामकुमार को पता ही ना चला। घर से रोने पीटने की आवाजें आ रही थी। हर कोई लाला जी के इस तरह अचानक जाने से हक्का-बक्का था। लाखों की जायदाद रुपया पैसा था ,लेकिन अंतिम समय कुछ काम न आ सका ,डॉक्टर भी न बुला पाए ,सब कुछ यही धरा रह गया। क्योंकि मृत्यु तो एक अंतिम सत्य है।

कहा भी गया है

लाख-लाख माया जोड़ी ,
पर संग न जाए एक कोढ़ी।

यानी इंसान जो है पूरी जिंदगी कमाता रहता है ,बस निन्यानबे सौ के चक्कर में लगा ही रहता है, पूरी जिंदगी इसी में निकाल देता है।
पर मृत्यु तो एक दिन सबको आनी है यह शाश्वत सत्य है, ना कोई संग आया है ना ही कोई संग जाएगा, बस इंसान के कर्म ही उसके साथ जाएंगे।

यहां भी देखो ना क्या लाला जी के पास कोई कमी थी, नहीं कोई कमी नहीं थी, आलीशान घर था, नौकर चाकर थे, रुपया पैसा था, ऐशो आराम का हर सामान था। पर नहीं थी तो लाला जी के दिल में छोटे तबकों के लोगों प्रति दया, जरूरतमंद के प्रति करुणा भाव नहीं था। बस पूरी जिंदगी पैसे के ही चक्कर में लगे रहे लालाजी। गरीबों की मजबूरी का फायदा उठाकर उनसे मोटा ब्याज ले ले कर अपनी तिजोरी का वजन बढ़ाते रहे, कभी यह नहीं सोचा कि गरीब को कितना मुश्किल होता होगा इतना मोटा ब्याज देना।

रामकुमार ने भी लालाजी के अंतिम दर्शन किए और वहीं एक तरफ बैठ गया। तभी वहां किसी ने बताया कि लगातार बारिश होने की वजह से कहीं भी चिता के लिए सूखी लकड़ी का इंतजाम नहीं हो पा रहा है ,सारे गांव भर में किसी के यहां सूखी लकड़ी नहीं मिली। तभी लाला जी के मुनीम जी ने रामकुमार की ओर देखा और पूछा क्यों रे रामकुमार क्या तेरे पास लकड़ी का इंतजाम हो पाएगा।

रामकुमार ने हां कर दी और तुरंत लकड़ियों का इंतजाम कर दिया। आज लालाजी उसी रामकुमार की सूखी लकड़ियों की बदौलत अपनी अंतिम यात्रा पर निकले थे जिसका जीते जी वो दो कौड़ी का ब्याज भी माफ न कर सके ,जब मुनीम जी ने रामकुमार को पैसे देने चाहे तो रामकुमार ने पैसे लेने से साफ इंकार कर दिया और मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद कहा और सोचा कि चलो आज ईश्वर ने लालाजी के ब्याज के भी ब्याज से मुझे मुक्ति दिला दी ,और मैंने ब्याज का भी ब्याज चुका दिया।