पलकों की छांव में.......गृहलक्ष्मी की कहानियां: Hindi Stories
Palko ki Chav Mein

Hindi Stories: पन्नालाल अपनी बिटिया पीहू को विदा कर धराशाई हो चारपाई पर बैठ जाते हैं। जब तक बिटिया की गाड़ी उनकी आंखों से ओझल नहीं हो जाती तब तक उस गाड़ी को देखते ही रह जाते हैं ।आंखों से अश्रु धारा निरंतर बहे जा रही,जो रुकने का नाम नहीं ले रही है। तभी तेज हवा के साथ हल्की बारिश होने लगती है, ऐसा लग रहा एक पिता के आंसुओं के साथ-साथ पिता रूपी आसमां भी बिटिया के विदाई पर बारिश के आंसू गिरा रहा हो। पास आकर पन्नालाल की पत्नी श्यामला भी बैठ जाती है क्यों उदास हैं बिटिया है तो जाना ही था ।

सभी रिलेटिव अपने अपने कामों में व्यस्त हो गए, सभी को निकलने की जल्दी पड़ी थी। दोनों दंपति एक दूसरे से बातें करने लगे बात करते-करते कहने लगे याद है श्यामला वो दिन..! जिस दिन हम लोग पीहू को अपने घर लाए थे उस दिन भी इसी तरह तेज बारिश हो रही थी। आज जब पीहू चली गई , देखो धीरे-धीरे बारिश कैसे तेज होने लगी है उसी दिन की तरह हां हां मुझे सब याद है। कहते हुए श्यामला रिलेटिव सभी के चाय नाश्ता का इंतजाम करवाने चली जाती है। इधर पन्नालाल बारिश के साथ-साथ अपनी पिछली जिंदगी की गहराइयों में चले जाते हैं…….।

यह कहानी शुरू होती है गांव के जमींदार हीरालाल ठाकुर से संतान के नाम पर सिर्फ उनकी एक संतान मैं यानी पन्नालाल। बहुत सर आंखों पर बिठा के रखा था मुझे,घर के दादा दादी से लेकर सभी ने। इकलौते होने की वजह से, जो मांगता वह मिल जाता। मेरी मां कभी-कभी गुस्से में कहती भी कितना मन मिजाजी बना रहे, इतना मन मिजाजी होना ठीक नहीं।  हमारी दादी कहती जो मेरा पोता खाएगा मैं वही बना दूंगी। जो मांगेगा वह दूंगी जमींदार का बेटा है जमींदार का पोता है। जमींदारी वाली रौब होनी तो चाहिए मेरे पोते के अंदर, धीरे-धीरे मैं भी बचपन से युवा अवस्था की ओर बढ़ा इतने मन मिजाजी होने की वजह से पढ़ाई में कोई खास नहीं किसी तरह थोड़ी बहुत ही शिक्षा ले पाया , जिससे मेरी मां को दुख पहुंचता था। जैसे जैसे मैं बड़ा हुआ मुझे मां की बात समझ आने लगी की , जिंदगी को सही ढंग से चलाने के लिए मन पर नियंत्रण जरूरी है……..।

 मेरे में आए बदलाव से मेरी मां बहुत खुश नजर आ रही थी । सभी घर वाले भी महसूस कर रहे थे मेरे इस बदलाव को। समय बीतता गया मेरे विवाह योग होने से थोड़ा पहले ही मेरा विवाह श्यामला से करवा दिए। क्योंकि मैं इकलौता था बड़े धूमधाम से विवाह संपन्न हो गया। मैं श्यामला को विदा करा अपने घर खुशी-खुशी घर गृहस्थी बसाने में लग गया। सभी घरवाले को अपने वारिस का इंतजार था। जल्दी से जल्दी घर में वारिस आए ।

घर में किलकारियां गूंजे, ये ईश्वर को मंजूर ना था। नाम मेरा पन्नालाल इस रत्न को संतान रूपी रत्न शायद किस्मत में ना लिखा था। लेकिन मैं किस्मत को कोसने वालों में से नहीं था ना ही मेरी पत्नी श्यामला वह भी काफी समझदार थी। लेकिन वक्त जब साथ नहीं देता तो सारी समझदारी धरी की धरी रह जाती है। यही हुआ श्यामला के साथ कोई भी मुझे कुछ नहीं कहता सारे ताने श्यामला को ही देते थे। जिससे वह दुखी रहने लगी फूल जैसी  नाजूक श्यामला धीरे-धीरे मुरझाने लगी थी। मुझसे उसका मुरझाया चेहरा देखा नहीं जा रहा था। मैं कुछ सोचने पर मजबूर हो गया कि कैसे मैं इसको संतान सुख की प्राप्ति करवाऊं……..।

 इसी उधेड़बुन में उलझा था कि, मेरे बचपन के सखा  सुदीश जी आते हैं और कहते क्या हाल-चाल है पन्ना भाई । उनको देखते ही जैसे लग रहा था कि कितनी बड़ी जन्नत मुझे मिल गई हो। मेरा मन उबाल मारने लगा मैंने सारी बातें बता दी। ऐसी बात है सुधीर भाई ने कहा परेशान मत हो , मेरे एक रिलेटिव की 4 बेटियां हैं हमेशा परेशान रहता है कि कोई लेले एक बेटी को तो उसका भी पालन पोषण अच्छे से हो जाता। तुम्हें बिटिया गोद लेने से कोई एतराज तो नहीं।अरे नहीं नहीं मुझे तो बस तुम्हारी भाभी के व्यस्त रहने की जुगाड़ चाहिए। ठीक है तो समझो तुम्हारी समस्या हल मैं कल ही बात करता हूं। परसों तुम आकर उसे गोद ले लेना हमेशा के लिए। खुशी से गले लगाते हुए, आखिर सखा ही दिल की बात समझ सकता है। चलो चलता हूं कल बात करके परसों का दिन पक्का कर लेंगे हम लोग गुड़िया को गोद लेने के लिए…….।

सुबह-सुबह मैं घर में सबको  बताया कि ऐसी बात है बड़े बुजुर्ग तो नाराज हो गए । फिर समझाने पर समझ गए , मेरी मां ने आखिर कह ही दिया गोद लेता तो बेटा लेता बिटिया क्यों ले रहे हो। मैं अनसुना करते हुए श्यामला से कहा तैयार हो जाओ। वह खुशी-खुशी तैयार होकर मेरे पास आकर बैठी । आज बारिश रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। और हमें उतनी ही बेसब्री से अपनी बिटिया को घर लाने की जिद पड़ी थी। आखिर बहुत देर तेज बारिश होने के बाद भी बारिश कम नहीं हुई तो हमारा दिल बेकरार हो उठा जाने के लिए उसी बारिश में हम दोनों छाता लेकर निकल गए । घर में संतान आने की खुशी के आगे बारिश में भीगना कुछ भी फर्क नहीं पड़ रहा था…….।

सही समय से हम लोग सकुशल पहुंच गए अपने मित्र के रिलेटिव के घर वहां पर हमारे मित्र पहले से ही मौजूद थे।  मेरा मन उतावला बना हुआ था जीस बिटिया को गोद लेना है उसको देखने के लिए। थोड़ी देर में चाय नाश्ता के बाद हमारे मित्र की मौजूदगी में हमने उनकी तीसरे नंबर बिटिया को गोद ले लिया लिखित स्वरूप। मैंने बहुत ही निश्चल भरे भाव से कहा कि अब मैं चलता हूं। बिटिया को कोई भी दिक्कतें नहीं आएंगी यह आपकी बिटिया है। लेकिन आज से यह मेरी बिटिया भी है पन्नालाल की बिटिया पीहू मैंने नामकरण कर दिया । मात्र 2 साल की थी पीहू जब मैं उसे घर लेकर आया था उस बारिश भरे दिन में। पीहू को प्यार देने में किसी ने कोई कसर नहीं छोड़ी घर में जैसे रौनक सी आ गई थी।श्यामला की चेहरे की खुशी दिन-दुगुनी रात चौगुनी बढ़ती ही जा रही थी। इसी खुशी को मैं भी देखना चाहता था और इसी में मैं भी खुश……।

पंख लगा कर समय बित गया, अब उसकी विवाह की चिंता सताने लगी थी। पढ़ाई लिखाई के साथ हर गुन से संपन्न थी हमारी भी पीहू। विवाह योग अच्छा घर बर भी मिल गया आसानी से। पीहू मेरी इतनी सुंदर थी और पढ़ाई के चर्चे दूर-दूर तक थे। लेकिन आज पीहू के दो प्रश्न मुझे झकझोर के रख दिया। उसने विवाह से 2 दिन पूर्व मुझसे दो सवाल पूछा । पापा क्या मैं आपकी अपनी बिटिया नहीं सच-सच बताना????  दूसरा प्रश्न था उसका अपने बिटिया ही क्यों गोद लिया?? मैं स्तंभ सा रह गया उसके प्रश्न को सुनकर, लेकिन थोड़ा स्थिर होते हुए मैंने कहा हां मैंने तुम्हें गोद लिया लेकिन कभी तुम्हें कोई कमी महसूस होने नहीं दिया । हमेशा अपनी पलकों की छांव में रखा अपनी परछाई बनाकर। दूसरी बात हमें तो संतान चाहिए था घर की खुशियां चाहिए थी। बेटा को तो हर कोई गोद लेना चाहता है बिटिया को गोद लेकर घर की रौनक बनाना कौन चाहता है। उसने मुझे गले लगा कर पापा मैं आपकी ही परछाई हूं। हमेशा आपके पलकों की छांव में रहूंगी आपकी लाडली बनकर। श्यामला अरे कहां खोए हुए हैं हंस के अपनी पलकों में समेटे हुए उन रंगीन ख्वाबों की परछाई में अपनी पीहू के साथ खोया हुआ हूं…….।