naee bakariyaan, dada dadi ki kahani
naee bakariyaan, dada dadi ki kahani

Dada dadi ki kahani : एक गड़रिये के पास बहुत सारी भेड़ें थीं। वह रोज़ भेड़ों को चराने के लिए घास के मैदान में ले जाता था। एक दिन शाम को जब वह वापिस लौट रहा था, तब कुछ जंगली बकरियाँ भेड़ों के साथ मिल गईं। गड़रिये ने खुश होकर सोचा कि उसकी भेड़ों का झुंड अपने-आप बड़ा हो गया है, इसीलिए उसने बकरियों को भी साथ ले लिया और वापिस आ गया।

उसने भेड़ों और बकरियों को एक साथ बाड़े में बंद कर दिया।

अगले दिन वह सुबह उठा तो बाहर बारिश हो रही थी। उसने तय किया कि वह भेड़ों और बकरियों को घर पर ही चारा दे देगा। उसके पास घास कम थी। उसने अपनी भेड़ों को थोड़ी-सी घास खाने को दी और बकरियों को ज्यादा। उसने सोचा कि बकरियाँ खुश होकर वहीं रुक जाएँगी।

जब बारिश रुकी तो उसने बाड़ा खोला। जैसे ही बाड़े का दरवाज़ा खुला, सारी बकरियाँ निकलकर भागने लगीं।

‘कैसी दुष्ट बकरियाँ हैं।’ गड़रिये ने सोचा, ‘मैंने इन्हें अपनी भेड़ों से ज्यादा खाने को दिया फिर भी ये जा रही हैं।

तब बकरियों में से एक पलटकर रुकी और बोली, ‘तुमने हमारे लिए अपनी पुरानी भेड़ों को कम खाने को दिया। कल को यदि कुछ और नई भेड़-बकरियाँ तुम्हारे पास आ गईं तो तुम हमारा भी ध्यान नहीं रखोगे।’

यह कहकर बकरी चली गई।

गड़रिए ने सोचा कि बकरी ने ठीक ही कहा था। उस दिन के बाद उसने किसी नए जानवर के लिए अपनी भेड़ों को अनदेखा नहीं किया।

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