Dada dadi ki kahani : एक महिला थी-सुमन। उसकी दो बेटियाँ थीं। बड़ी बेटी का नाम था-किरन और छोटी बेटी का नाम था महक। सुमन अपनी बड़ी बेटी, किरन को बहुत प्यार करती थी। उसे हर चीज़ लाकर देती थी। लेकिन महक से वह घर का सारा काम करवाती थी। उसे दिनभर किसी-न-किसी बात पर डाँटती रहती थी। महक एक बहुत प्यारी लड़की थी। वह अपनी माँ से कभी कोई शिकायत नहीं करती थी। चुपचाप सारा काम करती रहती थी।
एक दिन माँ ने महक को कुएँ पर पानी भरने के लिए भेजा। जब वह कुएँ से पानी निकाल रही थी, तभी वहाँ एक बूढ़ी भिखारिन आई। उसके कपड़े पुराने और फटे हुए थे। वह बहुत प्यासी थी। भिखारिन ने महक से कहा, ‘बेटी, बहुत प्यास लगी है। क्या थोड़ा पानी पिलाओगी?’
महक बहुत ही दयालु थी। उसने तुरंत बूढ़ी भिखारिन का हाथ पकड़कर उसे बैठाया। फिर उसे अच्छी तरह पानी पिलाया। उसने भिखारिन के साथ इतने आदर से बात की जैसे कि वह कोई रानी हो। वास्तव में यह भिखारिन एक परी थी, जो वेष बदलकर आई थी। परी महक के अच्छे स्वभाव से इतनी खुश हुई कि उसने महक को एक वरदान दिया। जब भी महक बोलती थी, उसके मुँह से फूल और हीरे-मोती झड़ने लगते थे।
महक की माँ को जब इसके बारे में पता चला तो उसे अच्छा नहीं लगा। वह चाहती थी कि ऐसा किरन के साथ हो जाए। उसने किरन को भी पानी भरने भेज दिया।
इस बार परी एक रानी बनकर आई और उसने पानी माँगा। माँ के लाड़-प्यार के कारण किरन बिल्कुल बिगड़ गई थी। उसने मुँह बनाकर रानी से कहा, ‘ये रखा है पानी, अपने-आप लेकर पी लो। रानी हो तो क्या पानी भी कोई और पिलाएगा तुम्हें। मैं तो बूढ़ी भिखारिन का इंतज़ार कर रही हूँ। उसी को पानी पिलाऊँगी मैं तो…. माँ ने इसीलिए मुझे यहाँ भेजा है।’
रानी बनी हुई परी तुरंत भिखारिन बन गई और बोली, ‘मुझे तुम्हारे हाथ से पानी नहीं पीना है। तुम्हें इतनी भी समझ नहीं कि अच्छी तरह बात कैसे की जाती है। मैं तुम्हें शाप देती हूँ कि जब भी तुम और तुम्हारी माँ उस प्यारी बच्ची महक से चिल्लाकर बात करना चाहोगे, तुम बोल ही नहीं पाओगे। शब्द तुम्हारे गले में अटक जाएँगे और तुम्हारी साँस रुकने लगेगी। इसलिए आज से अपनी बहन से सिर्फ प्यार से बात करना।’
किरन चुपचाप घर आ गई और उसने माँ को पूरी बात बताई। यह सुनकर माँ को महक पर बहुत ज़ोर से गुस्सा आया। वह ज़ोर से चिल्लाने ही वाली थी कि उसकी आवाज़ बंद हो गई। उसका दम घुटने लगा। किरन घबराकर बोली, ‘माँ, गुस्सा मत करो। प्यार से बात करो महक के साथ।’ माँ को परी का शाप ध्यान आया। उस दिन के बाद से महक को कभी डाँट नहीं सुननी पड़ी। उसके अच्छे स्वभाव के कारण सब कुछ ठीक हो गया था।
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