kharagosh kee daavat, dada dadi ki kahani
kharagosh kee daavat, dada dadi ki kahani

Dada dadi ki kahani : एक ख़रगोश बड़े ध्यान से एक लोमड़ी को देख रहा था। लोमड़ी ने उससे पूछा, ‘क्या बात है ख़रगोश, क्या देख रहे हो?’

तब ख़रगोश बोला, ‘मैं तो बस यह जानने की कोशिश कर रहा था कि तुम वाकई चालाक हो या लोगों के सीधेपन का फायदा उठाती हो।’

लोमड़ी बोली, ‘यह तो बड़ा ही मजेदार प्रश्न है। ऐसा करो, तुम रात के खाने पर मेरे घर आ जाओ। हम खाना खाने के बाद इस बारे में बात करेंगे।’

खरगोश तैयार हो गया।

वह रात को लोमड़ी के घर पहुंचा। उसने देखा कि खाने की मेज़ सजी हुई थी।

लोमड़ी ने ख़रगोश को प्यार से बैठाया। फिर उसके परिवारवालों के बारे में पूछने लगी। एक लोमड़ी उससे इतने प्यार से बात कर रही थी। ख़रगोश के साथ ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। था। वह बहुत खुश था। उसे लगा कि लोमड़ी उतनी बुरी नहीं है, जितनी वह सोच रहा था।

फिर लोमड़ी ने ख़रगोश से कहा, ‘आओ, मुझे बड़ी ज़ोर से भूख लगी है।’

ख़रगोश को भी ज़ोरों की भूख लगी हुई थी। वह उठकर खाने की मेज़ तक पहुँचा। उसने देखा वहाँ प्लेटें, चम्मच, पानी के गिलास, सब कुछ था। लोमड़ी ने ख़रगोश को गाजर खाने को दी। मीठी-मीठी गाजरें ख़रगोश ने पेट भरकर खाईं। ख़रगोश ने देखा कि लोमड़ी की प्लेट ख़ाली थी। वह कुछ भी नहीं खा रही थी। ख़रगोश ने कहा, ‘तुम भी तो खाओ।’

तब लोमड़ी बोली, ‘पहले तुम खाओ फिर मैं खाऊँगी।’ इतना सुनते ही अचानक ख़रगोश वहाँ से उठकर भाग गया। गाजरें, पत्ता गोभी, सब कुछ वहीं छोड़कर। अब उसे समझ में आया था कि लोमड़ी खाना क्यों नहीं खा रही थी।

ज़रा बताओ तो सही कि लोमड़ी आख़िर क्या खाने वाली थी?

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