udhaar kee poonchh
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भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

नन्हा-सा पिंकी अपने सात बहन-भाइयों में सबसे छोटा था। वह गुलाबी रंग का छोटा सा सूअर का बच्चा था, अभी आंखें खोले उसे अधिक दिन नहीं हुए थे, परंतु जब से आंखें खोली थी बिटर बिटर चारो ओर की दुनिया देख देख कर हैरान था।

एक दिन नदी में उसने अपनी परछाईं देखी तो दंग रह गया, ‘हाय राम वह इतना सुंदर है उसे अपना गुलाबी रंग बहुत पसंद आया । गुलाबी-गुलाबी तो उसके बड़े छ: भाई बहन भी थे, लेकिन सब पर कुछ कुछ कालापन या सलेटीपन था, लेकिन उसका रंग वाह! एक दम गुलाबी वह अपनी मां से बोला, मां, मां, मेरा नाम पिंकी है पिग्गी नहीं, ‘मां सूअरिया हंसने लगी, ‘वाह तूने अपना नाम भी रख लिया।’

‘हां मां जहां पास के मकान के पास हम खाना खाने जाते हैं न उसमें जो छोटी-सी लड़की है न उसका नाम पिंकी है। मेरा भी तो रंग वैसा ही है मां मुझे भी पिंकी कहो न।’ कहकर वह पास के गड्ढे में देखने लगा। उसे अपना चिकना चुपड़ा शरीर भी बहुत अच्छा लगता था। अभी उसके शरीर पर बस हल्के हल्के रोएं आये थे लेकिन एक बात उसे बहुत बुरी लगती थी, उसे अपनी पूंछ बिल्कुल नापसंद थी। जरा सी पूंछ न झब्बा न बाल । बहन भाइयों के साथ इधर उधर घूमता तो सबसे पहले और जानवरों की पूंछ ही देखता। किसी की पूंछ इतनी छोटी नहीं थी। शेर जब पूंछ खड़ी करता तो लम्बी पूंछ पर गुच्छा कितना सुंदर लगता था। लकड़बग्धा ऐसा भयानक सा है पर पूंछ पर कितने एक से लंबे-लंबे बाल । उसे लोमड़ी की पूंछ बहुत पसंद आती कितनी सुंदर पूंछ है जब शान से लहराकर चलती है तो कितनी अच्छी लगती है और जब वह अपनी पूंछ लहराना चाहता है तो लगता है सुतली में गांठ पड़ गई।

एक दिन जंगल में शहर से आई तरह-तरह की चीजों की प्रदर्शनी लगी। नये-नये विदेशी फल, नकली पेड़, नकली फल, एक दुकान तरह तरह से फल वगैरह को काटने की थी। एक दुकान पर डाल काटना, घर बनाना, घर में पानी रुकने से रोकना आदि बहुत सी दुकान थीं लेकिन जिस दुकान को देखकर पिंकी बहुत खुश हुआ वह थी जंगी लंगूर की नकली जानवरों की दुकान । शेर, चीता, भालू, लोमड़ी, जिराफ, बंदर न जाने कितने जानवर रुई और बाल वाले कपड़े के भरे रखे थे। उनमें सब जानवरों के अलग से चेहरे और पूंछ भी मिल रही थी। तरह-तरह की पूंछ लगी हुई थीं। झब्बेदार पूंछ, खरगोश की पूंछ, पूडल कुत्ते की रिबन बंधी पूंछ, चीते की पूंछ, खुद लंगूर की मीटर भर चाबुक सी पूंछ, लोमड़ी की लंबी लहराती पूंछ पर तो उसकी निगाहें अटक ही गई। लंगूर जोर-जोर से आवाज लगा रहा था। “टूटी हो, चटकी हो, घायल हो अपनी पूंछ बदलिये या मरम्मत कराइये, बेहद सस्ती मजबूत टिकाऊ ।’

पिंकी झट से दुकान पर चढ़ गया और उसने लोमड़ी की झब्बेदार लम्बी पूंछ मांगी।

‘तुम्हें यह पूंछ किसके लिए चाहिये?’ जंगी लंगूर ने पूछा।

‘अपने लिए और किसके लिए?’ पिंकी ने अकड़ कर कहा

‘नहीं भाई यह तुम्हारे लिये ठीक नहीं रहेगी, तुम्हारे शरीर से बहुत बड़ी हो जायेगी।

‘हो जाने दो। सुंदर भी तो कितनी लगती है, लंबी है इसीलिये तो मुझे अच्छी लग रही है-

तभी ऊदविलाव आया, ‘मेरी पूँछ है क्या?’

हां हां क्यों नहीं , ‘लंगूर ऊदविलाव की पूंछ दिखा रहा था। ऊदविलाव ने पिंकी के हाथ में लोमड़ी की पूंछ देखी तो बोला, “पिंकी यह क्या तुम ले रहे हो?’

‘हां’

‘मां से पूछा है क्या? पता है मंहगी भी है और तुम्हारे काम भी नहीं आयेगी।

लेकिन पिंकी को बिना मांगे की सलाह बिल्कुल अच्छी नहीं लगी। वह बुदबुदाया। सब जलते हैं, मेरा रंग पहले से ही सुंदर है पूंछ लगा लूंगा तो सबसे सुंदर बन जाऊंगा। उसने पूंछ लगाई पैसे दिये और भाग लिया।

सब जानवर मुड़-मुड़ कर उसे देख रहे थे। कुछ हंस रहे थे। कुछ मुंह फाड़े देख रहे थे, क्योंकि उसके छोटे शरीर, गुलाबी रंग पर बड़ी-सी भूरी पूंछ अजीब लग रही थी। पर पिंकी समझ रहा था कि सब उसकी सुंदरता देख कर दंग रह गये हैं।

मेले में सारे पैसे उसने पूंछ पर खर्च कर दिये थे। उसे भूख लग रही थी। वह झाड़ियों में खाना ढूंढने लगा। यह क्या उसकी पूंछ तो अटक गई पिंकी ने सोचा लोमड़ी भी तो झाड़ियों में घुस जाती है, उसे क्या हो गया। ओ! वह भी तो पागल है पूंछ को हर समय तो लहराया नहीं जा सकता है। झाड़ियों में जाने के लिये तो नीचे पैरों के बीच में दबाना चाहिये। उसने पूंछ को पैरों में दबानी चाही लेकिन वह दबी ही नहीं। कहां उसका छोटा सा शरीर कहां बड़ी-सी पूंछ।

वह झाड़ियों से बाहर निकलना चाह रहा था, लेकिन पूंछ थी कि उलझ रही थी और बाल टूट रहे थे। एक तरफ उसे भूख लगी थी। वजनदार पूंछ ने उसे एकदम थका दिया था। उसने कीचड़ में लोटकर अपनी थकान मिटानी चाही। कीचड़ में लेटकर वह बाहर निकला। शरीर पर जमी मिट्टी कीचड़ झटक कर हटाई लेकिन पूंछ थी कि कीचड़ में सन कर ऐसी वजनी हो गई कि उस पर उठाये नहीं उठी। उसने उसमें बहुत झटके मारे यहां तक कि उसका शरीर दर्द करने लगा। चिपक कर एकदम लटक गई। कुछ देर उसे घसीटता रहा पर जब चलने से लाचार हो गया तो बैठ गया । अब क्या करूँ? घर पर मां फिक्र कर रही होगी। अब उसे वह पूंछ बवाल लगने लगी। उसको समझ में आ गया क्यों उसके पास छोटी-सी चिकनी सी पूंछ है। उसे वही अच्छी लगने लगी। उसने जैसे ही उसे खोल कर डाला चैन आ गया। उसने मुक्ति की सांस ली और अपनी छोटी-सी पूंछ को ही अंटे बांधता लहराता घर की ओर भाग लिया।

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’