Best Hindi Story: कुछ दिनों बाद कनिका का स्थानांतरण उसी शहर के मुख्य शाखा में हो गया। कनिका ऑफिस छोड़ने से पहले मेहुल से मिलने गई।
लगातार लगभग चार-पांच घंटे से बिना किसी ब्रेक के काम कर रही कनिका, स्वयं को थोड़ा रिलेक्स करने की चाह में अपने ऑफिस के पांचवें माले पर स्थित कैंटीन में कॉफी पीने के लिए
आ गई। गर्म कॉफी का मग हाथों में लिए अभी वह कॉफी का एक घूंट ही पी पाई थी
कि किसी एक अनजान स्वर का अभिवादन उसके कानों पर पड़ा-
‘हाय कनिका!
कनिका ने आश्चर्य से उस शख्स की ओर देखा। सामने हमउम्र युवक खड़ा था। उस युवक ने मुस्कुरा कर अपना परिचय देते हुए कहा- ‘माई सेल्फ मेहुल…आई एम फ्रॉम
एचआर डिपार्टमेंट।’
कनिका कुछ कहती इससे पहले ही मेहुल ने कहा, ‘आज आपका ऑफिशियल फाइल देख
रहा था। इस महीने आपका प्रमोशन और इंक्रीमेंट ड्यू है।
मेहुल के इतना कहने पर भी कनिका ने यह जानने में कोई रूचि नहीं दिखाई कि उसे यह प्रमोशन व इंक्रीमेंट मिलेगा या नहीं। कनिका के इस अरुचि पर मेहुल को थोड़ी हैरानी भी हुई क्योंकि अक्सर प्रमोशन और इंक्रीमेंट की बात सुन कर ज्यादातर लोग थोड़े उत्साहित हो जाते हैं । कनिका का यह संजीदगी व बेफिक्री भरा व्यवहार मेहुल को आकर्षक लग रहा था। बात को बढ़ाते हुए मेहुल ने कनिका से कहा, ‘तुम्हारी फाइल पढ़ते हुए आज तुमसे मिलने की इच्छा हुई और इत्तेफाक देखो कि तुमसे मिलना हो गया। मेहुल के इतना कहने पर कनिका ने मुस्कुरा दिया। उसके मुस्कुराते ही
मेहुल अपनी कही बातों पर जोर देते हुए बोला, ‘मैं सच कह रहा हूं, तु हारी पर्सनल
फाइल पढ़ कर मैं सच में तुम से मिलना चाहता था।
‘क्यों…? कनिका ने सपाट सा प्रश्न किया। ‘वो फिर कभी बताऊंगा, पहले तुम यह बताओ क्या तु हैं अपने प्रमोशन और इंक्रीमेंट के बारे में सुन कर कोई खुशी नहीं हुई? और क्या तुम इस विषय में कुछ भी जानना नहीं चाहती?
‘नहीं, मैं अपने काम के प्रति ईमानदार हूं, अपने हर प्रोजेक्ट को शत-प्रतिशत देती हूं।
अब यह मैनेजमेंट तय करे कि उन्हें एक काबिल एपलॉइ को प्रमोशन व इंक्रीमेंट देना
चाहिए या नहीं।
इन सभी बातों के मध्य कनिका का कॉफी मग भी खाली हो गया, कनिका कॉफी का आखिरी घूंट गटकती हुई मेहुल से ‘एक्सक्यूजमी’ कह कर अपने विभाग के लिए मुड़ गई। मेहुल उसे जाता हुआ देखता रहा। कनिका और मेहुल की यह पहली मुलाकात थी लेकिन आखिरी नहीं। उसके बाद दोनों अक्सर ऑफिस कैंटीन में मिलने लगे। मेहुल ढेर सारी बातें करता और कनिका उसे शान्त भाव से सुनती।
मेहुल के मन में कनिका के लिए प्रेम के अंकुर प्रस्फुटित होने लगे किन्तु कनिका का शांत और गंभीर स्वभाव मेहुल को कनिका से अपना हाले दिल बयां करने से रोक देता। कुछ दिनों बाद कनिका का स्थानांतरण उसी शहर के मु य शाखा में हो गया। कनिका ऑफिस छोड़ने से पहले मेहुल से मिलने ग ई। उस दिन पहली बार मेहुल कुछ बोल नहीं रहा था और कनिका हर बार की तरह चुपचाप शांत मेहुल के सामने बैठी रही। लंबी खामोशी के बाद मेहुल से विदा लेती हुई कनिका बोली, ‘अच्छा चलती हूं अब हमारे ऑफिस अलग-अलग हो गए हैं और रास्ते भी, शायद अब मिलना ना हो।
इतना कह कर जैसे ही कनिका जाने लगी मेहुल बोला, ‘हमारे ऑफिस अलग-अलग हो गए हैं लेकिन यदि तुम चाहो तो हमारे घर और रास्ते एक हो सकते हैं । मेहुल के ऐसा कहने पर कनिका आश्चर्य से उसकी ओर देखने लगी तो मेहुल बोला, ‘क्या तुम मुझसे शादी करोगी…? इतना सुनते ही क्षण भर के लिए कनिका के चेहरे पर अनगिनत भाव उभर आए, फिर वह स्वयं को संयमित करते हुए बोली, ‘मेहुल तु हें पता नहीं मैं कौन हूं, मुझे स्वयं भी पता नहीं, मैं कौन हूं, क्या तुम एक ऐसी लड़की को अपने जीवन का हमसफर बनाना चाहोगे जिसके पास ना अपना सरनेम है, ना जाति है, ना धर्म है और ना ही उसके संप्रदाय का कुछ पता है। तुम नहीं जानते मैं एक अनाथ हूं। मेरे माता-पिता कौन हैं, मैं नहीं जानती, मैं एक स्वयं सेवी संस्था के अनाथालय में पली बढ़ी हूं। यह सब कहते हुए कनिका का कंठ भर आया। कनिका की सारी बातें सुनने के पश्चात्मे हुल गंभीर स्वर में बोला, ‘मैं पहले दिन से ही सब जानता हूं क्योंकि मैंने तु हारी फाइल देखी है जिसमें ना तु हारा सरनेम है,
ना जाति है, ना धर्म है और ना ही तुम्हारे माता-पिता का नाम।
इतना कह कर थोड़ी देर रूकने के पश्चात मेहुल लंबी सांस भरते हुए दोबारा बोला, ‘हम सब जानते हैं सरनेम, जाति, धर्म और संप्रदाय मनुष्य को मनुष्य से अलग कर देते हैं,उन्हें बांट देते हैं लेकिन एक मात्र ढ़ाई अक्षर प्रेम का ही मनुष्य को मनुष्य से आजीवन जोड़ कर रखता है वही प्रेम मैं तुमसे करता हूं, जिसमें सरनेम, जाति और धर्म के लिए कोई स्थान नहीं है। अब बताओ क्या हम दोनों के
घर का पता एक हो सकता है? क्या तुम मुझसे शादी करोगी? मेहुल की बातें सुनकर कनिका ने मुस्कुराते हुए हां में अपनी पलकें झुका दी।
