Posted inमहाभारत, हिंदी कहानियाँ

कंस-वध – महाभारत

जब भगवान श्रीकृष्ण और बलराम ने रंगभूमि में प्रवेश किया, उस समय कुवलयपीड़ के विशाल दांत शस्त्र-रूप में उनके हाथों में सुशोभित थे। उनके शरीर पर पसीने की बूंदें रत्नों की भांति प्रकाशित हो रही थी। उनका मुखमण्डल सूर्य के समान आभायुक्त था। कुछ ग्वाल-बाल उनके पीछे चल रहे थे। उन्हें इस प्रकार रंगभूमि में […]

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कर्ण को शाप – महाभारत

कुंती-पुत्र कर्ण ने द्रोणाचार्य से शिक्षा-दीक्षा प्राप्त की थी। बाद में वे अस्त्र-विद्या सीखने के लिए भगवान परशुराम की शरण में चले गए। परशुराम केवल ब्राह्मण कुमारों को ही विद्या प्रदान करते थे। इसलिए कर्ण ने ब्राह्मण वेष बनाया और छलपूर्वक उनसे शस्त्र-विद्या प्राप्त करने लगे। परशुरामजी ने उन्हें ब्राह्मण कुमार ही समझा और उन्हें […]

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दक्षिणा में अंगूठा – महाभारत

एक बार कृपाचार्य से भेंट करने के लिए द्रोणाचार्य अपनी पत्नी और पुत्र के साथ हस्तिनापुर पधारे। वे अनेक दिनों तक उनके पास रहे। किसी बाहरी व्यक्ति को उनके आगमन की खबर नहीं थी। एक दिन कौरव और पांडव गेंद से खेल रहे थे। खेलते-खेलते गेंद उछलकर निकट के एक कुएं में जा गिरी। राजकुमारों […]

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कुबेर-पुत्रों को शाप – महाभारत

धनपति कुबेर के नलकूबर और मणिग्रीव नामक दो पुत्र थे। उनकी गिनती भगवान शिव के अनुचरों में होती थी। अतः देवगण भी उन दोनों का आदर-सम्मान करते हुए उनके छोटे-मोटे अपराधों को क्षमा कर देते थे। इससे धीरे-धीरे उनके मन में अहंकार उत्पन्न हो गया। वे अपने समक्ष देवगण को शक्तिहीन, तुच्छ और असहाय समझने […]

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कौरवों का जन्म – महाभारत

एक बार महर्षि व्यास हस्तिनापुर पधारे तो गांधारी ने श्रद्धापूर्वक उनकी सेवा की। गांधारी के सेवाभाव को देखकर महर्षि व्यास अत्यंत प्रसन्न हुए और लौटते समय उन्होंने वर दिया‒ “गांधारी! शीघ्र ही तुम्हें सौ पुत्रों की प्राप्ति होगी। वे धृतराष्ट्र के समान परम बलशाली, पराक्रमी और वीर होंगे। इसके अतिरिक्त तुम्हें एक पुत्री भी प्राप्त […]

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पांडवों का जन्म – महाभारत

विवाह के उपरांत राजा पांडु विशाल सेना लेकर विजय-अभियान पर निकले। उन्होंने आस-पास के सभी प्रदेशों को जीत लिया, जिससे उनका यश चारों ओर फैल गया। तत्पश्चात् अधीनस्थ शासकों से अपार धन एकत्रित कर वे हस्तिनापुर लौट आए। एक बार राजा पांडु के मन में वन-विहार की इच्छा जागृत हुई। तब वे हस्तिनापुर का राजकाज […]

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राजकुमारों का विवाह – महाभारत

महर्षि व्यास के कहे अनुसार धृतराष्ट्र जन्म से ही नेत्रहीन थे, जबकि पांडु शारीरिक रूप से दुर्बल थे। इनके विपरीत विदुर पूर्णतः स्वस्थ थे। तीनों बालक भीष्म की छत्र-छाया में पल रहे थे। उन्होंने उनकी शिक्षा-दीक्षा की उचित व्यवस्था की थी। धृतराष्ट्र नेत्रहीन होने के बाद भी जहां अतुलनीय शारीरिक शक्ति से सम्पन्न थे, वहीं […]

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पूतना का उद्धार – महाभारत

पापी कंस जान चुका था कि उसके काल ने जन्म ले लिया है। उसने उसी समय पूतना नामक राक्षसी को बुलवाया। पूतना ने ही अपना दूध पिलाकर कंस का पालन-पोषण किया था, इसलिए कंस में दैत्य-गुणों का समावेश था। पूतना भयंकर गर्जन करती हुई कंस के सामने उपस्थित हुई। कंस प्रसन्न होकर बोला‒ “पूतना! मायावी […]

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सूर्य-पुत्र कर्ण – महाभारत

यदुवंशी राजा शूरसेन अवंती (उज्जैन) में राज्य करते थे। उनका एक फुफेरा भाई था, जिसका नाम कुंतिभोज था। कुंतिभोज और शूरसेन में अत्यंत प्रेम था। कुंतिभोज की कोई संतान नहीं थी। शूरसेन ने उन्हें वचन दिया था कि वे अपनी पहली संतान उन्हें दे देंगे। कुछ समय बाद शूरसेन के घर एक पुत्री ने जन्म […]

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बैल का गोबर – महाभारत

प्राचीनकाल में वेदमुनि नामक एक परम विद्वान ऋषि हुए। वे राजा जनमेजय और पौष्य के राजगुरु थे। उनके अनेक शिष्य थे। उनमें उतंक बहुत बुद्धिमान और आज्ञाकारी था। वे उसे सबसे अधिक चाहते थे। जब भी किसी कार्य से वे बाहर जाते तो आश्रम का सारा भार उसे सौंप देते थे। एक बार किसी कार्यवश […]