जब भगवान श्रीकृष्ण और बलराम ने रंगभूमि में प्रवेश किया, उस समय कुवलयपीड़ के विशाल दांत शस्त्र-रूप में उनके हाथों में सुशोभित थे। उनके शरीर पर पसीने की बूंदें रत्नों की भांति प्रकाशित हो रही थी। उनका मुखमण्डल सूर्य के समान आभायुक्त था। कुछ ग्वाल-बाल उनके पीछे चल रहे थे। उन्हें इस प्रकार रंगभूमि में आते देख प्रजाजन आनन्दित हो गए।
कुवलयपीड़ के वध की सूचना कंस को पहले ही मिल चुकी थी। अतः उसने महोत्सव आरम्भ करने की आज्ञा दे दी। चारों ओर नगाड़े आदि का तीव्र स्वर गूंज उठा और दर्शक सावधान होकर दंगल देखने के लिए तैयार हो गए। कंस के संकेत पर चाणूर नामक योद्धा ने श्रीकृष्ण और बलराम को मल्लयुद्ध के लिए ललकारा। श्रीकृष्ण ने चुनौती स्वीकार कर ली। तब वे स्वयं चाणूर से और बलराम मुष्टिक नामक योद्धा से जा भिड़े। इस प्रकार कुश्ती प्रारंभ हो गई।
कंस के अजेय योद्धाओं का दो बालकों से मल्लयुद्ध देखकर सभाजन भयभीत हो गए। तभी श्रीकृष्ण ने शत्रु का संहार करने का निश्चय कर चाणूर की दोनों भुजाएं पकड़ लीं और उसे घुमाकर भूमि पर दे मारा। वह तत्क्षण प्राणहीन हो गया। इसी प्रकार बलराम ने मुष्टिक पर प्रहार किया, जिससे वह खून उगलता हुआ निष्प्राण हो गया। इसके बाद बलराम ने कूट नामक योद्धा को भी मार डाला। इधर श्रीकृष्ण ने अपने पैर की ठोकर से शल का सिर धड़ से अलग कर दिया और तोशल नामक दैत्य को तिनके के समान चीरकर दो टुकड़ों में बांट दिया। पांचों योद्धाओं के मरते ही शेष योद्धा मैदान छोड़कर भाग गए।
कंस के समस्त योद्धाओं का संहार करने के बाद भगवान श्रीकृष्ण क्रुद्ध होकर बड़े वेग से कंस के सिंहासन के निकट पहुंचे। कंस ने तलवार उठा ली और श्रीकृष्ण पर प्रहार करने लगा, किंतु एक के बाद एक आक्रमणों से कंस उनका कुछ भी नहीं बिगाड़ सका।
कंस के कंक और न्यग्रोध आदि आठ छोटे भाई थे। जब उन्होंने कंस को मृत्यु के मुख में देखा तो वे श्रीकृष्ण की ओर दौड़े, किंतु बलरामजी ने एक ही वार से उन सबको काल का ग्रास बना दिया।
इधर भगवान श्रीकृष्ण ने कंस के केश पकड़कर उसे रंगभूमि पर गिरा दिया। तदंतर वे उसका गला दबाने लगे। शीघ्र ही कंस निष्प्राण हो गया। चूंकि कंस भययुक्त होने के कारण सदा भगवान का चिंतन करता था, इसलिए उसे भगवान ने अपना परमधाम प्रदान किया।
