हम दोनों साथ-साथ पढ़ते, खेलते, टीवी देखते, लंच करते। मां पापा ने इस पर कभी कोई आपत्ति नहीं की क्योंकि पढ़ाई में हम दोनों ही अव्वल आते, परीक्षा परिणाम जब आते प्रथम एवं द्वितीय स्थान पर हम दोनों सहेलियां ही काबिज रहती। मान्या एक बिंदास, हंसमुख, जिंदादिल, सबसे जल्दी घुलने मिलने वाली, मिनटों में दोस्ती करने वाली खुशमिजाज लड़की थी। इसके विपरित मैं शर्मीली संकोची और अंतर्मुखी व्यक्तित्व की थी। जूनियर से लेकर सीनियर तक सबसे मान्या की मित्रता थी। सब उसको जानते थे पर मैं किसी से जल्दी घुलमिल नहीं हो पाती थी। व्यक्तित्व में जमीन आसमान का अन्तर होने के बावजूद हमारी दोस्ती एक धरातल पर गाढ़ी थी। हम दोनों साथ-साथ ही कालेज जाते। मैं मान्या को लेने उसकी कालोनी जो मेन रोड से 2 किमी अन्दर थी, रिक्शा लेकर जाती और दोनों सहेलियां साथ-साथ कालेज जाती।

हम सब विज्ञान वर्ग के विद्यार्थी थे। जब प्रैक्टिकल पीरियड होता और जब विभिन्न जन्तुओं को विच्छेदन करना होता चाहे मेढक, काकरोच, कुछ भी चीरना फाड़ना हो मुझे उल्टियां आने लगती, हृदयगति बढ़ जाती, पसीने छूटने लगते पर मान्या की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ता। वह सामान्य भाव से अपना विच्छेदन तो करती, मेरे भी जन्तु को उठा कर ट्रे में पिन अप कर देती। परीक्षा के दौरान सर की नजर बचा कर कई बार वह मेरा प्रैक्टिकल कर देती।

एक बार जाड़े की छुट्टियों मे मान्या ने पिकनिक का प्रोग्राम बनाया पहले तो मां पापा राजी नहीं हुए पर पापा ने एक शर्त पर जाने की इजाजत दे दी कि हमारे यहां काम करने वाले रामदीन काका हमारी हिफाजत के लिये पिकनिक स्थल के आस-पास ही रहेंगे। खैर पापा की सहमति मिल गयी ड्राईवर हमें पिकनिक स्थान पर छोड़कर चला गया। मान्या ने मुझसे कहा था कि वहां दो या तीन और सहेलियां ही होगी, पर मैंने देखा उसने सुशांत जो हमारी कक्षा में हमारा सहपाठी था और उसके एक मित्र को भी आमंत्रित कर लिया है। मुझे उस पर बहुत गुस्सा आया। मेरा विचार था कि हम सहेलियां आपस में स्वच्छंद महसूस करेगी और आनन्द लेंगी मुझे लड़कों के बीच असुविधा हो रही थी।

मैंने उसे धीरे से आंख दिखायी वह मेरा इशारा समझ गयी मुझे कोने में ले गयी उसने कहा अगर मैं पहले से बता देती कि लड़के भी पिकनिक पर आमंत्रित हैं तो तू कभी ना आती। मैंने कहा पर ये तूने बहुत गलत किया मान्या मैंने मां पापा को भी नहीं बताया मैं उनसे कुछ भी नहीं छुपाती हूूं। अरे यार चलो ये कोई इतनी बड़ी बात नहीं है जो तुम इतना परेशान हो रही हो। मैंने तो अपने घर में बताया है कि मैं तुम्हारे घर पर हूं। किसी को भी नहीं पता कि हम यहां आये हैं। मैं चौंक गयी और सोचने लगी ये लड़की कितनी बातें घर वालों से छुपाती है तो कुछ भी मां पापा को बताये बिना नहीं करती तभी मैंने देखा दूर से रामदीन काका हमारी हाल खबर लेने चले आ रहे हैं। मान्या बड़ी शातिर थी, लपक कर काका के पास गयी और उनसे कहा काका आप कहां यहां हमारे बीच बैठ कर उबेंगे। वहीं सामने कैफेटेरिया है आप वहां चाय नाश्ता करिये। जरूरत होगी तो हम आपको बुला लेंगे।

मेरा मूड़ उखड़ चुका था मैंने पिकनिक में कुछ खास उत्साह नहीं दिखाया। सबने जोक सुनाये, अंताक्षरी हुई मान्या और सुशांत दोनो जोर-जोर से फिल्मी गाने गा कर एक दूसरे को चैलेंज दे रहे थे। मान्या ने बहुत जोर दिया पर मैंने पूरे गेम में एक भी गाना नहीं गाया। कारण दो थे एक तो पूरे समय मैं अपराध बोध से ग्रस्त थी कि मैं लड़कों के साथ हूं अौर मां पापा को ये नही पता। दूसरे उन लड़कों से मेरी कोई विशेष जान पहचान तो थी नहीं, ना मैं जल्दी मित्रवत् होने वाले स्वभाव की थी।

पिकनिक से लौट कर मैंने मां को तुरंत बताया। मां ने कहा पर ये तो कोई बड़ी बात नहीं थी, मान्या को पहले ही बता देना चाहिये थी। छुपाने जैसी क्या बात थी। मैंने गुस्से से कहा मां मान्या बहुत बड़ी झूठी लड़की है वह घर पर भी झूठ बोलकर पिकनिक गयी थी। मां ने कहा बेटा ये तो बहुत गलत किया उसने। खैर जाने दो सभी उंगलियाॅं बराबर तो नहीं होती। विचारों व्यवहारों में भेद होता है पर समाज में हमें हर प्रकार के लोग मिलते हैं। छोटी-छोटी बातों को जी से नहीं लगाना चाहिये।

परीक्षाओं के पहले ही कालेज में छात्रसंघ के चुनाव होने वाले थे। हर तरफ गहमागहमी का माहौल था और चहुॅं ओर कुर्ता पैजामा धारी नेता जी के साथ आठ दस गुर्गे चुनाव प्रचार करते दिख जाते थे। कालेज आते जाते छात्राओं से हाथ जोड़कर बहन जी हमें ही वोट दीजियेगा, जैसे जुमलों से साक्षात्कार होता रहता। इतना ही नहीं क्लास में भी बीच लेक्चर के प्रोफसर साहब से दो मिनट का समय मांगकर चुनावी भाषण भी दिये जा रहे थे और वोट देने की अपील की जा रही थी। हमने अभी तक अपना लाइब्रेरी कार्ड और आई कार्ड नहीं बनवाया था क्योंकि अन्य औपचारिकताओं के साथ-साथ अनेक प्रकार के हस्ताक्षर की आवश्यकता होती जिसके लिये लम्बी कतारों में खड़े रहना होता। मान्या ने मुझसे कहा यही मौका है ला मुझे अपने लाइब्रेरी कार्ड और आई कार्ड दे, मैं बनवाती हूँ। मैं बिना कुछ सोचे समझे उसके पीछे हो ली। उसने एक छात्र नेता को पकड़ा और उससे अपने और मेरे कार्ड की सभी हस्ताक्षर पूरा करवा लाने की बात कर ली और उसको आश्वस्त किया कि हमारा वोट उसे ही जायेगा।

पहले तो मैंने ध्यान नहीं दिया पर जब घर लौट रही थी तो मन में अनेक विचार आने लगे जैसे कार्ड में तो मेरी फोटो है, मेरा पूरा पता है, फोन नं है ये नेता वेता टाइप के लड़कों का चरित्र पता नहीं कैसा होगा। मान्या के चक्कर में पड़कर मैंने अपनी पूरी जानकारी एक अन्जान शक्स के हाथों में सौंप दी है मन चिन्ता से घिर आया। जैसे ही घर पहुंची, तुरन्त पापा से सारी बातें साझा की। पापा ने कहा चलो अब दे दिया है तो कोई बात नहीं है, पर बेटा ये मौकापरस्ती अच्छी बात नहीं। वोट उसको दो जो उसके योग्य है, अपना काम स्वयं करना सीखो। चुनावी मौसम में चंद हस्ताक्षर और इधर-उधर की भागदौड़ से बचने के लिए वोट के बदले काम करवाने का तरीका सही नहीं है। शाम को वह छात्रनेता मेरा कार्ड लेकर घर पर हाजिर हो गया, लेकिन मैंने बिना अन्दर आने को कहे दरवाजे से ही उसको चलता कर दिया।

अब हम स्नातक पूरा करके परास्नातक छात्रायें थी। इसी बीच एक ऐसी घटना घटित हुई जिसने मेरा जीवन के प्रतिदृष्टिकोण परिवर्तित कर दिया। हम सब परास्नातक प्रथम वर्ष में थे। मान्या अब थोड़ा शान्त रहने लगी थी, मुझे लगा शायद पढ़ाई का तनाव हो। परीक्षाएं नजदीक थीं, पूरे लाइब्रेरी में अनुवांशिकी की केवल एक ही किताब थी, जो मान्या ने अपने नाम पर ईशू करायी थी। मुझे भी नोट्स बनाने के लिए वही चाहिए थी। जब मैने उनसे किताब मांगी तो उसने अनमने मन से कहा, मैंने किसी को दे दी है, मेरे पास नहीं है। पर ऐसा कैसे हो सकता है कि तुम्हे पता नहीं, मैंने पूछा। इस पर वह कुछ झल्ला सी गयी। उसने कहा कि क्लास में पता कर लेना, किसके पास है, मुझे नहीं पता। उसकी यह बात मन को ऐसी लगी कि बयां कर पाना संभव नहीं है। सोचा अब मान्या से कभी बात नहीं करूंगी।

दोस्ती का महल एक रेतीले टीले की तरह भरभरा कर गिरने लगा। मैं भावनाओं को नियंत्रित करने की नाकाम कोशिश कर रही थी। पर मेरी आंखें मेरा साथ देने को नहीं तैयार थी। आंसुओं की धारा बह निकली और हृदय को चीरती मेरा दामन भिगोये जा रही थी। मुझसे इतनी गहरी दोस्ती और वह बताना भी मुनासिब नहीं समझ रही कि किताब किसे सौंप दी। खैर अपने आपको संभाला। घर पहुंची तो मां चेहरा देखते ही समझ गयी कि मूड खराब है। क्या बात है बेटा, क्या हुआ। इतना सुनना था कि मां की गोद में सर रखकर सिसक- सिसक कर रोने लगी। मां ने आंसू पोंछे और कहा, अरे पगली बस इतनी छोटी सी बात को तूने दिल से लगा लिया। पहली बात अगर उसने तुझे किताब ना देकर किसी और को दे दी तो क्या हुआ, तू उससे ले लेना। कल क्लास में जाकर पूछ लेना पता चल ही जायेगा और दूसरी बात बेटा छोटी-छोटी बातें जो दिल को दुखाती है, उनको स्वयं पर हावी नहीं होने देना चाहिए। आज तुम सब पढ़ रहे हो, साथ हो, कल तुम ना जाने कहां होगी, मान्या ना जाने कहां होगी। शायद चाहकर भी एक दूसरे से ना मिल पाओगी। तो  गुस्सा करने की कोई बात नहीं, कल सामान्य भाव से कालेज जाओ और मान्या से सामान्य भाव से मिलो। किसी भी बात के लिये दोस्ती जैसा अनमोल रिश्ता नहीं टूटना चाहिये।

मां की बातें मेरे भीतर सकारात्मक उर्जा का संचार कर रही थी मन को ठेस तो लगी थी, पर भावनाओं का आवेग धीरे-धीरे शान्त हो रहा था।एक दूसरे दिन सामान्य भाव से कालेज गयी रोज की तरह मान्या की कालोनी में जाकर उसे भी रिक्शे पर बिठाया और ऐसा प्रतीत करती रही जैसे सब कुछ सामान्य है। पर चोर की दाढ़ी में तिनका तो होता ही है। मान्या सफाई देने लगी, विमी वो किताब दरअसल मुझसे सुशांत ने मांग ली थी। तू उससे ले लेना। मैंने कहा, ठीक है, मैं ले लूंगी। क्लास में लंच टाइम पर एक दिन मान्या अपनी कापियां मुझे देकर कैंटीन से समोसा लाने चली गयी। मैं उसकी कापी के पन्ने पलट रही थी। पीछे के पृष्ठ पर कुछ पंक्तियाॅं लिखी देखी। एक लाइन में लिखा था ‘‘टूडे यू आर लुकिंग बेरी ब्यूटीफुल”। फिर दूसरी लाइन मान्या की हैंडराइटिंग में भी ‘‘यू आर आल्सो लुकिंग वेरी स्मार्ट” फिर किसी और की लिखावट ‘‘आई लव यू मान्या” मान्या का जवाब ‘‘आई लव यू टू” ‘‘यू आर माई लाइफ सुशांत” मैंने सोचा, तो ये कारण है जो आजकल ये मुझसे दूर दूर रहती है। इसे सुशांत से प्यार हो गया है और ये मुझसे छिपा रही है। तभी वो समोसे लेकर आ गयी। साथ में सुशांत भी था अनुवांशिकी की किताब उसके हाथ में थी। उसने कहा, विमी मैं ये किताब तुम्हें कल या परसों दे दुंगा। मेरे नोट्स बस बनने ही वाले हैं। मैनें अपनी स्वीकारोक्ति दे दी। घर लौटते वक्त मान्या मेरे बगल में थी। मैं चुप थी, मुझे इस बात का दुख नहीं था कि उसे किसी से प्यार था, पर कष्ट इस बात का था कि इसने मुझसे ये बात छिपाई।

खैर दिन पंख लगा कर उड़ गये हम सब कालेज छोड़ चुके थे। मान्या की शादी उसके घर वालों की मर्जी से हुई। बाद में पता चला कि सुशांत विक्षिप्त हो गया है और उटपटांग हरकतें करता हुआ पागलखाने में भर्ती हो गया है। शायद मान्या को ना पाने की वजह से डिप्रेशन में चला गया था। मेरा भी विवाह तय हो चुका था। और मैं काशी हिन्दुविश्वविद्यालय की रिसर्च एंट्रेस परीक्षा की तैयारी कर रही थी। तभी एक दिन डोर बेल बजी। रामदीन काका ने कहा, मान्या आयी है। वह मुझसे और मां से मिलने आयी थी, क्योंकि वह स्वयं भी मां बनने वाली थी। बचपन से लेकर जवानी तक का समय एक चलचित्र की भांति मेरे सामने से गुजर गया। मुझे याद आने लगा, कैसे मान्या ने झूठ बोलकर मेरी पिकनिक खराब की, चुनाव के समय मुझे तनाव में डाल दिया, मुझे बिना बताये परीक्षा के वक्त किताब सुशांत को दे दी। सुशांत आज उसी की वजह से डिप्रेशन में था और उसका कैरियर खराब हो गया। पागलखाने तक पहुंच गया।

तस्वीर का दूसरा रुख भी मेरे सामने था, जैसे कैसे प्रैक्टिकल क्लासेस में मान्या ही मेरी मदद किया करती थी। कैसे सारा दिन छुट्टियों में हम साथ-साथ हंसते खेलते गुजार देते और वो क्लास के बाद प्रोफसरों की नकल उतार कर हम कितना हंसा करते। जीवन के हजारों छोटी-छोटी खुशियों के पल शायद इसलिये इतने खुशगवार थे, क्योंकि उन पलों में मान्या मेरे साथ थी। चंद बुरी यादों के कारण मैं दोस्ती जैसा अनमोल रिश्ता नहीं तोड़ सकती। मां की सीख याद आने लगी। जीवन में हमें अच्छे बुरे खट्टे मीठे रंग बिरंगे अनुभव मिलते हैं जो जीवन को खूबसूरत और रोचक बनाते हैं। ठीक उसी प्रकार जैसे बारिश के बाद जब आसमान में इन्द्रधनुष निकलता है।

वह इसीलिये इतना सुन्दर प्रतीत होता है कि उसमें विभिन्न रंगों का अक्स होता है। सोचो अगर इन्द्रधनुष में एक ही रंग होता तो क्या वह इतना सुन्दर दिखता। पांचों उंगलियां भी एक बराबर नहीं होती। हर इंसान में खूबियों और खामियों का मिला जुला अक्स होता है। हम किसी भी रिश्ते को तभी तक निभा सकते हैं जब व्यक्ति को उसकी अच्छाइयों और बुराइयों के साथ स्वीकार करें। भ्रम के बादल छंटने लगे थे। भावनाओं की इंद्रधनुषी छटा बिखर गयी थी मैं तेजी से उठी और पल्लू झटकने के साथ ही बुरी यादों को परे झटक कर ड्राईंगरूम की तरफ दौड़ पड़ी। मान्या शादी के बाद कितनी मोटी हो गयी हो। उसकी आंखें पनीली थी और उनमें अनेक प्रश्न, उलाहने, प्रेम की परछाईयां दिख रही थीं। उसने कहा एक बार भी फोन नहीं किया विमी, मुझे भूल ही गयी तू। तूने भी कहां याद किया वुड बी मदर, कहते हुये मैंने उसे गले से लगा लिया। उसकी मुझे जोर से भींच लिया हृदय मिल गये थे। दोनों तरफ भावनाओं की बाढ़ आ गयी और आंखाें से सैलाब बह निकला, जो शायद अपने साथ सारी बुरी यादें बहा कर ले जा रहा था।

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