मनोज अमीर माँ बाप का इकलोता बेटा था। घर में किसी चीज़ की कमी न थी उसकी हर जिद्द पूरी की जाती थी। उसके पिताजी की कई फैक्टरियां थी। उनकी इच्छा थी कि मनोज बडा होकर उनका कारोबार सम्भाले, लेकिन शायद किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था। बचपन से ही मनोज का मन पढाई में नहीं लगता था । सारा दिन पार्क में खेलना,मौज मस्ती करना ही उसे अच्छा लगता था ।
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रंग जो छूटे नाहि – गृहलक्ष्मी कहानियां
अरे भाई, जरा ठीक से रिक्शा चलाओ न। क्या सामान समेत नीचे ही गिरा दोगे। रिक्शा वाला बोला, हम क्या करें, रास्ते में इतने गड्ढे हैं कि झटके तो लगेंगे ही। वो बड़ी मुश्किल से बैठ पा रही थी, कभी अपना बैग तो कभी अपनी अटैची सम्भालती। इतना तो विदेश से कानपुर आने में नही परेशान हुई जितना कि अपनी गली में आने से थक गयी और झुंझलाते हुए बोली कि हद हो गयी, इतने सालों बाद कुछ भी नहीं बदला।
सीख अनकही – गृहलक्ष्मी कहानियां
पति सोमेश के एक हफ्ते के टूर पर जाते ही पूनम ने भी अपना मन मायके में जाने का बना लिया, क्योंकि दोनों बच्चे भी समर कैैंम्प के लिये गये हुए थे। मन इतना खुश था कि रात को ही मां को फोन करके अपने आने की सूचना भी दे दी।
इंसानियत की खातिर – गृहलक्ष्मी कहानियां
प्लीज मेरी मदद कीजिये भगवान के लिए, प्लीज इंसानियत की खातिर तो मदद कीजिये। कृपा करके आप जाइए, कह कर फटाक की आवाज के साथ दरवाजा बंद हो गया। पाठक जी खोलिए न दरवाजा, क्या करें, कोई हमारी मदद करने को तैयार नहीं है, फिर मिश्रा अंकल आपने तो सब कुछ देखा है कि हमारी बेटी के साथ क्या किया उन लोगों ने, पूरे मोहल्ले वालों ने देखा है, फिर भी कोई मदद के लिए तैयार नहीं है।
बुआ फिर आना – गृहलक्ष्मी कहानियां
छोटी सी मिनी पर इतना सारा पढ़ाई का बोझ, उसपर टीचर और मां की डांट। घर आई मिनी की बुआ ने ऐसा क्या किया कि हमेशा उदास रहने वाली मिनी अब खिलखिलाती रहती। कभी बुआ से कहानी सुनती तो कभी उन्हें कविता सुनाती…
मुफ्तखोरी की महिमा – गृहलक्ष्मी कहानियां
कई बार तो मुफ्त में मुंह की खानी पड़ती है। मुफ्त में दिमाग खाने वाले हर जगह उपलब्ध हैं। कल ही महंगाई कहने लगी, ‘मैं जान दे दूंगी, पर ठंडे चूल्हे पर आंच नहीं आने दूंगी’, महंगाई की इस जिद का भी मुफ्तखोरी पर कोई असर नहीं दिखता।
मां का श्राप – गृहलक्ष्मी कहानियां
रात के करीब डेढ़ बज रहे थे कस्बे में गहन सन्नाटा छाया हुआ था लेकिन सावित्री के घर से बच्चे के रोने की आवाजें लगातार आ रही थीं। बिजली चली गई थी सावित्री ने मिट्टी के तेल की लालटेन जला दी, मगर उसके तीन महीने के मुन्ने का रोना बंद नहीं हो रहा था सावित्री ने बच्चे को चुप कराने का हर संभव प्रयास किया मगर सब बेकार ही रहा।
वसीयत और वारिस – गृहलक्ष्मी कहानियां
रमन के इनकार ने काव्या को चिंतित कर दिया था। वह यही सोच कर परेशान थी कि अब वह वसीयत उसके वारिस तक कैसे पहुंचा पाएगी। आखिर क्या थी वसीयत की पहेली और काव्या का बदला…
सवालों के दायरे में जिंदगी – गृहलक्ष्मी कहानियां
सुनयना कॉलेज से आई ही थी कि घर की हालत देखकर परेशान हो गई। अस्त-व्यस्त पड़ा सामान, नौकरानी के ना आने की चुगली कर रहा था। थकी मांदी सुनयना को गुस्सा तो बहुत आया। किचन में गई तो वॉश बेसिन में पड़े झूठे बर्तन जैसे उसे चिढ़ा रहे थे। इसका मतलब राधा आज भी नहीं आई थी। सुनयना के कॉलेज में सुबह जल्दी क्लासेज होती थी। दोपहर में घर आकर खाना बनाने का मूड ही नहीं होता था। गुस्से को शांत कर अब वह काम में जुट गई। फ्रीज से ब्रेड निकालकर नाश्ते से ही काम चला लिया। कॉलेज की सर्विस आसान थोड़े ही थी। लेक्चर तैयार करने के लिए स्टडी करने में ही वह थक जाती थी।
सरप्राइज गिफ्ट – गृहलक्ष्मी कहानियां
‘‘जन्मदिन की बहुत बहुत शुभकामनाएं” कहते हुए संजना ने गुलाब का फूल अपनी मॉम रंजना को दिया और गले लग गई, रंजना ने भी उसके सिर पर हाथ रखते हुए आशीर्वाद दिया।
तब तक सोमेश ने भी एक पैकेट रंजना हाथ में देते हुए, ‘‘हैप्पी बर्थ डे, रंजना जी ‘‘कहा तब रंजना ने ‘‘थैंक्स” कहते हुए हाथ जोड़ लिए।
