मुफ्तखोरी की महिमा का भी जबाब नहीं। महंगाई का मुंह सुरसा जैसा कितना भी बड़ा हो जाये, मुफ्तखोरी का वजूद बरकरार रहेगा। महंगाई कितनी भी बढ़ जाये, धोखे मुफ्त में खाये जा सकते हैं। महंगाई के बारे में सोचते-सोचते चक्कर खाकर गिर सकते हैं। पर यकीन कीजिये गिरने का पैसा नहीं लगेगा। और लगे भी क्यूं पैसा तो उठाने का काम करता है। पैसों के लिए गिर जाना और बात है। कई बार तो मुफ्त में मुंह की खानी पड़ती है। मुफ्त में दिमाग खाने वाले हर जगह उपलब्ध हैं। कल ही महंगाई कहने लगी, ‘मैं जान दे दूंगी, पर ठंडे चूल्हे पर आंच नहीं आने दूंगी’, महंगाई की इस जिद का भी मुफ्तखोरी पर कोई असर नहीं दिखता।
इतिहास गवाह है जब-जब मुफ्त में रियासत देने की बात की गई, हम राष्ट्र के साथ गद्दारी करने में भी पीछे नहीं रहे। हम आज भी पुरखों के पदचिन्हों पर चलने की कोशिश करते हैं। पर पहले पदचिन्हों की जांच पड़ताल कर लेते हैं कि इन पदचिन्हों पर चलना हमारे लिए कितना लाभकारी है।
यदि कोई नेताजी आवश्यक सुविधायें मुफ्त में मुहैया कराने का वादा भर कर लें तो उनका चुनाव जीत जाना निश्चित है। अगले चुनाव में वादा वही, चेहरा अलग। भोली जनता खुद सफलता की गारन्टी देती है और अपने भोलेपन का प्रमाण भी। और फिर सबकी मांग पूरी न कर पाने में कोई बुराई भी नहीं है। भगवान भी सबकी मांग कहां पूरी करता है। पहले विश्लेषण करता है। कर्मों का लेखा-जोखा करता है। फिर निर्णय लेता है। नेताजी को तो लेखा- जोखा करने में ही पांच वर्ष निकल जाते हैं। बेचारे नेताजी इतने कम समय में कैसे सबकी मांग पूरी करें।
पड़ोसी जब आपके पढऩे से पहले पूरा अखबार चट कर जाये तो मुफ्त में हुई उसके आनन्द की अनुभूति की व्याख्या करना अत्यन्त दुष्कर कार्य है। सेंटा क्लॉज लोकप्रिय इसलिए हुआ कि वो मुफ्त उपहार बांटता था। भगवान भी तो प्रकृति माध्यम से जल, वायु, फल, औषधि सब मुफ्त में प्रदान करता है।
आप किसी को कुछ भी मुफ्त में देकर देखिये। कोई आपके लिए मुफ्त में मुस्करा भर दे, मुफ्त में मिली ये खुशी दिलो-दिमाग पर छा जाती है। आप उस व्यक्ति की अनुपस्थिति में आंख बंद कर सोचें, आपको वही मुस्कराता हुआ चेहरा दिखाई देगा।
व्यापार जगत के लोगों ने इस पर फोकस किया। जिसका नतीजा है कि ‘एक के साथ एक मुफ्त ऑफर’ सफल है।’ तीन साबुनदानी पर तीन चम्मच मुफ्त ऑफर’ का नतीजा है कि हमारे घर में पच्चीस साबुनदानी हैं। प्रत्येक साबुनदानी की औसत आयु दो वर्ष भी लगाई जाये तो लगभग पचास वर्ष के लिए साबुनदानी उपलब्ध हैं। साबुन की टिकिया हम हर महीने खरीदते हैं।
लेकिन साबुनदानी बचे हुए जीवन भर के लिए खरीद ली हैं। सुख ये है कि चम्मच मुफ्त में मिले। तात्पर्य ये कि मुफ्त में मिली चीजों की कद्र कीजिये, आपने क्या गंवाया, उसे नजरअंदाज कीजिये। मुझे बचपन में एक बार राह में पड़ी घड़ी की चेन मिली थी। मुफ्त में मिली ये चीज मेरे लिए इतनी अजीज थी कि कई दिनों तक अपने संदूक में रखने के बाद हिम्मत करके पिताजी से बोला, ‘इसमें घड़ी लगवा दीजिये।’ पिताजी ने एक बात बोली, मौजूदा वक्त के वास्ते से। सफलता सबको चाहिए मगर छोटे रास्ते से। जरूरतों को समेट लिया उसने और खर्च हो गया विचारों के विस्तार में। मुफ्त में मिली खुशी की कद्र की उसने, इष्र्या हाथ पसारे खड़ी रह गई कतार में।
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